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👉 चेन्नई: श्रीमती राजश्री गधैया का संथारा सम्पन्न
प्रस्तुति: 🙏🏻 *संघ संवाद* 🙏🏻
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News in Hindi
👉 *परम पावन गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी* के *"चेन्नई नगर प्रवेश"* पर आयोजित *समारोह* एवं आज के *"मुख्य प्रवचन" के* कुछ *मनोरम दृश्य..*
👉 स्थान: *डि. वी. एस. हायर सेकेंडरी स्कूल, मिंजूर*
👉 *पूज्य गुरुदेव मंगल "प्रेरणा पाथेय" प्रदान करते हुए..*
👉 *सभी* स्थानीय एवं तमिलनाडु राज्य भर की कई संघीय *संस्थाओं ने किया पूज्यप्रवर का स्वागत - अभिनंदन*
दिनांक: 05/07/2018
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 368* 📝
*जग-वत्सल आचार्य जिनेश्वर*
*आचार्य बुद्धिसागर*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
ब्राह्मण पुत्रों श्रीधर और श्रीपति ने श्रेष्ठी लक्ष्मीधर को चिंतित देखकर उसकी उदासी का कारण जानकर उससे कहा— "महानुभाव! आप खिन्न न बनो। हम पहले जब भिक्षा के लिए यहां आए थे तब हमने दीवारों पर लिखे अभिलेखों को पढ़ा था। वह हमें पूर्णतः याद हैं।" दोनों ने तिथि, वार, संवत् सहित सारा लेखा-जोखा लिखकर श्रेष्ठी के सामने प्रस्तुत किया। लक्ष्मीधर उनकी स्मरण शक्ति पर प्रसन्न हुआ। भोजन, वस्त्र आदि विपुल दान देकर उनका सम्मान किया। श्रेष्ठी ने सोचा शांत प्रकृति, जितेंद्रिय, बुद्धि बल के धनी इन ब्राह्मण पुत्रों के योग से जैन दर्शन की महान् प्रभावना संभव है। संयोग से वर्धमानसूरि का पदार्पण धारा नगरी में हुआ। श्रेष्ठी लक्ष्मीधर इन दोनों ब्राह्मण पंडितों को अपने साथ लेकर वर्धमानसूरि के पास गया। वंदना की एवं हाथ जोड़कर उनके उपपात में सब बैठ गए। वर्धमानसूरि श्रेष्ठ लक्षण युक्त इन ब्राह्मण पुत्रों को देखकर प्रसन्न हुए। धर्म मूर्ति वर्धमानसूरि के दर्शन कर इन ब्राह्मण पुत्रों के हृदय में वैराग्य भाव का उदय हुआ। श्रेष्ठी लक्ष्मीधर से इनका पूरा परिचय प्राप्त कर वर्धमानसूरि ने दोनों को मुनि दीक्षा प्रदान की। इन दोनों की दीक्षा में लक्ष्मीधर श्रेष्ठी की प्रबल प्रेरणा थी। दीक्षा देने के बाद योग वहनपूर्वक इनको वर्धमानसूरि ने सिद्धांतशास्त्र का प्रशिक्षण दिया एवं कुछ समय के बाद इनको योग्य समझकर इनकी नियुक्ति सूरि पद पर की।
एक बार युगल बंधु वर्धमानसूरि का आशीर्वाद एवं समुचित मार्गदर्शन प्राप्त कर गुजरात प्रदेशांतर्गत पाटण पधारे। पाटण में सुविहितमार्गीयों के लिए प्रवेश सुगम नहीं है, यह उन्हें वर्धमानसूरि से पहले ही ज्ञात था। गुजरात राज्य की विक्रम संवत 802 में नींव डालने वाला वनराज चावड़ा चैत्यवासी श्रमणों का परम भक्त था। राज्याभिषेक के अवसर पर उन्हें चैत्यवासी शीलगुणसूरि एवं देवचंद्रसूरि से वासक्षेपपूर्वक आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। तब से वनराज चावड़ा ने ताम्रपत्र में लिखित आदेश दिया चैत्यवासी श्रमणों की सहमति से ही अन्य श्रमण पाटण में रह सकते हैं। उस समय से चैत्यवासी मुनियों का पाटण में वर्चस्व बढ़ गया और सुविहितमार्गी मुनियों का आवागमन तब से बंद हो गया। जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि को भी पाटण में कहीं ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं मिला। दोनों बंधु आखिर सोमेश्वर देव पुरोहित के घर पहुंचे। पुरोहित सोमेश्वर इन दोनों के शिष्ट व्यवहार एवं मधुर वचनों को सुनकर प्रसन्न हुआ एवं बैठने के लिए आसन दिया। स्वयं कंबल बिछाकर उनके सामने बैठ गया। युगल बंधु पुरोहित को आशीर्वाद प्रदान करते हुए बोले—
*अपाणिपादो ह्यमनो ग्रहीता*
*पश्यत्यचक्षुः स श्रृणोत्यकर्णः।*
*स वेत्ति विश्वं नहि तस्यास्ति वेत्ता*
*शिवो ह्यरुपी स जिनोऽवताद् वः।।57।।*
जो बिना हाथ पैर और मन के भी ग्रहण करता है, नयन बिना भी देखता है, बिना कर्ण के भी सुनता है, सकल विश्व को जानता है पर उसे कोई नहीं जानता, वह अमूर्त्त शिव जिनेश्वर देव संरक्षण प्रदान करें।
*युगल बंधु जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि से आशीर्वाद रूपी श्लोक सुनकर सोमेश्वर देव पुरोहित की क्या प्रतिक्रिया रही...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 22* 📜
*तनसुखदासजी गोलछा*
*मंदिर श्रीसंघ का है*
मूर्ति पूजकों को जब इस प्रकार से अपना उद्दिष्ट सिद्ध होता नहीं लगा तब उन्होंने थोड़ा स्पष्ट होकर कहने की आवश्यकता समझी। फिर भी वे स्वयं सामने आकर कहने का साहस नहीं कर पाए। किसी एक व्यक्ति को समझाकर यह कार्य करवाया गया। प्रतिदिन के समान प्रातः ही जब गोलछाजी वहां गए तब उस व्यक्ति ने उनको वहां सामायिक करने का निषेध करते हुए कहा— "जब आपको मूर्ति में विश्वास ही नहीं है, तो यहां आना ही नहीं चाहिए।"
गोलछाजी इसी दिन की प्रतीक्षा में थे कि कोई उन्हें निषेध करने का साहस करे। उन्होंने भी उस व्यक्ति को माध्यम बनाकर उन सभी के पास अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया, जो उनके आगमन को रुकवाने के प्रयास की जड़ में थे। उन्होंने उस व्यक्ति से कहा— "इस मंदिर में आने तथा सामायिक करने के लिए तुम या तुम्हारे नेता तो क्या, स्वयं सरकार भी मुझे नहीं रोक सकती। यह मंदिर न तुम्हारा है, न तुम्हारे नेताओं का, यह सारे श्रीसंघ का है। यहां श्रीसंघ के किसी भी व्यक्ति को आने-जाने तथा धार्मिक क्रिया करने से रोकने का किसी को अधिकार नहीं है। जिन लोगों ने तुम्हें मेरे पास यह बात चलाने के लिए भेजा है, उन्हें मेरी ओर से कह देना कि दूसरों की आड़ क्यों ली जाती है, रोकने का सामर्थ्य हो तो स्वयं ही सामने क्यों नहीं आ जाते?"
गोलछाजी के मुख से इतनी स्पष्ट बातें सुन लेने के पश्चात् वह व्यक्ति चुपचाप चला गया। परंतु उसके पश्चात् किसी दूसरे का भी यह साहस नहीं हुआ कि उन्हें आने-जाने के संबंध में कुछ कहे। वे निर्बाध रुप से प्रतिदिन वहां जाते रहे और अपनी धर्म क्रियाएं संपन्न करते रहे।
*श्रावक तनसुखदासजी गोलछा ने जब एक दिन मंदिर में श्रीमज्जयाचार्य द्वारा रचित एक गीतिका जिसमें मूर्तिपूजा को आगम विरुद्ध बतलाया गया था... गाई... तब लोगों की उनके प्रति क्या प्रतिक्रिया हुई...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 परम पावन आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती *'शासन स्तम्भ' श्रद्धेय मंत्रीमुनिश्री सुमेरमल जी* स्वामी *का सम्भावित* आगामी *"यात्रा पथ"*...
प्रेषक:
📝 *श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, जयपुर*
सम्प्रसारक:
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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