22.06.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 25.06.2018
Updated: 25.06.2018

News in Hindi

👉 *मुम्बई - इंटरनेशनल अहिंसा रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पिरिचुअल टेक्नोलॉजी (I-ARTIST) का लोकार्पण*

🌀 *महामहिम राज्यपाल की अध्यक्षता में राजभवन में कार्यक्रम आयोजित*

🌀 *मुनि श्री महेंद्र कुमार जी व मुनि श्री कमल कुमार जी की उपस्थिति*
🌀 *माननीय राज्यपाल श्री ने कहा शांति सद्भाव और अहिंसा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने वाले आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ, आचार्य महाश्रमण तथा अन्य पवित्र आत्माओं के उपकारों से ऋणमुक्त होने के लिए I-ARTIST एक सम्यक प्रयास है।*

दिनांक 21-06-2018

प्रस्तुति -🌻 *संघ स्वाद* 🌻

Source: © Facebook

Video

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 22 जून 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 12* 📜

*बहादुरमलजी भण्डारी*

*परिवार और व्यवस्था*

बहादुरमलजी के चतुर्भुजजी और पंचाणदासजी नाम के दो छोटे भाई थे। वे उनका पुत्रों से भी कहीं अधिक ध्यान रखते थे। जब कोई उन्हें पूछता कि भाइयों को इतना महत्त्व देने का क्या कारण है? तो वे कहते— "भाई तो मेरी भुजाएं हैं, उनको न्यून कैसे समझा जा सकता है?"

भंडारीजी के चार पुत्र और एक पुत्री थी। वे पांचों संतानों को समान दृष्टि से ही देखा करते थे। भारतीय समाज पुत्रों को जितना अधिक महत्त्व देता है उतना पुत्रियों को नहीं। पुत्री 'हांती' की अधिकारिणी मानी जाती है 'पांती' की नहीं। फिर भी भंडारीजी ने उस बात की परवाह न करके अपनी संपत्ति के बराबर पांच विभाग किए और उनमें से एक अपनी पुत्री को दिया।

उन्होंने अपने चारों पुत्रों को संपत्ति विभाजन के पश्चात् जो उसका अधिकार पत्र दिया, उसमें सीर की वस्तुओं की सुरक्षा के लिए लिखा— "चारूं भाई सीर नै शील बराबर समझसी।" सीर-साझे को अपनी शील के समान ही पवित्र समझकर उत्तरदायित्व वहन करने की बात उनके हृदय की पवित्रता को तो व्यक्त करती ही है, साथ ही उन व्यक्तियों को दिग्बोध भी कराती है, जो संयुक्त उत्तरदायित्व में बंधते हैं।

*धार्मिक संस्कार*

भंडारीजी एक धर्म प्रेमी व्यक्ति थे। जयाचार्य के प्रति उनकी अपार निष्ठा थी। वे दूर-दूर के क्षेत्रों में भी उनके दर्शन करने जाया करते थे। प्रारंभिक रूप में उन्हें धार्मिक संस्कार अपनी माता के द्वारा प्राप्त हुए। फिर बाल्यावस्था के समय अपने ननिहाल बोरावड़ में रहते हुए साधु-साध्वियों के संपर्क से वे वृद्धिंगत होते रहे। धीरे-धीरे उन्होंने अच्छा तत्त्व-ज्ञान प्राप्त कर लिया। जोधपुर में रहते समय ज्यों-ज्यों उनके उत्तरदायित्वों का विस्तार होता गया त्यों-त्यों धार्मिक संस्कारों और भावनाओं में भी निखार आता गया। अपने नित्य नियम का वे बहुत सजगता से पालन किया करते थे। उनमें किसी प्रकार की ढिलाई उन्हें सह्य नहीं थी। अनर्थ पाप से वे सदैव बचने का प्रयास करते थे। अनासक्त जीवन बिताने के लिए उनकी अपनी साधना निरंतर चलती रहती थी। अपने परिश्रम के द्वारा उन्होंने सैकड़ों व्यक्तियों को सत् श्रद्धालु बनाया। साधर्मिकों के प्रति वे बड़ा आदर भाव रखते थे। उन्होंने संवत् 1916 में श्रावक के बारह व्रत धारण किए। फिर संवत् 1936, 37 एवं 40 में त्याग वृद्धि करते हुए अव्रतों का अधिकाधिक संकोचन किया।

*बहादुरमलजी भंडारी के अटल धर्मानुराग* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 358* 📝

*शिवालय आचार्य शान्ति*

*जीवन-वृत्त*

भीम के पिता श्रेष्ठी धनदेव श्रीमाल सहज धार्मिक वृत्ति के थे। धनश्री भी जैन धर्म के प्रति आस्थावान थी। श्रेष्ठी धनदेव का पुत्र भीम प्रज्ञा बल के साथ शरीर संपदा से भी संपन्न था। कम्बू ग्रीवा, विशाल ललाट एवं जानुपर्यंत प्रलंब भुजाएं उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के संकेतक थीं। हाथ और पैर छत्र, ध्वज और पद्म चिन्हों से सहज अलंकृत थे। शुभ लक्षणों से भूषित बालक भीम पुण्यों का मूर्त रूप था। एक बार विजयसिंहसूरि का उन्नतायु ग्राम में पदार्पण हुआ। वे बालक भीम को देखकर प्रभावित हुए। उन्होंने श्रेष्ठी धनदेव से बालक की मांग की। धनदेव ने महान् कार्य के लिए अपने पुत्र को गुरुदेव के चरणों में अर्पित कर दिया। विजयसिंहसूरि ने बालक भीम को संयम दीक्षा प्रदान की। प्रतिभाबल संपन्न भीम मिथ्यादृष्टि व्यक्तियों के लिए यथार्थ में भीम था। विजयसिंहसूरि ने उनका नाम शांति रखा।

आचार्य सर्वदेव और अभयदेव से उन्होंने विविध प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त किया। शान्त्याचार्य ने आचार्य विजयसिंहसूरि द्वारा आचार्य पद पर अलंकृत होकर उनका सारा उत्तराधिकार सफलतापूर्वक संभाला।

शांतिसूरि दिग्गज मनीषी एवं वाद कुशल आचार्य थे। एक बार शांत्याचार्य का पाटण में पदार्पण हुआ। वे भीमराज की सभा में पहुंचे। उनके पांडित्य से प्रभावित होकर नरेश भीम ने उनको कवींद्र तथा वादी-चक्रवर्ती की उपाधि से अलंकृत किया।

उज्जयिनी के महाकवि धनपाल ने तिलकमञ्जरी कथा रची और उन्होंने अपने गुरु से पूछा "इसकी समालोचना किससे करवानी चाहिए?" तब गुरु ने उनको शांत्याचार्य का नाम बताया। धनपाल शांत्याचार्य से मिलने के लिए उज्जयिनी से पाटण आए। शान्त्याचार्य के दर्शन कर उन्हें अन्तःतोष की अनुभूति हुई।

कवि धनपाल की प्रार्थना करने पर शांत्याचार्य ने मालव-प्रदेश की ओर विहार किया। वे धारानगरी में पहुंचे। राजा भोज की सभा में 84 विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ कर उन्होंने विजय की वरमाला पहनी। राजा भोज शांतिसूरि के शास्त्रार्थ कौशल से प्रभावित हुए। राजा भोज की सभा में पंडितों के समक्ष शांतिसूरि वेताल की तरह अजेय थे। राजा भोज ने उनको वादी-वेताल अलंकरण से मंडित किया।

धारा नगरी में शांतिसूरि कई दिनों तक रहे। वहीं उन्होंने महाकवि धनपाल की तिलकमञ्जरी कथा का संशोधन किया। वहां से विहार कर शांतिसूरि पुनः पाटण में आए। उस समय कवि धनपाल भी उनके साथ था।

*शिवालय आचार्य शान्ति के जीवन-वृत* में आगे और पढ़ेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित कार्यक्रम*

🔹 नोखा
🔹 चामराजपेट (बेंगलुरु)
🔹 राजाजी नगर (बेंगलुरु)
🔹 शंकर पुरम (बेंगलुरु)
🔹 नागपुर
🔹 अहमदाबाद
🔹 कूचबिहार
🔹 कोकराझार

👉 विशाखापट्टनम - आओ घर को स्वर्ग बनाए सेमिनार का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद*🌻

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*मंत्र एक समाधान: वीडियो श्रंखला २*

👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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