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आचार्य श्री के शिष्य मुनि प्रणम्यसागर जी, चंद्रसागर जी, वीरसागर जी, विशालसागर जी, धवलसागर जी.. आज पंचास्तिकार ग्रंथ के गम्भीर स्वाध्याय करते हुए.. ओर आपस में चिंतन मनन करते हुए.. आज मुनि श्री ने बहुत से रोचक ओर गम्भीर विषय को खोला ओर बताया 6 & 7 गुणस्थान में कैसे आना जाना लगा रहता हैं.. कितना बारीकी से इस विषय को खोला ओर कहा प्रमाद नहीं करना.. उदाहरण देकर समझाया अगर मुनिराज देखकर चल रहे हैं अचानक चींटी आजाए तो हिंसा के दोषी नहीं होंगे... मुनि श्री ने कहा ये बातें आचार्य श्री से उन्होंने सुनी ओर समझी हैं 🙂🙂
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सीमा से बाहर जाकर प्रकृति के नियमों से न करें खिलवाड़: #आचार्यविद्यासागर #सिलवानी
सीमा के अंदर रहने से सुख को प्राप्त किए जाने के साथ ही आत्म संतुष्टि तथा शांति का अनुभव प्राप्त होता है। जबकि सीमा के बाहर रह कर कार्य किया तो शारीरिक मानसिक रुप से बीमार होने के साथ ही परिणाम गलत प्राप्त होते है। श्रावक को प्रकृति के द्वारा निर्धारित की गई सीमा के बाहर जाने का दुस्साहस पूर्ण कार्य कर प्रकृति के नियमों का खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
यह बात आचार्य विद्या सागर महाराज ने मंगलवार को श्रावकों को उपदेश देते हुए कही। वह नियमित व्याख्यान में प्रकृत के मापदंड को विस्तारित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धन दौलत को कभी भी सुख व वैभवता का साधन नहीं मानना चाहिए।
धन से विलासिता की सामग्री क्रय की जा सकती है लेकिन आत्म संतुष्टि की सामग्री नहीं खरीदी जा सकती है। आत्म संतुष्टि को पाना है तो धर्म रूपी आचरण को अपना कर सद्मार्ग पर अग्रसर हो, तभी सुख को प्राप्त किया जा सकता है।
आचार्य श्री ने बताया कि वाहन की मशीन डीजल पेट्रोल से चलती है, अन्य मशीनें भी विभिन्न तेल की खुराक से चलती है लेकिन एेसी कोई मशीन दुनिया मे ंनहीं बनी जो शुद्ध घी से चलती हो। मानव का शरीर भी एक गाड़ी की तरह है लेकिन इस गाड़ी में जरूरत से अधिक तेल भरा जा रहा है, बिना सोचे समझे कि परिणाम क्या होगा आवश्यकता से अधिक भराव घातक सिद्ध होता है। मानव को चाहिए कि वह जरूरत के अनुसार ही सामग्री और धन का संग्रह करे। आपने धन का अपव्यय न करने की सीख देते हुए कहा कि जहां जरूरत हो वही पर धन का व्यय किया जाना चाहिए। विदेशी भूमि पर साधु संतों ऋषि मुनियों को सम्मान नहीं दिया जाता है। लेकिन भारत भूमि पर सभी समुदाय के महापुरुषों का सम्मान भावनात्मक रुप से किया जाता है।
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सात अजूबे इस दुनिया में
आठवी दिगंबर मुनि चर्या है....💗
मंदिरों में है जैसे तीर्थकर भगवन
वैसे ही दिगंबर साधुऔं की मुद्रा है....💗
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