22.03.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 22.03.2018

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22-03-2018 Santpur, Kalahandi, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति

महातपस्वी राष्ट्रसंत के ज्योतिचरण पाकर जगमग हुआ संतपुर

  • लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर अखंड परिव्राजक पहुंचे राधाकृष्ण हाइस्कूल

22.03.2018 संतपुर, कालाहांडी (ओड़िशा)ः

लोगों के मानस को पावन बनाते, लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना व अहिंसा यात्रा संग गुरुवार को कालाहांडी जिले के संतपुर में पधारे। महातपस्वी राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर मानों यह संतपुर गांव ज्योतित हो उठा। आचार्यश्री इस गांव स्थित राधाकृष्ण हाइस्कूल में पधारे तो स्कूल के मुख्य द्वार से पहले ही मार्ग के दोनों ओर करबद्ध खड़े विद्यार्थियों, ग्रामीणों व शिक्षकों ने महातपस्वी आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। आचार्यश्री ने दोनों करकमलों से सभी पर आशीषवृष्टि की तो लगा जैसे दर्शन को प्यासे मन रूपी धरती पर आशीर्वाद के मेघ बरस गए और मन की धरती तृप्ति का अनुभव करने लगी।

इससे पूर्व गुरुवार की प्रातः आचार्यश्री काहलांडी जिले के देपुर गांव से मंगल प्रस्थान किया तो प्रवास स्थल के ठीक सामने स्थित पहाड़ की चोटी से सूर्य निकलता सूर्य भी अपने पथ पर गतिमान हो रहा था। इस दृश्य को देखकर ऐसा महसूस हो रहा था कि एक आसमान का सूर्य अपनी किरणों से धरती का अंधेरा मिटाने निकल पड़ा था तो धरती का महासूर्य अपनी ज्ञान किरणों के माध्यम से जन-जन के मानस के अंधकार को दूर करने निकल पड़ा था। यह दृश्य जिसने भी अपनी आंखों से देखा वह देखता ही रह गया। मार्ग के दोनों ओर अवस्थित पहाड़ों के बीच से बने मार्ग से आचार्यश्री आगे बढ़े। लगभग आठ किलोमीटर की यात्रा कर आचार्यश्री संतपुर गांव में पधारे तो महासंत के दर्शन को पूरा गांव ही उमड़ आया।

आचार्यश्री स्कूल में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित ग्रामीणों, विद्यार्थियों, शिक्षकों व श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में गुस्सा नहीं करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में गुस्सा किसी काम का नहीं होता। गुस्सा से आदमी दुःखी बन सकता है। गुस्सा से आदमी दूसरों का नुकसान भी करता है तो साथ में अपना भी नुकसान कर लेता है।

आदमी को गुस्से से बचने के लिए उपशम की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके आदमी को जितना संभव हो सके आदमी को अपने गुस्से को कम करने का प्रयास करना चाहिए। साधु को तो बिल्कुल भी गुस्सा नहीं करना चाहिए। साधु को गुस्सा शोभा भी नहीं देता। जो शांत होता है, वह संत होता है। साधु शांत रहे, यह साधु की साधना होती है।

गुस्से को शांत करने के लिए आदमी को सभी के प्रति के प्रति मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। सभी प्राणियों के साथ मैत्री की भावना हो तथा किसी के प्रति वैर भाव न हो तो यह संसार अच्छा बन सकता है। आचार्यश्री ने ‘संयममय जीवन हो’ गीत का आंशिक संगान करते हुए लोगों को संयममय जीवन जीने और मैत्री के भावों को पुष्ट करने को उत्प्रेरित किया।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों व ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो समस्त शिक्षकों, विद्यार्थियों व गांववासियों ने आचार्यश्री से संकल्पत्रयी स्वीकार कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

अपने विद्यालय में आचार्यश्री के आगमन से हर्षित विद्यालय के शिक्षक श्री अनिल कुमार पाड़ी ने अपने हर्षित भावों को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज हमारे विद्यालय की माटी चन्दन-सी बन गई है। इतने महान संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का अपनी अहिंसा यात्रा के साथ हमारे विद्यालय में पधारना हम सभी के लिए किसी गौरव से कम नहीं है। मैं इस गांव, विद्यालय और सभी छात्रों की ओर से आपका हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन करता हूं।

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