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👉 उदयपुर (राज.): *मेवाड़ "संगठन यात्रा" के तहत अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष श्री अशोक संचेती 'उदयपुर' में..*
👉 जोरहाट - निर्माण एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर कार्यक्रम का आयोजन
👉 इरोड - अभातेमम महामंत्री संगठन यात्रा पर
👉 पूर्वांचल कोलकाता - पश्चिम बंगाल प्रभारी की संगठन यात्रा
👉 रीछेड (राज.) - *मेवाड़ क्षेत्रीय "संगठन यात्रा" के तहत अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष श्री अशोक संचेती का रीछेड पदार्पण...*
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 286* 📝
*जिनचरणानुगामी जिनदास महत्तर*
जैन श्वेतांबर परंपरा में आगम व्याख्याकार जिनदास महत्तर का विशिष्ट स्थान है। वे संस्कृत एवं प्राकृत के अधिकारी विद्वान् थे। जैन समाज में उनकी प्रसिद्धि चूर्णि साहित्यकार के रूप में है।
*गुरु-परंपरा*
जिनदास के गुरु का नाम गोपालगणी महत्तर था। गोपालगणी महत्तर वाणिज्य कुल, कोटिकगण एवं वज्रशाखा के विद्वान् थे। वे स्व-पर समय के ज्ञाता थे। जिनदास महत्तर के विद्या गुरु प्रद्युम्न क्षमाश्रमण थे। महत्तरजी को गणी पद अपने गुरु द्वारा प्राप्त हुआ और महत्तर की उपाधि उन्हें जनता द्वारा प्रदान की गई।
*जन्म एवं परिवार*
चूर्णि-साहित्य के अनुसार जिनदास महत्तर के पिता का नाम नाग और माता का नाम गोपा है। महत्तरजी सात सहोदर थे। देहड़, सीह, थोर ये तीन उनके ज्येष्ठ एवं देउल, णण्ण, तिउज्जग तीन उनसे कनिष्ठ सहोदर थे। परिवार के अन्य सदस्यों का उल्लेख नहीं है।
*जीवन-वृत्त*
जिनदास महत्तर के जीवन के संबंध में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं है। नंदी चूर्णि के अंत में जिनदास महत्तर ने अपना परिचय दिया है। वह अस्पष्ट है। उत्तराध्ययन चूर्णि में अपने गुरु के नाम का एवं कुल, गण और शाखा का भी उल्लेख किया है, पर अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है। निशीथ चूर्णि के प्रारंभ में प्रद्युम्न क्षमाश्रमण का विद्यागुरु के रूप में उल्लेख है। निशीथ चूर्णि के अंत में चूर्णिकार जिनदास ने अपना परिचय रहस्यमय शैली में प्रस्तुत किया है। वह श्लोक इस प्रकार है—
*ति चउ पण अट्ठमवग्गा तिपण ति तिग अक्खरा व तेसिं।*
*पढमततिएहिं तिदुसरजुएहिं णामं कयं जस्स।।*
अकारादि स्वर प्रधान वर्णमाला को एक वर्ग मान लेने पर *'अ'* वर्ग से *'श'* वर्ग तक आठ वर्ग बनते हैं। इस क्रम से तृतीय *'च'* वर्ग का तृतीय अक्षर *'ज'*, चतुर्थ *'ट'* वर्ग का पंचम अक्षर *'ण'*, पंचम *'त'* वर्ग का तृतीय अक्षर *'द'*, अष्टम वर्ग का तृतीय अक्षर *'स'* तथा प्रथम *'अ'* वर्ग की तृतीय मात्रा इकार, द्वितीय मात्रा आकार को क्रमशः *'ज'* और *'द'* के साथ जोड़ देने पर जो नाम बनता है उसी नाम को धारण करने वाले व्यक्ति ने इस चूर्णि का निर्माण किया है। यह नाम बनता है जिनदास। अपने नाम के परिचय के लिए इस प्रकार की शैली साहित्य में बहुत कम है।
*जिनचरणानुगामी जिनदास महत्तर द्वारा रचित साहित्य* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 110* 📝
*मोखजी खमेसरा*
*बंधन और छुटकारा*
गतांक से आगे...
मोखजी को उस समय जयाचार्य के द्वारा बतलाया हुआ नाम याद आया। उन्होंने अधिकारी से कहा कि यहां जयपुर से आए हुए मालीरामजी लूणिया रहते हैं। यदि आप मुझे उनके पास ले चलें तो मैं अपनी सत्यता का प्रमाण प्रस्तुत कर सकता हूं। अधिकारी ने उनके कथन को स्वीकार कर लिया और दूसरे दिन प्रातः पुलिस के साथ उन्हें वहां भेज दिया।
मालीरामजी पहले जयपुर में रहते थे। सम्वत् 1885 में अग्रणी अवस्था में जयाचार्य का वहां चातुर्मास था तब वहां के 52 प्रमुख व्यक्ति समझे थे, उनमें एक वे भी थे। वे जयपुर नरेश रामसिंहजी द्वितीय के अत्यंत कृपापात्र थे, परंतु कालांतर में अनबन हो जाने के कारण उन्हें जयपुर छोड़कर आगरा को अपना निवास स्थान बनाना पड़ा। कुछ ही वर्षों में वहां भी वे प्रसिद्ध व्यक्तियों में गिने जाने लगे। मोखजी उनसे मिलने के लिए गए तब वे पूजा में बैठे थे। कुछ देर पश्चात् पूजा समाप्त हुई तब उन्हें अंदर बुला लिया गया।
पूजा गृह से उठकर बाहर आते सेठ को देखकर मोखजी को निराशा ही हुई। उन्होंने सोचा कि जयाचार्य ने तो इन्हें तेरापंथी बतलाया था, पर ये तो मूर्तिपूजक हैं। फिर भी जब अंदर आ ही गए तब उन्होंने बात कर लेना ही उचित समझा। पारस्परिक अभिवादन के पश्चात् सेठजी ने उनका परिचय तथा वहां आने का कारण जानना चाहा। मोखजी ने तब तीर्थयात्रा से पकड़े जाने तक की सारी रामकथा कह सुनाई। उन्होंने यह बतलाया कि जब वे जयपुर गए थे तब जयाचार्य ने उनके विषय में पूरा परिचय दिया था। मालीरामजी ने जयाचार्य का नाम सुना तो, कौन जयाचार्य? किसके शिष्य हैं? कब दीक्षित हुए थे? उनके परिवार में अन्य अन्य कौन-कौन दीक्षित हैं? इत्यादि अनेक प्रश्न पूछ डाले। मोखजी ने उन सब प्रश्नों के उत्तर तो दिए, पर उन्हें लगा कि वे किसी दूसरे ही मालीरामजी से मिल रहे हैं।
उधर मालीरामजी अपने सभी प्रश्नों के ठीक उत्तर पाकर पूर्णतः आश्वस्त हो गए कि किसी और अविश्वस्त व्यक्ति से नहीं मिल रहे हैं। वे अत्यंत आह्लादित भाव से मोखजी को बाहों में भरते हुए बोले— "बहुत वर्षों के पश्चात् आज तुम एक साधर्मिक भाई मिले हो। तुमने मुझे जयाचार्य का नाम याद दिला कर कृतार्थ कर दिया। उन्होंने तो मुझे याद रखा, परंतु मैं उनका ऐसा अविनीत शिष्य निकला कि यहां दूर आकर उनके उपदेशों को भुला दिया और फिर से अपने पुराने गोरखधंधे में फंस गया।" उन्होंने मोखजी का बहुत आदर किया और अपना ही व्यक्ति बतलाकर वहां से मुक्त करवाया।
मोखजी अपने जीवन कि उक्त घटना को सुनाते समय बहुधा कहा करते कि जयाचार्य के प्रताप से ही हम लोगों को आगरा की जेल से छुटकारा मिला। यदि वे मालीरामजी का नाम हमें नहीं बतलाते तो संभव है अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता।
*धार्मिक वृत्ति*
मोखजी ने धार्मिक क्षेत्र में पदन्यास किया, उसके पश्चात् उनकी वह वृत्ति क्रमशः वर्धमान ही रही। न्यायप्रियता और सत्यवादिता आदि गुण उनमें प्रचुर मात्रा में थे। तपस्या करने में भी अच्छी अभिरुचि रहा करती थी। प्रतिवर्ष पर्युषण पर्व में अष्टान्हिक तप और साथ ही 64 प्रहर का पौषध किया करते थे। इस अवसर पर वे दस दिन की छुट्टी लिया करते थे। महाराणा उनकी उस प्रवृति से परिचित थे, अतः कई बार स्वयं भी पूछ लिया करते थे कि पर्युषण कब आने वाले हैं? वे उनके पर्वाराधन में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित करने वाली परिस्थिति उत्पन्न नहीं होने देते थे।
मोखजी के तीन पुत्र थे— लक्ष्मीलालजी, साहबलालजी और मोतीलालजी। पिता की धार्मिकता के अनुरूप ही उन सब में भी धार्मिक संस्कारों की प्रखरता थी।
*अत्यंत श्रद्धाशील और विवेकी श्रावक जोधोजी सिरोहिया के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 दिवेर (राज.): *मेवाड़ "संगठन यात्रा" के तहत अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष श्री अशोक संचेती 'दिवेर' में..*
👉 पर्वत पाटिया, सूरत - निर्माण -एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर
👉 भिवानी - मुमुक्षु मंगल भावना समारोह
👉 लिलुआ - श्रीउत्सव मेले का आयोजन
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👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम
👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "भवानीपटना" पधारेंगे
👉 आज का प्रवास - बज्रविहार में स्थित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर, भवानीपटना, जिला - कालाहांडी (ओड़िशा)
दिनांक - 20 -03-18
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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