09.03.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 09.03.2018
Updated: 09.03.2018

Update

✿ ★ कृपया ध्यान दे, एक बहुत जरुरी सुचना [ A hand-folded request ] Think before upload Digambar Jain saint video/clips @ Youtube, Please ★

You-tube पर हम जैन लोग दिगंबर संतो आचार्यो के विडियो अपलोड करते है लेकिन उसको Handle या Manage करना हमें आता नहीं! जब विडियो अपलोड करो तो उसमे सेटिंग करे की अगर कोई भी कमेंट करता है तो वो कमेंट आपके Approval के बाद ही You-tube पर जाए, अभी मैंने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का एक विडियो देखा, जिसपर कुछ लोगो ने बहुत ही अभद्र/अश्लील कमेंट किये हुए थे, भाई... जैन धर्मं को हर कोई नहीं जानता तो अज्ञानता के कारण से कमेंट करे गए थे! और वे कमेंट बहुत ही ज्यादा गंदे थे... जिसको शब्दों में नहीं कहा जा सकता है, देखिये दोस्तों सोशल नेटवर्किंग साइट्स का मिसयूज भी होता है, अगर आपमें धर्मं की प्रभावना मन है तो अच्छा बात है पर ध्यान रखे की उसको मैनेज भी करे! वर्ना ये अप्रभावना का कारण बनता है! इत्तेफाक से मेरे पास उस विडियो को अपलोड करने वाले व्यक्ति का मोबाइल नंबर था, मैंने तुरंत कॉल किया और उनको सब बताया तथा उनका You-tube अकाउंट डिटेल्स लेकर खुद अभी सब कमेंट Delete किये!! ये तो ठीक है इत्तेफाक से मेरे पास उनका कांटेक्ट था वर्ना पड़े रहते कमेंट बल्कि कमेंट और ज्यादा बढ़ते जा रहे थे... ये सब देखकर बहुत खराब लगता है की धर्मं को हम समझते भी नहीं है और अगर समझते भी है तो समझा नहीं पाते! दोस्तों अगर विडियो डाले तो उसकी जानकारी भी डाले ठीक से डाले, तथा कमेंट कोई भी Publicly ना करे ये भी ध्यान रखे! वर्ना पुण्य के जगह पाप बंध ~ प्रभावना की जगह अप्रभावना हो जाती है और हो रही है -Nipun Jain

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संत कमल के पुष्प के समान लोकजीवन रूपी वारिधि में रहता है, संचरण करता है, डुबकियां लगाता है, किंतु डूबता नहीं। यही भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के जीवन का मंत्रघोष है। आचार्य श्री की प्रेरणा से उनके परिवार के 6 सदस्यों ने भी जैन साधु के योग्य सन्यास ग्रहण किया। उनके माता-पिता के अतिरिक्त दो छोटी बहनों व दो छोटे भाइयों ने भी आर्यिका एवं मुनिदीक्षा धारण की। संत श्री से मिलने और चार बातें करने का सौभाग्य शनिवार को मंगला, सन्मति विहार स्थित वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान मिला।

आचार्य श्री विद्यासागर जी का बाह्य व्यक्तित्व भी उतना ही मनोरम है, जितना अंतरंग, तपस्या में वे वज्र से कठोर हैं, पर उनके मुक्त हास्य और सौम्य मुखमुद्रा से कुसुम की कोमलता झलकती है। वे आचार्य कुन्दकुन्द और समन्तभद्र की परम्परा को आगे ले जाने वाले आचार्य हैं तथा यशोलिप्सा से अलिप्त व शोर-शराबे से कोसों दूर रहते हैं। शहरों से दूर तीर्थों में एकांत स्थलों पर चातुर्मास करते हैं। आयोजन व आडम्बर से दूर रहने के कारण प्रस्थान की दिशा व समय की घोषणा भी नहीं करते हैं। ऐसे हैं आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज। आगामी दिनांक 28-06-2018 को आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की मुनि दीक्षा के गौरवशाली 50 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं।

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डिंडोरी मध्यप्रदेश की ओर बड़ते कदम today pics...

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News in Hindi

Sallekhanã: The Fast to Death: The most controversial of Jain ascetic practices - though, it must be emphasized, a quite rare one - is the practice of self-starvation - known as sallekhanã or santhãrã - occasionally undertaken by Jain monks and nuns, and the rare layperson, as the ultimate act of ahimsã and aparigraha.

This practice - as Jains emphasize quite strongly - is not a form of sucide. It is not undertaken out of passion or because of despair or anger. It can only be undertaken with the permission of one’s spiritual preceptor, or guru. The guru’s duty is to ensure that one’s motives in undertaking this fast to the death are pure - that one is doing it out of a genuine sense of detachment from the body and out of compassion for all of the living beings that one will save by not continuing to eat, breathe, and consume resources. Such a holy death is seen as having great capacity to advance the soul on its path to liberation, and to be possible only for beings who have perfected their compassion and their wisdom to such a degree that they would rather die than cause pain or death for even the tiniest of creatures. There is, in fact, a famous story of a renowned Digambar scholar-monk of the sixth century, Samantbhadra, who sought permission from his guru to undertake the fast to the death because he had contracted leprosy and wanted to, quite literary, put himself out of his nursery. His request was denied because his guru could perceive that the real motive behind Samantbhadra’s desire was not, in fact, compassionate detachment, but rather the wish to avoid the physical discomfort of his disease. Only after he had spent a good deal of time in meditation and had come to accept his condition with equanimity was he granted permission to undertake sallekhanã.

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*बबीना में चल रहे श्री मद जिनेन्द्र पंचकल्याणक मेला महोत्सव का आज आखिरी दिन है मोक्ष कल्याणक महोत्सव के संपन्न होते ही यह आयोजन पूर्ण माना जाता है और जिनबिम्ब में तीर्थंकर की प्राण प्रतिस्ठा मान कर पाषाण की उस मूर्ति को भगवान मान लिया जाता है और इस पूरे कार्य को अंजाम देने में सहायक है निरगंथ मुद्रा के धारी मुनिमहाराज जो अपनी साधना के बल से उस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करते है*

_कहा गया है जिस आयोजन में जितने बड़े त्यागी द्वारा प्रतिस्ठा की गयी हो और प्रतिस्थाचार्य द्वारा की गयी क्रियाओ में शुद्धि पूर्वक मन्त्रो का उच्चारण एवं विधियां की गयी हो प्रतिमा भी उतनी ही अतिषययुक्त हो जाती है फिर बबीना वालो को तो आचार्य भगवान ने दिल खोलकर आशीर्वाद दिया है उनके शहर में एक नही दो नही पूरे तीन तीन संघो का पदार्पण हुआ है और सानिध्य मिला है_
*पाठशाला प्रणेता पूज्य मुनि प्रशांतसागर जी निर्वेगसागर जी विशदसागर जी,वात्सल्य रत्नाकर पूज्य मुनि अभय सागर जी प्रभातसागर जी पूज्यसागर जी एवं संस्कारो का आरोपण करने वाले मुनि श्री अजितसागर जी ऐलक दयासागर जी विवेकानंद सागर जी के सानिध्य को पाकर तो बबीना की जैसे किस्मत ही खुल गयी है । जिस प्रकार मन्दिर को बनाने में श्रावको ने दिल खोल कर कार्य करवाया है उसी प्रकार इन संतो की बेजोड़ साधना से की गयी प्रतिस्ठा से जो अतिशय बबीना वालो को महसूस होगा उसे कहना तो नामुमकिन है फिलहाल अभी तो यही कहा जाना उचित है कि आस पास के कई किलोमीटरों तक ऐसा भव्य जिनालय और ऐसी प्रतिमाये जो अलौकिक दिखाई दे रही गए कही और नजर नही आ रही है जो स्वयं एक अतिशय है*
_प्रतिस्थाचार्य प्रदीप भैया जी अशोकनगर जी द्वारा प्रत्येक क्रियाओ को शुद्धि पूर्वक करवाने का ही सुफल है कि आयोजन निर्विरोध निर्वहिघ्न सम्पन्न हो गया है किसी भी पंचकल्याणक में प्रतिस्थाचार्य का बड़ा महत्व होता है और प्रदीप भैया इस भूमिका को बखूबी निभाते भी है उनकी स्वयं की साधना भी इतनी अधिक हो चुकी है कि वह मात्र सफेद वस्त्रो में दिखाई देते है परंतु मन से तो दिगम्बर हो चुके है किंचित मात्र भी अर्थ ना लेने वाले प्रदीप जी अशोकनगर की प्रभावना को कौन नही जानता_ ।
*धन्य है बबीना की समाज जो इतने बड़े महाआयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न कर एक नए कीर्तिमान को जन्म दिया जिससे धर्म की प्रभावना बढ़ते हुए चारो लोको तक सहजता से पहुचेगी और अब तक मिलिट्री शहर से प्रसिद्धि को प्राप्त होने वाला शहर नए निर्मित भव्य जिनालय की भव्यता और मूर्तियों से निकलने वाली अतिषययुक्त ऊर्जा के कारण विख्यात हो जाएगा और जो भी यात्री बुंदेलखंड की यात्रा पर निकलते है वह इस मंदिर के दर्शन कर आत्मिक शांति और गदगद भावो का अनुभव करेंगे*
_तो आये ऐसे जिनालय के दर्शन कर हम भी अपने जीवन को सफल सुखद एवम धर्ममय बनाये और मूर्ति में प्राण प्रतिस्ठा करने वाले संतो की जयजयकार करे_

*श्रीश ललितपुर*

🔔🚩 *पुण्योदय विद्यासंघ*🚩🔔

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