04.11.2017 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 04.11.2017
Updated: 07.11.2017

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📣 #कोलकाता: #मंगल_भावना_समारोह

अहिंसा यात्रा प्रणेता #आचार्य_श्री_महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आज मंगल भावना समारोह का आयोजन हुआ। कोलकाता में भव्य #चातुर्मास के पश्चात कल पूज्यप्रवर का #राजरहाट से मंगल विहार है। आज के प्रवचन कालीन कार्यक्रम के अनुपम दृश्य एवं गुरुवर का प्रेरणा पाथेय।

04.11.2017
प्रस्तुति > #तेरापंथ मीडिया सेंटर
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#मंगल_भावना_समारोह: भावनाओं के ज्वार में बह गए धैर्य और संयम

-अपने आराध्य को विदाई देने के नाम से ही #कोलकाता वासियों हृदय हुए द्रवित, बह उठे नयनों अश्रुधार

-शब्द हुए मूक तो नम आंखों ने कही बात, सबकी एक थी गुहार, हमें अनाथ न करो नाथों के नाथ

-समताधारी #आचार्य_श्री_महाश्रमण जी ने पावन पाथेय के साथ दिया मंगल #आशीष से किया आच्छादित

-कहा दी गई #प्रेरणाओं को उतार अपने जीवन को बनाएं उन्नत

-आचार्यश्री ने #ठाणं, #तेरापंथ_प्रबोध, #राजा_प्रदेशी #आख्यान के #सम्पन्नता की घोषणा

-#साध्वीप्रमुखाजी ने दी पावन प्रेरणा, कहा ज्ञान को अपने जीवन में उतार अगली पीढ़ी को सुधारने का हो प्रयास

04.11.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल):- कहते हैं भावनाओं का ज्वार जब उमड़ता है तो वह अपने साथ सबकुछ बहा ले जाता है। धैर्य, संयम, ज्ञान, विज्ञान, सहनशीलता सबकुछ उस ज्वार में बहते चले जाते हैं और शेष रहता है तो केवल और केवल भावनाओं को वेग और उसकी तरलता। ऐसे ही भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा था राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार के अध्यात्म समवसरण में जहां। जहां भक्तों की भावनाओं को ज्वार अपने आराध्य के समक्ष इस तरह उमड़ा मानों वह अपने साथ ज्ञान-विज्ञान, संयम, धैर्य सभी बहते नजर आए और रह गई केवल अश्रुपूरित आंखें, कंठों में फंसे कुछ स्वर और शब्द।

लगभग 58 वर्षों बाद कोलकातावासियों की प्यास को बुझाने के लिए अपने साथ ज्ञानगंगा की अविरल धारा और श्वेत रश्मियों की आभा के साथ लगभग चार महीने पूर्व जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखंड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अहिंसा यात्रा के साथ कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार में पधारे तो मानों यह कोलकाता महानगर का नया तीर्थस्थल बन गया। इस परिसर से नियमित रूप से बहने वाली ज्ञानगंगा ने कितने पापग्रस्त, मलिन और कलुषित आत्माओं को निर्मल बनाते हुए पूरी दुनिया को मानवता का संदेश देने वाली थी। ऐसी ज्ञानगंगा के प्रवाहक आचार्यश्री महाश्रमणजी का देखते-देखते कैसे चतुर्मासकाल सम्पन्न हो गया, यह उन भक्तों को पता ही नहीं चला जो इसमें पूरी तरह डूब चुके थे। उन्हें तो मानों दिन-रात अपने आराध्य के वचनामृत के श्रवण, दर्शन और उपासना की ऐसी लत लगी वो बाहरी दुनिया को ही भूल गए। अब तक चतुर्मासकाल की सम्पन्नता के बाद उन्हें अहसास हुआ कि अब तो हमारे आराध्य हमशे विदाई लेकर आगे प्रस्थान करेंगे तो मानों वे उस मछली की तरह तड़प उठे जो बिना पानी के सूखे में तड़प उठती है।

चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के विभिन्न अंगों और विभागों के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता और आम नागरिक तक अपनी भावनाओं की उठते ज्वार को मन में समेटे पहुुंच गए अध्यात्म समवसरण में और एक अलौकिक दृश्य उत्पन्न हो गया। एक ओर जन-जन का कल्याण करने वाले समताधारी, महामानव आचार्यश्री महाश्रमणजी तो दूसरी ओर अपनी सुधबुध खो चुकी कोलकाता की वह जनता जो अपने आराध्य के बिछड़ने मात्र की कल्पना से प्रकंपित हो चुकी थी। सर्व प्रथम कोलकाता महिला मंडल की सदस्याओं द्वारा गीत का संगान हुआ। उसके उपरान्त कोलकाता चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कमल दूगड़ ने अपनी करुणा भरी वाणी से हृदयोद्गार व्यक्त करना आरम्भ किया तो कई बार कंठ अवरोधित हुए, भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए नयन भी सजल हुए, किन्तु उन्होंने अपने आराध्य के आगे की मंगल यात्रा के लिए मंगल कामना की।

तत्पश्चात ममतामयी तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने ममतामयी वाणी से कोलकातावासियों को अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि जब कोलकाता की धरती पर आचार्यश्री का आगमन हुआ था तो कोलकातावासियों का सपना साकार हो गया और आचार्यप्रवर के आने से यह महाश्रमण विहार गुलजार हो गया था। कल तक जिन लोगों के मन में अपने आराध्य को पाकर उत्साह, उमंग, उल्लास था आज उसी मन में पीड़ा हो रही है। उन्होंने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आचार्यश्री से प्राप्त हुए संदेशों को अपने जीवन में उतार कर अपने जीवन को अच्छा बनाने के साथ-साथ अपनी भावी पीढ़ी को भी अच्छा बनाने का प्रयास करें तो आचार्यश्री का यह चतुर्मासकाल और अधिक सार्थक हो सकेगा। कोलकातावासी अपने आराध्य के वचनों को हृदयगंम कर लें तो मानों कुछ अंशों में उनके आराध्य सदा के लिए उनके पास रह जाएंगे।

मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भाव विह्वल भक्तों को अपनी चतुर्मासस्थल के अध्यात्म समवसरण इस चतुर्मास की अंतिम प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान की वृद्धि का एक साधन स्वाध्याय को कहा गया है। निरंतर स्वाध्याय करने से ज्ञान वृद्धिंगत होता है और पुष्ट भी होता है। जैन दर्शन में स्वाध्याय को बहुत महत्त्व दिया गया है। साधु के लिए तो दिन के आठ प्रहरों में चार प्रहर स्वाध्याय करने के लिए बताया गया है। स्वाध्याय से आलोक मिलता है। स्वाध्याय के समान कोई तप नहीं है। इस स्वाध्याय के ठाणं आगम में पांच प्रकार बताए गए हैं। इसका पहला प्रकार है वाचना। आचार्य अपने शिष्यों को वाचना दे, पढ़ाए तो यह भी स्वाध्याय है। शिष्य भी विनयपूर्वक ज्ञान ग्रहण करे तो अपने जीवन का विकास कर सकता है। स्वाध्याय का दूसरा प्रकार तक्षना, तीसरा प्रकार परिवर्तना जिसके द्वारा ज्ञान मजबूत होता है। चैथा प्रकार अनुप्रेक्षा, जिसके द्वारा पढ़े हुए पर चिंतन कर ज्ञान की गहराई तक जाने का प्रयास करना और पांचवां प्रकार है धर्म चर्चा। जो आदमी प्राप्त करे, उसे औरों में बांटने का प्रयास करे। इन पांचों का आदमी अपने जीवन में सम्यक् अनुशीलन करे तो ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। आचार्यश्री ने चतुर्मास प्रवास स्थल की भूमि और प्रवचन स्थल को स्वाध्याय भूमि के रूप में संबोधित किया और कहा कि कुल मिलाकर यह चतुर्मास अच्छा रहा।

आचार्यश्री ने राजा प्रदेशी के आख्यान को पूर्ण किया। इस चतुर्मास के दौरान ठाणं आगम, तेरापंथ प्रबोध और राजा प्रदेशी आख्यान की सम्पन्नता की घोषणा की और कोलकातावासियों पर अपने स्नेहिल आशीर्वाद का अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि कोलकातावासियों में धर्म का प्रभाव लंबे समय तक बना रहे तो चतुर्मास की सफलता और अधिक हो सकेगी। लोगों के जीवन में खूब शांति बनी रहे, धार्मिकता का विकास हो।

आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद और आशीष को प्राप्त करने के उपरान्त भक्त अपने आराध्य से बिछड़ने के असह्य होती जा रही वेदना को छिपा नहीं पा रहे थे और सभी बारी-बारी से अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस क्रम मंे विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू, चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति की महामंत्री श्रीमती सूरज बरड़िया, श्री भंवरलाल बैद, श्री सुरेन्द्र बोरड़, श्री तुलसी दूगड़, श्री प्रकाश बैद, श्री विमल दूगड़, श्री नरेन्द्र मणोत, श्री विजयसिंह चोरड़िया, श्री नरेन्द्र बरड़िया, भी भिखमचंद पुगलिया, श्री सुरेन्द्र दूगड़, श्रीमती मधु दूगड़, श्री विजय बावलिया, श्री हेमंत दूगड़, श्री अमरचंद दूगड़, श्रीमती शोभा दूगड़, श्री जयकरण बच्छावत, श्री नवरतन बोथरा, श्री मनोज दूगड़ व श्री अभिषेक दूगड़ ने अपनी भावांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन श्री विनोद बैद ने किया।

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News in Hindi

🙏 #जय_जिनेन्द्र सा 🙏

दिनांक- 04-11-2017
तिथि: - #कार्तिक सुदी #पूर्णिमा

#शनिवार त्याग/#पचखाण

★आज #पोहा खाने का त्याग करे।

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जय जिनेन्द्र
#प्रतिदिन जो त्याग करवाया जाता हैं। सभी से #निवेदन है की आप स्वेच्छा से त्याग अवश्य करे। छोटे छोटे #त्याग करके भी हम मोक्ष मार्ग की #आराधना कर सकते हैं। त्याग अपने आप में आध्यात्म का मार्ग हैं।
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🙏तेरापंथ मीडिया सेंटर🙏

🔯 गुरुवर की अमृत वाणी 🔯
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