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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
शांतिदूत ने पढ़ाया शांति का पाठ
-गुस्सा को कम करने के लिए स्वयं को उपशांत रखने का दिया ज्ञान
-अणुव्रत सम्मेलन के अंतिम दिवस भी आचार्यश्री ने अणुव्रतियों को नैतिकता, ईमानदारी का दिया ज्ञान
-पुराने व नवनिर्वाचित अध्यक्ष को आचार्यश्री ने प्रदान किया आशीर्वाद
-तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों को बारह व्रती बनने का दिया ज्ञान
-आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ से भी सरस शैली में दिया आख्यान
10.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः जन मानस के मानस में मानवता को जागृत करने, सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, नैतिकतामय जीवन जीने और नशा से दूर रहकर अपने जीवन को सुखमय बनाने की प्रेरणा प्रदान करने वाले, मानवता के मसीहा, अखंड परिव्राजक, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को अध्यात्म समवसरण से लोगों को शांतिमय जीवन जीने के लिए गुस्से को नियंत्रित करने या उसे समाप्त करने के लिए उपशांत रहने की पावन प्रेरणा प्रदान की। स्वयं शांतिदूत के रूप में प्रख्यात आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लोगों को अपने जीवन को शांत बनाने की प्रेरणा प्रदान की।
रविवार को पूरी तरह से खचाखच भरे प्रवचन पंडाल के साथ परिसर में दूर-दूर तक बैठे श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी कई बार गुस्सा कर लेता है। परिवार में, साथियों से, कर्मचारियों, या समाज में आदमी गुस्सा कर लेता है। गुस्सा चार आधारों वाला होता है। गुस्सा सनिमित्त भी होता है और नितांत उपादान पर भी आधारित होता है। कई जगह आदमी को केवल उपादान से ही गुस्सा आता तो कई जगह निमित्त मिलने से आदमी का गुस्सा सक्रिय हो जाता है। जैसे आदमी चल रहा है और उसे पत्थर की ठोकर लग जाती है तो आदमी को स्वयं पर गुस्सा आ जाता है। हालांकि आदमी को चलने में ध्यान नहीं रहने के कारण चोट लगती है, लेकिन आदमी को गुस्सा आ जाता है।
आचार्यश्री ने लोगों को एक कहानी के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने गुस्से को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी खुद को उपशांत रखने का प्रयास करे। गुस्सा करना आदमी की हार होती है। आदमी को ज्यादा गुस्सा नहीं करना चाहिए। आदमी को अपने दिमाग को शांत व नरम रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ के माध्यम से लोगों को सरस शैली में पावन पाथेय प्रदान किया।
आचार्यश्री तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज युवकों द्वारा बारह व्रत कार्यशाला की बात आई है। बारह व्रत की अच्छा उपक्रम है और युवा इसके लिए कार्य कर रहे हैं तो बहुत अच्छी बात है। छोटी अवस्था में ही युवा बारह व्रत की बात कर रहे हैं, अच्छी बात है। गृहस्थ जीवन के यह बारह व्रत है। जो अच्छा निरवद्य, आध्यात्मिक उपक्रम है। आचार्यश्री ने 68वें अणुव्रत अधिवेशन के अंतिम दिन आचार्यश्री ने अणुव्रत महासमिति समेत उनकी समस्त संस्थाओं को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि इस संस्था से जुड़े हुए लोग अच्छा धार्मिक कार्य करें। जीवन में नैतिकता, ईमानदारी रखने का प्रयास करें। ईमानदारी जीवन की अमूल्य सम्पत्ति है। अंत में आचार्यश्री ने अणुव्रत महासमिति के निवर्तमान अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र जैन एडवोकेट व नवनियुक्त अध्यक्ष श्री अशोक संचेती को नैतिकता पूर्ण कार्य करने की पावन प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान किया।