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त्याग और साधना से प्राप्त हो सकती है शान्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
-आचार्यश्री ने आर्त ध्यान में जाने के चैथे कारण को किया व्याख्यायित
-काम और भोग का वियोग भी आदमी को ले जा सकता है आर्त ध्यान की ओर
-‘तेरापंथ प्रबोध’ से आचार्यश्री श्रद्धालुओं को प्रदान कर रहे पावन प्रेरणा
-साध्वीवर्याजी ने भी अपने उद्बोध और गीत से लोगों को दिखाई आध्यात्मिकता की राह
02.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः कोलकाता महानगर के राजरहाट में स्थापित नए तीर्थस्थल ‘महाश्रमण विहार’ के अध्यात्म समवसरण से निकलने वाली ज्ञानगंगा अबाध रूप से अपने आध्यात्मिक प्रेरणा रूपी जल से जन-जन के मानस को अभिसिंचन प्रदान कर रही है। यह ज्ञानगंगा जिस महापुरुष के श्रीमुख से निकल रही है वे तो स्वयं आध्यात्म जगत् देदीप्यमान महासूर्य हैं। वे भगवान महावीर के प्रतिनिधि तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की आचार्य परंपरा के एकादशमाधिशास्ता हैं। जी हां! बात हो रही है प्रभावी प्रवचनकार के रूप में विख्यात शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की, जिनकी वाणी से अबाध रूप में निकल रही ज्ञानगंगा जनमानस को नियमित रूप से अभिसिंचन प्रदान कर रही है।
शनिवार को अध्यात्म समवसरण मंे उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने वचनामृत से तृप्ति प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री ने ‘ठाणं’ आगम में वर्णित आर्त ध्यान के चैथे कारण का वर्णन करते हुए कहा कि आदमी के आर्त ध्यान में जाने का चैथा कारण है काम-भोग का संयोग से संयुक्त होने पर उसके वियोग की चिन्ता। काम-भोग से वियोग की चिन्ता भी आदमी को आर्त ध्यान की ओर ले जा सकती है। आदमी को पांच इन्द्रियां प्राप्त है और वह इनके माध्यम से भोग वस्तुओं का लाभ उठाता है। संयोग से मिले भोग के वस्तुओं का वियोग भी आदमी को अशांत बना सकता है और ऐसे में आदमी की एक एकाग्र चिन्तन उसे आर्त ध्यान की ओर ले जा सकता है। काम-भोग के पदार्थों की प्रांिप्त के बाद भी आदमी को शांति नहीं प्राप्त हो सकती। काम-भोग का योग होता है तो उसके वियोग की चिन्ता भी हो सकती है, किन्तु लाभ-अलाभ और काम-भोग से विरत रहकर साधना करने वाले साधु को शांति की प्राप्ति हो सकती है। आचार्यश्री ने इस बात पर आधारित एक कथा के माध्यम से लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को पदार्थों और सुख-सुविधाओं से वास्तिवक प्रसन्नता और शांति नहीं प्राप्त हो सकती है जो साधना करने वाले और लाभ-अलाभ में भी मध्यस्थ भाव से रहने वाले साधु को प्राप्त हो सकती है। शांति और सुविधा का कोई सीधा संबंध नहीं है। सुविधा शांति का आधार नहीं हो सकती। शांति और प्रसन्नता का आधार साधना है। वर्तमान में जीने वाला, धर्म-ध्यान में रहने वाले को शांति की प्राप्ति हो सकती है। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने नियमित की भांति ‘तेरापंथ प्रबोध’ का भी संगान किया और सरसशैली में उसका व्याख्यान कर लोगों को पावन पाथेय प्रदान किया।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव शुद्धि के रहस्य को बताया और साथ ही गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित गीत का संगान किया। चतुर्मास के दौरान तपस्या करने वाले लोगों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।