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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 116* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्रांतिकारी आचार्य कालक (द्वितीय)*
गतांक से आगे...
यह बात कानोंकान तेल बिंदु की तरह प्रसारित हो गई। श्रावक वर्ग ने आचार्य सागर से निवेदन किया "विशाल परिवार सहित आचार्य कालक आ रहे हैं।" अपने दादा गुरु के आगमन के बात सुन कर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता हुई। पुलकित मन होकर आचार्य सागर ने अपने शिष्य वर्ग को गुरु के आगमन की सूचना दी और कहा "मैं उनसे कई गंभीर प्रश्न पूछकर समाहित बनूंगा।"
शीघ्र गति से चलते हुए आचार्य कालक के शिष्य स्वर्ण भूमि पहुंचे और स्वागतार्थ सामने आए हुए श्रमण सागर के शिष्यों से पूछा "आचार्य कालक यहां पधारे हुए हैं?" उत्तर मिला "एक वृद्ध श्रमण के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आया।" उपाश्रय में पहुंचकर आचार्य कालक के शिष्यों ने आचार्य कालक को सभक्ति वंदन किया। नवागंतुक श्रमण संघ द्वारा अभिवंदित होते देखकर आर्य सागर ने अपने दादा गुरु आचार्य कालक को पहचाना। अपने द्वारा कृत अविनय के कारण उन्हें लज्जा की अनुभूति हुई, हृदय अनुताप से भर गया। गुरुदेव के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी। विनम्र स्वरों में पूछा "गुरुदेव मैं अनुयोग वाचना उचित प्रकार से दे रहा था?" आचार्य कालक ने कहा "तुम्हारा अनुयोग सम्यक् है पर गर्व मत करना। ज्ञान अनंत है, मुष्टि भर धूल राशि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर एवं दूसरे स्थान से तृतीय स्थान पर रखते उठाते समय वह न्यून से न्यूनतर होती जाती है। तीर्थंकर प्रतिपादित ज्ञान गणधर, आचार्य, उपाध्याय द्वारा हम तक पहुंचते-पहुंचते अल्प-अल्पतर हो गया है।" आचार्य कालक ने प्रशिष्य सागर को अनेक प्रकार का प्रशिक्षण दिया एवं वे स्वयं अनुयोग प्रवर्तन में लगे।
प्रभावक चरित्र में प्राप्त वर्णनानुसार अपने शिष्यों का परित्याग कर आचार्य कालक अवंती से प्रशिष्य सागर के पास स्वर्णभूमि में पहुंचे। उस समय आगम वाचना कार्य में रत श्रमण सागर आचार्य कालक को सामान्य वृद्ध साधु समझकर न खड़े हुए, न अन्य किसी प्रकार का स्वागत किया। आचार्य कालक उपाश्रय के एक कोने में जाकर सहजभाव से बैठ गए और परमेष्ठी स्मरण में लीन हो गए। आगम अनुयोग का कार्य संपन्न होने के बाद प्रशिष्य सागर ने कालकाचार्य के पास जाकर कहा
*"किञ्चित्तपोनिधे जीर्ण! पृच्छ संदेहमादृतः"*
*।।140।। (प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 26)*
"वृद्ध तपोनिधे! आपकी कोई जिज्ञासा है, प्रष्टव्य है? आप मुझसे पूछें, मैं उसका यथोचित समाधान देकर संदेह का निवारण करूंगा।"
आचार्य कालक बोले "वृद्ध होने के कारण मैं तुम्हारे कथन को ठीक से नहीं समझ पा रहा हूं, फिर भी पूछता हूं, अष्टपुष्पी का अर्थ क्या है?" सागर में गर्व के साथ अष्टपुष्पी की व्याख्या की। इस व्याख्या से आचार्य कालक को संतोष नहीं हुआ, उस समय प्रत्युत्तर में कुछ भी बोलना ठीक नहीं समझ वे मौन रहे। बाद में आए हुए कालकाचार्य के शिष्यों द्वारा गुरु के प्रति विनय भाव, भक्ति को देखकर श्रमण सागर ने जब कालक को पहचाना तब मन में संकोच की अनुभूति हुई। अपने अविनय की क्षमा मांगी तथा अष्टपुष्पी के संबंध में जिज्ञासा प्रकट की। जिज्ञासा के समाधान में आचार्य कालक ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, द्वेष का परिहार, धर्म-ध्यान, शुक्लध्यान इन आठ प्रकार के पुष्पों से आत्मा की अर्चा को कल्याण का मार्ग बताकर विशुद्ध अध्यात्मिक भाव का प्रतिपादन किया। शिष्य सागर को ज्ञान का गर्व नहीं करने की शिक्षा दी।
*क्रांतिकारी आचार्य कालक के जीवन वृत्त* में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 116📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
(षट्पदी छन्द)
*51.*
अपना ही वर्चस्व रहे,
एकांगी चिन्तन घातक है।
तेल बिन्दु जल पर छाए,
वैसे छा जाना पातक है।
क्षीर-नीर सम मिलना जाने,
वही सचेतन चातक है।।
*26. अपना ही वर्चस्व रहे...*
व्यक्ति जिस किसी परिवेश में जीता है, अपना वर्चस्व बढ़ाने की तमन्ना रखता है। यह एक स्वाभाविक मनोवृत्ति है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। पर उसके रहते किसी दूसरे का वर्चस्व बढ़ ही नहीं पाए, यह चिंतन एकांगी है और घातक है। इससे अनेक प्रकार की कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं। इस संदर्भ में एक उदाहरण मिलता है।
एक पढ़ा-लिखा युवक। विचारों से आधुनिक। व्यवसाय में उत्साही। समाज में प्रतिष्ठित। शिक्षित लड़की के साथ उसकी शादी हो गई। कुछ दिनों तक वह प्रसन्न रहा। यकायक उसके मन पर बेचैनी उतर आई। वह अपने गुरु के पास गया। उसने गुरु को अपनी बेचैनी की कहानी सुनाई। गुरु ने पत्नी के बारे में पूछा तो वह बोला— 'पत्नी बहुत अच्छी है। रूप रंग में जितनी सुंदर है, स्वभाव से उतनी ही विनम्र है। पढ़ी-लिखी है। घर का कामकाज भी जानती है।' गुरु ने कहा— 'इतना सब कुछ ठीक है। फिर तुम्हारी कठिनाई क्या है?' युवक बोला— 'गुरुदेव! कठिनाई एक ही है कि मैं उसे जिस रुप में ढालना चाहता हूं, वह उस रूप में ढलती नहीं है।' गुरु ने कहा— 'इतनी सी बात को लेकर अधीर हो गए। ठहरो, मैं तुम्हें उपाय बताता हूं।'
गुरु ने कुछ समय बाद युवक से दो बाल्टियां मंगाईं। दोनों बाल्टियों को पानी से भरवा दिया। एक तेल की शीशी और एक दूध की बोतल मंगवाई। गुरु ने तेल की शीशी खोली और एक बाल्टी में तेल की दो-चार बूंदें डाल दी। दूध की बोतल खोली और एक कटोरी भर दूध दूसरी बाल्टी में डाल दिया। युवक सामने बैठा देख रहा था। गुरु ने पूछा— 'कुछ समझे या नहीं?' युवक ने अनभिज्ञता प्रकट की। गुरु ने कहा— 'तेल की थोड़ी सी बूंदे इस बाल्टी में डाली, पर वह पानी के ऊपर तैर रही हैं, पानी पर छा गई हैं। दूसरी बाल्टी में कटोरी भर दूध डाला, वह पानी के साथ घुलमिल गया। लगता है, तुम भी अपनी पत्नी पर छाने का प्रयास कर रहे हो। काश! तुम दूध-पानी की तरह मिल पाते। जो मिलना जानता है उसे समझदार चातक से उपमित किया जाता है।' गुरु ने दो प्रतीकों के माध्यम से शिष्य का दृष्टिकोण बदल दिया। उसे बोधपाठ मिल गया। उसने अपनी पत्नी को स्वतंत्र रूप से व्यक्तित्व विकास करने का अवसर दिया। वह अधिक विनम्र और ग्रहणशील बनती गई। युवक की समस्या का समाधान हो गया।
*मनुष्य में अगर कुछ पाने की तड़प और ग्रहणशीलता हो उसे कहीं से भी प्रेरणा-पाथेय मिल सकता है... कैसे...?* इस संदर्भ में उदाहरण द्वारा समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 #राउरकेला - #तप #अभिनंदन कार्यक्रम
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दिनांक 02-08-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
प्रस्तुति - अमृतवाणी
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News in Hindi
*#कोलकाता ~ साध्वीप्रमुखा गुरु-सन्निधि में*
🎖#आमरी #हॉस्पिटल, साल्टलेक में 5 दिवसीय *सफल चिकित्सकीय प्रवास के पश्चात #पूज्यप्रवर के #दर्शन करते* हुए संघ की #असाधारण #साध्वीप्रमुखा श्री #कनकप्रभाजी
🎖 *#आचार्यप्रवर ने स्वयं खड़े होकर किया वर्धापन*
दिनांक - 02-08-2017
प्रस्तुति - 🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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02 अगस्त का संकल्प
*तिथि:- सावन शुक्ला दशमी*
सभी जीवों के प्रति मैत्री हृदय में समाएं ।
समता सागर से करुणा की गंगा बहाएं ।।
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