Update
भूगर्भ से प्राप्त चतुर्थकालीन महाअतिशयकारी श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान तथा चिंतामणि पारसनाथ भगवान के दर्शन @ पलवल हरियाणा 🙂🙂
Source: © Facebook
#मुनि_प्रमाणसागर जी के famous #शंका_समाधान में से कुछ Important & Basic प्रवचन को लेकर हमने उन clips में English Subtitle add किये है ताकि इंग्लिश समझने वाले जैन तथा Non_Jain भी जैन धर्म के general Qn Ans को समझ सके! अभी तक 9 video हमने English subtitle add किए हैं लिंक पर click करके आप लोग देख सकते, हमें इसके लिए Helping Hands चाहिये जो ओर video में इंग्लिश subtitle add करने हमारी मदद कर सके, जो भी help करना चाहते हैं please comment box में अपना comment kare, हम आपसे contact करेंगे, Subtitle add करना बहुत आसान हैं जो आपको हम कुछ Steps में समझा देंगे:))
9 Videos हो गये हैं मुनि श्री के प्रवचनो में से क्लिप निकालकर। और ये क्लिप जब facebook पर शेयर करी, तो बहुत अच्छा response मिला। https://www.youtube.com/playlist?list=PLojk56IbG34zNFRCQjyG0pLd5DoaVUJv_
अगर आप भी प्रवचनो की क्लिप बनवाने में मदद कराना चाहते हैं, तो बतलायें। #SharePls
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence
Source: © Facebook
Update
Latest Pravachan 🙂 #आचार्य_विद्यासागर महाराज ने बेटियों के विवाह में वर द्वारा कन्या को पसंद करने को बताया गलत #AcharyaVidyasagar #share
चंद्रगिरी पर्वत पर संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने रविवार प्रवचन में कहा कि पहले असी, मसि, कृषि एवं वाणिज्य के हिसाब से कार्य होता था और विवाह में कन्यादान होता था। इस प्रथा में कन्या दी जाती थी इसमें कन्या का आदान-प्रदान नहीं होता था। आज पाश्चात्य सभ्यता का चलन होने के कारण सब प्रथा में परिवर्तन आ रहे है, यह विचारणीय है। पहले पिता अपनी बेटी के लिए योग्य वर ढूंढता था पर आज बच्चे से पूछे बिना कोई नहीं कर सकते है।
आचार्यश्री ने कहा कि पहले बेटी अपने पिता की बात को ही अपना भाग्य समझती थी। अब ऐसा देखने और सुनने को नहीं मिलता है। आचार्य श्री ने मैना सुंदरी और श्रीपाल का उदाहरण देकर बताया कि किस तरह से उन्होंने अपने भाग्य पर भरोसा किया और अंत में उनका भला ही हुआ। आज का दिन आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष दूज छत्तीसगढ़ में बहुत शुभ दिन माना जाता है और ऐसा मानना है कि इस दिन वर्षा अवश्य होती है। आगे अष्टानिका पर्व आ रहा है जिसमें सिद्धचक्र विधान का विशेष महत्व माना जाता है। आप लोग अष्टानिका, दसलक्षण पर्व को ही विशेष महत्व देते हो हमारे लिए तो मोक्ष मार्ग में हर दिन ही विशेष भक्ति, स्वाध्याय आदि का होता है। विवाह धर्म प्रभावना के लिए किया जाता है। वर-वधू का विवाह होता है फिर संतान होती है। वे अपनी संतान को अपने धर्म के अनुरूप संस्कार देते है। ऐसे पीढ़ी धर्म की प्रभावना होती रहती है। पहले स्वयंवर होता था जिसमें कन्या अपने लिए वर पसंद करती थी। इसमें कभी वर को कन्या पसंद करने का अवसर नहीं दिया जाता था। परंतु आज बेटियां बेची जा रही है जो धर्म और समाज के लिए घातक होता है। आज लोग दिन में दर्पण कई बार देखते है और तो और मोबाइल को भी दर्पण की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और उसे जेब में रखते है तो उसका उपयोग भी कई बार किया जाता है। जो शरीर को देखता है उसे आत्मा का चिंतन होना कठिन है। आत्मा के चिंतन के लिए सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र अनिवार्य है। इसमें शरीर का केवल उपयोग किया जाता है। उसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है।
आलस्य के कारण लोग पुरुषार्थ करना नहीं चाहते -सिद्धचक्र विधान में प्रतिदिन शांतिधारा होती थी और इसके गंधोदक को वह अपने कुष्ठ शरीर पर लगाने से उसका रोग अष्टानिका पर्व के अंतिम दिन में पूरा का पूरा ठीक हो जाता है। यह सब सिद्धचक्र विद्वान को श्रद्धा, भक्ति, विश्वास के साथ करने से हुआ था। आज लोग पुरूषार्थ नहीं करना चाहते है और आलस के कारण ताजा घर में बना खाने की जगह पैकिंग फूड ले रहे है। जिसके कारण वे खुद तो बीमार पड़ रहे है साथ में दो-दो साल के बच्चे को शुगर आदि बीमारियां हो रही है। इसके जिम्मेदार माता-पिता खुद है, उन्हें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence
Source: © Facebook
News in Hindi
#कुंथलगिरी -Essence of Jainism in Single Article #मुनि_नियमसागर जी द्वारा ऐसी explnation आप पढ़ेंगे तो mind set हो जाना हैं!! #AcharyaVidyasagar #share
🔘सम्यग्दर्शन (true Insight) के बिना जैन धर्म की शुरुआत होती ही नहीं यह अकाट्य सत्य ह, हम जैनी है पर जैन धर्म का,सिद्धांतों का रंचमात्र भी ज्ञान हमें नहीं है हम जैनी होकर भी अधर्मी है
परम्पराएँ क्या है ❓लंबे समय से हम कोई क्रिया करते आ रहे है और वह क्रिया वास्तव में गलत है तो हम उसे डर के वशीभूत होकर बदल नहीं पाते, यही परम्पराएँ है,यह धर्म नहीं होती ज्ञान के अभाव में जो-जो परम्पराएँ बनी है वह 363 मतों के अन्तर्गत आती है,शास्त्र खोलकर देखो जो-जो चीजे सत्य प्रतीत हो,अहिंसक हो उनको लेते चलो बाकी को छोड़ो भले ही आप उसे पहले करते हो,गलत को छोड़ने पर ज्यादा सोचना नहीं, घबराहट नहीं,ऐसे घबराओगे तो संसार से बाहर नहीं आ पाओगे, गलत परम्पराओं को तिलांजलि देने के लिए कभी सोचना ही नहीं चाहिए,अगर हम गलत परम्पराओं में फँसे रह गए तो जैन कुल में जन्म लेने की सार्थकता नहीं होगी
🍃हमें ध्यान करना चाहिए सोचना चाहिए जो अनुष्ठान में दिन भर करता हूँ वह सही है या नहीं, आपाधापी है,आत्मकल्याण में कितने सहायक है,गलत है या सत्य,अगर गलत है तो उनको तुरन्त त्यागने का विचार बना लेना चाहिए,ये नहीं सोचना कि इनको छोड़ने पर भविष्य में उपसर्ग की संभावना होगी क्योंकि धर्म स्वतंत्र है,उस पर कोई बंधन नहीं है
🌿आज आगम परम्परा भी दो प्रकार की हो गई, यहाँ भी भटकन है उसी को समझने के लिए शिविर है,हम आज धर्म के मामले में बहुत भ्रमित है,दूर खड़े होकर ही यह गलत है,यह सही है,ऐसा विचार बना लेते है और कर्मबंधन कर लेते है इससे निदत्त-निकाचित कर्म बंधन होता है,ऐसे लोगों को दुबारा आर्यखण्ड में जन्म नहीं मिलता, आर्यखण्ड 170 है और मलेच्छ खण्ड 885,,संख्या मलेच्छ खण्डों की अधिक है,अधिकाधिक जीव अपने आत्मतत्व के विरुद्ध विचार करते है और वही जीव मलेच्छ खण्ड में जन्म लेते है
राजा श्रेणिक ने धर्मात्मा पर उपसर्ग किया फलस्वरूप 7वें नरक में गए, ध्यान दो... सप्तम नरकायु का बंध धर्म क्षेत्र में हुआ तभी तो कहा है धर्म क्षेत्रे कृतं पापं,वज्र लेपो भविष्यति। व्यवहार क्षेत्र में किये पाप का फल कम होता है किन्तु धर्म क्षेत्र में किए पाप का बहुत अधिक पाप करने पर जो फल प्राप्त होता है वही अनुमोदना करने का भी होगा जो खुद को सुखी नहीं बना सकता वह दूसरों को भी सुखी नहीं बना सकता।
बाहर से विरोध मत करो सामने आओ महावीर प्रभु के शासन की मिलकर प्रभावना करो,महाराज जी ने जियो और जीने दो के सिद्धांत को jio सिम का उदाहरण देकर लोगो को समझाया और कहा कि जिस प्रकार jio सब कुछ free देता है वैसे ही धर्म सब कुछ free में देता है, आज महावीर भगवन के जीव और जीने दो के सिद्धांत का सिर्फ jio का विकास हुआ है, अभी जीने दो का विकास नहीं हुआ। कोई जीने दो का leptop भी बना दे तो जियो और जीने दो पूरा हो जायेगा। हमारे पास सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान का jio network है और संयम रूपी लेपटॉप... जो कि बिल्कुल free है, और हमने ये नेटवर्क सिर्फ 10 दिन के लिए ही खोला है, जितना लाभ ले सकते हो, लीजिये।
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence
Source: © Facebook