16.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 16.05.2017
Updated: 17.05.2017

Update

17 मई का संकल्प

*तिथि:- ज्येष्ठ कृष्णा षष्ठी*

हो ऐसा अध्यवसाय मेरा।
तोड़ सकूं जन्म-मरण घेरा।।

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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 बैंगलोर - कैरियर काउंसिलिंग प्रोग्राम का आयोजन
👉 अहमदाबाद - स्वच्छता अभियान कार्यक्रम आयोजित
👉 छापर - विकास कौशल प्रशिक्षण शिविर आयोजित
👉 तुमोनी (बंगाल) - गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी का बंगाल की पावन धरा पर मंगल प्रवेश
👉 भिवानी - तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम का गठन
👉 सिरकाली - आचार्य श्री महाश्रमणजी के 44 वें दीक्षा दिवस पर कार्यक्रम

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻

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दिनांक 16 - 05- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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Update

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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*प्रतिपक्ष भावना - [ 1 ]*

प्रतिपक्ष भावना के द्वारा पुराने संस्कारों को समाप्त और नए संस्कारों का निर्माण किया जा सकता है ।
क्रोध प्रतिपक्ष क्षमा
मान प्रतिपक्ष मृदुता
माया प्रतिपक्ष ऋजुता
लोभ प्रतिपक्ष संतोष
प्रतिपक्ष भावना के द्वारा संस्कार निर्माण की पद्धति इस प्रकार है ----
1) प्रतिपक्षी भाव पर दीर्घकालिक एकाग्रता ।
2) कायोत्सर्ग की मुद्रा में स्वतः सुझाव । सुझाव दूसरे व्यक्ति के द्वारा भी लिया जा सकता है ।
3) प्रतिपक्ष भावना के बार- बार भीतर तक पहुंचने से नए संस्कार के निर्माण में सफलता मिलती है ।


16 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 56* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

आचार्य भद्रबाहु की साधना का काल संपन्न प्रायः था। उस समय एक दिन आचार्य भद्रबाहु ने प्रथम बार स्थूलभद्र से कहा "विनेय! तुम्हें माधुकारी प्रवृत्ति एवं स्वाध्याय योग में किसी प्रकार का क्लेश तो नहीं होता?"

आर्य स्थूलभद्र विनम्र होकर बोले "भगवन्! मुझे अपनी प्रवृत्ति में कोई कठिनाई नहीं है। मैं पूर्ण स्वस्थमना अध्ययन में रत हूं। आपसे एक प्रश्न पूछता हूं मैंने आठ वर्षों में कितना अध्ययन किया है और कितना अवशिष्ट रहा है?"

प्रश्न के समाधान में भद्रबाहु ने कहा "मुने! सर्षप मात्र जितना ग्रहण किया है और मेरु जितना ज्ञान अवशिष्ट है। दृष्टिवाद के अगाध ज्ञानसागर से अभी तक बिंदु मात्र लिया है।"

आर्य स्थूलभद्र ने निवेदन किया "प्रभो!" मैं अगाध ज्ञान की सूचना पाकर हतोत्साहित नहीं हूं पर मुझे वाचना अल्पमात्रा में मिल रही है। आपके जीवन का संध्याकाल है, इतने कम समय में मेरु जितना ज्ञान कैसे ग्रहण कर सकूंगा?"

बुद्धिमान आर्य स्थूलभद्र की चिंता का निमित्त जान आचार्य भद्रबाहु ने आश्वासन दिया "शिष्य! चिंता मत करो, मेरा महाप्राण साधना कार्य संपन्न प्रायः है। उसके बाद मैं तुम्हें रात-दिन यथेष्ट समय वचना के लिए दूंगा।"

श्रुतसंपन्न आचार्य भद्रबाहु एवं आर्य स्थूलभद्र के बीच हुए इस संवाद का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में है।

आर्य स्थूलभद्र का अध्ययन-क्रम चलता रहा। भद्रबाहु की महाप्राण ध्यान की साधना पूर्ण होने तक उन्होंने दो वस्तु कम दसपूर्व की वाचना ग्रहण कर ली। तित्थोगालिय पइन्ना के अनुसार आर्य स्थूलभद्र ने दशपूर्व पूर्ण कर लिए थे। उनके ग्यारहवें पूर्व का अध्ययन चल रहा था। ध्यान साधना का कार्य संपन्न होने पर आर्य भद्रबाहु पाटलिपुत्र लौटे। यक्षा आदि साध्वियां आर्य भद्रबाहु के वंदनार्थ आयीं। आर्य स्थूलभद्र उस समय एकांत में ध्यानरत थे। परम वंदनीय महाभाग आचार्य भद्रबाहु के पास अपने ज्येष्ठ भ्राता मुनि आर्य स्थूलभद्र को नहीं देखकर साध्वियों ने उनसे पूछा "गुरुदेव! हमारे ज्येष्ठ भ्राता मुनि आर्य स्थूलभद्र कहां है?" भद्रबाहु ने स्थान का निर्देश दिया। यक्षा आदि साध्वियां वहां पहुंचीं। बहनों का आगमन जानकर आर्य सोनभद्र कुतुहलवश अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए सिंह का रुप बनाकर बैठ गए। साध्वियां शेर को देखकर डर गयीं। वे आचार्य भद्रबाहु के पास तीव्र गति से पहुंचीं और प्रकंपित स्वर में बोलीं "गुरुदेव! आपने जिस स्थान का संकेत दिया था, वहां सिंह बैठा है। *'जयेष्ठार्य जघ्रसे सिंहः'* लगता है, हमारे भाई का उसने भक्षण कर लिया है।"

*आचार्य भद्रबाहु ने समग्र स्थिति को ज्ञानोपयोग से जानकर क्या कहा और आर्य स्थूलभद्र द्वारा किए गए इस शक्ति प्रदर्शन का उनके ज्ञान ग्रहण पर क्या प्रभाव पड़ा...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 56📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*23. सम रस सरस...*

मुनि हुलासमलजी ने विक्रम संवत 1970 में पूज्य कालूगणी के करकमलों से लाडनू में अपनी पत्नी मालूदेवी के साथ दीक्षा ग्रहण की। उस समय जर्मनी के डॉक्टर हर्मन जेकोबी वहां आए हुए थे। दंपति दीक्षा देख वे बहुत प्रभावित हुए।

मुनि हुलासमलजी धर्मसंघ के प्रसिद्ध तपस्वी संतों में से एक थे। उन्होंने उपवास से लेकर 16 दिन तक लड़ीबद्ध तपस्या की। विक्रम संवत 1980 में उन्होंने 61 दिन का थोकड़ा किया। वे सर्दी में एक पछेवड़ी ओढ़ते और गर्मी में आतापना लेते थे। लघुसिंहनिष्क्रीडित तप की तीन परिपाटियां प्रायः संपन्न कर उन्होंने उग्रतपस्वियों की श्रेणी में अपना नामांकन करा लिया। उनके दूसरी और तीसरी परिपाटी संपन्न हो गई। चौथी परिपाटी में केवल 32 दिन शेष रहे। उनकी तपस्या जितनी उग्र थी, उपशम भाव भी उतना ही प्रबल था। प्रायः देखा जाता है कि बड़ी तपस्या करने वालों की प्रकृति कुछ उग्र हो जाती है। किंतु मुनि हुलासमलजी के जीवन में तपस्या और शांति का अद्भुत समन्वय था।

अनुश्रुति है कि लाडनूं के प्रसिद्ध तत्त्वज्ञ श्रावक जयचंदलालजी कोठारी का तात्त्विक ज्ञान मुनि हुलासमलजी के दिवंगत होने के बाद अधिक विकसित हुआ। संभावना की जा सकती है कि उनके इस क्षयोपशम में मुनि हुलासमलजी का किसी-न-किसी रूप में सहयोग रहा है।

(दोहा)

*51.*
पद-प्रत्याशी क्यों बनें, बनें सभी पद योग्य।
श्री कालू की सीख से, वरें प्रवर आरोग्य।।

*24. पद प्रत्याशी...*

पूज्य कालूगणी धर्मसंघ के साधु-साध्वियों को योग्य बनाने की दृष्टि से बहुत जागरूक थे। किंतु पदलिप्सा से सब को दूर रखना चाहते थे। इस संदर्भ में वे कहते थे-- तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य पद एक ही व्यक्ति को मिलता है। इसलिए किसी को पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनना है। पर सब साधु उस पद के योग्य बनें। जिस संघ में अधिक से अधिक व्यक्ति योग्य हों, वह संघ दीप्तिमान बनता है। योग्यता की प्राप्ति अपने आप में आरोग्य है और उम्मीदवारी बीमारी है। सब साधु आरोग्य का वरण करें, यह संघ के लिए बहुत शुभ है।

*मंत्री मुनि मगनलालजी से संबंधित कुछ घटनाओं* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi

👉 *पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल - "सैंथिया" (पश्चिम बंगाल) में..*
👉 *गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..*
👉 *आज के "मुख्य प्रवचन" के कुछ विशेष दृश्य..*

दिनांक - 16/05/2017

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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 17 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - सैंथिया (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 16/05/2017

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16 मई का संकल्प

*तिथि:- ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी*

हैं उपलब्ध भोग के साधन विपुल।
लालसामय उपभोग पाप का मूल।।

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  1. अमृतवाणी
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