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आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज @ गिरनार सिद्ध क्षेत्र भगवान नेमिनाथ जी की केवलज्ञान तथा मोक्ष भूमि। राज़ूल की तप स्थली!!! #Girnar #BhagwanNeminatha
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#आचार्यश्री_विद्यासागरजी महाराज (ससंघ) इस समय डोंगरगढ़ (छग.) में विराजमान हैं। #डोंगरगढ़ नेशनल हाईवे से 22 किमी की दूरी पर है और रायपुर से 135 किलोमीटर दूरी पर है। रेलवे स्टेशन डोंगरगढ़ है एवं दुर्ग रेलवे जंक्शन पर सभी ट्रेनों का स्टॉपेज है। अधिक जानकारी हेतु...
निशांत जैन: +91-09301301540
किशोर जैन (अध्यक्ष): +91-9425563160
सुभाषचंद जैन (कोषाध्यक्ष): +91-9301001473
सप्रेम जैन (प्रतिभा स्थली प्रभारी): +91-9300622051
कार्यालय: +91-7489087040
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कल रात डोंगरगढ़ में पूनम का चाँद अपने पूरे शबाब पर था, मगर उससे कंही दिव्य प्रकाश चन्द्रगिरि की पहाड़ियों पर अठखेलियां कर रहा था जिसे देख चन्द्रमा के मन में शंका उपजी और उसका निदान.. कुछ पंक्तियों के माध्यम से प्रयास कर रहा हूँ
चन्द्रगिरि को देख चाँद भी लगा रहा है अपना ध्यान
सोच रहा है मुझसे ज्यादा कौन यंहा है आभावान?
जिसके दिव्य तेज के सम्मुख चांदनी मद्धिम हो गई
तारे भी टिम टिम करते हैं पर उनकी लौकिकता खो गई
मम चर्या से उजयारे का क्षणिक मात्र होता आभास
लेकिन आठों पहर यंहा पर कैसे फैला दिव्य प्रकाश??
तब मन्द पवन हौले मुस्काई पूर्ण चंद्र का आशय जान
बोली ओ अभिमानी चन्दा! मत कर इतना अरे गुमान
जिनके तप के दिव्य तेज से प्रकाशित है सकल जहान
चन्द्रगिरि पर आन विराजे पंचमयुग के वो भगवान्
श्री विद्या गुरुवर नाम सुहाना तीर्थंकर चर्या धारी
अधरों पर मुस्कान सोहती उतर निरख लो छवि प्यारी ।
💐💐💐 -ब्रजेश जैन सेठ, पाटन
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News in Hindi
जिनके दर्शन से होता सम्यक् दर्शन निर्मल -मुनि श्री नियम सागर जी महाराज आचार्य श्री विद्यासागर के ज्येष्ठ शिष्य है
उनकी विद्याष्टक गुरु के प्रति भक्ति की कृति वर्त्तमान में संस्कृत की सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसे राष्ट्रपति ने उन्हें कालिदास की उपमा से नवाजा था यह रत्नत्रय स्तुति का श्लोक था इस श्लोक से ही विद्याष्टक की उपत्पति हुई है केवल 8 अक्षरो से यह स्तुति बनी है जिसमे से कितने अर्थ निकलते है जिसमे कई श्लोक में तो यताख्यात चरित्र की स्तुति है कई में अग्रेजी भाषा हिंदी भाषा और मराठी में भी अर्थ निकलता है और इन 8 अक्षरो से ही विद्याष्टक का निर्माण होता है यह महाराज जी के अदभुत अधतमिक ज्ञान का क्षयोपशम है जो वर्त्तमान में उन्ही के पास देखने को मिलता है मुनि श्री की आचार्य श्री के प्रति गुरुभक्ति ओर समर्पण की यह अदभुत मिसाल है उनके हित मित प्रिय वचन जेसे आत्मा सुनने और जानने के लिए आतुर हो उठती है उनके प्रवचनों में सिद्धान्त करणानुयोग और आध्यात्म द्रव्यानुयोग सुनने को मिलता है और ऐसा लगता है साक्षात् महावीर उपदेश दे रहे हो उनको वाणी इतनी प्रिय है की मन को मोह लेती है उनकी कविता जेसे कोई आत्मा को बोध रही है मुनि श्री के द्वारा कन्नड़ भाषा का मंगलाचरण जेसे जगत के सभी जीवो का मंगल करने वाला है और यह मंगलाचरण भावो की विशुद्धि को बढ़ाकर सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाला है अंतिम में जिनवाणी स्तुति ज्ञान की परिपूर्णता और जैन धर्म के शास्वत रहने का प्रमाण प्रस्तुत करती है मुनि श्री का हर जीवो प्रति कल्याण का भाव है उनका उद्भबोधन ही मानो त्याग और तपस्या के लिए निकलता है मुनि श्री को बच्चों के इतने प्रिय है की बालक उनके पास सहजता से चला जाता है उनकी चित्रकारिता सबको मंत्रमुग्ध कर लेती है. उनके उढ़बोधन से आज कर्णाटक और महाराष्ट्र में 250 के ऊपर प्रतिमा धारी श्रावक बने है उनका आचरण और उनकी संगति चरित्र चक्रवती शान्तिसागर जी का जो जीवो के प्रति जो कल्याण करने का मार्ग बतया है उस पर ही होते है पर आज समाज में शान्तिसागर जी का नाम लेकर कुछ साधू अपना प्रभाव नहीं बना सके समाज को कभी शिविर के माध्यम से ज्ञान नहीं दिया सिर्फ क्रिया कांड में उलझा कर रखा देवी देवता में उलझाकर धर्म है कहने लगे शान्ति सागर जी का पट्टा चार्य पद लेकर आप उनकी परम्परा और उनको बदनाम कर रहे है कोयले और सिगड़ी से भरी गाड़िया शुद्र जल का त्याग का ढिढोरा पीटकर धर्म की समज से दूर रहा और आपने आजतक सिर्फ परम्परा के नाम पर आपने युवा पीढ़ी को वंचित रखा आपने धर्म की प्रभावना की होती तो आप से हर युवा प्रेरणा लेता पर अब शान्तिसागर जी के नाम लेकर उनकी परम्परा उनकी आड मे शिथिलाचार कर के क्रियाकांड का हवाला देकर आप समाज को बाट रहे हो आज समाज को को जरुरत है वीतराग विज्ञानं की आज युवा विज्ञानं को पढ़ना चाहता है आप अगर जैन धर्म के विज्ञानं के स्वरुप को समझाओगे तो धर्म की प्रभावना होगी सिर्फ सोला सोला गैस सिगड़ी कोयला सिर्फ अपने उदर को भरने के लिए शान्तिसागर जी की परम्परा का निर्वाह करते हो तो यह जिनमार्ग के विरुद्ध है आज युवाओ को विज्ञान रुचिकर लगता है जिसमे पुदगल अणु परमाणु की चर्चा है जिसमे ईथर. ग्रेविटी फिक्शन.मेटर. की चर्चा हो जैन धर्म में क्रियाकांड को कोई स्थान नहीं दिया गया है सिर्फ सम्यक् पूर्व क्रिया ही आत्मकल्याण का साधन है धर्म की व्याख्या शास्त्रो में अति सूक्ष्म है जहा सूक्ष्मता है वहा क्रिया कांड होता ही नहीं है
पंकज शास्त्री
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