01.12.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 01.12.2016
Updated: 05.01.2017

Update

*शंका समाधान - 01 Dec.' 2016*
*======================*

१. बुजुर्गों को मंदिर में नई पीड़ी के युवकों / बच्चों से टोका टाकी नहीं करनी चाहिए अपितु उनका व्यवहार प्रेरणात्मक होना चाहिए ।

२. अतीत से हमेशा सीख और अनुभव लेना चाहिए । भविष्य के प्रति सतर्क रहना अच्छा है लेकिन हर समय भविष्य के लिए चिंतित रहना अनुचित है ।

३. *गृहस्थों के लिए कर्मों को गलाने के लिए शास्त्रों में सबसे सरलतम उपाय जिन पूजा / स्मरण बताया गया है । प. पू. श्री १०८ वीरसेन स्वामी ने कहा है कि जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार मात्र से तात्कालिक पुण्य बंध कि अपेक्षा असंख्यात गुना पाप कर्मों की निर्जरा होती है ।*

४. बेटियां तो उभयकुल वर्धिनी होती है, वो देहरी के दीपक की तरह होती हैं जो घर के भीतर भी और बाहर भी प्रकाश करती हैं ।

५. व्यक्ति के मृत घोषित होने के बाद भी एक अंतर्मुहूर्त तक जोर जोर से नवकार मंत्र का उच्चारण करना चाहिए क्योंकि कभी कभी सूक्ष्म प्राण अगर अटके हो तो वो जीव संवेदना प्राप्त करके अपना कल्याण कर सकता है ।

६. *जीवन में धार्मिकता वही अपना पाता है जो अपने अंदर परिवर्तन चाहता है, लेकिन कभी कभी जन्म जन्मांतर के संस्कार भारी पड़ जाते हैं और देखने में यह आने लगता है कि धार्मिक व्यक्ति भी कोई विकार से ग्रस्त है । ऐसे व्यक्ति को देख कर धर्म पर कभी अश्रद्धा नहीं करना चाहिए और उस व्यक्ति का तिरस्कार नहीं करना चाहिए । ऐसे cases पर टिप्पड़ी करने से अच्छा है कि आप यह दृष्टि रखे कि वो व्यक्ति कम से कम जितने समय धर्म कर रहा है तब तक तो कषाय से मुक्त है । और जब अपने आप को देखना हो तो दृष्टि यह रखे कि जब मैं इतना धर्म करूँगा तो अपने अंदर ऐसे विकार नहीं आने दूंगा ।*

७. माँ-बाप जितनी तत्परता से बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते हैं उतनी तत्परता से कभी मंदिर या पाठशाला नहीं भेजते । बचपन से ही नींव कमजोर कर दी जाती है । उन पर धर्म थोपा जाता है जबकि उनके भीतर धार्मिकता जगानी चाहिए । और तो और बड़े लोग, बच्चों के लिए आदर्श नहीं बन पा रहे क्योंकि वो धर्म तो करते हैं लेकिन उनका आचरण अशोभनीय ही है ।

८. मृत्यु कब आ जाये या शरीर कब खराब हो जाये पता नहीं इसीलिए बुढ़ापे का इंतज़ार ना करके अभी से ही शक्ति अनुसार जितना धर्म हो सके कर लीजिये ।

*- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*

Source: © Facebook

News in Hindi

हम अपने मन के नौकर बन गए हैं और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। - आचार्य विद्यासागर जी

आचार्यश्री ने कहा कि भारत अब 70 साल का हो चुका है। एक तरह से परिपक्व राष्ट्र हो चुका है। हमारे नेता आज भी भारत को विकासशील राष्ट्र कहते हैं। हम 70 साल से यही सुनते आ रहे हैं। कहा जाता है कि अमेरिका, जापान, रसिया, फ्रांस, जर्मनी विकसित हो चुके हैं और भारत विकासशील है। दरअसल हम इसलिए विकासशील हैं कि हम दूसरे राष्ट्रों को देखकर विकास की अवधारणा बना रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विकसित राष्ट्र है। हमने इस नीति से बाहर आना होगा।

आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि यदि शांति चाहिए तो चिंता और चिंतन से मुक्त हो जाओ जो चीजे अनादिकाल से है उन्हें समाप्त किया जा सकता है। जैसे राग, द्वेष अनादिकाल से है। हम इन्हें समाप्त कर सकते हैं। लेकिन इनके बारे में ज्यादा चिंता और चिंतन करने से सिर दर्द के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य का सारा पुरुषार्थ सिर्फ पेट के लिए नहीं है। वह मन के वश में है। एक तरह से मन का नौकर बन गया है और मन के पास पेट नहीं पेटी है जो कभी भरती नहीं है। मनुष्य मन की पेटी को भरने के लिए तमाम यतन करता है। मन की इच्छाओं को पूरा करने वह आशीर्वाद मांगने हमारे पास भी आता है। हम कहते हैं मन को मारने का पुरुषार्थ करो तो शांति स्वत: मिल जाएगी।

--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgranth #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri

Source: © Facebook

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Ahinsa
          2. Digambara
          3. Jainism
          4. JinVaani
          5. Nonviolence
          6. Rishabhdev
          7. Tirthankara
          8. आचार्य
          9. निर्जरा
          10. पूजा
          11. सागर
          Page statistics
          This page has been viewed 427 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: