12.05.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 12.05.2016
Updated: 05.01.2017

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मांगी तुंगी सिद्ध क्षेत्र में विराजमान भगवान पारसनाथ की प्राचीन प्रतिमा:))

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Exclusive kundalpur: ---संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से सागर स्थित शांति बिहार कालोनी मकरोनिया निवासी अर्पित जैन ने संघ लोक सेवा आयोग 2016 की परीक्षा में देश में 144 वां स्थान प्राप्त किया । उन्हें आईपीएस केडर मिलेगा । पिछली बार अर्पित का चयन IRS कस्टम में हुआ था। बधाइयाँ अर्पित

UPSC द्वारा आयोजित भारतीय प्रशासनिक सेवा 2016 में जैन समाज के 23 प्रतिभागियों ने परीक्षा उत्तीर्ण कर जैन समाज का नाम गौरवान्विन्त किया हैं। सभी सफल प्रतिभागीयों को हार्दिक बधाई और उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनायें!!

1 # Siddharth Jain- 13
2 # Vaibhav Chaudhary- 88
3 # Pramyesh bansall- 109
4 # Agam Jain - 133
5 # Rajat Saklecha -141
6 # Arpit Arvind Jain IRS- 144
7 # Mudit Jain IPS- 207
8 # Nimit Mehta - 250
9 # Rohit Ghodke - 257
10 # Raja banthia IPS- 258
11 # Sachin V. jain DANIPS -286
12 # Abhishek M Jain- 304
13 # Saurbh Jain -305
14 # Rahul Gupta -306
15 # Sachin R Jain IRS - 313
16 # Money Jain IRS- 424
17 # Sagar Bagmar - 454
18 # Amit Samdariya - 458
19 # Saurbh Jain IRTS- 505
20 # Nikhil Gandhi IRS- 513
21 # Priti jain
22 # Sudarshan Lodha
23 # Rahul R Jain IPS

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भगवान की प्रतिमा का खुली आंखों से दर्शन करें: वर्धमान सागर

दादाबाड़ी जैन नसियांजी में चल रहा प्रवचन, श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्जवलन कर मुनि संघ का किया पाद-प्रक्षाल

सकलदिगंबर जैन समाज कार्याध्यक्ष जेके जैन ने बताया कि वर्धमान सागर जी की अगुवाई में मुनि संघ ने शाम को दादाबाड़ी से विज्ञान नगर जैन मंदिर के लिए विहार और रात्रि विश्राम भी किया। गुरूवार को मुनि ससंघ सुबह 5 बजे विज्ञान नगर से कैथून रोड़ स्थित फार्म हाउस पर विहार करेंगे।मंदिर समिति अध्यक्ष राजमल पाटोदी ने बताया कि नसियां जी से विहार कर मुनिसंघ जवाहर नगर, शीला चौधरी रोड होते हुए विज्ञान नगर मंदिर में मंगल प्रवेश हुआ। मंदिर द्वार पर समिति पदाधिकारियों ने आचार्य श्री की अगवानी कर पाद प्रक्षालन किया।

आचार्यवर्धमान सागर महाराज ने कहा है कि भगवान की प्रतिमा का हमेशा खुली आंखों से दर्शन करें।
वे दादाबाड़ी नसियां जी में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान की प्रतिमा केवल पाषाण नहीं है। उसमें भगवान के सभी गुण होते हैं। भगवान गुणानुरागी होते हैं। गुरू से बड़ा कोई दाता नहीं है। अतः दान का व्यसन करें। इंद्रियों के प्रति अनुराग नहीं वैराग्य का भाव रखे। मुनि संघ सदस्य अपूर्व सागर ने कहा कि संतगण चलते फिरते तीर्थ होते हैं। भक्त समझता है भगवान की शांतिधारा कर ली और काम खत्म, लेकिन शांतिधारा नहीं शांति को धारण करें। अपूर्व सागर महाराज ने कहा कि क्रोध करने वाला खुद का ब्लड प्रेशर बढ़ाता है और बड़ा नुकसान करता है। गुस्से पर आध्यात्मिकता से ही नियंत्रण किया जा सकता है। इसी प्रकार जुबान में हमेशा मिठास होनी चाहिए। मीठा बोलोगे तो मीठा मिलेगा।

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सार्थक श्रम के प्रति कैसी शंका?: --आचार्य श्री #latest #kundalpur #pravachan

कुंडलपुर में आचार्य श्री विद्यासागर ने वाक्य के अंत में प्रयुक्त शब्द 'लेकिन' को प्रतिपक्ष का दयोतक बताते हुए कहा कि इसके प्रकट होते ही भाव पर विराम लग जाता है। शंकाएं बाधा हैं, सार्थक श्रम के परिणाम के प्रति
शंका क्यों। आचार्य श्री ने श्रोताओं को समझाते हुए बताया कि एक कृषक उत्तम बीज, भूमि और प्रबंध करता है। लेकिन शतप्रतिशत सफलता नहीं मिलती। यह क्रम बार बार होने से किसान के मन में निराशा के बीज अंकुरित हो जाते हैं। सभी विशेषज्ञों से शंका समाधान पूछने पर कहा जाता है, कि सभी प्रबंध तो उत्तम है, लेकिन का उपयोग आचार्य श्री ने कहा कि जब वाक्य के अंत में लेकिन का उपयोग होता है। पूर्व वाक्य के भावार्थ का प्रतिपक्षी भाव उत्पन्न हो जाता है। लेकिन शब्द भाव पर विराम लगा देता है, यह शंका आशंका का दयोतक है। जब तक कार्य के प्रति आशंका विद्यमान है, अपेक्षित परिणाम कभी प्राप्त नहीं होता । वह कृषक गन्ना की कृषि करता था, सबसे उत्तम और मधुर स्वाद के गन्ना की फसल भी होती थी लेकिन शतप्रतिशत फसल नहीं मिलती। गन्ने की नीचे भाग की पोरों की अपेक्षा ऊपर के पोरों में रस की मधुरता और मात्रा में क्षीणता आ जाती है। ऊपर के पोरों में रस का स्वभाव है, प्रबंधों के माध्यम से गन्ने की पैदावार में वृद्धि हो सकती है, लेकिन गन्ना का स्वभाव परिवर्तित नहीं हो सकता । ऊपर के पोरों की अपेक्षा अधोभाग में रस और मधुरता अधिक रहेगी।

आचार्य श्री ने भाव के प्रति सचेत करते हुए बताया कि आगे की फसल के लिए वही अग्र भाग का गन्ना बीजांकुरित होकर रसवान परिणाम देता है। जिस भाग में रस कम था, मधुरता की कमी थी उसी भाग से आगामी फसल आने तक संतोष का भाव हो तथा श्रम और परिणाम पर आशंका न हो तो मधुर फसल का यह क्रम निरंतर चलता रह सकता है।

इसमें फसल तो ठीक है लेकिन शतप्रतिशत नहीं। यह लेकिन अग्र वाक्य का प्रतिनिधि भाव उत्पन्नकर आशंका और निराशा से भर देता है। आचार्य श्री ने कहा कि सार्थक श्रम के प्रति आशंका ने उत्तम परिणाम को भी प्रतिकूल बना दिया । संकलन सहित अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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