09.05.2016 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 09.05.2016

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अतेश बने शुद्धेश मुनि, प्रार्थना हुई साध्वी विशुद्धि
दीक्षा समारोह में उमड़ा जनसैलाब, 80 तपस्वियों के वर्षीतप के पारणे
आचार्यश्री का पारणा राजेन्द्र जैन ने करवाया जिन्होंने 5 लाख की बोली ली।

उदयपुर, 9 मई। श्रमण संघ के आचार्य शिव मुनि के श्रीमुख से दीक्षा पाठ सुनकर सात वर्ष से वैराग्य जीवन व्यतीत कर रही प्रार्थना साध्वी विशुद्धि और तीन वर्ष से वैराग्य जीवन व्यतीत कर रहे अतेश मुनि शुद्धेश बन गए। इस दीक्षा महोत्सव के ऐतिहासिक स्वर्णिम पल के साक्षी बने नगर के गणमान्य सहित दस हजार से अधिक लोग जो देश भर के कोने-कोने से आए थे। इसके साथ ही वर्षीतप करने वाले 80 तपस्वियों के पारणे हुए।
पांच दिन से नाई ग्रामवासियों को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाजजनों को इस क्षण का इंतजार था। आचार्य शिव मुनि ने वैरागी अतेश जैन और वैरागन प्रार्थना जैन को दीक्षा क्रिया करवाकर मंगलपाठ सुनाया और संयम और साधना के पथ पर अग्रसर होने का संकल्प कराते हुए नामकरण किया। आचार्यश्री ने दीक्षा विधि सम्पन्न करवाकर ज्यों ही अतेश को शुद्धेश मुनि और प्रार्थना को साध्वी विशुद्धि कह कर उद्घोषित किया तो हजारों समाजजनों ने दोनों हाथ उपर उठाकर हर्ष-हर्ष और अनुमोदना-अनुमोदना जैसे सामूहिक स्वरों से आसमान गुंजा दिया।
इससे पूर्व सुबह नाई स्थानक से 8 बजे श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की ओर से दीक्षार्थी भाई-बहनों को शोभाय़ात्रा के साथ दीक्षा स्थल स्कूल प्रांगण में बने विशाल पाण्डाल में लाया गया। शोभायात्रा में दीक्षार्थी भाई एवं बहन के दर्शनार्थ सैकड़ों समाजजन उमड़े। बैण्डबाजों के साथ अलग-अलग बग्घियों में सवार दीक्षार्थी भाई बहन को नाचते-गाते युवा और महिलाओं के समूह ने बड़े ही उत्साह के साथ साधना पथ पर अग्रसर होने के लिए आचार्यश्री के श्रीचरणों में अर्पित किया। शिरीष मुनि ने इस महान धार्मिक आयोजन की शुरूआत की। आचार्यश्री ने करीब दो घंटे तक दीक्षा की विभिन्न विधियां और अनुष्ठान सम्पन्न करवाये। इस दौरान शिरीष मुनि माईक से लगातार नव दीक्षार्थियों को दीक्षा का महत्व एवं संयम पथ के महत्व के बारे में समझाते रहे।
दीक्षार्थी भाई बहन ने इस दौरान अपने मन की बात उपस्थित हजारों समाजजनों के सामने रखते हुए कहा कि जीवन का असली आनंद तो संयम और साधना के पथ पर ही मिलता है। वैरागी दीक्षार्थी अतेश ने कहा कि उन्होंने जीवन में कई पुरूषार्थ करने के बाद यह अनुभव किया कि संसार में वो अद्भुत और अलौकिक आनन्द नहीं मिलता है जो गुरू के चरणों में और साधना के पथ में मिलता है।
दीक्षा से पूर्व शिरीष मुनि ने दीक्षार्थियों, उनके जन्म के माता- पिता और धर्म के माता- पिता से दीक्षा की अनुमोदना करवाकर दीक्षा की आज्ञा ली। इसके उपरान्त विभिन्न धार्मिक विधियों से दोनों दीक्षार्थियों को दीक्षित किया और दीक्षार्थियों को संयम और साधना के पथ पर चलने का संकल्प करवाकर दीक्षा पाठ सम्पन्न किया। दोनों दीक्षार्थियों ने खड़े होकर गुरू आराधना कर चरण वंदना की।
दिए संयम के उपकरण: आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों को दीक्षित करने और उनका नामकरण करने के बाद संयम के उपकरण प्रदान किये जिनमें पिच्छी, पात्र, शास्त्र और स्वाध्याय की सामग्री शामिल थी।
केशलौंच: दीक्षा के उपरान्त दोनों दीक्षार्थियों का सांकेतिक केशलौंच हुआ। आचार्यश्री ने शुद्धेश मुनि के पांच कैश और साध्वीवृन्द प्रेक्षाजी ने साध्वी विशुद्धि का केशलौंच किया।
छोटा पड़ गया पाण्डाल: दीक्षा स्थल पर बना विशाल पाण्डाल भी इस ऐतिहासिक मौके पर बौना नजर गाया। दीक्षा स्थल पर हालत यह थी कि जितने लोग पाण्डाल में बैठे थे उससे तीन गुने लोग पाण्डाल के बाहर खड़े थे। उन्हें न गर्मी की फिक्र थी और न ही कड़ी धूप की। उन्हें तो बस दीक्षा के उन ऐतिहासिक पलों का हर हाल में साक्षी बनना था जो उनकी आंखों के सामने हो रही थी।
आचार्यश्री ने कहा कि दोनों दीक्षार्थियों ने जीवन की कठिन राह चुनी है। राह कांटों भरी जरूर है लेकिन सच्चा सुख, परम आनन्द और मोक्ष का मार्ग यही है। संसार का त्याग करना कोई छोटी बात नहीं है। दीक्षार्थियों के संयम पथ पर चलने का जो संकल्प है, वह उस मुकाम पर पहुंचेंगे, भगवान और गुरू का आशीर्वाद सदा इनके साथ है। नाई चाहे गांव छोटा है लेकिन इसने आज बहुत बड़ा काम कर दिखाया है। सभी साधुवाद के पात्र हैं।
दीक्षार्थियों को दीक्षा स्थल पर बने पाण्डाल में लाया गया तब अतेश आचार्यश्री व अन्य साधु वृन्दों के साथ चल रहे थे जबकि दीक्षार्थी प्रार्थना जैन साध्वीवृन्दों के साथ चल रही थी। इस दौरान उनके पीछे चल रहा जन समूह दीक्षार्थी अमर रहे जैसे जयकारे लगाते हुए चल रहा था।
दीक्षा कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात आचार्यश्री को आदर की चादर, श्रमण संघ स्थापना दिवस, गुरु ज्ञान जन्म जयंती के साथ अक्षय तृतीया के वर्षीतप के पारणे भी कराये गये। आचार्यश्री का पारणा राजेन्द्र जैन ने करवाया जिन्होंने 5 लाख की बोली ली। समस्त कार्यक्रम का संचालन किशन दलाल ने किया। आभार प्रमोद कोठारी ने व्यक्त किया। दीक्षा समारोह में उदयपुर ग्रामीणा विधायक फूलसिंह मीणा, उदयपुर नगर निगम के महापौर चन्द्रसिंह कोठारी, भाजपा देहात अध्यक्ष तख्तसिंह, भाजपा शहर जिलाध्यक्ष दिनेश भट्ट, भाजपा नेता प्रमोद सामर आदि उपस्थित थे।
पारणे: संघ के अध्यक्ष लहरीलाल दलाल ने बताया कि दीक्षा महोत्सव के बाद दोपहर में 80 तपस्वियों के पारणे हुए। परिजनों ने इक्षु रस से उनका पारणा करवाया। इस दौरान खासी संख्या में समाजजन और श्रद्धालु मौजूद थे। सभी तपस्वियों को नाई श्री संघ की ओर से उपहार प्रदान किए गए वहीं देश भर से आए भामाशाहों ने भी अपनी ओर से उपहार प्रदान किए। सम्पूर्ण कार्यक्रम में फतहलाल कोठारी, राकेश नंदावत, धनराज लोढ़ा का काफी सहयोग रहा।

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