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❖ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का जीवन चरित्र तथा संस्मरण - ये नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा!! part-2 ❖
इस तरह सातगोड़ा पाटिल का पुनः विवाह करने के लिए घर वाले सोच रहे थे लेकिन इन्होने बोला की मेरी रूचि नहीं है मै अभी विवाह नहीं करना चाहता फिर इनको जब सिद्धप्पा मुनि का सानिध्य 18 वर्ष की आयु में मिला तो इन्होने आजीवन ब्रम्हचर्य धारण कर लिया, फिर आचार्य शांति सागर जी [बालक सातडोगा] ने बताया की श्री सिद्धप्पा मुनिराज कुछ ऐसे महामुनिराज को भी जानते थे जो उस समय निद्रा-विजय नाम का तप करते थे और जो एक उत्तर गुण में आने वाला महान तप है 18-18 दिन तक सोना ही नहीं है, बिलकुल जाग्रत रहना है, ऐसी कठिन तपस्या करने वाले साधु भी उस ज़माने में थे, आज कल कुछ लोग कुछ ज्यादा अनुमान लगा कर ज्यादा कह जाते है की साधुओ का उस समय अभाव होगया था, कोई सच्चा साधु नहीं रह गया था, ये कुछ अधिक बोल जाते है वास्तव में तपस्या करने वाले महान साधु उस काल में भी इतनी महान तपस्या करते थे! चूँकि: कुंद कुंद स्वामी ने कहा है की साधुओ का अभाव पंचम काल के अंत तक नहीं होना है तो इसलिए हम कल्पना भी नहीं कर सकते की मुगलों के शाशन में या भटारको के समय में देश में एक भी साधु नहीं था ये कहना अनुचित है, कही कही साधु थे ये अलग बात है की नाम न मिला हो किसी को प्रसिद्धी ना मिली हो, ये जरुरी नहीं की प्रसिद्धी का चारित्र से सम्बन्ध हो! कभी कभी बहुत ऊँचा चारित्र होता है लेकिन प्रसिद्धी नहीं होती और कभी कभी उतनी निर्मलता नहीं होती फिर भी जीवन में ख्याति ज्यादा प्राप्त हो जाती है, ख्याति का चारित्र या गुणों से कोई सम्बन्ध नहीं है वो सब पुण्य का उदय होने से ऐसा हो जाता है, और ऐसे कितने की महान निर्मल साधु होते है जिनका नाम कोई जानते भी नहीं है और ऐसे कितने ही मूक केवली हो गए है इस संसार में जिनने कभी उपदेश नहीं दिया लेकिन 13th गुणस्थान में विराजमान होकर लोकालोक को प्रकाशित किया केवलज्ञान से, उनका नाम भी कोई नि जानता क्योकि जैन धर्मं व्यक्तिवादी नहीं अपितु जैन धर्मं गुणों पर टिका हुआ है इसी प्रकार णमोकार मन्त्र में किसी व्यक्ति का नाम नहीं है ना महावीर भगवान का नाम, ना आदिनाथ भगवान् का नाम, गौतम स्वामी तक का नाम नहीं है, बस उस पद के गुण जिनके पास हो उनको नमस्कार है! देखो जैन धर्मं कितना निष्पक्ष है!
सातगोड़ा जी ने ब्रम्हचर्य तो ले लिया लेकिन पिता का आग्रह था की तुम अभी संन्यास का मत सोचना, इस तरह बहुत ज्यादा समय व्यतीत हो गया उनका गृहस्थ में ही, आचार्य जिनसेन स्वामी ने तो प्रवचनसार में लिखा है की अगर ऐसे जिद्दी हो माता पिता तो फिर वो भी जिद्दी बन सकता है जिसको दीक्षा लेनी है क्योकि अगर लोग अपने स्वार्थ के लिए अपना इस्तमाल करना चाहते है तो फिर अपना अहित मत करो, इस तरह उन्होंने घर पर रहकर भी एकासन, रस परित्याग आदि कुछ साधनाए कर ही ली थी क्योकि अगर ये साधनाये शुरू से ना की जाये तो फिर शरीर सुखो का आदि बन जाता है ये स्थिति बहुत खतरनाक है, जो लोग सोचते है की मै एक क्षण में मन को वश में कर लूँगा वो अंधकार में है, ये शुरुआत से ही भोजन से रूचि कम रखना, स्वाध्ये करते थे और साथ में घर के कर्त्तव्य को पूरा करते थे! जैसे खेती करना, घर का काम करना, माता पिता की सेवा करना,साथ में धर्मं भी करना!
इस तरह समय व्यतीत हुआ और इनके माता पिता का समय पूरा हो गया तो इनका उम्र 40 वर्ष से अधिक हो चुकी थी, फिर 41 वर्ष की उम्र में आचार्य देवेन्द्र कीर्ति जी आये वहा पर उनसे निवेदन किया की मुझे क्षुल्लक दीक्षा दीजिये वैसे मै मुनि दीक्षा चाहता हु, लेकिन आप सब का ऐसा आग्रह है की सीधा मुनि नहीं बनो, इस प्रकार आचार्य देवेन्द्र कीर्ति जी महाराज ने उनको क्षुल्लक दीक्षा प्रदान की तथा सारी जनता से उनकी अनुमोदना की तथा उनका नाम क्षुल्लक शान्तिसागर जी रखा गया!
* ये जीवन चरित्र तथा संस्मरण क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित शिष्य) के प्रवचनों के आधार पर लिखा गया है! टाइप करने में मुझसे कही कोई गलती हो गई हो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ! –Nipun Jain
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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, २५४२
मोक्ष कल्याणक: श्री १००८ चंद्रप्रभु भगवान
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आँखों में आँसु
मुँह पे मुस्कान क्यों
लड्डू हाथ में
भावार्थ: एक छोटा चंचल बालक जब रोता है और उस समय उसे एक लड्डू दे दिया जाए तो लड्डू मिलने पर वह कुछ समय के लिए चुप हो जाता है । किन्तु उसकी वह चुप्पी कुछ समय की रहती है । कुछ समय बाद वह फिर रोने लगता है । जीवन की भी यही स्थिति है । विषयों में सुख मानने वाले हम भौतिक सुख अथवा इष्ट वस्तु की प्राप्ति न होने पर दुखी होते हैं और मिल जाने पर कुछ समय के लिए सुख का आभास करते हैं किन्तु जब तक अनंत सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख आना निश्चित है । इन कर्म के फलों में हर्ष विषाद करने वाले की स्थिति वास्तव में आँखों में आँसु और मुँह में मुस्कान लिए उस बालक की तरह ही है ।
"ये वक़्त बीत जाएगा"- यह एक वाक्य ऐसा है जिसे सुख में पढ़े तो दुःख और दुःख में पढ़ें तो सुख का आभास होता है ।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ अभी कटंगी, जबलपुर के समीप विराजमान हैं ।
कल से फाल्गुन माह के अष्टान्हिका पर्व प्रारम्भ हो रहे हैं । इन दिनों में देव स्वर्ग से मध्य लोक में नन्दीश्वर द्वीप एवं सुमेरु आदि पर्वतों पर स्थित अकृत्रिम चैत्यालयों की वंदना करने जाते हैं । हम भी यथाशक्ति अपने नगर, ग्राम आदि में स्थित चैत्यालयों की शुभ भावों से अभिषेक पूजन करें और अपने जीवन को सफल बनायें ।
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"राष्ट्र हित चिंतक"आचार्य श्री के सूत्र
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why go for vegetarian:)
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Be vegetarian
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आज "फाल्गुन सुदी सप्तमी" दिनांक 15/03/2016 मंगलवार को देवाधिदेव 1008 श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मोक्ष कल्याणक है।
आप सभी को बहुत बहुत बधाईया।
🏼चन्द्रप्रभु जिनेन्द्र देव की जय
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Celebrity Vegetarian