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Chalo bulava aaya hain paras baba ne bulaya hain
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❖ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का जीवन चरित्र तथा संस्मरण - ये नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा!! part-2 ❖
18 वर्ष की उम्र में इन्हें बडे तपस्वी साधु का समागम मिला वो दक्षिण भारत में सिद्धप्पा मुनि के नाम से जाने जाते थे, और सिद्धप्पा बचपन में अपंग थे! उन सिद्धप्पा का शरीर बचपन में कोई काम का नहीं था, 10 वर्ष तक की उम्र में उनकी माँ उनको अपनी गोदी में उठाकर चलती थी तो उनका परिवार व् माँ तो दुःख के समुद्र में डूबा हुआ था की ये बचा बड़ा होकर क्या करेगा, अभी तो ये छोटा है मैं इनको उठा लेती हूँ, लेकिन जब बड़ा हो जायेगा फिर क्या होगा, तो किसी ने बोला पास के गाँव में बहुत बडे डॉक्टर है उनका इलाज हो नहीं कराती यहाँ रोने-धोने से क्या लाभ है तो फिर वो पास के गाँव में जा रही थी तो रास्ते में जंगल पड़ता था, तो उस जंगल मैं जैसे ही उस बच्चे को उतारा तो तो उनको लगा की आस पास में कोई है तो फिर एक मुनिमहाराज थे वह पर उनका नाम श्री सिद्ध था, उन मुनि राज के पास जाकर उनको नमस्कार किया और हाथ जोड़ कर उदास बैठ गयी और बच्चा भी साथ में, तब मुनिराज ने मराठी भाषा मैं पूछा "तू रोती क्यों है" तो माँ बोले की ये मेरा बच्चा अपंग है इसको कोई ऐसी बीमारी है जिससे ये चल फिर नहीं सकता तो मैं इसके भविष्य का चिंतन करके रोती हूँ, अभी तो मैं हूँ लेकिन आगे इसका कौन ध्यान रखेगा, तब मुनिराज ने 1 नजर डाली ऑर बोले "ये तो जैन-शासन के लिए एक रत्न है - जिन धर्मं की महान प्रभावना इसके निमित्त से होने वाली है" तब माँ बोली की जब ये चल-फिर नहीं सकता तो ये कैसे प्रभावना करेगा, तब मुनिराज बोले ये महान साधु बनेगा, ऑर ये चलता फिरता नहीं देखो अभी चलेगा, तब महाराज जी ने उस बालक को बोला की तू बोल तो लेता है चल णमोकार मन्त्र सुना, उस बालक ने फिर णमोकार मन्त्र सुना दिया फिर उन मुनिराज ने अपनी पिंछी से उस बालक के शरीर पर 2-3 बार स्पर्श किया, फिर उस बच्चे से कहते है चल खड़ा होजा, माँ ऐसे आश्चर्य चकित होकर देख रही है की ये महाराज जी क्या करने वाले है, सचमुच वो बच्चा खड़ा होगया, माँ की आँखों में ख़ुशी के आंसु आगये, फिर उस बालक से बोले की अब तू वह से चल कर वापस आजा, ऑर वो वापस आगया फिर मुनिराज बोले देख तेरा बालक चलने लगा ना! अब देख ये बड़ा होकर बहुत बड़ा साधु बनने वाला है, जा लेजा, फिर जब ये बात गाँव वालो को पता चली तो पहले तो उस बालक को किसी ऑर नाम से पुकारा करते थे, लेकिन ये उन श्री सिद्ध मुनिराज से ठीक हुआ था इसलिए उस बालक का नाम सिद्धप्पा हो गया था, "अप्पा" एक शब्द चलता है दक्षिण भारत में, कर्णाटक में विशेष रूप से जैसे मलप्पा. फिर आगे चलकर इन्होने गृहस्थ जीवन को भी स्वीकार किया ऑर 4 संतान हुए तथा इतना ईमानदार जीवन था, इनका जीवन चरित्र शिवलाल शाह जी ने मराठी भाषा में लिखा हुआ है जिसका हिंदी अनुवाद नई दुनिया प्रिंटर, इंदौर से छपा हुआ है, ये बहुत छोटा सा ग्रन्थ है, उसमे बहुत सुन्दर जींवन चरित्र दिया हुआ है जो किसी को भी भाव-विभोर कर सकता है!
सिद्धप्पा मुनि के जीवन में ऐसी ऐसी अदभुत घटनाये घटित हुई है की एक बार मंदिर जी में कुछ लोग आकर उनको परेशान करने लगे तो देवताओ में उपसर्गों से इनकी रक्षा की है यहाँ तक की स्थिति बनी है, और ब्रम्हचर्य की इनको सिद्धि प्राप्त हो गयी थी, जब साधु का ब्रम्हचर्य बहुत अधिक निर्मल हो जाता है तब ऐसे सिद्ध ब्रम्हचारी साधु से शरीर से खुशबु आने लगती है बहुत दुर्लभ है ये, इन मुनि के शरीर से खुशबु आती थी तो भ्रमर बार बार आते थी एक बार तो भ्रमर ने इनके शरीर में छेद कर दिया और रक्त निकल गया फिर जब मुनि आहार के लिए आये तो लोगो ने देखा की इनके शरीर पर इतने घाव है क्या बात है! फिर उन्होंने बताया की वह बहुत से भ्रमर थे जिनके कारण से ऐसा हुआ!
* ये जीवन चरित्र तथा संस्मरण क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित शिष्य) के प्रवचनों के आधार पर लिखा गया है! टाइप करने में मुझसे कही कोई गलती हो गई हो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ! –Nipun Jain
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