07.11.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 07.11.2015
Updated: 05.01.2017

Update

Source: © Facebook

❖ #DhanTerasSpecial ~ हम हर साल धन्य-त्रियोदशी [धन-तेरस] मानते है, इस साल भी मनाएंगे तो आओ जाने धन्य-त्रियोदशी क्या है और कैसे शुरू हुआ ये पर्व... [ क्या आपके दिमाग में प्रश्न नहीं आता कि ये सारे पर्व एकसाथ लाइन में कैसे आते है? जैसे धन-तेरस, भैया-दूज, गोबर्धन, रूप-चौदस और दीवाली ] इसके पीछे बहुत बड़ा लॉजिक है.. जैन धर्मं के अनुसार! ✿

धन्य त्रियोदशी कहो या धन तेरस या धन्य तेरस >> धन्य तेरस का बहुत महत्व है लेकिन वैसा नहीं जैसा की आज कल अन्धविश्वास के कारन हम लोग मानते है की सांसारिक लक्ष्मी तथा धन का पूजा करो नहीं, उस दिन को धन्य माना गया क्योंकि उस दिन के बाद भगवान ने योग निरोध किया तथा अमावस्या को मोक्ष प्राप्त कर लिया, योग विरोध का मतलब मन, वचन और काय की प्रवृत्ति बंद हो जाना, मतलब उस दिन से महावीर स्वामी ने समवसरन का भी त्याग कर दिया और बस पद्मासन अवस्था में एक पेड़ के निचे विराजमान हो गए और ना मन से प्रवृत्ति करेंगे ना तन से करेंगे और ना ही कुछ बोलेंगे... वीर प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीलिये यह तिथि “ धन्य-तेरस [त्रयोदशी]” के नाम से विख्यात हुई लेकिन समय से प्रभाव से यह धन्य त्रयोदशी का नाम अन्धविश्वास में बदल गया और फिर धनतेरस में फिर सिर्फ धन की पूजा होने लगी! धन-तेरस के दिन हम लोग धन-संपत्ति, रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पूजा करते हैं जो एकदम गलत है, हमने अब सारे पर्व को बस पैसे से जोड़ लिया है और इन त्यौहार का असली महत्व पता ही नहीं हमको। जो Wise है Intelligent है उनको इस पर विचार करना चाहिए और साधू जानो और ज्ञानीजनो से पूछना चाहिए, ग्रंथो को देखना चाहिए!

हजारो साल पहले भगवान् ने अपने जीवन को इस दिन ही धन्य कर लिया था, जिससे त्रियोदशी भी धन्य कही जाने लगी थी, आओ हम भी कुछ संयम नियम आदि जीवन में आचरण में उतार ले ताकि हम भी धन्य हो जाए! धन है या नहीं लेकिन आप आचरण से अपने को धन्य तो कर ही सकते है, आज धन्य तेरस को पावन करदे! महावीर भगवान् के आचरण से अपने जीवन को सजा लेना ही... महावीरा स्वामी को सही मायने में मानना है और वही उनका सच्चा पुजारी भी है! इस बार हम धन्य-तेरस कुछ हटकर मनाएंगे!

ये लेख -Nipun Jain द्वारा लिखा गया है -Admin

--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

News in Hindi

Source: © Facebook

❖ किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर.. ❖ #DiwaliSpecial

जो दस सिरों में था मौजूद, कितने सिरों में घुस गया है।
सोने की लंका का वासी, अब घर-घर पहुंच गया है।
भगवान ने किया था वध, इसलिए, हो गया अमर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..

हर बरस देखो रावण का कद, कितना बढ़ता जाता है,
जो खाता था लाख-करोड़, वो लाखों करोड़ खा जाता है।
मीडिया में छा जाता, चौराहों पर उसके, लगते हैं पोस्टर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..

वन में विचरनेवाले खर-दूषण, वनों को ही मिटा रहे हैं,
वृक्षों को काट-काट वहां, अट्टालिकाएं बना रहे हैं।
वन्य-प्राणी जान बचाते, भाग रहे हैं, इधर-उधर ।
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

कलयुग के रावण की सेना, कल से शक्तिशाली है।
लंका से लद्दाख तक, उसने अपनी पैठ बना ली है।
बेबस और लाचार जन, आखिर जाए तो जाए किधर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

विभीषण भी भीतर ही भीतर, रावण-दल के साथ है,
घोटालों-षड्यंत्रों में, रहता अक्सर उसका हाथ है,
रामराज मिटाने को, वो जालिम कस रहा है कमर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

धर्म के ठिकानों पर भी, अब असुरों का ही डेरा है,
बसता था जहाँ धर्म कभी, वहाँ सर्वाधिक पाप का फेरा है,
वेष बदल कर साधू चोले में, दुष्कर्म रहे हैं कर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

पता लग रहा कुंभकरण ने, कितना चारा–कोयला खाया है,
बाँधों का पानी पी गया पापी, धरा को बंजर बनाया है.
कितने विचर रहे हैं अब भी, चहुं ओर निशाचर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

कट्टरता मेघनाथ सी, और अहिरावण सी माया,
आई.एस.आई.एस. से दानव –दल ने कहर है बरपाया,
रावण की आतंकी सेना ने दुनिया में, मचा रखा है गदर,
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

देखा अपने भीतर तो वहाँ भी, छिपकर रावण-दल बैठा था,
कर्तव्य-स्वाभिमान को मेरे, दुष्ट अभिमान बना कर ऐंठा था,
कैसे राह भटका रहा था, मुझको ही हुई न खबर.
किसने फैलाई है ये झूठी खबर, कि रावण गया है मर..।

किसने फैलाई है ये झूठी खबर.. -डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’

--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

Source: © Facebook

जब श्री राम चंद्र जी अयोध्या वापस आये थे तब भी लोगों को इतनी ख़ुशी नहीं हुयी थी कि उन्होंने पटाखे चलाये हों । बल्कि उनकी ख़ुशी मनाने के तरीके से भी पर्यावरण को फायदा ही हुआ था । कैसे? घी के दिए जलाने से उसमे से ऑक्सीजन निकलती है ।

अब मुझे ये समझ नहीं आता कि वर्तमान के #तथाकथित भक्तगण जो कि श्री राम जी के आदर्शों तक का पालन नहीं करते और उनकी घर वापसी का आयोजन भी हिंसा पूर्वक करते हैं ।

#पटाखे_न_चलायें

Sources
Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. JinVaani
  2. Nipun Jain
  3. दस
  4. धर्मं
  5. पूजा
  6. महावीर
  7. राम
  8. लक्ष्मी
Page statistics
This page has been viewed 779 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: