Acharya Shanti Sagar Antim Yatra 1955
सन 1955 में कुन्थलगिरी सिद्ध क्षेत्र से आचार्य शांतिसागर जी ने समाधी मरण को प्राप्त किया था, 36 दिन की सल्लेखना चली, 36 दिन की सल्लेखना में आचार्य श्री की साधना तथा बल बहुत विशिष्ट था, और उन्होंने लगभग 20 उपवास हो जाने के बाद एक अन्तिम उपदेश दिया था जो मराठी भाषा में था,!
सातगोड़ा जी के गाँव के पास बहुत सी नदिया बहती थी, तो जब कोई मुनिराज आते थे तो नदी पार करके आना पड़ता था, क्योकि अगर घुटने से उपर पानी में मुनिराज को अगर नदी पार करना पड़े तो उस प्रयाशिचित करना पढता है और वो प्रायश्चित पानी जितना ज्यादा होता था उतना जी ज्यादा होता था इसलिए! तो ये नदी के पार चले जाते थे तथा आचार्य आदिसागर जी महाराज जी को अपने कंधे पर बिठा कर नदी पार करा देंते थे, और फिर वापस छोड़ कर भी आते थे, फिर महाराज से निवेदन करते थे की "मैं तो आपको नदी पार करा रहा हूँ, आप मुझे संसार सागर पार करा देना" तो इस प्रकार उनका बाल्यकाल बहुत अच्छे संस्कार के साथ निकला!
उनका मुनि जीवन 35 वर्ष का था जिसमे से आचार्य श्री ने 9338 निर्जल उपवास किये है जो की लगभग 27 वर्षो में होते है, और लगभग 3 बार सिंह-निष्क्रिडित नाम का तप किया: 1 आहार 1 उपवास, 1 आहार 2 उपवास, 1 आहार 3 उपवास और ये क्रम 9 उपवास तक चलता फिर 1 आहार 9 उपवास, 1 आहार 8 उपवास ऐसे पूरा क्रम होता है,