Posted on 11.08.2022 07:45
नेमावर 11 NovSource: © Facebook
जैन पौराणिक कथा
रक्षाबंधन का त्योहार भारत का मुख्य त्योहार है। जो भाई-बहन के स्नेह को दर्शाता है। जैन धर्म में यह पर्व अत्यंत आस्था और उत्साह का प्रतीक माना जाता है। हस्तिनापुर की पावन धरा पर यह त्योहार सामाजिक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक भी है। जैन धर्म में रक्षाबंधन का सूत्रपात हस्तिनापुर की पावन धरा से ही हुआ था।
वामन अवतार में रक्षाबंधन का वर्णन मिलता है। महाभारत में भी रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रोपदी का भी एक वृतांत है। जैन धर्म में रक्षा बंधन पर्व का इतिहास हस्तिनापुर की भूमि से जुड़ा है। मुनि श्री भाव भूषण जी महाराज ने बताया कि पौराणिक काल में अकंपनाचार्य का सात सौ मुनियों का संघ विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुंचा। मुनियों के साधना करते समय राजा बली ने उनके चारों ओर आग लगवा दी। मुनियों को आग की तपन से कष्ट होने लगा, लेकिन मुनियों ने धैर्य नहीं छोड़ा। मुनियों ने कष्ट दूर होने तक अन्न जल त्याग दिया। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन मुनिराज विष्णु कुमार ने वामन का वेश धारण कर राजा बलि से तीन पैर धरती मांगी और तीन पग में ही सारा संसार नाप कर उन मुनियों की रक्षा की और राजा बलि को देश से निकाल दिया। इसी पर्व को जैन समाज एक दूसरे की रक्षा करने हेतु मनाते है। जैन धर्म में इसकी परंपरा हस्तिनापुर से ही प्रारंभ हुई। इस स्थान पर महामुनि विष्णु का मंदिर भी स्थापित है। जिसमें प्राचीन मूर्ति भी विराजमान है।
रक्षा का संकल्प लेकर बांधते है रक्षासूत्र
जैन धर्म के अनुयायी इसको अत्यंत आस्था और उत्साह के साथ मनाते है। इस दिन प्राचीन मंदिर में जाकर मुनि विष्णु कुमार तथा सात सौ मुनियों की पूजा करके उनका पाठ करते है और फिर परस्पर रक्षा का संकल्प लेते हुए एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते है।
शहडोल के प्राचीन जैन मंदिर में होती है विशेष पूजा
रक्षाबंधन का त्योहार भारत का मुख्य त्योहार है। जो भाई-बहन के स्नेह को दर्शाता है। जैन धर्म में यह पर्व अत्यंत आस्था और उत्साह का प्रतीक माना जाता है। हस्तिनापुर की पावन धरा पर यह त्योहार सामाजिक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक भी है। जैन धर्म में रक्षाबंधन का सूत्रपात हस्तिनापुर की पावन धरा से ही हुआ था।
वामन अवतार में रक्षाबंधन का वर्णन मिलता है। महाभारत में भी रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रोपदी का भी एक वृतांत है। जैन धर्म में रक्षा बंधन पर्व का इतिहास हस्तिनापुर की भूमि से जुड़ा है। मुनि श्री भाव भूषण जी महाराज ने बताया कि पौराणिक काल में अकंपनाचार्य का सात सौ मुनियों का संघ विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुंचा। मुनियों के साधना करते समय राजा बली ने उनके चारों ओर आग लगवा दी। मुनियों को आग की तपन से कष्ट होने लगा, लेकिन मुनियों ने धैर्य नहीं छोड़ा। मुनियों ने कष्ट दूर होने तक अन्न जल त्याग दिया। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन मुनिराज विष्णु कुमार ने वामन का वेश धारण कर राजा बलि से तीन पैर धरती मांगी और तीन पग में ही सारा संसार नाप कर उन मुनियों की रक्षा की और राजा बलि को देश से निकाल दिया। इसी पर्व को जैन समाज एक दूसरे की रक्षा करने हेतु मनाते है। जैन धर्म में इसकी परंपरा हस्तिनापुर से ही प्रारंभ हुई। इस स्थान पर महामुनि विष्णु का मंदिर भी स्थापित है। जिसमें प्राचीन मूर्ति भी विराजमान है।
रक्षा का संकल्प लेकर बांधते है रक्षासूत्र
जैन धर्म के अनुयायी इसको अत्यंत आस्था और उत्साह के साथ मनाते है। इस दिन प्राचीन मंदिर में जाकर मुनि विष्णु कुमार तथा सात सौ मुनियों की पूजा करके उनका पाठ करते है और फिर परस्पर रक्षा का संकल्प लेते हुए एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते है।
शहडोल के प्राचीन जैन मंदिर में होती है विशेष पूजा
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