ShortNews in English
Asadha: 31.01.2013
Acharya Mahashraman gave bari Diksha to four new monks and nuns. He explained all five Mahavratas to them. Acharya Mahashraman told that Tyag and Sanyam are important things in life. He also gave instruction to be followed by every monk and nun for good Sadhana.
News in Hindi
त्याग-संयम जीवन में होना बड़ी बात: आचार्य महाश्रमण
असाड़ा. 31.01.13.
जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों को सामायिक चारित्र से छेदो पस्थापनीय चारित्र प्रदान करते हुए बताया कि पहले इनमें और हमारे में थोड़ा अंतर था। हमारी और इनकी आचार व्यवस्था में अंतर था। इससे पहले सात दिन दीक्षा से बड़ी दीक्षा तक ये हमारे हाथ का लाया भोजन कर सकते थे, परन्तु हम इनकी ओर से लाया गया भोजन नहीं कर सकते थे क्योंकि सामायिक चारित्र वाले द्वारा लगाया गया भोजन छेदोपस्थापनीय चारित्र वाले द्वारा लाया गया भोजन सामायिक चारित्र वाला कर सकता है।
उन्होंने कहा कि यह सामायिक चारित्र व छेदोपस्थापनीय चारित्र वाली दूरी आज पट गई है। इनका भी एक प्रकार से श्रेणी आरोहण हो गया है। जीवन में पैसा, पद प्रतिष्ठा मिल जाए, तो यह बहुत बड़ी बात नहीं है। त्याग नहीं है, त्याग संयम में होना बहुत बड़ी बात है। पूज्यवर ने नवदीक्षितों की ओर इंगित करते हुए बताया कि इन्होंने पांच महाव्रत एक व्रत को स्वीकार किया है। आचार्य ने इन्हें शिक्षा देते हुए कहा कि आप लोगों को अहिंसा का ध्यान रखना है। इतना तेज न चले कि ईर्या समिति की सम्यक पालना न हो सके । वाणी से भी किसी प्रकार की हिंसा न हो, खुले मुंह बोलना नहीं चाहिए। रात्रि में चलना पड़े तो आंख से भी देखने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीव हिंसा से बचा जा सके ।
सोत वक्त जगह को पंूज कर सोएं, जीवन में झूठ बोलने का प्रयास नहीं होना चाहिए। गुस्से वश, लोभवश, भयवश झूठ न बोले। हंसी-मजाक में भी झूठ न बोले। गलत बात मुंह से निकल जाने पर तुरंत मिच्छामि दुक्कडम कहकर निवृत हो जाना चाहिए। शरीर, वाणी, मन का दुष्प्रयोग होने का अहसास होते ही स्वयं को नियंत्रण करना है। जीवन में किसी भी प्रकार की चोरी से बचना है। वस्तु को आज्ञा से लेना है और जिस कार्य के लिए वस्तु को लेते हैं, उसी कार्य के लिए उसका उपयोग करें, अन्य कार्यों में नहीं। प्रामाणिकता की भी सूक्ष्मता रखें।
उन्होंने कहा कि मंथुन, भोग सेवन से दूर रहें। परिग्रह से दूर रहे। धर्मोपकरण के प्रति भी मोह न हो। मेरी निश्रा का है शब्द उपकरणों के लिए प्रयोग करें। अनासक्ति का जीवन जीएं। रात्रि में भोजन नहीं करना है। सूर्यास्त से सूर्योदय तक भोजन तो दूर की बात पानी की एक बूंद भी पीना पाप है। प्यास लगी होने पर भी उसे धर्म समझकर सहन करते जाना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन में भी अहिंसा रहे। उपकरणों का प्रतिलेखन करना चाहिए। प्रतिक्रमण के प्रति जागरूकता रहनी चाहिए।
आचार्य ने प्रेरणादायी शिक्षा देते हुए कहा कि तुम भैक्षव शासन में हो। गुरू आज्ञा को हमेशा ऊपर रखो। गुरू आज्ञा का सम्मान रखो। गुरू के प्रति निष्ठा रखो। गुरू के प्रति विनयपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। कड़ी बात को भी सहन करना चाहिए। सहिष्णुता का भी अभ्यास होना चाहिए। लोभ के प्रति समता का भाव रखना चाहिए। पूज्यवर ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारी साधना का विकास हो, तुम्हारा जीवन अच्छा बने। कार्यक्रम के प्रारंभ में नवदीक्षित साध्वी भावितयशा, साध्वी मंजूल यशा, साध्वी प्रांतयशा ने अपने सप्त दिवसीय अनुभवों की अभिव्यक्त करते हुए अपनी श्रद्धाप्रणति दी। मुनि जिज्ञासुकुमार ने अपने श्रद्धा भावों की अभिव्यक्ति दी।