ShortNews in English
Balotara: 11.05.2012
Acharya Mahashraman said that life is art. Sitting is also art. How to seat is perfect science. Seating posture shows you behavior. Unnecessary movement of body and hands should be stopped.
News in Hindi
बैठना भी एक कला है
आओ हम जीना सीखें
बालोतरा ११ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो के लिए
जीवन की कला के साथ अनेक विषय जुड़े हुए हैं। उनमें एक विषय है कि कैसे बैठें? बैठना एक कला है कब, किसके सामने, कैसे बैठना चाहिए इसका अपना विज्ञान है। बड़ों के सामने कैसे बैठें? छोटों के सामने कैसे बैठें? प्रवचन के समय किस स्थिति में बैठें? जो व्यक्ति इन बातों की जानकारी रखता है, उसका बैठना कलापूर्ण हो सकता है। एक आदमी बैठता है। उसमें चंचलता झलकती है। वह कभी इधर देखता है, कभी उधर देखता है, कभी आगे झुकता है, कभी पीछे झुकता है, कभी शरीर को मोड़ता है, कभी अनावश्यक हाथ पैर का संचालन करता है। यह चंचलता है। अनावश्यक चंचलता अवांछनीय होती है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो हाथ पर हाथ दिए बैठे रहते हैं। या निरर्थक बातें करते रहते हैं। कोई उद्देश्य नहीं, कोई लक्ष्य नहीं। यह भी उचित नहीं है। मनुष्य को किसी न किसी सत्कार्य में लगे रहना चाहिए। कौन किस कार्य में लगे यह अपनी-अपनी योग्यता और रुचि पर निर्भर करता है। जो साहित्य पठन में रुचि रखे, वह साहित्य का अध्ययन करे। जो लेखन में रुचि रखे, वह लेखन कार्य करे। इस प्रकार के कार्य जिनके संभव नहीं हैं। वे किसी मंत्र का जप करना शुरू कर दें। हाथ की अंगुलियों पर जप किया जा सकता है। उसमें समय का सदुपयोग के साथ आत्मशुद्धि होगा। जप साधना का सुगम उपाय है। आप जहां कहीं भी बैठे हैं, समय मिला कि आंख मूंद कर जप करना शुरू कर दिया। इनमें न भूखे रहना आवश्यक है न और कोई कठिन तपश्चरण। यह समय को सार्थक बनाने का उपाय है। आप ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं, खाली बैठे हैं, वहां भी अध्ययन, जप आदि के द्वारा समय को सार्थक बनाया जा सकता है।
ध्यान में कैसे बैठें?
बालोतरा ११ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो के लिए
सीधा बैठना, तनावमुक्त होकर बैठना ध्यान की पहली शर्त है। ध्यान के लिए कई विशेष आसन भी निर्दिष्ट हैं-पद्मासन, वज्रासन, सुखासन आदि। यों तो ध्यान के लिए किसी विशेष आसन की अनिवार्यता नहीं है। जिस आसन में आदमी लंबे काल तक बैठे सके, आराम से बैठ सके और प्रयोग कर सके, वही आसन ध्यान के लिए उपयोगी है। वज्रासन को ध्यान की दृष्टि से तो उपयोगी माना ही गया है, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसे उपयोगी माना गया है। भोजन के बाद इस आसन में कुछ देर तक बैठना पाचन-तंत्र के लिए लाभदायक है। बैठने की मुद्रा भी ठीक होनी चाहिए। चिंता की मुद्रा न हो, आवेश की मुद्रा न हो, प्रसन्नता की मुद्रा हो। मुद्रा के साथ भावों का गहरा संबंध है। भीतर में आक्रोश है तो चेहरे की मुद्रा भिन्न प्रकार की होगी। भीतर की प्रसन्नता है तो चेहरे की मुद्रा भिन्न प्रकार की होगी। यों भी कहा जा सकता है कि मुद्रा ठीक है तो हमारे भाव भी अच्छे हो सकते हैं और मुद्रा ठीक नहीं है तो भाव भी विकृत हो सकते हैं।
आचार्य महाश्रमण