20.04.2025: Acharya Shiv Muni

Published: 20.04.2025
Updated: 21.04.2025

Updated on 21.04.2025 17:29

मौन साधना पूर्णाहुति पर आचार्य भगवन ने प्रदान किया
मंगल पाठ
मौन साधना से ही मन एकाग्र किया जा सकता है: आचार्य सम्राट डॉ. शिव मुनि म.सा.
20 अप्रैल 2025, चलथान, सूरत
आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा., युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा, प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी म.सा., प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. आदि ठाणा-14 आत्म भवन, अवध संगरीला से प्रातः 8.25 बजे विहार कर जैन स्थानक चलथान पहंुचे, जहां आचार्य भगवन ने अपनी चार माह की शीतकालीन आत्म ध्यान मौन साधना के पश्चात् मंगल पाठ प्रदान किया।
आचार्य सम्राट ने अपने उद्बोधन में भेद ज्ञान की साधना का उल्लेख करते हुए फरमाया कि मेरा संघ, मैं अमुक व्यक्ति, ये नाम पद-प्रतिष्ठा व्यक्तित्व का पोषण करते हैं किंतु सबसे महत्त्वपूर्ण है उसका जीव जो उसके शरीर में विद्यमान है। जीवात्मा का अर्थ है पूरे ब्रह्माण्ड में हम सभी समान आत्मा हैं। आत्मा में अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान, अनंत सुख है, आत्मा दिखाई नहीं देती है।
उन्होंने आगे फरमाया कि मनुष्य का मन कहां-कहां भटकता रहता है, मन पल-पल में कहां से कहां चला जाता है। भीतर की मौन साधना से ही मन एकाग्र किया जा सकता है। जब कोई आपस में मिलते हैं तो भूतकाल की चर्चा या भविष्य की चर्चा करते हैं इससे केवल कर्मों का बंधन होता है। भूत भविष्य को छोड़कर वर्तमान क्षण में आओ। अपने भीतर साधना को पकाओ, मन का मौन ही महत्त्वपूर्ण है।
उन्होंने फरमाया कि मैं जीव आत्मा जिसका रूप नहीं, रंग नहीं, गंध नहीं वह तुम हो और मैं हूं। जब मौन हो जाओ तब आत्मानुभूति होती है। जीव का जीव में ठहर जाना चौबीस मिनट जीव में ठहर गये तो क्षायिक समकित हो जाएगी, 48 मिनट ठहर गए तो केवलज्ञान हो सकता है।
युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में प्रभु महावीर के सूत्र का विवेचन करते हुए फरमाया कि जो सोते हैं वे अज्ञानी हैं और जो अज्ञानी हैं वे सोते हैं। जो मुनि है वह जागरूक होते हैं वे सोते नहीं हैं इसलिए मुनि अर्थात् संत को जागरूक रहना चाहिए। आचार्य भगवन ने आत्म ध्यान साधना के द्वारा अंतर की जागृति को बढ़ाया है, चैन्नई चातुर्मास के पश्चात् दीक्षा के लक्ष्य को लेकर पांच वर्ष के पश्चात् आचार्य भगवन के दर्शन का लाभ मिला है, आपकी साधना के निर्मलतम परमाणु का अनुभव मैं आज यहां कर रहा हूं।
इससे पूर्व प्रवर्तक श्री प्रकाशमुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में बतलाया कि मुनित्व संतत्व जीवन में आना चाहिए, मौन से ही यह संभव है। मौन यानि मनोवर्गणा के पुद्गलों पर नियंत्रण।
महासाध्वी श्री शुभाजी म.सा., महासाध्वी श्री अर्चना जी म.सा. ने अपना उद्बोधन दिया।
इस अवसर पर चलथान श्रीसंघ की ओर से मुमुक्षु समक्ष जैन, मुमुक्षु शिवांश जैन, मुमुक्षु मानस जैन का अभिनन्दन किया गया।
कार्यक्रम का संचालन श्री दिनेश संचेती ने किया।
विशेष - आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिव मुनि जी म.सा., युवाचार्य श्री महेन्द्रऋषि जी म.सा., प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी म.सा. आदि ठाणा-14 प्रातः 5.30 बजे चलथान से विहार कर 21 अप्रैल, सोमवार को गोड़ादरा, मंगलवार को अक्षर टाउन, बुधवार को टीकम नगर पहुंचेंगे।
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Posted on 20.04.2025 08:53

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