02.06.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 02.06.2020
Updated: 03.06.2020

Updated on 03.06.2020 07:52

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#आत्मनिरीक्षण* : *श्रृंखला २*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।

प्रकाशक
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Updated on 02.06.2020 20:49

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तेरापंथ विज्ञप्ति-2
संप्रसारक:🌻 संघ संवाद 🌻


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जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...

🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱

🕉️ *श्रृंखला ~ 55* 🕉️

*17. ध्याता और ध्येय की एकात्मकता*

गतांक से आगे...

परिषद् में हजारों व्यक्ति बैठे हैं। उनके आसपास परमाणुओं का पिंड घूम रहा है। इतने परमाणु हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते,
स्थूल बुद्धि से सोच भी नहीं सकते। आप जो चीनी खाते हैं, उस चीनी के परमाणु यहां भरे हुए हैं। सुगन्ध और दुर्गन्ध के परमाणु भरे हुए हैं। दुनिया में जितने पदार्थ हैं उनके सूक्ष्म परमाणु यहां भरे हुए हैं। हम उन्हें पकड़ नहीं सकते। हमारे पास पकड़ने की शक्ति नहीं है। जहर के परमाणु भी हैं और अमृत के परमाणु भी हैं। व्यक्ति ने पानी को सामने रखा और अनुचिन्तन शुरू कर दिया कि इसमें अमृत है तो उसमें अमृत के परमाणुओं का समावेश होने लग जाएगा। वहां अमृत के परमाणु आने लग जाएंगे। चिन्तन करते-करते, संकल्प करते-करते एक क्षण ऐसा परिणमन होता है कि वह पानी पानी नहीं रहता, अमृत बन जाता है। इसीलिए आचार्य ने कहा— ऐसा अनुचिन्तन विष-विकार को दूर कर देता है, जहर को दूर कर देता है। इसी प्रकार आपके साथ अभेद बुद्धि स्थापित करने वाला पहले यह कहेगा— मैं पार्श्व का ध्यान कर रहा हूं फिर एक अवस्था में पहुंच कर कहेगा— मैं पार्श्व का साक्षात् कर रहा हूं। यह अभेद-बुद्धि जब आती है, भेद समाप्त हो जाता है और पार्श्व रूप में परिणमन होने लग जाता है।

यह परिणमन का सिद्धान्त दर्शन का बहुत बड़ा सिद्धांत है। परिणमन के अनेक साधन हैं, उनमें एक बड़ा साधन संकल्प व अनुचिन्तन है। हम सही अनुचिन्तन करना सीख जाएं, यह अपेक्षित है।

अनुचिन्तन के द्वारा हम आदतों को बदल सकते हैं। मैं क्रोध नहीं हूं, मैं क्षमा हूं। आप अनुचिन्तन करते चले जाएं और अनुचिन्तन के चरम बिन्दु पर पहुंच जाएं तो संभव है कि एक महीने में आपका क्रोध समाप्त हो जाएगा, आप क्षमा के सागर बन जाएंगे। जिस आदत को बदलना है, परिवर्तन करना है, वह परिवर्तित हो सकती है। क्योंकि हमारे सामने सिद्धान्त है, कोरी मौखिक चर्चा नहीं है। परिणमन तो निरन्तर हो रहा है। एक वस्तु से दूसरी वस्तु मिलाई और वस्तु बदल गई। उसका परिणमन बदल गया।

हम अपने विचारों के द्वारा विश्व में फैले हुए अच्छे परमाणुओं का ग्रहण करते हैं। अगर किसी का विचार बुरा है तो वह बुरे परमाणुओं को ग्रहण करता है। इष्ट परमाणुओं को ग्रहण करने वाला स्वस्थ बन जाता है। अनिष्ट परमाणुओं को ग्रहण करने वाला नकारात्मक परमाणुओं को ग्रहण करता है। निषेधात्मक परमाणुओं को ग्रहण करने वाला स्वस्थ आदमी बीमार बन जाता है और विधायक परमाणुओं को ग्रहण करने वाला बीमार व्यक्ति स्वस्थ बन जाता है। यह रहस्य समझ में आ जाए तो आदमी काफी बदल सकता है।

एक आदमी बीमार है। वह यदि यह सोचे कि मैं बीमार हूं तो वह बीमार हो जाएगा। कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से ग्रस्त कुछ लोग आए। उन्हें एक प्रयोग बताया कायाकल्प का। कायोत्सर्ग करें, पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक प्रत्येक अवयव को शिथिल करें और प्रत्येक अवयव पर 'सव्व साहूणं' मंत्र का जप करें। संकल्प करें— प्रत्येक अवयव स्वस्थ हो रहा है। यह संकल्प करते हुए पुनः सिर से पैर तक की यात्रा करें। स्वस्थता का अनुभव होगा। जिन लोगों ने इस कायाकल्प का प्रयोग किया, वे अपने अनुभव सुनाते हैं कि हम तो बिल्कुल स्वस्थ हो गए। अब हमारे कोई बीमारी नहीं है।

हमारे शरीर में दोनों प्रकार की चीजें हैं— खराब भी और अच्छी भी। श्रीडूंगरगढ़ में साधु-साध्वियों की गोष्ठियां हुई। उसमें हमने तीन शब्दों पर चर्चा की थी— सेराटॉनिन, मेलाटॉनिन व एंडोरफिन— ये तीनों रसायन हमारे शरीर में पैदा होते हैं। हम ही उन्हें पैदा करते हैं। अगर हम अच्छी भावना, अच्छा संकल्प, अच्छा चिन्तन करें तो एंडोरफिन बना लेते हैं। एंडोरफिन के स्राव की स्थिति में शरीर का दर्द समाप्त हो जाता है। सेराटॉनिन का स्राव होने पर हम मस्ती व आनंद में रहते हैं। व्यक्ति में कभी निराशा नहीं होती, कभी तनाव नहीं होता। इन रसायनों से हम तनावमुक्त स्थिति का अनुभव कर सकते हैं।

आचार्य सिद्धसेन अनुभवी हैं, रहस्यवेत्ता हैं। वे स्तुति के माध्यम से रहस्यों को प्रकट कर रहे हैं। यह रचना कल्याण मंदिर नहीं, रहस्य मंदिर है, रहस्यों का घर बना हुआ है। इन रहस्यों को समझकर हम बहुत सारी समस्याओं को सुलझा सकते हैं।

*शुद्ध आत्मा एक ही है... वे दो नहीं हो सकतीं... इस सच्चाई का आचार्य सिद्धसेन ने किस प्रकार प्रस्तुतीकरण किया है...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 298* 📜

*श्रीमद् जयाचार्य*

*महान् योजनाएं*

*3. आहार-संविभाग*

*बांटने की व्यवस्था*

गोचरी से आए हुए आहार का लिखित पांती के आधार पर विभाग कर सब में बांट देने के लिए भी बारी-बारी से चार साधु नियुक्त रहते। वे प्रत्येक साधु की गोचरी के आहार को गिनते, ताकि अधिक ले आने वाले को आगे के लिए सावधान किया जा सके। गोचरी के लिए गये हुए सब संत-सतियों के आ जाने पर दीक्षा-वृद्ध 'साझ' के क्रम से पांती रखानी प्रारम्भ कर दी जाती। बांटना करने वालों के पास चौकों का धड़ा रहता और अपने-अपने साझों की पांती देखने के लिए साधुओं के पास साधुओं का धड़ा और साध्वियों के पास साध्वियों का धड़ा रहा करता। पांती रखाने का यह कार्य बहुत थोड़ी देर में सम्पन्न हो जाता। साधु-साध्वियां अपने-अपने साझ की पांतियों को अपने निर्धारित स्थानों पर ले जाकर आहार करते। बांटने की बारी वाले सन्त समुच्चय के उस स्थान को, जहां सबके लिए आहार का संविभाग किया जाता, साफ करने के बाद सबके पीछे आहार किया करते।

*टहुका*

संविभाग से प्राप्त आहार को अपने-अपने स्थानों पर ले जाकर जब साधु-साध्वियां भोजन करने बैठते तब प्रत्येक 'साझ' में एक व्यक्ति द्वारा उन्हें प्रतिदिन 'टहुका' सुनाया जाता। वह विक्रम सम्वत् 1911 (चैत्रादि 1912) चैत्र शुक्ला 5 से वैशाख शुक्ला 10 तक प्रदत्त जयाचार्य की मुख्यतः 10 विशेष शिक्षाओं का एक संकलन है। संविभाग की नई पद्धति में निष्ठा उत्पन्न करने तथा अन्य व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से वे शिक्षाएं दी गईं और प्रतिदिन आहार के समय उनके वाचन का नियम बनाया गया। कोयल की ध्वनि को राजस्थानी भाषा में 'टहुको' कहा जाता है कोयल की 'कुहुक' सदा से ही जन-मानस को अतिशय प्रभावित करती रही है। स्यात् उक्त शिक्षाओं का 'टहुका' नामकरण करने में जयाचार्य का यही आशय रहा कि वे भी श्रमणवृन्द को कोयल की कुहुक के समान ही मधुर और प्रीणित करने वाली होगी।

कुछ समय तक टहुके का वाचन-क्रम यथाविधि चलता रहा। जब पांती के भोजन में सबकी निष्ठा जम गई तथा उसमें प्रदत्त अन्य शिक्षाएं भी हृदयंगम हो गईं, तब प्रतिदिन सुनाने का क्रम बंद कर दिया गया।

*सर्वप्रियता*

विक्रम सम्वत् 1910 का चतुर्मास समाप्त कर जयाचार्य नाथद्वारा से उदयपुर पधारे। वहां इकतालीस सन्त और एक सौ तीन सतियां एकत्रित हुईं। सन्तों का निवास ऋषभदासजी तलेसरा के नोहरे में और साध्वियों का उनकी हवेली में हुआ। एक-सौ चौवालिस व्यक्तियों के आहार का संविभाग नोहरे में किया जाता और वह थोड़े समय में सम्पन्न कर दिया जाता। लगता है, वह क्रम थोड़े ही समय में सब में प्रिय हो गया। प्रारम्भ में चौकों की पांती केवल सन्त ही अपनी बारी से किया करते, पर बाद में सतियों की भी बारी कर दी गई। सतियों की बारी कब से प्रारम्भ हुई, इसका कहीं उल्लेख देखने में नहीं आया, पर वह शीघ्र ही प्रारम्भ हो गई थी— ऐसी अनुश्रुति है।

*असंविभागी न हु तस्स मोक्खो*— शास्त्रकारों के इस कथन को जयाचार्य की आहार-संविभाग योजना ने इतना स्वाभाविक बना दिया कि असंविभाग का कहीं स्थान नहीं रहने पाया। उक्त योजना आद्योपान्त उनकी मौलिक सूझ से ही उत्पन्न हुई थी। इस योजना ने संघ का बहुत बड़ा हित-साधन किया और सबको समान भाव से रहने के लिए एक सम्मानपूर्ण वातावरण प्रदान किया।

*श्रीमद् जयाचार्य द्वारा की गई श्रम के सम विभाजन की व्यवस्था...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Updated on 02.06.2020 08:29

🙏 *पूज्य गुरुदेव के सुख संवाद* 🙏

2 जून। परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी भवानी पेठ, सोलापुर से मंगल प्रस्थान कर करीब 14 कि.मी. का विहार करते हुए ग्लोबल विलेज पब्लिक स्कूल, बोराम्नि में सानंद सुखसातापूर्वक पधार गए हैं।
विस्तृत रिपोर्ट शाम तक जारी होने वाली *तेरापंथ विज्ञप्ति* में दी जा सकेगी।


*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*
*🌻 संघ संवाद* 🌻

Posted on 02.06.2020 06:18

👉 उदयपुर (राजस्थान) - तिविहार संथारा सानंद गतिमान
👉 मुम्बई ~ मिलिए सिरसा के कोरोना योद्धा डॉ. जैन से
👉 नोएडा ~ बारह भावना पर संगोष्ठी आयोजित

प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Photos of Sangh Samvads post


📍नवीन सूचना .....

❗दिनांक : 01/06/2020

🌻 *संघ संवाद* 🌻


🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#आत्मनिरीक्षण* : *श्रृंखला १*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।

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