29.05.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 29.05.2020
Updated: 29.05.2020

Updated on 29.05.2020 20:50

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#तनाव और #ध्यान* : *श्रृंखला २*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
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Posted on 29.05.2020 08:21

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जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...

🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱

🕉️ *श्रृंखला ~ 52* 🕉️

*16. विग्रह शमन का मार्ग*

गतांक से आगे...

स्थानांग सूत्र में तीन प्रकार के परिग्रह बतलाए गए हैं, उनमें एक है शरीर। शरीर परिग्रह है। यदि अशरीर हो जाएं तो पदार्थ के प्रति ममत्व की अपेक्षा ही नहीं होती। अशरीरी को ममत्व नहीं करना पड़ता क्योंकि सारा ममत्व शरीर का है— सारी समस्याएं शरीर से पैदा होती हैं। सबसे बड़ी समस्या है भूख की। सारी प्रवृत्तियां क्यों करनी पड़ती हैं? *'सर्वारम्भाः तण्डुलप्रस्थमूलाः'* एक सेर चावल, एक सेर बाजरी या एक सेर गेहूं के लिए सारी प्रवृत्तियां करनी पड़ती हैं। उसके बिना भूख का शमन नहीं होता। शरीर विग्रह पैदा करता है। शरीर के रूप-सौन्दर्य के कारण कितने बड़े-बड़े संग्राम हो गए। आप हैं मध्यस्थ और शरीर है विग्रह। मध्यस्थ का काम है विग्रह को समाप्त करना। वह पक्षपात नहीं करता, मध्यस्थ रहता है। प्रभो! आप मध्यस्थ हैं इसलिए जिसके भीतर आपका ध्यान किया जाता है, उसका भी नाश कर देते हैं क्योंकि वह विग्रह है।

अब सिद्धसेन पार्श्व की भाषा में भी कह रहे हैं— तुम जानते नहीं हो, शरीर और आत्मा का संघर्ष चल रहा है। आत्मा शुद्ध है, ज्ञानमय है, चैतन्यमय है और शरीर उसका आवरण बना हुआ है।

आचार्य को अपनी अंतःप्रज्ञा से या पार्श्व की अन्तःभूत ज्ञानरश्मियों से समाधान मिला— तुम उलझ क्यों रहे हो? पार्श्व जो काम कर रहे हैं वह दया का नहीं, महान् दया का काम है। एक वर्ष से नहीं, सौ वर्ष से नहीं, अनादिकाल से संघर्ष चल रहा है। आत्मा शुद्ध रहना चाहती है, शरीर उसका आवरण बन जाता है। वह ज्ञान को भी ढक देता है, शक्ति को भी प्रतिहत कर देता है। प्रश्न है कि आत्मा है या नहीं? शरीर दिखाई देता है, आत्मा दिखाई नहीं देती। आत्मा प्रकट होना चाहती है किन्तु शरीर उसे प्रकट होने नहीं देता। वह उस पर पर्दा डाल रहा है। यह शरीर और आत्मा का संघर्ष है।

जब दो व्यक्तियों की लड़ाई होती है तब किसी तीसरे को मध्यस्थ बनाया जाता है। पार्श्व ने कहा— शरीर और आत्मा ने मुझे मध्यस्थ बना दिया। वे कह रहे हैं— हमारी लड़ाई मिटाओ, हम कब से लड़ रहे हैं। लोग लड़ते हैं और हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते हैं। फैसला कब होता है? कभी पांच वर्षों में, कभी दस वर्षों में। समाचार-पत्रों में यह संवाद भी पढ़ा— दादा ने केस किया था और फैसला मिला पोते को। दादा और पिता दोनों इस दुनिया से विदा हो गए। इतना लंबा समय लगता है।

पार्श्व ने कहा— तुम्हारी लड़ाई का अंत तभी होगा जब तुम अलग-अलग चले जाओ, अपना स्थान बदल दो। आत्मा से कहा— तुम्हारा स्थान है ऊर्ध्वलोक में और शरीर का स्थान है इस धरती पर। तुम इस धरती पर मत रहो।

दोनों को पार्श्व की बात न्यायसंगत लगी। पार्श्व की आत्मा ऊपर चली गई और शरीर नीचे रह गया। जब तक शरीर में अवस्थित पार्श्व भीतर था, तब तक शरीर सक्रिय था, जीवित था। जैसे ही पार्श्व ऊपर गए, शरीर मुर्दा बन गया, नष्ट हो गया।

आचार्य ने कहा— प्रभो! यह विचित्र बात है कि जिस शरीर ने आपको आश्रय दिया, उस शरीर को आपने नष्ट कर दिया। पार्श्व बोले— मैंने नष्ट नहीं किया। मुझे तो मध्यस्थ बनाया था आत्मा और शरीर ने। मध्यस्थ का काम होता है— निर्णय देना। मैंने निर्णय दिया— आत्मा! तुम अलग रहो। शरीर! तुम अलग रहो। जब आत्मा चली गई तब शरीर अपने आप नष्ट हो गया। इसका मैं क्या करूं? दर्शन के रहस्यपूर्ण सिद्धान्त को समझने के लिए आचार्य ने गूढ़ श्लोक रच दिया। जहां इसमें चिन्तन की मौलिकता झलकती है वहां ऊर्ध्वारोहण की प्रेरणा भी मिलती है, जो आत्मा के निरावरण स्वरूप का बोध कराने में सक्षम है।

*ध्याता और ध्येय की एकात्मकता...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 295* 📜

*श्रीमद् जयाचार्य*

*महान् योजनाएं*

*2. गाथा-प्रणाली*

*कार्य और गाथाएं*

कालान्तर में व्यक्तिगत तथा समुच्चय के कार्यों का भी मूल्य गाथाओं में निश्चित होने लगा। एक व्यक्ति दूसरे की कार्य-सेवा निर्जरार्थिता से तो करता ही था, पर वह गाथाओं के माध्यम से भी की जाने लगी। प्रत्येक कार्य का भाव लेने वालों तथा देने वालों की आवश्यकता के आधार पर घटता-बढ़ता रहता। कुछ कार्य ऐसे भी थे जिनके भाव आचार्यश्री की ओर से निर्णीत कर दिये गये। वैसे कार्यों में सेवा, सिलाई, रंगाई आदि कार्य प्रमुख रूप से गिने जा सकते हैं।

*जीवन-काल तक*

अपने जीवन-काल में संगृहीत गाथाओं का प्रत्येक व्यक्ति यथेष्ट उपयोग कर सकता था। वह जहां उन्हें अपने कार्य में व्यय कर सकता, वहां दूसरे किसी को प्रदान भी कर सकता था, परन्तु ऐसा करते समय उसे आचार्यश्री की आज्ञा लेनी आवश्यक होती थी। गाथाओं की यह पूंजी स्वयं के जीवन-काल तक ही कार्यकर होती, उसके पश्चात् उसका उत्तराधिकार किसी दूसरे को नहीं मिलता। व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही उसका लेखा समाप्त समझा जाता था।

*साध्वियों पर कर*

जयाचार्य के समय में बहुत कम साध्वियां लिपि कर सकने वाली थीं। इसलिए अग्रणी साध्वियों पर गाथाओं का 'कर' लगाना सम्भव नहीं था। उनके प्रत्येक सिंघाड़े पर एक रजोहरण, एक प्रमार्जनी और प्रति साध्वी एक-एक डोरी बना लाने का भार गया। साधुओं से 'कर' के रूप में ली जाने वाली प्रतियां आवश्यकतानुसार साध्वियों को दे दी जातीं और साध्वियों से 'कर' के रूप में लिए हुए रजोहरण आदि साधुओं को दे दिये जाते। यह सब विनिमय स्वतंत्र रूप से कोई नहीं कर सकता था। साधु-साध्वियों द्वारा अपनी-अपनी वस्तुएं आचार्यश्री को सौंप दी जातीं और फिर वे उन्हें यथावश्यक वितरित कर देते।

*साम्यभाव का आनन्द*

इस प्रकार जयाचार्य द्वारा प्रवर्तित 'गाथा-प्रणाली' की योजना तेरापंथ-संघ के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। दूरदर्शी जयाचार्य ने उक्त योजना के आधार पर संघ के सारे लिपि-प्रकार को ही नहीं सुधार दिया, अपितु व्यक्तिगत पुस्तक-सम्पत्ति का सामाजिकीकरण करके संसार के सम्मुख एक आदर्श पद्धति उपस्थित कर दी। संसार जब समाजवादी विचारों की प्रसवपीड़ा में ही था, तब उन्होंने अपने संघ में उनकी स्थापना करके अपनी विचार-शक्ति की अग्रगामिता प्रमाणित कर दी। तेरापंथ ने उस योजना के द्वारा अच्छे लिपिकार, अच्छे ग्रंथ, अच्छा वितरण और वस्तु का अच्छा उपयोग प्राप्त किया। सबसे अधिक, उसने उस योजना द्वारा साम्यभाव का आनन्द प्राप्त किया।

*श्रीमद् जयाचार्य द्वारा की गई आहार-संविभाग की व्यवस्था...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 जयपुर~ जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 राजाजीनगर, बेंगलुरू~ जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 दिल्ली ~ "मां-स्नेह की परिभाषा" विषय पर कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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📍नवीन सूचना .....

दिनांक : 28/05/2020
🌻 संघ संवाद* 🌻


📍नवीन सूचना .....

दिनांक : 28/05/2020
🌻 संघ संवाद* 🌻


🛐 *"चौबीसी" क्रमांक* : ७

🔊 *"सुपार्श्व प्रभु स्तवन"*
https://youtu.be/-EI_17BbFYk
🙏 *रचना : श्रीमद जयाचार्य*

🎙️ *स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर*

संप्रसारक :
https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ
🌻 *संघ संवाद* 🌻

youtu.be

रचना : श्रीमद जयाचार्य स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर संप्रसारक : https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ 🌻 *संघ संवाद* 🌻


🙏 *वंदे गुरुवरम्* 🙏
https://www.instagram.com/p/CAwKRqoJzrI/?igshid=i2wwgcpr35fc

आज का विशेष दृश्य आपके लिए..
स्थल ~ BMIT कॉलेज सोलापुर (महाराष्ट्र)

दिनांक : 29/05/2020
*प्रस्तुति : 🌻 संघ संवाद* 🌻


Sources

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