राज्यपाल के हाथों होगा,ऑल देट आइ एम मंजू लोढ़ा’ का विमोचन
By निरंजन परिहार, JAIN STAR /29 Jan 2020,Wednesday
मुंबई। राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी गुरुवार को ‘परमवीर’ की लेखिका श्रीमती मंजू लोढ़ा के जीवनवृत्त पर प्रकाशित पुस्तक ‘ऑल देट आइ एम मंजू लोढ़ा’ का विमोचन करेंगे। राजभवन में 30 जनवरी की शाम होनेवाले इस कॉफी टेबल बुक के लोकार्पण समारोह में श्रीमती अमृता फडणवीस मुख्य अतिथि होंगी। नवभारत टाइम्स के स्थानीय संपादक सुंदरचंद ठाकुर, नृत्य निर्देशक संदीप सोपारकर व फिटनेस गुरू मिकी मेहता विशिष्ट अतिथि होंगे। ‘टाइम्स ग्रुप बुक्स’ द्वारा इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। साहित्य, संस्कृति, कला, शिक्षा, लेखन, समाजसेवा आदि क्षेत्रों में देश के जाने माने लोगों के साथ विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व जनहित से जुड़ी संस्थाओं के चुनिंदा लोगों की विशेष उपस्थिति में यह विमोचन समारोह आयोजित होगा। देश के वीर जवानों पर प्रसिद्ध पुस्तक ‘परमवीर - द वॉर डायरी’ की लेखिका श्रीमती मंजू लोढ़ा के कृतित्व एवं जीवनवृत्त पर ‘टाइम्स ग्रुप’ द्वारा इस पुस्तक का विशेष रूप से प्रकाशन किया गया है। सैन्य सेवाओं से जुड़े लोगों व उनके परिवारों के प्रति श्रीमती लोढ़ा के विशेष योगदान के विवरण के साथ उनकी सफलता व लेखन यात्रा का सचित्र विवरण इस पुस्तक में समाहित है। महिलाओं की साहित्यिक प्रतिभा को विकसित करने के लिए ‘ज्ञान गंगोत्री’ की स्थापना व अनेक सामाजिक, साहित्यिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थाओं में श्रीमती लोढ़ा के जुड़ाव का भी इस पुस्तक में विस्तार से विवरण है। राजभवन के जल विहार सभागार में राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की उपस्थिति में इस कॉफी टेबल बुक ‘ऑल देट आइ एम मंजू लोढ़ा’ का लोकार्पण समारोह गुरुवार की शाम आयोजित होगा।
By निरंजन परिहार, JAIN STAR /29 Jan 2020,Wednesday
मुंबई। राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी गुरुवार को ‘परमवीर’ की लेखिका श्रीमती मंजू लोढ़ा के जीवनवृत्त पर प्रकाशित पुस्तक ‘ऑल देट आइ एम मंजू लोढ़ा’ का विमोचन करेंगे। राजभवन में 30 जनवरी की शाम होनेवाले इस कॉफी टेबल बुक के लोकार्पण समारोह में श्रीमती अमृता फडणवीस मुख्य अतिथि होंगी। नवभारत टाइम्स के स्थानीय संपादक सुंदरचंद ठाकुर, नृत्य निर्देशक संदीप सोपारकर व फिटनेस गुरू मिकी मेहता विशिष्ट अतिथि होंगे। ‘टाइम्स ग्रुप बुक्स’ द्वारा इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। साहित्य, संस्कृति, कला, शिक्षा, लेखन, समाजसेवा आदि क्षेत्रों में देश के जाने माने लोगों के साथ विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व जनहित से जुड़ी संस्थाओं के चुनिंदा लोगों की विशेष उपस्थिति में यह विमोचन समारोह आयोजित होगा। देश के वीर जवानों पर प्रसिद्ध पुस्तक ‘परमवीर - द वॉर डायरी’ की लेखिका श्रीमती मंजू लोढ़ा के कृतित्व एवं जीवनवृत्त पर ‘टाइम्स ग्रुप’ द्वारा इस पुस्तक का विशेष रूप से प्रकाशन किया गया है। सैन्य सेवाओं से जुड़े लोगों व उनके परिवारों के प्रति श्रीमती लोढ़ा के विशेष योगदान के विवरण के साथ उनकी सफलता व लेखन यात्रा का सचित्र विवरण इस पुस्तक में समाहित है। महिलाओं की साहित्यिक प्रतिभा को विकसित करने के लिए ‘ज्ञान गंगोत्री’ की स्थापना व अनेक सामाजिक, साहित्यिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थाओं में श्रीमती लोढ़ा के जुड़ाव का भी इस पुस्तक में विस्तार से विवरण है। राजभवन के जल विहार सभागार में राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की उपस्थिति में इस कॉफी टेबल बुक ‘ऑल देट आइ एम मंजू लोढ़ा’ का लोकार्पण समारोह गुरुवार की शाम आयोजित होगा।
त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव पर विशेष
लेखक: तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार
लिपिबद्ध: गणपत भंसाली, सूरत (गुजरात)
Published by JAIN STAR /29 Jan 2020,Wednesday
जैन धर्म के मुख्य दो सम्प्रदाय हैं, दिगम्बर और श्वेताम्बर, श्वेताम्बर में तीन सम्प्रदाय है, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी व तेरापंथी। तेरापंथ जैन धर्म का सबसे छोटा और जैन धर्म का नया सम्प्रदाय है। इस धर्म संघ की शुरुआत आचार्य श्री भिक्षु ने वि.सं 1817 आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन राजस्थान के मेवाड़ सम्भाग के केलवा नगर में तेले की तपस्या से की। आचार्य भिक्षु का लक्ष्य पंथ चलाने का नही बल्कि शुद्ध साधना का था। उस समय साधुओं में शिथिलाचार बढ़ने लगा था। सब अपने-अपने शिष्य बनाने और स्थान बनाने में लगे हुए थे। जनता की साधुओं के प्रति श्रद्धा घटती जा रही थी। ऐसी विषम स्थिति को देखकर आचार्य श्री भीखण जी ने वि.सं १८१६ चेत सुदी नवमी के दिन मारवाड़ के कांठा सम्भाग के बगड़ी नगर में अभिनिष्क्रमण किया। उस समय आपको आहार-पानी वस्त्र आदि के लिये काफी संघर्ष करना पड़ा। परन्तु आपका फौलादी संकल्प आपके मनोबल को डिगा नही सका। ज्यों ज्यों समय बीतता गया लोगों में आपके प्रति श्रद्धा बढ़ने लगी। आपके वैराग्य को देखकर आनेवाले श्रद्धावान बनते गए और संख्या बढ़ती गई और दीक्षाओं का क्रम भी प्रारम्भ हो गया। वि. सं १८३२ में आपने संघ की श्री वृद्धि देख कर उसकी सुव्यवस्था के लिये प्रथम लेख पत्र लिखा और अपने उत्तराधिकारी का विधिवत चयन किया। उसके बाद संघ की सुव्यवस्था के लिये समय-समय पर कई लेख पत्र लिखे। अंतिम मर्यादा पत्र वि.सं १८५९ माघ शुक्ला सप्तमी के दिन लिखा गया था। उसी मर्यादा पत्र को आधार मानकर चतुर्थ आचार्य श्रीमद जयाचार्य ने माघ शुक्ला सप्तमी के दिन विधिवत मर्यादा महोत्सव मनाना प्रारम्भ किया। तब से अब तक (केवल एक महोत्सव को छोड़ कर वह भी राज्य में शोक होने पर विधिवत नही मनाया गया) यह उत्सव व्यवस्थित रूप से मनाया जा रहा है। 156 वर्षो से मनाया जाने वाला मर्यादा महोत्सव का आकर्षण संघ में आबाल-वृद्ध में देखते ही बनता है। देश-विदेश में रहने वाले साधु-साध्वी समण-समणी, श्रावक-श्राविका इस महोत्सव में पहुंच कर बाग-बाग हो जाते हैं।महोत्सव पर त्रिदिवसीय कार्यक्रम होता है, बसन्त पंचमी से सप्तमी तक चलने वाले कार्यक्रम की शुरुआत तेरापंथ धर्मसंघ के वृद्ध रुग्ण साधु-साध्वियों की चाकरी की घोषणा से होती है। तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षित होने वाले साधु-साध्वियों को जीवन पर्यंत सेवा-सुश्रुसा की कोई चिंता नही रहती, आचार्य स्वयं उचित व्यवस्था करते है, यह अपने आप मे एक उदाहरण है।
मर्यादा महोत्सव पर चार तीर्थ को वर्ष भर के लिये नई ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं। गुरुदेव वर्ष भर में करणीय कार्य की दिशा प्रदान करते हैं। साधु-साध्वियों की सारणा-वारणा भी होती है। जिससे संघ का प्रत्येक सदस्य ज्ञानवान और प्राणवान बना रहे। जिस परिवार-समाज-संग़ठन में सारणा-वारणा नहीं होती वह परिवार समाज संगठन दीर्घजीवी नही बनता, तेरापंथ समाज में यह मर्यादा महोत्सव इस त्रिपदी के कारण स्वस्थ और विश्वस्त बना हुआ है। मर्यादा महोत्सव पर चातुर्मास की नियुक्तियां भी होती है। सभी लोग अपने अपने क्षेत्र की अर्ज के साथ प्रस्तुत होते हैं, जिन्हें जिस साधु-साध्वी का चौमासा मिलता है, उसे अपना अहो भाग्य समझते हैं। यह तेरापंथ धर्मसंघ की बहुत बड़ी विशेषता है, यहां केवल नातीलों के सिवाय किसी का व्यक्तिगत चौमासा नही मांग सकते हैं। कोई अगर ऐसी भूल करता है तो उसे उपालंभ या दंड भी मिल सकता हैं। ऐसा अतीत में हुआ हैं, और भविष्य में भी सम्भव है। यहां केवल गुरुचरणों में अपने क्षेत्र में चतुर्मास की अर्ज की जा सकती हैं। आचार्य जैसा उपयुक्त समझते हैं, वैसा निर्णय कर किसी भी साधु-साध्वी का चौमासा फरमा कर सकते हैं। निर्णय गुरु के हाथ है, उसमें कोई हस्तक्षेप नही कर सकता। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण तेरापंथ धर्मसंघ पूरे जैन समाज में अनुपम और अद्वितीय है। इस बार का मर्यादा महोत्सव दक्षिण भारत में उतर कर्नाटका के हुबली शहर में अणुव्रत अनुशास्ता महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में दिनांक 30,31 जनवरी व 1 फरवरी 2020 को मनाया जा रहा है। पूरे समाज में पूरा उत्साह दिखाई दे रहा है।
लेखक: तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार
लिपिबद्ध: गणपत भंसाली, सूरत (गुजरात)
Published by JAIN STAR /29 Jan 2020,Wednesday
जैन धर्म के मुख्य दो सम्प्रदाय हैं, दिगम्बर और श्वेताम्बर, श्वेताम्बर में तीन सम्प्रदाय है, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी व तेरापंथी। तेरापंथ जैन धर्म का सबसे छोटा और जैन धर्म का नया सम्प्रदाय है। इस धर्म संघ की शुरुआत आचार्य श्री भिक्षु ने वि.सं 1817 आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन राजस्थान के मेवाड़ सम्भाग के केलवा नगर में तेले की तपस्या से की। आचार्य भिक्षु का लक्ष्य पंथ चलाने का नही बल्कि शुद्ध साधना का था। उस समय साधुओं में शिथिलाचार बढ़ने लगा था। सब अपने-अपने शिष्य बनाने और स्थान बनाने में लगे हुए थे। जनता की साधुओं के प्रति श्रद्धा घटती जा रही थी। ऐसी विषम स्थिति को देखकर आचार्य श्री भीखण जी ने वि.सं १८१६ चेत सुदी नवमी के दिन मारवाड़ के कांठा सम्भाग के बगड़ी नगर में अभिनिष्क्रमण किया। उस समय आपको आहार-पानी वस्त्र आदि के लिये काफी संघर्ष करना पड़ा। परन्तु आपका फौलादी संकल्प आपके मनोबल को डिगा नही सका। ज्यों ज्यों समय बीतता गया लोगों में आपके प्रति श्रद्धा बढ़ने लगी। आपके वैराग्य को देखकर आनेवाले श्रद्धावान बनते गए और संख्या बढ़ती गई और दीक्षाओं का क्रम भी प्रारम्भ हो गया। वि. सं १८३२ में आपने संघ की श्री वृद्धि देख कर उसकी सुव्यवस्था के लिये प्रथम लेख पत्र लिखा और अपने उत्तराधिकारी का विधिवत चयन किया। उसके बाद संघ की सुव्यवस्था के लिये समय-समय पर कई लेख पत्र लिखे। अंतिम मर्यादा पत्र वि.सं १८५९ माघ शुक्ला सप्तमी के दिन लिखा गया था। उसी मर्यादा पत्र को आधार मानकर चतुर्थ आचार्य श्रीमद जयाचार्य ने माघ शुक्ला सप्तमी के दिन विधिवत मर्यादा महोत्सव मनाना प्रारम्भ किया। तब से अब तक (केवल एक महोत्सव को छोड़ कर वह भी राज्य में शोक होने पर विधिवत नही मनाया गया) यह उत्सव व्यवस्थित रूप से मनाया जा रहा है। 156 वर्षो से मनाया जाने वाला मर्यादा महोत्सव का आकर्षण संघ में आबाल-वृद्ध में देखते ही बनता है। देश-विदेश में रहने वाले साधु-साध्वी समण-समणी, श्रावक-श्राविका इस महोत्सव में पहुंच कर बाग-बाग हो जाते हैं।महोत्सव पर त्रिदिवसीय कार्यक्रम होता है, बसन्त पंचमी से सप्तमी तक चलने वाले कार्यक्रम की शुरुआत तेरापंथ धर्मसंघ के वृद्ध रुग्ण साधु-साध्वियों की चाकरी की घोषणा से होती है। तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षित होने वाले साधु-साध्वियों को जीवन पर्यंत सेवा-सुश्रुसा की कोई चिंता नही रहती, आचार्य स्वयं उचित व्यवस्था करते है, यह अपने आप मे एक उदाहरण है।
मर्यादा महोत्सव पर चार तीर्थ को वर्ष भर के लिये नई ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं। गुरुदेव वर्ष भर में करणीय कार्य की दिशा प्रदान करते हैं। साधु-साध्वियों की सारणा-वारणा भी होती है। जिससे संघ का प्रत्येक सदस्य ज्ञानवान और प्राणवान बना रहे। जिस परिवार-समाज-संग़ठन में सारणा-वारणा नहीं होती वह परिवार समाज संगठन दीर्घजीवी नही बनता, तेरापंथ समाज में यह मर्यादा महोत्सव इस त्रिपदी के कारण स्वस्थ और विश्वस्त बना हुआ है। मर्यादा महोत्सव पर चातुर्मास की नियुक्तियां भी होती है। सभी लोग अपने अपने क्षेत्र की अर्ज के साथ प्रस्तुत होते हैं, जिन्हें जिस साधु-साध्वी का चौमासा मिलता है, उसे अपना अहो भाग्य समझते हैं। यह तेरापंथ धर्मसंघ की बहुत बड़ी विशेषता है, यहां केवल नातीलों के सिवाय किसी का व्यक्तिगत चौमासा नही मांग सकते हैं। कोई अगर ऐसी भूल करता है तो उसे उपालंभ या दंड भी मिल सकता हैं। ऐसा अतीत में हुआ हैं, और भविष्य में भी सम्भव है। यहां केवल गुरुचरणों में अपने क्षेत्र में चतुर्मास की अर्ज की जा सकती हैं। आचार्य जैसा उपयुक्त समझते हैं, वैसा निर्णय कर किसी भी साधु-साध्वी का चौमासा फरमा कर सकते हैं। निर्णय गुरु के हाथ है, उसमें कोई हस्तक्षेप नही कर सकता। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण तेरापंथ धर्मसंघ पूरे जैन समाज में अनुपम और अद्वितीय है। इस बार का मर्यादा महोत्सव दक्षिण भारत में उतर कर्नाटका के हुबली शहर में अणुव्रत अनुशास्ता महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में दिनांक 30,31 जनवरी व 1 फरवरी 2020 को मनाया जा रहा है। पूरे समाज में पूरा उत्साह दिखाई दे रहा है।