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👉 चिकमगलूर - तेयुप कार्यालय का शुभारम्भ
👉 हिसार - आचार्य श्री भिक्षु जन्मोत्सव एवं बोधि दिवस कार्यक्रम
👉 सिकंदराबाद- बोधि दिवस एवं तेयुप शपथ ग्रहण समारोह
👉 इस्लामपुर - तेरापंथ युवक परिषद का शपथ ग्रहण समारोह
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
👉 कोलकाता - ते.म. म. का स्कूल में निर्माण - 2 कार्यक्रम
👉 औरंगाबाद - आचार्य श्री भिक्षु का जन्मोत्सव एवं बोधि दिवस
👉 रायपुर - चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 मुम्बई - आचार्य श्री भिक्षु जन्मोत्सव एवं बोधि दिवस का कार्यक्रम
👉 डोंबिवली (मुम्बई) - अणुव्रत समिति द्वारा पारितोषिक वितरण समारोह
👉 उधना, सूरत - आचार्य श्री भिक्षु के 294 वें जन्मदिवस एवं बोधि दिवस का आयोजन
👉 हिसार - तेयुप द्वारा पौधारोपण का कार्यक्रम
👉 अहमदाबाद - आचार्य भिक्षु का 294 वां जन्म दिवस व 262 वां बोधि दिवस का कार्यक्रम
👉 वणी (महा) - चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
News in Hindi
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 77* 📖
*पुरातन अभिधा: आधुनिक संदर्भ*
गतांक से आगे...
नमस्कार का तीसरा हेतु है— आप परमेश्वर हैं, इसलिए मैं आपको नमस्कार करता हूं। ईश्वर शब्द अनेक अर्थों से गुजरा है। वैदिक परंपरा में तथा न्याय और वैशेषिक परंपरा में ईश्वर का अर्थ है— जो सृष्टि का कर्त्ता है, वह ईश्वर है। जैनदर्शन की भाषा में ईश्वर वह है, जो मुक्त हो चुका है। ईश्वर वह है, जो परम सामर्थ्यवान् है। आप परम सामर्थ्यवान् हैं, इसलिए आपको नमस्कार है।
नमस्कार का चौथा हेतु है— आपने भव-उदधि का शोषण किया है, इसलिए मैं आपको नमस्कार करता हूं। अगस्त्य ऋषि ने तीन चुल्लू में समुद्र का शोषण किया। तीन चुल्लू जल पिया और समुद्र का जल शोषित हो गया। आप बिना चुल्लू के इस भव-उदधि का शोषण पर देते हैं।
नमस्कार के ये चार हेतु प्रस्तुत श्लोक की आधार भूमि बन गए—
*तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ!*
*तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय।*
*तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय,*
*तुभ्यं नमो जिन! भवोदधिशोषणाय।।*
मानतुंग ने इस श्लोक में इस प्रश्न को समाहित किया है कि नमस्कार किसे करना चाहिए? जो मेरी पीड़ा का हरण नहीं करता, मैं उसे नमस्कार नहीं करता। मैं उसी व्यक्ति को नमस्कार करता हूं, जो मेरी पीड़ा का हरण करता है। साधु-साध्वियों के पास लोग क्यों आते हैं? नमस्कार क्यों करते हैं? वे कोई डॉक्टर अथवा वैद्य नहीं हैं जो शरीर की पीड़ा को मिटाएं। उनके पास इसलिए आते हैं कि शांति का अनुभव होता है। मानसिक पीड़ा का हरण होता है। अनेक लोग शोकाकुल स्थिति में गुरु-दर्शन के लिए आते हैं। इसलिए आते हैं कि उन्हें संबल प्राप्त होता है, वियोगजनित दुःख को सहने की शक्ति मिलती है, नया प्रकाश और वैराग्य का वह बोध मिलता है, जिससे पीड़ा का हरण होता है। नमस्कार उस व्यक्ति को होता है, जो अमल आभूषण होता है। जहां निर्मलता होती है, वहां अनेक समस्याएं विलीन हो जाती हैं। नमस्कार उस व्यक्ति को होता है, जो शक्तिशाली होता है। दुर्बल और कमजोर को कोई नमस्कार नहीं करता। प्रारंभ से यह विश्वास रहा— न्याय की भीख मत मांगो। कमजोर आदमी को कभी न्याय नहीं मिलता। अपनी शक्ति का विकास करो, शक्तिशाली बनो। जहां शक्ति है, बल है, ऐश्वर्य है, वहां सब कुछ है। नमस्कार उस व्यक्ति को होता है, जो संसार के कीचड़ को सुखा दे और उससे बाहर निकाल दे। कलकत्ता यात्रा का प्रसंग है। कानपुर के बाहर नदी तट पर एक मुनिजी कीचड़ में फंस गए। भारी-भरकम शरीर था। बहुत मुश्किल से उन्हें निकाला गया। यदि कीचड़ को सुखा दें, जलोदधि का शोषण कर दें, तो कोई फंसेगा ही नहीं। इसीलिए जो भवोदधि का शोषण कर देता है, वह सचमुच नमस्कार की अर्हता पा लेता है।
इस श्लोकद्वयी में आचार्य मानतुंग की बौद्धिक प्रखरता और भक्ति प्रवणता— दोनों जीवंत बन गए हैं। अर्थ-गांभीर्य को बनाए रखते हुए मानतुंग ने भक्ति की जो धारा प्रवाहित की है, वह अविच्छिन्न बन गई।
*आचार्य मानतुंग ने भगवान् ऋषभ के पवित्र आभामंडल को किस प्रकार व्याख्यायित किया है...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 89* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*संघर्षों के निकष पर*
*बाह्य संघर्ष*
*निकष पर समर्पित*
स्वामीजी को अधिकांशतः बाह्य संघर्षों से ही जूझना पड़ा था। बाह्य संघर्षों से यहां तात्पर्य है— विरोधी व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न की गई विचार-मूलक या वृत्ति-मूलक विरुद्ध स्तिथियों के साथ संघर्ष। स्थान, वस्त्र और आहारादि वस्तुमूलक विरुद्ध स्थितियों की अपेक्षा उपर्युक्त स्थितियां कहीं अधिक सूक्ष्म और गंभीर होती हैं। स्वामीजी ने उन सभी का सामना बड़े साहस और धैर्य के साथ किया।
संघर्षों को उन्होंने सदैव अपने लिए एक निकष समझा। सामान्य जन निकष पर चढ़ते घबराता है, क्योंकि उसे अपनी विशुद्धता पर पूर्ण आत्मविश्वास नहीं होता, परंतु स्वामीजी कभी नहीं घबराए। जब-जब अनिवार्यता हुई, उन्होंने सहर्ष स्वयं को निकष पर समर्पित किया। प्रत्येक बार उस पर खरे उतरकर उन्होंने संसार को चकित कर दिया। ऐसा व्यक्ति संसार में दुर्लभ ही होता है जिसमें कोई खोट न हो, कोई मिलावट न हो। वस्तुतः स्वामीजी उन्हीं दुर्लभ पुरुषों में से एक थे। उनके विरोधियों में से अनेक इसी विशुद्धता के आधार पर उनके प्रशंसक बन गए। जो प्रशंसक नहीं थे, वे भी इसी आधार पर उनसे घबराते थे।
*'तूंतड़ों' की तरह*
स्वामीजी का सर्वाधिक विरोध आचार्य रघुनाथजी तथा उनके अनुयायियों ने किया। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि स्वामीजी उसी संप्रदाय से पृथक् हुए थे। जो जितना समीप होता है सामीप्य टूटने पर वह उतना ही अधिक दूर भी हो जाता है। आचार्य रघुनाथजी ने उस विरोध में आचार्य जयमलजी को भी अपने साथ मिलाने का प्रयास किया। उनका कथन था— 'हम बहुत हैं, वे तेरह ही हैं। सम्मिलित साहस करें, तो इन्हें 'तूंतड़ों' की तरह बिखेर दें।'
आचार्य जयमलजी उनके इस अभियान में सम्मिलित नहीं हुए, प्रत्युत उन्होंने उनको समझाते हुए कहा— 'हम लोग भीखणजी का सामना नहीं कर सकते। वे प्रबल आगमज्ञ हैं। तर्क-बल भी उनका उत्कट है। अपनी प्रत्येक मान्यता को वे आगम का आधार प्रदान करते हैं, जबकि हमें अपनी कमजोरियों के लिए वैसा कोई आधार नहीं मिल सकता। वे हमारे साथ वर्षों तक रहे हैं, अतः हमारी आंतरिक दुर्बलताओं से सुपरिचित हैं। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे आचार-विचार में हम सबकी अपेक्षा अधिक दृढ़ हैं। इसलिए पहले सोच लीजिए कि विरोध करने पर कहीं हमें पराजय का मुंह तो नहीं देखना पड़ेगा?'
आचार्य रघुनाथजी ने उक्त परामर्श पर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने लंबे समय तक स्वामीजी का पीछा किया। गांव-गांव में शास्त्रार्थ करने की धूम मचा दी। फल यह हुआ कि उनके ही श्रावक स्वामीजी से अधिकाधिक प्रभावित हुए और तेरापंथी बने।
*स्वामी भीखणजी के प्रति न केवल गृहस्थों के बल्कि कुछ मुनियों के मन में भी विद्वेष की ज्वाला थी...* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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*बस एक दिन दूर*
🌸 *भिक्षु जीवन दर्शन आनलाइन प्रतियोगिता* 🌸
*(16 जुलाई 2019 दोपहर 3.15 से 4.15 बजे)*
260वें तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा Terapanth मोबाइल एप पर भिक्षु जीवन दर्शन Online प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस हेतु बड़ी संख्या में रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं। इच्छुक व्यक्ति अपना रजिस्ट्रेशन Terapanth मोबाइल एप पर कर सकते हैं। प्रतियोगिता के सन्दर्भ में कुछ ध्यातव्य बिन्दु:
♦ यह प्रतियोगिता Terapanth मोबाइल एप में ऑनलाइन होगी। यह एप एंड्रोयड फोन और आईफोन दोनों पर उपलब्ध है।
♦ इच्छुक व्यक्ति Terapanth मोबाइल एप के क्विज फीचर में अपना रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
♦रजिस्ट्रेशन के उपरान्त SMS के माध्यम से पासवर्ड प्रेषित किया जाएगा। एप के क्विज फीचर में अपना मोबाईल नंबर एवं यह पासवर्ड डालकर लॉगिन करें। विदेशों में रहने वाले प्रतियोगियों को ईमेल के माध्यम से पासवर्ड प्रेषित किया जाएगा। उनकी Email id ही उनका user name होगा।
♦ 16 जुलाई 2019 को दोपहर 3.15 बजे एप पर प्रश्न पत्र खुलेगा व 4.15 बजे बंद हो जाएगा।
♦ प्रतियोगिता में आचार्य भिक्षु पर आधारित 100 प्रश्न पूछे जाएंगे।
♦ प्रश्न पत्र Objective Type का होगा। प्रत्येक सही जबाब का एक अंक प्राप्त होगा और गलत जबाब पर एक अंक कम कर दिया जाएगा। जबाब नहीं देने की स्थिति में अंक कम नहीं किया जाएगा।
♦ किसी प्रतियोगी को किसी कारणवश प्रतियोगिता बीच में छोड़नी पड़े और वह पुनः जुड़ना चाहे तो वह निर्धारित समयावधि अर्थात् उसी दिन दोपहर 4.15 बजे तक अवशिष्ट प्रश्नों के उत्तर दे सकता है।
♦ प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने पर महासभा द्वारा अग्रांकित पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे-
🎁 प्रथम Laptop (approx - 31000)
🎁 व्दितीय Mobile (approx - 21000)
🎁 तृतीय Mobile (approx - 11000)
♦ समान अंक होने की स्थिति में कुछ प्रश्नों के माध्यम से विजेता (प्रथम तीन स्थान के लिए) का निर्णय किया जाएगा।
♦ निर्णायकों का निर्णय अंतिम व सर्वमान्य होगा।
♦ पुनरीक्षण अथवा पुनर्गणना के आवेदन का प्रावधान नहीं है।
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क सूत्र -
📧[email protected] ☎ 98338-69950 | 98230-31000
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*
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⛩ बेंगलुरु: *आचार्य श्री महाश्रमण चतुर्मास स्थल में..*
🌈 *अणुव्रत बालोदय - "किडजोन"* का शुभारंभ..
👉 प्रतिदिन *प्रातः 9 से सायं 5 बजे* तक यहां *बच्चों के लिए विविध प्रवृत्तियां* संचालित होंगी..
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १९४* - *चित्त शुद्धि और श्वास प्रेक्षा १७*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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