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👉 *अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔸शिलांग
🔸 पूर्वांचल, कोलकात्ता
🔸 कृष्णानगर (दिल्ली)
🔸 बेहाला (कोलकात्ता)
🔸 रांची
👉 *आचार्य श्री तुलसी के 23 वें महाप्रयाण दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔹राउरकेला
👉 जयपुर - जल बचाओ भविष्य बनाओ पर परिचर्चा
👉 कोयम्बटूर - तेरापंथ महिला मंडल द्वारा विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 *अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔸कोलकाता
🔸अहमदाबाद
🔸नाथद्धारा
🔸नागपुर
🔸मदुरै
🔸पल्लावरम (चैन्नई)
🔸सिलीगुड़ी
🔸रायपुर
🔸भीलवाड़ा
👉 *आचार्य श्री तुलसी के 23 वें महाप्रयाण दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔹अमिनजीकरै, चेन्नई
🔹अहमदाबाद
🔹गुलाबबाग
🔹साकरी (महाराष्ट्र)
🔹अहमदाबाद
👉 गुलाबबाग - "जायका क्वीन" प्रतियोगिता का आयोजन
👉 भीलवाड़ा - नि:शुल्क अभिरुचि प्रशिक्षण शिविर का समापन
👉 उधना, सूरत - जल है तो कल है नामक कार्यक्रम
👉 सिलीगुड़ी - ते.यु.प. का शपथ ग्रहण समारोह
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 73* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जन-उद्धारक आचार्य*
*प्रेरणा की प्रतिक्रिया*
मुनि-युगल के अंतःकरण से निकली हुई सहज वाणी ने स्वामीजी के हृदय को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने उस सत्परामर्श को सम्मान देते हुए कहा— 'मुनिजनों! आप दोनों रात्निक हैं, अतः पूजनीय हैं। आपकी यह लोक-हितैषिता बहुत ही प्रशंसनीय है। आप जिस कार्य की प्रेरणा देने आए हैं, वह तो मेरे स्वभाव के सदा अनुकूल रहा है, किंतु जनता की उदासीनता ही उस में बाधक थी। आज आपके सरल हृदय से उद्गत विचारों ने जो मांग की है, मैं उसे ठुकरा लूंगा नहीं। आपकी भविष्य-वाणी को कार्यरूप में परिणत करने के लिए जिस प्रयास की आवश्यकता है, उसका भार अपने ऊपर लेने में मुझे तनिक भी हिचकिचाहट नहीं है।' मुनि थिरपालजी और मुनि फतेहचंदजी अपने परामर्श की सहज स्वीकृति से गद्गद हो उठे।
अवसर पर दी गई उक्त छोटी-सी प्रेरणा उस समय केवल एक सामान्य बातचीत ही थी, परंतु आज स्वर्णाक्षरों में अंकित करने योग्य एक विशिष्ट गौरवपूर्ण घटना के रूप में वह हमारे सामने है। उस समय स्वयं प्रेरकों को भी यह अनुमान नहीं होगा कि उनकी वह साधारण-सी प्रेरणा लाखों जीवों के कल्याण की हेतु बनकर संसार के लिए एक अलौकिक देन सिद्ध होगी तथा नवोदित तेरापंथ के जीवन में एक नया मोड़ ला देगी। स्वामीजी के जन-उद्धारक जीवन का सूत्रपात करने का श्रेय इसी घटना को दिया जा सकता है।
*धर्म-प्रचार की ओर*
स्वामीजी उसी दिन से धर्म-प्रचार की ओर विशेष ध्यान देने लगे। जो लोग जिज्ञासु बनकर आते, उन पर अथक परिश्रम करते और आगम-न्याय के आधार पर उनके हृदय में सम्यग्-दर्शन का बीजारोपण करते। क्रमशः लोगों का आगमन बढ़ने लगा और तात्त्विक विचारों की जिज्ञासा जोर मारने लगी। अनेक व्यक्तियों ने धर्म के मर्म को समझा और उसे ग्रहण किया।
स्वामीजी उस समय मारवाड़ से विहार कर रहे थे। केलवा-चातुर्मास के पश्चात् बहुत स्वल्प समय तक ही वे मेवाड़ में ठहरे प्रतीत होते हैं। तपस्या प्रारंभ करने से लेकर धर्म-प्रचारार्थ मुनि-द्वय के द्वारा दी गई प्रेरणा तक की सभी घटनाएं मारवाड़ में ही घटित हुईं। स्वामीजी जब पुनः धर्म-प्रचार में लगे, तब मारवाड़ में अच्छी धर्म-जागरण हुई। उससे उत्साहित होकर वे पुनः मेवाड़ में पधारे। *प्रगढ़ मेवाड़ में पूज्य पधारिया*— जयाचार्य का यह पद्यांश इसी बात की ओर इंगित करता है।
मारवाड़ की ही तरह मेवाड़ में भी उन्होंने लोगों की जिज्ञासा-वृत्ति को अतिशय जागृत पाया। यद्यपि उनकी द्वेष-बुद्धि में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ था, फिर भी वे आते और धर्म-चर्चा करते, तब सौ में से दो तो समझते ही। स्वामीजी इतने मात्र से भी अपने श्रम को सफल मानते। दिनभर लोगों को समझाते रहने पर स्वामीजी को लगा कि अपने विचारों को जन-सुलभ बनाने के लिए उन्हें पद्य-बद्ध कर देना चाहिए। तभी से उन्होंने आचार, अनुकंपा, व्रत, अव्रत आदि तत्कालीन चर्चास्पद विषयों पर 'जोड़'— समाहित किया, वहीं आगम-सम्मत विचारों की बहुत महत्त्वपूर्ण सामग्री भी संकलित कर दी। कालांतर में तो उन्होंने नव पदार्थ, श्रावक के बारह व्रत और श्रद्धा आदि अनेक विषयों पर विवेचनात्मक तथा प्रेरणास्पद ग्रंथों का निर्माण किया।
जन-उद्धार के लिए विभिन्न प्रदेशों में स्वामीजी के विहार और प्रत्यक्ष परिचय ने जितना महत्त्वपूर्ण कार्य किया, उतना ही उनके ग्रंथों ने भी किया। साधारण श्रावक भी उनकी गीतिकाओं को सीखकर जहां तत्त्व तथा आचार-विषयक विशेषज्ञ हो जाता था, वहां उस समय चलने वाले शास्त्रार्थों या चर्चाओं में भी अजेय हो जाया करता था।
*उस विरोधपूर्ण वातावरण में स्वामीजी का सबसे बड़ा सहायक कौन था...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 61* 📖
*मूल्यांकन की दृष्टि*
गतांक से आगे...
पुत्र के निर्माण में मां की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एक माता थी मदालसा। वह अपने पुत्रों को तैयार करती थी। वह विचित्र माता थी। मन में विकल्प आया— इस पुत्र को सन्यासी बनाना है। जैसे ही पुत्र गर्भ में आया, माँ मदालसा ने संस्कार देना शुरू कर दिया। गर्भकाल संस्कार निर्माण का स्वर्णिम समय है। एक माँ ने सुकरात से कहा— मेरा बच्चा पांच वर्ष का हो गया है। अब मैं उसे संस्कार निर्माण और विद्यार्जन के लिए पाठशाला में भेज रही हूं। सुकरात ने कहा— बहुत देरी हो गई है। संस्कार निर्माण का समय जीवन के पहले क्षण से प्रारंभ हो जाता है। जो कुशल और दिव्य माता होती है, गर्भकाल में ही बच्चे को संस्कार देना शुरू कर देती है। मदालसा गर्भकाल में ही शिशु को यह संस्कार देने लगी—
*शुद्धोसि, बुद्धोसि निरंजनोसि।*
*संसारमायापरिवर्जितोसि।*
तुम शुद्ध हो, बुद्ध हो, निरंजन हो, संसार-माया से परिवर्जित हो। मदालसा यह पाठ उस गर्भस्थ शिशु को प्रतिदिन सुनाती। इसलिए सुनाती कि वह शिशु तेजस्वी और यशस्वी मुनि बने। जब दूसरा बच्चा गर्भ में आया तब मदालसा ने सोचा— इसे कुशल राजनेता बनाना है। उसने गर्भस्थ शिशु को राजनीति के संस्कार देने शुरू कर दिए और वह शिशु कुशल राजनेता बना।
पुत्र के निर्माण में माँ की बहुत भूमिका है। यदि माता समझदार है, विवेक-संपन्न है तो संतान बहुत अच्छी हो जाती है। जो माताएं कुछ नहीं जानतीं, उनकी संतान भी वैसी ही होती है। जब कभी मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) विकलांग बच्चों को देखता हूं, अविकसित और विकृत शरीर वाले शिशुओं को देखता हूं तब-तब मेरा ध्यान इस सिद्धांत की ओर चला जाता है— शिशु की इस अवस्था के लिए माता-पिता भी उत्तरदाई हैं। यदि माता-पिता जागरूक होते तो शायद ऐसा नहीं होता। माता-पिता की अज्ञानता के कारण अनेक विकृतियां पैदा हो जाती हैं। संतति पैदा करने के बहुत नियम हैं। जो उन नियमों को नहीं जानते, कब क्या करना चाहिए, इसका विवेक नहीं रखते वे, शिशु के लिए समस्या का बीज बो देते हैं। मनोविज्ञान की दृष्टि से, संतान-उत्पत्ति के सिद्धांत की दृष्टि से एक सरल किंतु महत्त्वपूर्ण सूत्र मानतुंग ने प्रस्तुत कर दिया— जैसी माँ होती है, वैसा ही पुत्र मिलता है।
बहुत कठिन है अच्छी मां का मिलना। मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) अनुभव करता हूं— मेरी संसारपक्षीयी माता साध्वी बालूजी ने मुझे जो संस्कार दिए, वे मेरे विकास में योगभूत बने हैं। मैं छोटा बच्चा था। वे प्रतिदिन प्रातः बहुत जल्दी उठ जातीं। दो-तीन सामायिक करतीं, सामायिक में वे ढालें (गीत) सुनातीं। वे गीत मेरे सुप्त मन को छूने लगे, संस्कार बन गए। उन्हीं संस्कारों के कारण मैं आचार्य भिक्षु के प्रति आस्थाशील बन गया। मैंने आचार्य भिक्षु को कभी नहीं देखा, फिर भी उनके प्रति श्रद्धा पैदा हो गई। वह श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई? बचपन में मां ने बार-बार भिक्षु के स्तुति गीत सुनाए, वे संस्कार बन गए और एक आस्था का निर्माण हो गया। हम चाहे अच्छी बात सुनें या बुरी बात— जिस बात को बार-बार सुनेंगे, जिस चीज को प्रतिदिन बार-बार देखेंगे, उसका संस्कार हमारे मस्तिष्क में जमता चला जाएगा। वह मां जो संतान को संस्कारी बनाने में समुद्यत रहती है, सदा श्रेष्ठ पुत्र के निर्माण का श्रेय ले लेती है।
मानतुंग माँ और पुत्र दोनों की विशिष्टता को रेखांकित कर रहे हैं। वह माँ भी अच्छी नहीं होती, जो संस्कार निर्माण का अपना दायित्व न निभाए। वह पुत्र भी अच्छा नहीं होता जो विनम्र और शक्ति-संपन्न न हो, निकम्मा और भारभूत हो। इसीलिए स्तुतिकार ने कहा— प्रभो! आपके दोनों पक्ष बहुत शक्तिशाली हैं। आपकी मां कितनी विचित्र थी, निर्मल और महान् थी। आप स्वयं भी कितने महान् और पवित्र थे। माँ और पुत्र– दोनों के अतुलनीय चरित्र को सामने रखकर मानतुंग सूरि ने इस एक वाक्य में सब कुछ कह दिया— किसी माँ ने आप जैसा पुत्र प्रसूत नहीं किया।
*अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए... आचार्य मानतुंग अपनी भावनाओं को किस प्रकार एक श्लोक में समाहित कर रहे हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ 🛣प्रातःविहार करके 'कोरामंगला -बेंगलुरु' (Karnataka) पधारे..*
⛩ *आज दिन का प्रवास: श्री मालचंद जी गिड़िया का निवास स्थान - कोरामंगला (बेंगलुरु)*
*लोकेशन:*
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🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 22/06/2019
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १७१* - *चित्त शुद्धि और समाधी ७*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#तटस्था की #सापेक्षता*: #श्रंखला ४*
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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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