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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १३४* - *समय प्रबंधन और प्रेक्षाध्यान १४*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*अणुव्रत के तृतीय अनुशास्ता*
*परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण*
*के जन्मोत्सव पर*
*भावभीनी अभिवंदना*
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 28* 📖
*सौंदर्य की मीमांसा*
गतांक से आगे...
प्रश्न उठता है— तीर्थंकरों में ऐसी क्या विशेषता है कि उन्हें देख लेने के बाद और किसी पर दृष्टि नहीं ठहरती? उत्तर खोजें तो एक कारण बहुत स्पष्ट दिखाई देता है और वह यह है– आकृति और रंग रूप का जितना आकर्षण होता है, उससे भी कई गुना आकर्षण पवित्रता पर होता है, वीतरागता का होता है। एक व्यक्ति सुंदर नहीं है, रंग रूप से हीन है, किंतु अतिशय शांति से सम्पन्न है तो उसका क्षण भर का सान्निध्य भी दूसरों को अतिशय सुख देने वाला होगा। सबसे बड़ा आकर्षण होता है शांति का, आभामंडल की पवित्रता का और वीतरागता का। वीतरागता, शांति और आभामंडल की पवित्रता– इनमें चुंबकीय आकर्षण होता है। जैसे चुंबक लोहे को अपनी ओर खींचता है, वैसे ही ये गुण हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। दिल्ली प्रवास में पूज्य गुरुदेव एक आश्रम में पधारे। आश्रम के अधिष्ठाता वयोवृद्ध व्यक्ति थे। चेहरे पर झुर्रियां और केश सफेद। जरा के लक्षण स्पष्ट थे उनके शरीर पर। फिर भी सारे लोगों की आंखें उन पर लगी थीं।
सबसे बड़ा आकर्षण होता है– शांति का। शांति का स्रोत है– कषाय का उपशमन या वीतरागता। जिस व्यक्ति में जितनी वीतरागता होगी, उसके चेहरे पर उतनी ही शांति होगी, उतना ही उसका आकर्षण बढ़ेगा और हर आदमी उसे देखना चाहेगा।
सौंदर्य में सहज ही आकर्षण होता है। एक सुंदर लड़की सड़क पर जा रही थी। एक मनचले युवक ने उसे देखा, वह ठिठक कर खड़ा हो गया। उस लड़की से पूछा— "मुझे तुमसे कुछ कहना है। क्या तुम मुझसे बात करोगी?" लड़की होशियार थी। उसने कहा— "शायद मुझे सुंदर देखकर ही तुम ऐसा कर कह रहे हो। पीछे मेरी बहन आ रही है, उसे देखकर मुझे भूल जाओगे।" युवक तुरंत उसकी ओर मुड़ा और पीछे आ रही लड़की की और बढ़ा। साक्षात् अमावस की रात्रि जैसी थी वह लड़की। वह तेजी से दौड़ता हुआ पुनः उस लड़की के पास पहुंचा और बोला— "तुमने झूठी बात कहकर मुझे धोखा दिया है।" लड़की बोली— "धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रही, तुम मुझे दे रहे हो। मुझसे ज्यादा सुंदर किसी और के होने की बात सुनी तो उसकी ओर भाग खड़े हुए।"
सौंदर्य का ऐसा तारतम्य में सर्वत्र है। एक से दूसरा सुंदर है, दूसरे से तीसरा सुंदर है और तीसरे से चौथा सुंदर है। किसे अंतिम सुंदर मानें, यह कहना बड़ा कठिन है। किंतु यह ध्रुव सत्य है कि जिसे देखकर मन में क्रोध जागे, वह कितना भी सुंदर हो, वास्तव में सुंदर नहीं है। जिसकी आकृति पर छल-कपट, माया और प्रवंचना की परछाई है, वह सुंदर नहीं होता। ऐसे व्यक्ति की आकृति हर क्षण बदलती रहती है। एक क्षण में वह सुंदर और भला लगता है, दूसरे ही क्षण में वह भद्दा और कुरूप दिखाई देने लग जाता है।
*आचार्य मानतुंग भगवान् ऋषभ की स्तुति करते हुए उनके सौंदर्य से अभिभूत होकर क्या कहते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 40* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*भाव संयम की भूमिका*
*आगम-मंथन*
स्वामीजी पर एक असाधारण कर्तव्य का भार आ गया। उसकी न तो उपेक्षा करना ही उपयुक्त था और न अधीरता से किसी परिणाम पर पहुंचने की उतावल करना ही। उपेक्षा जहां तत्त्व-गवेषणा की ओर से उदासीन कर देती है, वहां अधीरता सत्य के निष्कर्ष पर पहुंचने में बाधक बन जाती है। स्वामीजी को दोनों दोषों से बच कर चलना था। एक ओर श्रावकों के द्वारा उठाए गए प्रश्न तथा अध्ययन-काल में स्वयं के मन में उठने वाले विचार थे, दूसरी और अपने संप्रदाय के आचार-विचार की प्रणाली थी। दोनों में जहां संघर्ष था वहां आगम ही निर्णायक हो सकते थे। इसीलिए स्वामीजी ने दोनों प्रकार के विचारों को आगमों की कसौटी पर कसकर देख लेने का निर्णय किया। यद्यपि वह कार्य बहुत गंभीर और श्रम-साध्य था, फिर भी सत्य तक पहुंचने के लिए सर्वाधिक उचित तथा न्याय-संगत वही एकमात्र मार्ग था।
विचार के पीछे जो 'अपना' अथवा 'पराया' विशेषण लगा रहता है, वह तटस्थता से निर्णय करने में बाधक बन जाता है। 'स्व' और 'पर' से ऊपर उठ कर केवल निर्विशेषेण विचार को परखने की क्षमता एक विरक्त मुमुक्षु में ही हो सकती है। मुमुक्षु व्यक्ति अपना मंतव्य पुष्ट करने में नहीं, किंतु सत्य को पुष्ट करने में अपना गौरव समझता है। सत्य को परखने में गलती की संभावना हो सकती है, इसीलिए उसे फूंक-फूंक कर पैर आगे बढ़ाने पड़ते हैं। किसी भी विचार को एक बार या दो बार ही नहीं, किंतु बार-बार सत्य की कसौटी पर लेने के पश्चात् जब कोई संदेह नहीं रह जाता, तभी वह अपने अनुभव में आए हुए विचारों को साफ-साफ जनता के सामने रखता है।
स्वामीजी ने अंतिम निर्णय के लिए उक्त मार्ग का ही आलंबन लिया। उन्होंने तटस्थ बुद्धि से आगम-अध्ययन प्रारंभ किया। स्थानीय श्रावक पिरथोजी खांटेड़ तथा लालजी पोरवाल ने उत्प्रेरक बनते हुए कहा— 'स्वामीजी आप आगमों का अध्ययन पूरी अनुप्रेक्षा के साथ करना।' स्वामीजी ने वैसा ही किया। उन्होंने उस चातुर्मास में प्रत्येक आगम का दो-दो बार सूक्ष्मतापूर्वक परायण किया। सत्य को असत्य बतलाना जहां आत्म-पतन का कारण होता, वहां गुरु का पक्ष लेकर असत्य को सिद्ध करना भी दुर्गति का कारण होता। न सत्य के प्रति अन्याय होना चाहिए था और गुरु के प्रति। वह एक दुधारी तलवार पर चलने के सामान कठिन कार्य था। उससे अक्षत बचने के लिए आगम-मंथन ही एकमात्र उपाय था। स्वामीजी ने उस चातुर्मास में अपना अधिक समय उसी कार्य में लगाया।
*तेरापंथ के आद्य प्रणेता स्वामी भीखणजी आगम-मंथन करके किस निष्कर्ष पर पहुंचे व उसकी घोषणा किस प्रकार की...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 *सेलम - आचार्य श्री महाश्रमण 58 वां जन्मोत्सव*
💢 आज के कार्यक्रम के अनुपम दृश्य
💢 पूज्यवर के संसार पक्षीय पारिवारिक जन की प्रस्तुति
💢 उपस्थित जन समुदाय
दिनांक 13-05-2019
प्रस्तुति - 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🏵 *तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी के 58वें जन्मोत्सव पर विनयावनत वंदन*
🙏श्रद्धावनत🙏
🌍 *जैन विश्व भारती परिवार* 🌏
*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
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जन्मोत्सव विशेष वृहद मंगल पाठ #janmotsavpatotsavsalem2019
जन्मोत्सव विशेष वृहद मंगल पाठ
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आचार्य श्री द्वारा जन्मोत्सव के अवसर पर
आचार्य श्री जी ने दैनिक दिनचर्या में नास्ते से पहले 21 बार नवकार महामंत्र जाप के लिए कहा.. @सेलम #janamotsav #patotsav, #salem2019
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १३३* - *समय प्रबंधन और प्रेक्षाध्यान १३*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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आचार्य श्री महाश्रमण जी का जन्मोत्सव @सेलम, तमिलनाडु
#janmotsavpatotsavsalem2019
Photo Time:- 4:02 AM
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