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👉 विशाखापट्नम - "सशक्त नारियाँ देश की तक़दीर, बदल देगी कल की तस्वीर" कार्यशाला का आयोजन
👉 औरंगाबाद - सशक्त नारियां देश की तकदीर, बदल देगी कल की तस्वीर "
👉 जालना - चित्त समाधि शिविर का आयोजन
👉 विजयवाड़ा - तप अभिनंदन समारोह आयोजित
👉 बीकानेर: पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए श्री जैन लूणकरण जी छाजेड़ सम्मानित..
👉यशवंतपुर, (बेंगलुरु) सशक्त नारी देश की तकदीर बदल देगी कल की तस्वीर कार्यशाला आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2210635272487129&id=1605385093012153
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 556* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*साहित्य*
साहित्य जगत में आचार्य श्री तुलसी की सेवाएं अनुपम थीं। आप कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी तीनों भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की। आप सिद्धहस्त कवि थे। राजस्थानी भाषा में आपकी कई सरस रचनाएं हैं। कई काव्य ग्रंथ हैं। अध्यात्म, दर्शन, न्याय आदि विषयों पर सारगर्भित विपुल सामग्री आपके ग्रंथों में मिलती है।
'जैन सिद्धांत दीपिका', 'भिक्षुन्यायकर्णिका', 'मनोनुशासनम्', 'पञ्च सूत्रम्' ये संस्कृत के ग्रंथ हैं, इनमें सिद्धांत, न्याय तथा योग-विषयक सामग्री उपलब्ध है।
'कालू यशोविलास' पूज्य कालूगणी के जीवन पर रचा गया राजस्थानी गेय काव्य है। इसकी रचना में लेखक का महान् शब्दशिल्पी रूप निखर कर आया है। वर्णन शैली बेजोड़ है। माणक-महिमा, डालम-चरित्र और मगन-चरित्र आदि काव्यों में आचार्यों एवं विशिष्ट मुनिवर का जीवन चरित्र है। भरत-मुक्ति, आषाढ़ भूति एवं अग्निपरीक्षा में आचार्यश्री की प्रखर काव्य प्रतिभा प्रतिबिंबित है।
उनकी नन्दन-निकुञ्ज, सोमरस, चंदन की चुटकी भली, तेरापंथ प्रबोध, मां वदना, सेवाभावी, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति आदि हिंदी एवं राजस्थानी की महत्त्वपूर्ण पद रचनाएं हैं।
मुक्तिपथ, विचार-दीर्घा, उद्बोधन, अतीत का अनावरण, अनागत का स्वागत, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, भगवान् महावीर, बीती ताहि विसारि दे, बूंद भी लहर भी, क्या धर्म बुद्धिगम्य है?, धर्म: एक कसोटी एक रेखा, मेरा धर्म केंद्र और परिधि, बूंद बूंद से घट भरे, अणुव्रत के आलोक में, अणुव्रत के संदर्भ में, प्रज्ञापुरुष जयाचार्य, महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, जब जागे तभी सवेरा, लघुता से प्रभुता मिले, सफर आधी शताब्दी का, गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, कुहासे में उगता सूरज, खोए सो पाए, हस्ताक्षर, जीवन की सार्थक दिशाएं, अनैतिकता की धूप: अणुव्रत की छतरी, अणुव्रत गीत आदि अणुव्रत साहित्य, योग विषयक साहित्य, हिंदी की अनेक रचनाएं हैं जो अध्यात्म, धर्म, दर्शन, सिद्धांत और जीवन-विज्ञान से संबंधित हैं।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी की और भी अनेक अनुपम कृतियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Sangh Samvad
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 556* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*साहित्य*
साहित्य जगत में आचार्य श्री तुलसी की सेवाएं अनुपम थीं। आप कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी तीनों भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की। आप सिद्धहस्त कवि थे। राजस्थानी भाषा में आपकी कई सरस रचनाएं हैं। कई काव्य ग्रंथ हैं। अध्यात्म, दर्शन, न्याय आदि विषयों पर सारगर्भित विपुल सामग्री आपके ग्रंथों में मिलती है।
'जैन सिद्धांत दीपिका', 'भिक्षुन्यायकर्णिका', 'मनोनुशासनम्', 'पञ्च सूत्रम्' ये संस्कृत के ग्रंथ हैं, इनमें सिद्धांत, न्याय तथा योग-विषयक सामग्री उपलब्ध है।
'कालू यशोविलास' पूज्य कालूगणी के जीवन पर रचा गया राजस्थानी गेय काव्य है। इसकी रचना में लेखक का महान् शब्दशिल्पी रूप निखर कर आया है। वर्णन शैली बेजोड़ है। माणक-महिमा, डालम-चरित्र और मगन-चरित्र आदि काव्यों में आचार्यों एवं विशिष्ट मुनिवर का जीवन चरित्र है। भरत-मुक्ति, आषाढ़ भूति एवं अग्निपरीक्षा में आचार्यश्री की प्रखर काव्य प्रतिभा प्रतिबिंबित है।
उनकी नन्दन-निकुञ्ज, सोमरस, चंदन की चुटकी भली, तेरापंथ प्रबोध, मां वदना, सेवाभावी, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति आदि हिंदी एवं राजस्थानी की महत्त्वपूर्ण पद रचनाएं हैं।
मुक्तिपथ, विचार-दीर्घा, उद्बोधन, अतीत का अनावरण, अनागत का स्वागत, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, भगवान् महावीर, बीती ताहि विसारि दे, बूंद भी लहर भी, क्या धर्म बुद्धिगम्य है?, धर्म: एक कसोटी एक रेखा, मेरा धर्म केंद्र और परिधि, बूंद बूंद से घट भरे, अणुव्रत के आलोक में, अणुव्रत के संदर्भ में, प्रज्ञापुरुष जयाचार्य, महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, जब जागे तभी सवेरा, लघुता से प्रभुता मिले, सफर आधी शताब्दी का, गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, कुहासे में उगता सूरज, खोए सो पाए, हस्ताक्षर, जीवन की सार्थक दिशाएं, अनैतिकता की धूप: अणुव्रत की छतरी, अणुव्रत गीत आदि अणुव्रत साहित्य, योग विषयक साहित्य, हिंदी की अनेक रचनाएं हैं जो अध्यात्म, धर्म, दर्शन, सिद्धांत और जीवन-विज्ञान से संबंधित हैं।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी की और भी अनेक अनुपम कृतियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 556* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*साहित्य*
साहित्य जगत में आचार्य श्री तुलसी की सेवाएं अनुपम थीं। आप कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी तीनों भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की। आप सिद्धहस्त कवि थे। राजस्थानी भाषा में आपकी कई सरस रचनाएं हैं। कई काव्य ग्रंथ हैं। अध्यात्म, दर्शन, न्याय आदि विषयों पर सारगर्भित विपुल सामग्री आपके ग्रंथों में मिलती है।
'जैन सिद्धांत दीपिका', 'भिक्षुन्यायकर्णिका', 'मनोनुशासनम्', 'पञ्च सूत्रम्' ये संस्कृत के ग्रंथ हैं, इनमें सिद्धांत, न्याय तथा योग-विषयक सामग्री उपलब्ध है।
'कालू यशोविलास' पूज्य कालूगणी के जीवन पर रचा गया राजस्थानी गेय काव्य है। इसकी रचना में लेखक का महान् शब्दशिल्पी रूप निखर कर आया है। वर्णन शैली बेजोड़ है। माणक-महिमा, डालम-चरित्र और मगन-चरित्र आदि काव्यों में आचार्यों एवं विशिष्ट मुनिवर का जीवन चरित्र है। भरत-मुक्ति, आषाढ़ भूति एवं अग्निपरीक्षा में आचार्यश्री की प्रखर काव्य प्रतिभा प्रतिबिंबित है।
उनकी नन्दन-निकुञ्ज, सोमरस, चंदन की चुटकी भली, तेरापंथ प्रबोध, मां वदना, सेवाभावी, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति आदि हिंदी एवं राजस्थानी की महत्त्वपूर्ण पद रचनाएं हैं।
मुक्तिपथ, विचार-दीर्घा, उद्बोधन, अतीत का अनावरण, अनागत का स्वागत, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, भगवान् महावीर, बीती ताहि विसारि दे, बूंद भी लहर भी, क्या धर्म बुद्धिगम्य है?, धर्म: एक कसोटी एक रेखा, मेरा धर्म केंद्र और परिधि, बूंद बूंद से घट भरे, अणुव्रत के आलोक में, अणुव्रत के संदर्भ में, प्रज्ञापुरुष जयाचार्य, महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, जब जागे तभी सवेरा, लघुता से प्रभुता मिले, सफर आधी शताब्दी का, गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, कुहासे में उगता सूरज, खोए सो पाए, हस्ताक्षर, जीवन की सार्थक दिशाएं, अनैतिकता की धूप: अणुव्रत की छतरी, अणुव्रत गीत आदि अणुव्रत साहित्य, योग विषयक साहित्य, हिंदी की अनेक रचनाएं हैं जो अध्यात्म, धर्म, दर्शन, सिद्धांत और जीवन-विज्ञान से संबंधित हैं।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी की और भी अनेक अनुपम कृतियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रृंखला -- 210* 📜
*गुमानीलालजी कोठारी*
*सुधार नहीं पाये*
गुमानीलालजी का प्रारंभ से ही प्रयास रहा कि गणेशलालजी यथाशीघ्र अपने घर और व्यापार का कार्यभार संभालने में समर्थ बन जाएं, परंतु वे लाख प्रयास करने के बाद भी वैसा नहीं कर पाए। कारण यह था कि अपने पिता के समय में गणेशलालजी उनके साथ बहुधा राजमहल में जाया करते थे। वहां वे राजकुमार कुबेरसिंहजी के साथ खेला करते। बाल्यकाल की वह प्रीति आगे चलकर सुदृढ़ मित्रता में परिणत हो गई। उनके साथ रहकर वे धीरे-धीरे राजपूती रंग में ही रंगते चले गए। घुड़सवारी करना, शिकार खेलना, शराब पीना, यहां तक कि मांसाहार भी उन्होंने प्रारंभ कर दिया। गुमानीलालजी उनकी उक्त वृत्तियों को देखते तब बड़े दुःखी होते। एकांत में उन्हें घर की परंपराओं का सम्मान करने तथा व्यसनों से मुक्त रहने की शिक्षा देते, परंतु वह राख में घी डालने के समान व्यर्थ ही सिद्ध होती। यद्यपि वे उन्हें मात्र मुनीम ही नहीं मानते थे, 'चाचाजी' कहकर पुकारते, आदर रखते और डरते भी थे, परंतु जिस संगति में पड़ गए थे, उसे छोड़ नहीं पाते थे। शायद वे चाचाजी की देखरेख में स्वयं अपने को तथा अपने घर और व्यापार को पूर्ण सुरक्षित मानकर निश्चिंत हो गए थे। इसलिए उनके जीवनकाल में जो परिवर्तन प्रयास करने पर भी नहीं आ सका वह उनकी मृत्यु के पश्चात् अपने आप आ गया। चाचाजी का अभाव होते ही उनका चिंता मुक्त जीवन अनेक चिंताओं से घिर गया तब से वे नियमित रूप से दुकान और घर का कार्य संभालने लगे। कालांतर में तो सर्व व्यसनों से मुक्त होकर वे अत्यंत धार्मिक व्यक्ति बन गए।
*धार्मिक प्रवृत्तियां*
गुमानीलालजी सांसारिक क्षेत्र में जितने कुशल और नीति परायण थे उतने ही धार्मिक क्षेत्र में भी। वे प्रतिवर्ष उदयपुर में आकर साधु-साध्वियों की संगति का लाभ उठाते। पर्युषण पर्व बहुधा वहीं आकर मनाते। नाई तथा झाड़ोल में साधु-साध्वियों को ले जाते। दुर्गम पहाड़ियों से भरे जंगली मार्ग में साथ रहकर सेवा करते। समय-समय पर आचार्यश्री के दर्शन करने भी जाते। जहां भी होते प्रतिदिन सामायिक अवश्य करते। अंतिम 35 वर्षों में प्रतिमाह कम से कम दो उपवास करते रहे। लगभग 20 वर्षों तक प्रतिवर्ष पंचोले की तपस्या की। उक्त तपस्या पर्यूषण के अवसर पर प्रायः उदयपुर में ही हुआ करती थी। कभी-कभी उक्त अवसर पर अठाई भी कर लिया करते। संगनन इतना मजबूत था कि अठाई या पंचोला तो उदयपुर में करते और फिर पैदल नाई में जाकर पारण करते। अंतिम 10 वर्षों में उन्होंने चारों स्कंधों का परित्याग कर दिया था। विक्रम संवत् 1992 मार्गशीर्ष शुक्ला 9 को लगभग 60 वर्ष की अवस्था में उनका देहावसान हो गया।
*देव, गुरु, धर्म की कृपा से आज प्रकाश के प्रहरी की पोस्ट परिसंपन्न हुई। हम जल्द ही एक और नई प्रेरणादायक पोस्ट के साथ फिर प्रस्तुत होंगे...* 🙏🙏
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 विशाखापट्नम - "सशक्त नारियाँ देश की तक़दीर, बदल देगी कल की तस्वीर" कार्यशाला का आयोजन
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प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 556* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*साहित्य*
साहित्य जगत में आचार्य श्री तुलसी की सेवाएं अनुपम थीं। आप कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी तीनों भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की। आप सिद्धहस्त कवि थे। राजस्थानी भाषा में आपकी कई सरस रचनाएं हैं। कई काव्य ग्रंथ हैं। अध्यात्म, दर्शन, न्याय आदि विषयों पर सारगर्भित विपुल सामग्री आपके ग्रंथों में मिलती है।
'जैन सिद्धांत दीपिका', 'भिक्षुन्यायकर्णिका', 'मनोनुशासनम्', 'पञ्च सूत्रम्' ये संस्कृत के ग्रंथ हैं, इनमें सिद्धांत, न्याय तथा योग-विषयक सामग्री उपलब्ध है।
'कालू यशोविलास' पूज्य कालूगणी के जीवन पर रचा गया राजस्थानी गेय काव्य है। इसकी रचना में लेखक का महान् शब्दशिल्पी रूप निखर कर आया है। वर्णन शैली बेजोड़ है। माणक-महिमा, डालम-चरित्र और मगन-चरित्र आदि काव्यों में आचार्यों एवं विशिष्ट मुनिवर का जीवन चरित्र है। भरत-मुक्ति, आषाढ़ भूति एवं अग्निपरीक्षा में आचार्यश्री की प्रखर काव्य प्रतिभा प्रतिबिंबित है।
उनकी नन्दन-निकुञ्ज, सोमरस, चंदन की चुटकी भली, तेरापंथ प्रबोध, मां वदना, सेवाभावी, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति आदि हिंदी एवं राजस्थानी की महत्त्वपूर्ण पद रचनाएं हैं।
मुक्तिपथ, विचार-दीर्घा, उद्बोधन, अतीत का अनावरण, अनागत का स्वागत, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, भगवान् महावीर, बीती ताहि विसारि दे, बूंद भी लहर भी, क्या धर्म बुद्धिगम्य है?, धर्म: एक कसोटी एक रेखा, मेरा धर्म केंद्र और परिधि, बूंद बूंद से घट भरे, अणुव्रत के आलोक में, अणुव्रत के संदर्भ में, प्रज्ञापुरुष जयाचार्य, महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, जब जागे तभी सवेरा, लघुता से प्रभुता मिले, सफर आधी शताब्दी का, गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, कुहासे में उगता सूरज, खोए सो पाए, हस्ताक्षर, जीवन की सार्थक दिशाएं, अनैतिकता की धूप: अणुव्रत की छतरी, अणुव्रत गीत आदि अणुव्रत साहित्य, योग विषयक साहित्य, हिंदी की अनेक रचनाएं हैं जो अध्यात्म, धर्म, दर्शन, सिद्धांत और जीवन-विज्ञान से संबंधित हैं।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी की और भी अनेक अनुपम कृतियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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Sangh Samvad
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*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*साहित्य*
साहित्य जगत में आचार्य श्री तुलसी की सेवाएं अनुपम थीं। आप कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी तीनों भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की। आप सिद्धहस्त कवि थे। राजस्थानी भाषा में आपकी कई सरस रचनाएं हैं। कई काव्य ग्रंथ हैं। अध्यात्म, दर्शन, न्याय आदि विषयों पर सारगर्भित विपुल सामग्री आपके ग्रंथों में मिलती है।
'जैन सिद्धांत दीपिका', 'भिक्षुन्यायकर्णिका', 'मनोनुशासनम्', 'पञ्च सूत्रम्' ये संस्कृत के ग्रंथ हैं, इनमें सिद्धांत, न्याय तथा योग-विषयक सामग्री उपलब्ध है।
'कालू यशोविलास' पूज्य कालूगणी के जीवन पर रचा गया राजस्थानी गेय काव्य है। इसकी रचना में लेखक का महान् शब्दशिल्पी रूप निखर कर आया है। वर्णन शैली बेजोड़ है। माणक-महिमा, डालम-चरित्र और मगन-चरित्र आदि काव्यों में आचार्यों एवं विशिष्ट मुनिवर का जीवन चरित्र है। भरत-मुक्ति, आषाढ़ भूति एवं अग्निपरीक्षा में आचार्यश्री की प्रखर काव्य प्रतिभा प्रतिबिंबित है।
उनकी नन्दन-निकुञ्ज, सोमरस, चंदन की चुटकी भली, तेरापंथ प्रबोध, मां वदना, सेवाभावी, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति आदि हिंदी एवं राजस्थानी की महत्त्वपूर्ण पद रचनाएं हैं।
मुक्तिपथ, विचार-दीर्घा, उद्बोधन, अतीत का अनावरण, अनागत का स्वागत, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, भगवान् महावीर, बीती ताहि विसारि दे, बूंद भी लहर भी, क्या धर्म बुद्धिगम्य है?, धर्म: एक कसोटी एक रेखा, मेरा धर्म केंद्र और परिधि, बूंद बूंद से घट भरे, अणुव्रत के आलोक में, अणुव्रत के संदर्भ में, प्रज्ञापुरुष जयाचार्य, महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, जब जागे तभी सवेरा, लघुता से प्रभुता मिले, सफर आधी शताब्दी का, गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, कुहासे में उगता सूरज, खोए सो पाए, हस्ताक्षर, जीवन की सार्थक दिशाएं, अनैतिकता की धूप: अणुव्रत की छतरी, अणुव्रत गीत आदि अणुव्रत साहित्य, योग विषयक साहित्य, हिंदी की अनेक रचनाएं हैं जो अध्यात्म, धर्म, दर्शन, सिद्धांत और जीवन-विज्ञान से संबंधित हैं।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी की और भी अनेक अनुपम कृतियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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साहित्य जगत में आचार्य श्री तुलसी की सेवाएं अनुपम थीं। आप कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी तीनों भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की। आप सिद्धहस्त कवि थे। राजस्थानी भाषा में आपकी कई सरस रचनाएं हैं। कई काव्य ग्रंथ हैं। अध्यात्म, दर्शन, न्याय आदि विषयों पर सारगर्भित विपुल सामग्री आपके ग्रंथों में मिलती है।
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'कालू यशोविलास' पूज्य कालूगणी के जीवन पर रचा गया राजस्थानी गेय काव्य है। इसकी रचना में लेखक का महान् शब्दशिल्पी रूप निखर कर आया है। वर्णन शैली बेजोड़ है। माणक-महिमा, डालम-चरित्र और मगन-चरित्र आदि काव्यों में आचार्यों एवं विशिष्ट मुनिवर का जीवन चरित्र है। भरत-मुक्ति, आषाढ़ भूति एवं अग्निपरीक्षा में आचार्यश्री की प्रखर काव्य प्रतिभा प्रतिबिंबित है।
उनकी नन्दन-निकुञ्ज, सोमरस, चंदन की चुटकी भली, तेरापंथ प्रबोध, मां वदना, सेवाभावी, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति आदि हिंदी एवं राजस्थानी की महत्त्वपूर्ण पद रचनाएं हैं।
मुक्तिपथ, विचार-दीर्घा, उद्बोधन, अतीत का अनावरण, अनागत का स्वागत, प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा, भगवान् महावीर, बीती ताहि विसारि दे, बूंद भी लहर भी, क्या धर्म बुद्धिगम्य है?, धर्म: एक कसोटी एक रेखा, मेरा धर्म केंद्र और परिधि, बूंद बूंद से घट भरे, अणुव्रत के आलोक में, अणुव्रत के संदर्भ में, प्रज्ञापुरुष जयाचार्य, महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, जब जागे तभी सवेरा, लघुता से प्रभुता मिले, सफर आधी शताब्दी का, गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, कुहासे में उगता सूरज, खोए सो पाए, हस्ताक्षर, जीवन की सार्थक दिशाएं, अनैतिकता की धूप: अणुव्रत की छतरी, अणुव्रत गीत आदि अणुव्रत साहित्य, योग विषयक साहित्य, हिंदी की अनेक रचनाएं हैं जो अध्यात्म, धर्म, दर्शन, सिद्धांत और जीवन-विज्ञान से संबंधित हैं।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी की और भी अनेक अनुपम कृतियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
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*गुमानीलालजी कोठारी*
*सुधार नहीं पाये*
गुमानीलालजी का प्रारंभ से ही प्रयास रहा कि गणेशलालजी यथाशीघ्र अपने घर और व्यापार का कार्यभार संभालने में समर्थ बन जाएं, परंतु वे लाख प्रयास करने के बाद भी वैसा नहीं कर पाए। कारण यह था कि अपने पिता के समय में गणेशलालजी उनके साथ बहुधा राजमहल में जाया करते थे। वहां वे राजकुमार कुबेरसिंहजी के साथ खेला करते। बाल्यकाल की वह प्रीति आगे चलकर सुदृढ़ मित्रता में परिणत हो गई। उनके साथ रहकर वे धीरे-धीरे राजपूती रंग में ही रंगते चले गए। घुड़सवारी करना, शिकार खेलना, शराब पीना, यहां तक कि मांसाहार भी उन्होंने प्रारंभ कर दिया। गुमानीलालजी उनकी उक्त वृत्तियों को देखते तब बड़े दुःखी होते। एकांत में उन्हें घर की परंपराओं का सम्मान करने तथा व्यसनों से मुक्त रहने की शिक्षा देते, परंतु वह राख में घी डालने के समान व्यर्थ ही सिद्ध होती। यद्यपि वे उन्हें मात्र मुनीम ही नहीं मानते थे, 'चाचाजी' कहकर पुकारते, आदर रखते और डरते भी थे, परंतु जिस संगति में पड़ गए थे, उसे छोड़ नहीं पाते थे। शायद वे चाचाजी की देखरेख में स्वयं अपने को तथा अपने घर और व्यापार को पूर्ण सुरक्षित मानकर निश्चिंत हो गए थे। इसलिए उनके जीवनकाल में जो परिवर्तन प्रयास करने पर भी नहीं आ सका वह उनकी मृत्यु के पश्चात् अपने आप आ गया। चाचाजी का अभाव होते ही उनका चिंता मुक्त जीवन अनेक चिंताओं से घिर गया तब से वे नियमित रूप से दुकान और घर का कार्य संभालने लगे। कालांतर में तो सर्व व्यसनों से मुक्त होकर वे अत्यंत धार्मिक व्यक्ति बन गए।
*धार्मिक प्रवृत्तियां*
गुमानीलालजी सांसारिक क्षेत्र में जितने कुशल और नीति परायण थे उतने ही धार्मिक क्षेत्र में भी। वे प्रतिवर्ष उदयपुर में आकर साधु-साध्वियों की संगति का लाभ उठाते। पर्युषण पर्व बहुधा वहीं आकर मनाते। नाई तथा झाड़ोल में साधु-साध्वियों को ले जाते। दुर्गम पहाड़ियों से भरे जंगली मार्ग में साथ रहकर सेवा करते। समय-समय पर आचार्यश्री के दर्शन करने भी जाते। जहां भी होते प्रतिदिन सामायिक अवश्य करते। अंतिम 35 वर्षों में प्रतिमाह कम से कम दो उपवास करते रहे। लगभग 20 वर्षों तक प्रतिवर्ष पंचोले की तपस्या की। उक्त तपस्या पर्यूषण के अवसर पर प्रायः उदयपुर में ही हुआ करती थी। कभी-कभी उक्त अवसर पर अठाई भी कर लिया करते। संगनन इतना मजबूत था कि अठाई या पंचोला तो उदयपुर में करते और फिर पैदल नाई में जाकर पारण करते। अंतिम 10 वर्षों में उन्होंने चारों स्कंधों का परित्याग कर दिया था। विक्रम संवत् 1992 मार्गशीर्ष शुक्ला 9 को लगभग 60 वर्ष की अवस्था में उनका देहावसान हो गया।
*देव, गुरु, धर्म की कृपा से आज प्रकाश के प्रहरी की पोस्ट परिसंपन्न हुई। हम जल्द ही एक और नई प्रेरणादायक पोस्ट के साथ फिर प्रस्तुत होंगे...* 🙏🙏
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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