08.03.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 08.03.2019
Updated: 08.03.2019

News in Hindi

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रृंखला -- 550* 📝

*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

साध्वी समाज की इस प्रगति के मूल प्रेरणास्रोत आचार्यश्री तुलसी थे। साध्वी शिक्षा के प्रारंभिक विकास में सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति स्वर्गीय साध्वीप्रमुखा श्री लाडांजी का महान् योगदान था।

साध्वीप्रमुखा श्री लाडांजी साध्वियों को मधुर शब्दों में अध्ययन के लाभ समझातीं, ज्ञान कणों को बटोरने के लिए स्नेह से उन्हें प्रेरित करतीं। भाषण, संगीत आदि की गोष्ठियाँ होतीं, घंटों साध्वियों के बीच विराजकर उनको सुनतीं, उनका उत्साह बढ़ातीं, उनको पुरस्कृत करतीं, अध्ययनशील साध्वियों को अनेक आवश्यक कार्यों से मुक्त रखकर अध्ययनानुकूल सुविधाएं और अवकाश प्रदान करतीं।

आचार्यश्री तुलसी के अनवरत परिश्रम एवं साध्वीप्रमुखा श्री लाडांजी की सतत प्रेरणाओं से शिक्षा के क्षेत्र में साध्वी समाज गतिमान हुआ एवं आचार्यश्री कालूगणी का स्वप्न साकार हुआ।

वर्तमान में तेरापंथ का साध्वी समाज उच्चस्तरीय शिक्षा के पठन-पाठन में, गंभीर साहित्य सृजन एवं आगमशोध के महत्त्वपूर्ण कार्य में भी प्रवृत्त तथा भारतीय एवं भारतीयेतर भाषाओं के अध्ययन में रत है। कवि, आशुकवि, लेखक, वैयाकरण व साहित्यकार के रूप में श्रमण-श्रमणी मंडली आचार्यश्री कालूगणी अनहद कृपा एवं आचार्यश्री तुलसी की श्रमशीलता का परिणाम है। अध्ययन-अध्यापन में तेरापंथ धर्मसंघ अत्यधिक स्वावलंबी है।

साध्वी समाज की शिक्षा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। जैन धर्म की प्रभावना में साध्वी समाज का शिक्षा विकास निमित्त बना है। इस सब के उर्जा केंद्र आचार्यश्री तुलसी थे।

आपके शासनकाल में पूर्वाचार्यों की अपेक्षा विशिष्ट तपस्याएं हुईं। भद्रोत्तर तप, लघुसिंह निष्क्रीड़त तप, तेरह महीनों का आयम्बिल तप, एक सौ अस्सी दिन का निर्जल तप, आछ प्रयोग पर छहमासी, नवमासी, बारहमासी तप, छाछ के आगार पर 462 दिन का तप एवं महाभद्रोत्तर तप जैन शासन के तपोमय इतिहास की सुंदर कड़ियां हैं।

*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी द्वारा अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तन* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रृंखला -- 204* 📜

*उदयरामजी लोढ़ा*

*पुत्रवधू की दीक्षा*

लक्ष्मीबाई की भावना कालांतर में संयम ग्रहण करने की हो गई। उन्होंने सास-ससुर को अपनी भावना से अवगत करा दिया। उन दोनों के सम्मुख वृद्धावस्था के सहारे की समस्या थी, फिर भी उन्होंने उनकी धार्मिक प्रगति में बाधक बनना पसंद नहीं किया। उदयरामजी और उनकी पत्नी ने पुत्रवधू को संयम के लिए सहर्ष आज्ञा प्रदान कर दी और यथावसर आचार्य श्री कालूगणी के पास जाकर संयम प्रदान करने की प्रार्थना भी की। आचार्यश्री ने विक्रम संवत् 1992 के उदयपुर चातुर्मास में उनको संयम प्रदान कर दिया।

उदयरामजी और उनकी पत्नी को वृद्धावस्था की स्थिति में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, परंतु उन्होंने हर परिस्थिति के अनुकूल स्वयं को ढाल लिया।

*धार्मिक वृत्तियां*

उदयरामजी को बाल्यावस्था से ही धार्मिक संस्कार उपलब्ध थे। साधु-साध्वियों के संपर्क ने उनके संस्कारों को अधिकाधिक उच्च और उज्जवल बनाया। उनकी दिनचर्या का प्रारंभ धार्मिकता से हुआ करता था। प्रतिदिन सामाजिक और स्वाध्याय उनके जीवन के अनिवार्य अंग थे। अष्टमी, चतुर्दशी को नियमित रूप से उपवास और पौषध करते। साधु-साध्वियों की सेवा में सदैव तत्पर रहते। पचरंगी आदि सामूहिक तपस्या में आगे होकर भाग लेते। उनके विभिन्न प्रत्याख्यानों में से कुछ इस प्रकार हैं— रात्रिकालीन चौविहार व्रत, सचित्त परिहार, सर्व हरितकाय का त्याग, चालीस वर्ष की अवस्था से पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत, सामायिक, माला, जप तथा मुनि दर्शन किए बिना अन्न-जल ग्रहण करने का त्याग इत्यादि। वे अपने व्रतों का बड़ी दृढ़ता से पालन किया करते थे। स्वल्प से दोष की भी उन्हें आशंका होती तो वे उस कार्य को सर्वथा वर्जित ही कर देते थे।

*समाधि-युक्त मृत्यु*

उदयरामजी अत्यंत भद्र परिणामी व्यक्ति थे। दाव-घाव से उनका कभी कोई संपर्क नहीं रहा। सबके साथ हेल-मेल और मधुर व्यवहार ही उनकी प्रकृति की विशेषता थी। अद्वितीय धार्मिक निष्ठा के साथ उन्होंने अपना जीवन बिताया। रुग्णावस्था का उन्हें विशेष सामना नहीं करना पड़ा। अंतिम अवस्था में कुछ दिन रुग्ण अवश्य रहे। अंत में लगभग 68 वर्ष की अवस्था में अनशन ग्रहण कर विक्रम संवत् 1998 के आस-पास समाधिपूर्वक देहत्याग कर दिया।

*आचार्यश्री कालूगणी के विश्वसनीय श्रावकों में से एक श्रीडूंगरगढ़ के श्रावक ताराचंदजी पुगलिया के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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