03.11.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 05.11.2018
Updated: 05.11.2018

News in Hindi

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Source: © Facebook

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 3 नवम्बर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

🔰🎌♦♻♻♦🎌🔰


आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

🔮
परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए

📒
आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

🏮
कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां

📮
दिनांक:
03 नवम्बर 2018

🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

🔰🎌♦♻♻♦🎌🔰

Source: © Facebook

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 463* 📝

*वाक्पटु आचार्य विजयसेन*

तपागच्छ की प्रभावक आचार्य परंपरा में एक नाम विजयसेनसूरि का है। गुरु का नाम उजागर करने वाले सुयोग्य होते हैं। हीर विजय जी के कई शिष्य थे। उनमें बादशाह अकबर को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित कर जैन धर्म के प्रति उनकी आस्था को सुदृढ़ करने का तथा हीरविजयजी की ख्याति को अधिक विस्तृत करने का श्रेय विजयसेनसूरि को है।

*गुरु-परम्परा*

विजयसेनसूरि के गुरु तपागच्छीय आचार्य हीरविजयजी थे। हीरविजयजी के गुरु विजयदानसूरि थे। विजयसेनसूरि के शिष्यों में विद्याविजय, नन्दीविजय आदि प्रमुख थे। शिष्य विद्याविजय की नियुक्ति विजयसेनसूरि ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में की और उनका नाम विजयदेव रखा।

*जीवन-वृत्त*

विजयसेनसूरि का जन्म नारदपुरी में वीर निर्वाण 2079 (विक्रम संवत् 1609) में एवं दीक्षा वीर निर्माण 2087 (विक्रम संवत् 1617) में हुई थी। हीरविजयजी ने सूरिपद पर विजयसेन की नियुक्ति अहमदाबाद में वीर निर्वाण 2098 (विक्रम संवत् 1628) में की थी।

हीरविजयजी के गुजरात पदार्पण के बाद बादशाह अकबर का एक संदेश उनके शिष्य विजयसेनसूरि के पास पहुंचा। जिसमें विजयसेनसूरि को अकबर के दरबार में पहुंचने का निमंत्रण था। इससे स्पष्ट है हीरविजयजी की भांति विजयसेनसूरि के प्रति भी बादशाह अकबर का झुकाव था। विजयसेनसूरि से प्रभावित होकर उनको बादशाह अकबर ने 'सवाई सूरि' की उपाधि प्रदान की। विजयसेनसूरि वाद-विद्या में निपुण थे। अकबर की सभा में ब्राह्मण विद्वानों के साथ उन्होंने कई शास्त्रार्थ किए और वे सफल रहे। शास्त्रार्थ-जय के प्रसंग पर अकबर बादशाह द्वारा 'काली सरस्वती' की उपाधि दी गई थी। बादशाह के निवेदन पर विजयसेनसूरि ने दो चातुर्मास लाहौर में किए। हीरविजयजी की अस्वस्थता के समाचार विजयसेनसूरि के पास लाहौर में पहुंचे। गुरु दर्शन के लिए उन्होंने अतिशीघ्र लाहौर से गुजरात की ओर प्रस्थान किया, परंतु लंबे मार्ग के कारण गुजरात पहुंचने से पहले उन्हें एक चातुर्मास सादड़ी में करना पड़ा।

विजयसेनसूरि के हृदय में गुरु दर्शन की तीव्र उत्कंठा थी, परंतु सभी इच्छाएं फलीभूत नहीं होती हैं। विजयसेनसूरि सादड़ी में चातुर्मास कर रहे थे तभी हीरविजयजी का गुजरात प्रदेशान्तर्गत ऊना ग्राम में स्वर्गवास हो गया। विजयसेनसूरि अपने गुरु के अंतिम दर्शन नहीं कर सके।

हीरविजयजी के स्वर्गवास के बाद गच्छ के नायक विजयसेनसूरि बने। उन्होंने गच्छ का संचालन सफलतापूर्वक किया। गुजरात प्रदेश में विहरण कर धर्म संघ की प्रभावना की एवं बादशाह अकबर पर भी प्रभाव वैसे ही बनाए रखा जैसे हीरविजयजी के युग में था।

विजयसेनसूरि के जीवन में कई विशेषताएं थीं। वे प्रचारक, व्याख्याता, उग्र विहारी तथा आस्थाशील थे। गुरु के प्रति उनके हृदय में अगाध भक्ति भाव था।

*समय-संकेत*

विजयसेनसूरि का स्वर्गवास वीर निर्वाण 2142 (विक्रम संवत् 1672) में हुआ। इससे उनका काल वीर निर्वाण 22वीं (विक्रम की 17वीं) शताब्दी प्रमाणित है।

विजयसेनसूरि का जन्म, दीक्षा, स्वर्गवास समय संवत् पट्टावली समुच्चय में है।

*विशदमति आचार्य विजयदेव के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 117* 📜

*हनुतरामजी बैद*

*लेखन-प्रवृत्ति*

गतांक से आगे...

हनुतरामजी द्वारा रचित दूसरी पुस्तक है— 'सीख' वस्तुतः वह 35 शिक्षाओं की एक लघु पुस्तिका है। उन्होंने उसे अपने जीवन के अंतिम दिनों में लिखा था। वे ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे, अतः स्वयं के आयुष्य की स्थिति को निकट आई समझकर उन्होंने अपने पुत्रों को लिखित रूप में अंतिम शिक्षा देनी चाही। उनके तीन पुत्रों में सबसे बड़े नेमीचंदजी उस समय 24 वर्ष के, सूरजमलजी 17 वर्ष के और सबसे छोटे जयचंदलालजी मात्र 10 वर्ष के थे। उक्त पुस्तिका में पारिवारिक जीवन के लिए हर कदम पर काम आने वाली उत्तम शिक्षाएं हैं। घर, व्यापार, समाज और धर्म के क्षेत्र में कैसा व्यवहार करना उपयोगी और हितकर होता है। यह वहां अच्छी प्रकार से समझाया गया है। दिग्दर्शन के रूप में उन शिक्षाओं में से कुछ यहां उन्हीं के शब्दों में उद्धृत की जा रही हैं—

*(1)* ए लोक ने विषै उत्कृष्ट प्रधान सार पदार्थ श्री नवकार मिंत्र छै। नवकार मिंत्र नै 14 पूर्व नो सार कह्यो छै। इणसूं कोई शुभ कार्य करे तो पहले नवकार मिंत्र सच्चे मन सूं हित चित्त सूं गुण कर करवि ने कार्य करे।

*(9)* चोरी की वस्तु चोर पासे सूं लेणी नहीं। कोई हजार रूपया की जीनस एक सौ रूपया में देवे तो भी लेणी नहीं। सौ रूपया री एक रूपया में देवे, एक रूपया री एक पइसा में देवे तो भी जाण्यां पछे तो लेणी इज नहीं।

*(27)* आपरे पासे पूंजी हुवे जीसोइ धंधों करणो। अने पैदा सारू खरच करणो। पूंजी उपरांयत घणो धंधो और पैदा उपरांयत घणो खरच करणो नहीं। तिण ऊपर दोहा—

"पिछतावै तीन जणा— कमजोर, गुस्सा घणा।
पिछतावै तीन जणा— पूंजी थोड़ी, धंधा घणा।
पिछतावै तीन जणा— पैदा थोड़ी, खर्च घणा।"

*(33)*...आपरे इज्जत आबरू सारू खरच मुकलाई सूं जकी पैदा सूं निभ जावे, मूल री पूंजी बणी रहवे इते में इज संतोष करणो। घणो लोभ करणो नहीं।...

*(34)*...तुमने सीख देने वास्ते इस बही में सीख री बात हमारी अक्ल सारू, हमारे जंची जिसी लिखी छै। जके सीख धारण लायक हुवे, ते तुम लोग धारजो।...

हनुतरामजी ने प्रस्तुत पुस्तिका को संवत् 1968 पौष कृष्णा 4 शनिवार को पुष्य नक्षत्र में लिखकर संपन्न किया। उसके 28 दिन बाद ही माघ कृष्णा 2 को उनका देहावसान हो गया।

*महान् शासन-सेवी... महान् उपासक... आचार्यों के कृपापात्र श्रावक श्रीचंदजी गधैया के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *नव गठित टीम समण संस्कृति संकाय*
*जैन विश्व भारती, लाडनूं*

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*हमारा शरीर: वीडियो श्रंखला १*

👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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