News in Hindi
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❄ *अणुव्रत* ❄
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🔹 संपादक 🔹
*श्री अशोक संचेती*
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*सहिष्णुता*
विषय पर केंद्रित
🎈 *अगस्त अंक* 🎈
के
आकर्षण
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*सहिष्णुता जीवन है*
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सफलता का महामंत्र
सहिष्णुता
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*सहिष्णुता की ओर*
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सौहार्द के स्वर
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🔅 *अणुव्रत सोशल मीडिया*🔅
संप्रसारक
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 टी-दासरहल्ली (बेंगलुरु): तेयुप द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 हनुमंतनगर (बेंगलुरु): तेयुप द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 यशंवतपुर (बेंगलुरु):
स्वतंत्रता दिवस पर विविध वेशभुषा प्रतियोगीता का आयोजित
👉 बेंगलुरु: महिला मंडल द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 404* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*जन्म एवं परिवार*
आचार्य हेमचंद्र वणिक् पुत्र थे। उनका जन्म गुजरात प्रदेशांतर्गत धंधुका नगर में वीर निर्वाण 1615 (विक्रम संवत 1145, ईस्वी सन् 1088) में कार्तिक पूर्णिमा रात्रि के समय मोढ़ वंश में हुआ। उनके पिता का नाम चच्च अथवा चाचिग एवं माता का नाम पाहिनी था। उनका अपना नाम चांगदेव था। प्रबंधकोश के अनुसार उनके मामा का नाम नेमिनाग था।
*जीवन-वृत*
आचार्य हेमचंद्र के समय में गुजरात प्रदेशांतर्गत अणहिल्लपुर पाटण नगर में सिद्धराज जयसिंह का राज्य था। नरेश के कुशल नेतृत्व में राज्य भौतिक संपदा की दृष्टि से उत्कर्ष पर था। प्रजा सुखी थी। अणहिल्लपुर के अंतर्गत धंधुका एक समृद्ध नगर था। नगर में अनेक वणिक् परिवार रहते थे। उनमें मोढ़ परिवार विख्यात था। हेमचंद्रसूरि के पिता चाचिग श्रेष्ठी मोढ़ वंश के अग्रणी थे। वे धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। विद्वज्जनों का सम्मान करते थे। उनके पूर्वज मोढेरा ग्रामवासी होने के कारण वे मोढ़ वंशी कहलाते थे। हेमचंद्र की माता पाहिनी साक्षात् लक्ष्मी रूपा एवं शील गुण संपन्ना थी। उसकी जैन धर्म में दृढ़ आस्था थी। हेमचंद्र जब गर्भ में आए उस समय पाहिनी ने स्वप्न में अपने को चिंतामणिरत्न गुरु के चरणों में भक्ति-भाव से समर्पित करते देखा। प्रबंधकोश के अनुसार उसने स्वप्न में आम्रफल देखा था। उस समय धंधुकापुर में चान्द्रगच्छ से संबंधित प्रद्युम्नसूरि के शिष्य देवचंद्रसूरि विराजमान थे। पाहिनी ने स्वप्न की बात उनके सामने रखी। स्वप्न का फलादेश बताते हुए गुरु ने कहा "पाहिनी! तुम्हारी कुक्षी से पुत्र-रत्न का जन्म होगा। वह जैन शासन में कौस्तुभमणि के तुल्य प्रभावी होगा।"
गुरु के वचनों को सुनकर पाहिनी प्रसन्न हुई। विशेष धर्माराधना के साथ वह समय बिताने लगी। कालावधि समाप्त होने पर उसने ईस्वी सन् 1088 में कार्तिक पूर्णिमा की मध्य रात्रि में तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। आकाश पूर्णिमा के चांद से जगमग आ रहा था। धरा भी मानवचंद्र को पाकर मुस्कुराई। पाहिनी नंदन-आगमन से हर्षित हुई। श्रेष्ठी चाचिग का हृदय प्रसन्नता से भर गया। परिवार का हर सदस्य खुशी से नाच उठा। जन्म के बारहवें दिन उल्लासपूर्ण वातावरण में पुत्र का नाम चांगदेव रखा गया। अभिभावकों के समुचित संरक्षण में बालक दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा।
*पाहिनी जब बालक चांगदेव को धर्म स्थान पर ले कर गई... तब बाल-सुलभ चपलता को देखकर उसके गुरु देवचंद्रसूरि ने क्या कहा...?* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 58* 📜
*नथमलजी बैद*
*बगीची में चातुर्मास*
नथमलजी बैद (मुंहता) बीकानेर निवासी थे। उनके पूर्वज बीकानेर राज्य के दीवान रह चुके थे, अतः उसी समय से उनके गोत्र के साथ पदबोधक 'मुंहता' शब्द जोड़ा जाने लगा था। नथमल। जी एक धनी, प्रभावशाली, दबंग व्यक्ति थे।
बीकानेर तथा उसके आसपास के अनेक क्षेत्रों में ओसवाल परिवार काफी संख्या में निवास करते थे। उनमें मंदिरमार्गी और स्थानकवासी इन दो आम्नायों के ही व्यक्ति थे। तेरापंथी कोई नहीं था। तेरापंथ ने संवत् 1886 के शीतकाल में ही थली में प्रवेश किया था। उस वर्ष आचार्य ऋषिराय तथा उनके साधु-साध्वियों का विहार क्षेत्र बीदायत तक ही सीमित रहा। बीकानेर की ओर कोई सिंघाड़ा नहीं भेजा गया। अगले वर्ष विहार क्षेत्र को विस्तार प्रदान करते हुए जयाचार्य अपनी अग्रणी अवस्था में बीकानेर पधारे। वे संवत् 1888 का अपना चातुर्मास वहीं करने का विचार करके आए थे। नगर में उपयुक्त स्थान की गवेषणा की गई, परंतु वह प्राप्त नहीं हो सका। आखिर नगर प्राचीर से बाहर 'हमालों की बारी' से कुछ आगे एक बगीची में उन्हें वह चातुर्मास करना पड़ा। वहां प्रातः-सायं शौच के समय काफी लोग आया करते थे। मुनि जीत ने उस समय का उपयोग किया और आगंतुक व्यक्तियों से संपर्क बढ़ाया। ज्यों-ज्यों जान-पहचान बढ़ी त्यों-त्यों चर्चा-वार्ता भी बढ़ने लगी। धीरे-धीरे लोग अधिक देर तक वहां ठहरने लगे और मुनिश्री की बातों में रुचि लेने। कुछ लोग सुलभ-बोधि हुए तो कुछ श्रद्धालु भी बने।
कालांतर में बगीची में चर्चित विषय नगर में भी ऊहापोह के विषय बनने लगे। फलतः अनेक नए लोग भी आकृष्ट होकर उधर आने तथा समझने लगे। मुनि जीत का वह चातुर्मास व्याख्यान की दृष्टि से चाहे कुछ भी नहीं था, परंतु चर्चा-वार्ता की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। यद्यपि अनेक व्यक्ति वहां तेरापंथी बन गए थे, परंतु ऐसा एक भी नहीं था जिसके पास मुनिश्री को नगर में ठहराने योग्य स्थान हो। यही कारण था कि वे चाहते हुए भी नगर में नहीं रह सके। उन्हें वह पूरा चातुर्मास बगीची में ही बिताना पड़ा।
*जागरूक श्रावक*
उस वर्ष जितने भी श्रावक बने, वे सब यद्यपि आर्थिक दृष्टि से साधारण थे, परंतु धार्मिक दृष्टि से बड़े सुदृढ़ और जागरूक थे। इसका पता निम्नोक्त घटना से लगता है।
संवत् 1891 का चातुर्मास अग्रणी जय ने फलोदी में किया। उस समय बीकानेर के उन श्रावकों ने पत्र द्वारा मुनिश्री को प्रार्थना करवाई कि टालोकर मुनि फतेहचंदजी देशनोक चातुर्मास करने के पश्चात् बीकानेर आएंगे– ऐसी संभावना है। तेरापंथ से द्वेष रखने वाले यहां के कुछ लोग सोचते हैं कि आपने यहां जो उपकार किया था, उसे मुनि फतेहचंदजी के माध्यम से मटियामेट करवा दिया जाए। हम लोगों की इच्छा है कि ऐसे अवसर पर आप यहां पधारें और सारी स्थिति को संभालें।
जयाचार्य प्रारंभ से ही बड़े अवसरज्ञ व्यक्ति थे। उन्होंने उक्त अवसर की आवश्यकता को समझा और चातुर्मास समाप्त होते ही फलोदी से विहार करते हुए बीकानेर पधार गए। टालोकर मुनि फतेहचंद जी भी वहां आ गए थे। वे तेरापंथ के विरुद्ध बहुत प्रचार किया करते थे। मुनि जय ने उनकी बातों के ऐसे उत्तर दिए कि उनसे जनता की भ्रांति तो मिटी ही, साथ ही मुनि फतेहचंदजी के साथी मुनि उदैचंदजी की तो आंखें ही खुल गईं। वे उन्हें छोड़कर मुनि जय के पास दीक्षित हो गए। उक्त घटना ने जहां मुनिश्री की ख्याति को बढ़ाया वहां बीकानेर में तेरापंथ की नींव को भी सुदृढ़ बना दिया। इस अवसर पर मुनि श्री कुछ दिन ही वहां ठहरे थे।
*बीकानेर में मुनि जीत के द्वितीय चातुर्मास और नथमलजी बैद के तेरापंथ आम्नाय स्वीकार* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 18 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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👉 बारडोली - अणुव्रत समिति द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर अणुव्रत आचार संहिता पट्ट का लोकार्पण
👉 भीलवाड़ा: असली आजादी अपनाओ
👉 पुणे - सास बहू कार्यशाला का आयोजन
👉 सरदारगढ़ - अभातेमम मेवाड़ स्तरीय संगठन यात्रा
👉 वीरगंज (नेपाल): नेपाल - भारत साहित्य महोत्सव 2018 का आयोजन
👉 हैदराबाद: तेयुप द्वारा दक्षिणांचल दायित्वबोध कार्यशाला का वृहद आयोजन
👉 कांदिवली (मुम्बई) - बेटी को मां की सीख एवं सास बहू कार्यशाला का आयोजन
👉 चेन्नई - आचार्य महाश्रमण मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति द्वारा आवास बुकिंग की शुरुवात
👉 शहादा - प्रेक्षाध्यान एवं मुद्रा विज्ञान कार्यशाला का आयोजन
👉 टिटिलागढ़: "हैप्प फेमिली वर्कसोप" का आयोजन
👉 रोहिणी, दिल्ली: दम्पति शिविर का भव्य आयोजन
👉 अहमदाबाद - "पचरंगी तप अनुष्ठान" का आयोजन
👉 जयपुर: किशोर एवं कन्याओं के लिए एक दिवसीय सेमिनार - "आरोहण" का आयोजन
👉 अहमदाबाद - "माँ तुझे सलाम"(सांस्कृतिक कार्यक्रम) का आयोजन
👉 भीलवाड़ा: अणुव्रत के कार्यकर्ताओं की संगोष्ठी का आयोजन
👉 मंडिया - महिला मंडल द्बारा सेवा कार्य
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*इन्द्रियों पर विजय: वीडियो श्रंखला ४*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
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