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आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज जंगल वाले बाबा का पाद प्रचालन चरण वंदन करते हुए अपने घर के सामने 786 मुस्लिम बंधु 😊😍
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तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री व द्रमुक पार्टी के नेता डाॅ. एम. करुणानिधि जी का हाल ही में निधन हुआ। श्री #करुणानिधि द्रविड़ आन्दोलन के महत्वपूर्ण कार्यकर्ता थे,आपने तमिल साहित्य के संरक्षण, संवर्द्धन में जो योगदान दिया वह अभूतपूर्व है, तमिलनाडु के जैन इतिहास पर लिखित पुस्तक #Jainism in Tamilnadu पर आपने अपने विचार रखे थे वह यहाँ हिन्दी में प्रस्तुत है- Kalaignar Karunanidhi
-श्रमण धर्म प्रेम व करुणा का पर्याय बन गया है, समण को जैन धर्म भी कहा जाता है। जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है जो ईसा मसीह के जन्म के सैकड़ो वर्षो पहले से ही था। यह तोलक्कपियम के पूर्व तमिलनाडु में अच्छी तरह फैला था, पवित्र जैन साहित्यकारो ने हमारी *तमिल माँ* को अपने शब्द रुपी गहनो से सजाया था, यदि हम समणो के इस साहित्य को तमिल साहित्त से अलग कर देते है तो तमिल साहित्य निर्जन सा जान पड़ेगा। तमिल भाषा के विकास में जैन कवियो का बहुत बड़ा योगदान है। प्राचीन राजाओं ने भी इन महान प्रयासों को प्रोत्साहित किया है और उनका समर्थन किया है। जैन धर्म को मानने वाले कई कवि तमिलनाडु में रहते हैं। अतीत में तमिलनाडु में जैन धर्म बहुत प्रचलित था। कई लोगों ने स्वेच्छा से इस धर्म को अपनाया, जिसका महान सिद्धांत था कि "दुनिया किसी के द्वारा नहीं बनाई गई थी।" -डाॅ. एम. करुणानिधि।
निःसंदेह तमिलनाडू में श्रमण धर्म ईसा पूर्व प्रचलित था इसके कई पुरातात्विक साक्ष्य भी मिलते है। यहाँ के राजाओ व सामान्य प्रजा ने दिगम्बर श्रमणो के रहने हेतु गुफाएँ निर्मित कराई थी,जो आज भी तमिलनाडू के कई क्षेत्रो में मिलती है, जिनमे ब्राह्मी लिपि में लेख खुदे है जिनकी शैली अशोक के लेखो के समान ही है। वास्तव मे यहाँ कि द्रविड़ संस्कृति जैन संस्कृति का ही पर्याय थी,बाद में इस द्रविड़ परंपरा को बनाए रखने हेतु जैन आचार्यो ने द्रविड़ संघ नाम के मुनि संघ की स्थापना भी की। तमिल वेद के नाम से प्रसिद्ध तिरुक्कुल काव्य(कुरळ काव्य) के रचयिता प्रसिद्ध जैन आचार्य एलाचार्य कुन्दकुन्द थे। यह नीतिग्रन्थ इतना लोकप्रिय हुआ कि शैव,बौद्ध के अलावा इसाई मनीषीयो ने तक इस पर अपना अधिकार जमाना प्रारंभ कर दिया, तमिल साहित्य के संरक्षण व संवर्द्धन में श्रमण संस्कृति का योगदान अप्रतिम है,यहाँ तक कि संगम युग की सबसे प्राचीन कृति तमिल व्याकरण तोलकाप्पियम्(लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) भी जैन आचार्य तोलक्कापियर द्वारा लिखित ही मानी जाती है उसमे जैनत्व की भरमार है, उसका एक उदाहरण प्रस्तुत है ""कर्मो से मुक्त जो भगवान सर्वज्ञ देव है उनके द्वारा जो कहा गया शास्त्र है वही पहला है।" इससे यह तो स्पष्ट है कि जैन धर्म इस ग्रन्थ के लेखन के पूर्व तमिल प्रान्त में अच्छी स्थिति में था, तमिल भाषा साहित्य से अगर हम जैन ग्रन्थो को अलग कर दे तो तमिल साहित्य निर्जन सा जान पड़ेगा इसको हम इसी से समझ सकते है कि तमिलनाडू में 5 महाकाव्य है जिनमे से तीन (जीवकचिन्तामणि,सिलप्पधिकारं,वलैयापति) जैन आचार्यो द्वारा लिखित है। 5 लघुकाव्य और अन्य कई उपग्रन्थ(तिरुक्कुल, नालडियार, एलादि, पलमोलि, सिरिपंचमूलं आदि) जैन मनीषीयो की रचनाएँ है जिनमे उन्होने अध्यात्म,सांसारिक दुख,नैतिक बातो,बीमारियो का घरेलू इलाज आदि का जिक्र किया है।
जैन धर्म प्रेमियो द्वारा बनाए अनेक मंदिर व मूर्तियाँ तमिलनाडु में आज भी बिखरी है, कई जगह तो उनका स्वरुप परिवर्तित कर दिया गया। जैन धर्म के ह्रास का इतिहास भी रोचक है शैव ग्रन्थ पेरियपुराणं,तिरुविलैवाडर में वर्णित है कि मदुरै में 8 हजार जैन मुनियो को एक ब्राह्मण के कहने पर शैव राजा ने सूली पर चढाकर मारा था, जिनके दृश्य मदुरै में मीनाक्षी मंदिर की दीवार पर आज भी उत्कीर्णित है, ऐसे कई तांडव द्रविड़ प्रान्त में हुए 15 वीं शताब्दी में भी ऐसा एक तांडव हुआ था जिससे नैनार जैन लोग दो समुदायो में विभक्त हो गए।शिक्षा के क्षेत्र में भी जैन मनीषीयो का अद्वितीय योगदान तमिल प्रदेश में रहा। जिंजी के पास विडाल में एक पल्लि(पाठशाला को तमिल में पल्लि कहते है) थी जिसका संचालन जैन साध्वी गुणवीर आर्यिका करती थी इसमे 500 महिलाएँ विद्याध्ययन करती थी, इसका शिलालेखिय प्रमाण वही मौजूद है। जैन श्रमण एक स्थान पर नहीं रुकते थे उनका विहार होता रहता था पर वह जहाँ भी जाते लोगो को अध्ययन कराते इसका प्रभाव इतना था कि तमिल प्रदेश में अध्ययन प्रारंभ के पहले सबके द्वारा ॐ नमः सिद्धम् का उच्चारण किया जाता था, श्रमण अध्ययन से पूर्व इस वाक्य का उच्चारण करते है, और यह परम्परा समूचे द्रविड़ प्रान्त में फैली।
आज जितने भी जैन साहित्य उपलब्ध है उनमे प्रारंभिक साहित्यो के लेखक दक्षिण के जैन आचार्य ही है, तमिलनाडु के 3 महान आचार्य कुन्दकुन्द,समन्तभद्र,अकलंक ने क्रमशः अध्यात्म,तर्क व न्याय के जिन ग्रन्थो की रचना की है उनके समक्ष शायद ही कोई विद्वान ग्रन्थरचना कर पाया हो। आज भी तमिल में कई स्थानो पर जैन अवशेष बिखरे मिलते है, उनका अन्वेषण आवश्यक है अगर ऐसा हुआ तो सिंधू घाटी के समान ही एक और सभ्यता भारत में मिल सकेगी
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मुनिश्री समयसागर जी मुनिराज ससंघ सतना में विराजित है। मुनिश्री समयसागर मुनिराज के पैर पर साईकिल गिरने से ऊंगली की नस कट गई है,इससे अंगुली में फेक्चर भी है, पैरो में बहुत दिक्कत है सभी से प्रार्थना है कि णमोकार मंत्र का जाप करे व मुनिश्री के शीघ्र स्वास्थ्य की भावना भाए।
मुनि समयसागर जी मुनिराज आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज के प्रथम दीक्षित शिष्य है तथा ग्रहस्थ अवस्था के छोटे भाई भी हैं.. #AcharyaVidyasagar #MuniSamaysagar
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