08.08.2018 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 08.08.2018
Updated: 09.08.2018

Update

जैन धर्म सिर्फ जैनों का ही नही
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पढ़िए: हाफिज कादरी साहेब की जैनिज्म जीवनचर्या --

★ आदिकाल करोड़ों करोड़ वर्षो से चले आ रहे श्रमण (जैन धर्म) सिर्फ जैन समुदाय की ही धरोहर नही है । जो मानव श्रमणाचार अनुसार अपना जीवन व्यतीत करें, अरिहंत भगवंतों के बताए मार्ग पर चले - वह जैन है । और अनन्त मानव जीवों ने "श्रमणाचार" अपना कर आत्मकल्याण किया है ।

★ वर्तमानकाल में भी कई अजैन समुदाय के पुण्यशाली "जैनाचरण" अपना कर इस दुर्लभ मानुष्य जीवन का " आत्मकल्याणार्थ " उपयोग कर रहे है । आइये पढ़ते है एक ऐसे ही मुस्लिम भाई की जीवनचर्या --

★ ७८ वर्ष बिकानेर निवासी मुस्लिम भाई हाफिज कादरी साहब - इन्होंने अब जैन धर्म अपनाया है । अब तक १६ अठ्ठाइ कर चुके है।और नवकारसी, चोविहार आजीवन तक का नियम लिया है और तो और मांसाहार का आजीवन का त्याग । ईद के दिन वह अपने जैन कल्याण मित्र के वहा चले जाते है l

★ ऐसा जैन धर्म है मेरा....
जहां कर्म से जैन होना ज़रूरी है । जैन धर्म न तो किसी का धर्म परिवर्तन करवाता है और न ही घर वापसी.... न ही अपना मत या धर्म किसी पर थोपता है...
जैन धर्म तो सिर्फ जीना सिखाता है!

★ श्री जैन तपागच्छीय पौषधशाला बीकानेर के प्रवचन हॉल में नियमित रूप से हाफिज कादरी साहब तशरीफ़ लाते है... और महान विद्वान श्री जम्बूविजयजी म. सा. के शिष्य श्री पन्यास प्रवर पुण्यरत्न विजयजी के अनमोल प्रवचनों को श्रवण कर धर्मलाभ प्राप्त कर रहे है l

★ अभी चातुर्मास के दिनों में जैन संघ में बहुत सारी तपस्याएँ भी चल रही है उनमें क्रमिक आयंबिल भी है..... कादरी महाशय ने घोषणा की हैं कि कल का क्रमिक आयंबिल तप वो मौन पूर्वक (पूरा दिन रात बिना किसी से वार्तालाप) करेंगे.... कादरी साहब की बहुत बहुत अनुमोदना!

★ क्या आप जानते है कि आयंबिल तप कैसे होता है? आयंबिल तप में सिमित धान्य एक बार में एक ही आसन पर बैठकर खाते है... नमक मिर्च आदि मसाले रुपी स्वाद और तेल घी आदि विगई रूप पुष्टि कारक तत्वों का निषेध होता है अर्थात उबला हुआ या रोस्ट किया हुआ भोजन ही एक ही समय में ग्रहण कर सकते है तथा पानी भी उबला हुआ वापरते है वो भी सिर्फ सूर्यास्त से पहले तक ही... रात्रि में पानी भी निषेध होता है l

★ अनुमोदना: आदरणीय हाफिज कादरी साहब की जितनी प्रशंसा - अनुमोदना की जाय वह कम है । विपरीत धर्माचरण समाज में जन्म लेकर भी इस तरह जैनाचरण को अपनाया है, वह कोई आत्मबलशाली ही अपना सकता है । यह कहावत सिद्ध होती है कि मनुष्य जन्म से नही कर्म से महान बनता है l

★ सीख: जो सिर्फ जैन नाम का उपयोग करते है और आचरण नही करते -- उनको कादरी साहेब से सीख लेनी चाहिए l

वीर प्रभु का शासन पाकर, मुक्ति सुख को पायेंगें
दुखी दुनिया सुखी बनेगी, शासन की बलिहारी है
विश्व शांति फ़ैलाने वाला, जैन धर्म हमारा है
विश्व धर्म कहलाये सो ही, जैन धर्म सितारा है
प्राणी मात्र का चंदा-सूरज, जैन धर्म हमारा है l
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🚩 जैनिज़्म: सद्-गति से परम्-गति की ओर... मानव भव जिनशासन में मिला - अर्थात् सद्-गति और अब जिनेश्वर भगवंतों द्वारा उपदेशित मार्ग (जिनवाणी) अनुसार आचरण कर इसे - परम्-गति में परिवर्तित करें - प्रयास करें - आगे बढें - पुनः मानव जन्म, स्वर्ग, महाविदेह धाम और मोक्ष मंजिल हमारा इंतजार कर रही है । शुभम् अस्तु।।

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News in Hindi

*ये बेचारे जैन: न घर के, न घाट के!

*– आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज*
• जैन बहुत लोभी होता है. उसे जहां-कहीं कुछ भी मिलने की भनक लगती है, उसके पीछे वह भागने लग जाता है! जैन की इस कमज़ोरी को सभी लोग पहचान गए हैं. यही कारण हैं कि कोई स्वामी, कोई संत, कोई यति, कोई माताजी और अनेक ढोंगी साधु लोग चमत्कारों के नाम पर जैनों को लुभाते भी रहते हैं और लूटते भी रहते हैं!

• दुनिया की बहुत पुरानी कहावत है कि जहां लोभी रहते हैं, वहां धूर्त्त कभी भूखे नहीं मरते! यह कहावत ऐसे लोभी जैनों पर पूरी तरह चरितार्थ होती है!

• *आज कितने ही ऐसे लोग जैन देवी-देवताओं के पूजन-अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं, जिनको जैन धर्म, परंपरा, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, कर्मनिर्जरा या आत्म-कल्याण से कोई लेना-देना नहीं हैं.* वे तो सिर्फ अपनी प्रसिद्धि और पैसा चाहते हैं.

• *कोई दत्त, कोई गिरी, कोई यति, कोई पंडित, कोई अम्मा, कोई माताजी, कोई नंद तो कोई शंकर..... ऐसे कितने ही नामों से जैनों को लूटने के लिये दुकानदारियां चल रही हैं.*

• उनके ऐसे अनुष्ठानों में कुछ राह भटके हुए मंदिरमार्गी पहुंच जाते हैं. लेकिन बड़ी मात्रा में स्थानकवासी-तेरापंथी भक्तगण सम्मिलित होते हैं. जिनके गुरुओं ने उनको सदैव मूर्तिपूजा से दूर रखा और अब वे जहां-तहां देवी-देवताओं को पूजने चले जाते हैं!

• कभी-कभी मैं सोचता हूं कि इससे तो अरिहंत प्रभु की मूर्तिपूजा का मार्ग लाख दर्जे अच्छा था!

• बेचारे ये जैन, न घर के रहे हैं, न घाट के! यह बात मैं किसी जैन पंथ या संप्रदाय को नीचा दिखाने के लिये नहीं लिख रहा.

• मेरा यह मानना है कि जैन धर्म के किसी भी संप्रदाय का भक्त अगर सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र का मार्ग छोड़कर, प्रलोभन में इधर-उधर भटकता है, तो निश्चय ही वह आत्मघाती कदम है. नुकसान किसी भी जैन संप्रदाय का हो, आख़िरकार वह जैन धर्म का ही नुकसान है!

*– आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज*
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Nayi Soch, Sahi Disha
(पूज्य गुरुजी की मोबाइल एप्लीकेशन)

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#जैनसंत के कहने पर #अमेरिका के राष्ट्रदूत ने हफ़्ते में एक दिन छोड़ा #माँसाहार

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