Update
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🔮❄ *अणुव्रत* ❄🔮
🎗 *संपादक* 🎗
श्री अशोक संचेती
🌀 *जून अंक* 🌀
में
💎 पढिये 💎
*अणुव्रत कहिन!*
स्तम्भ के अंतर्गत
🗯
*राष्ट्रकवि*
*रामधारी सिंह दिनकर*
की
भावपूर्ण कविता
*कोई अर्थ नही*
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*नवोदित कवि*
*श्री अशोक चोरड़िया*
की
पुरस्कृत कविता
*प्रकति पलट कर करेगी वार*
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🔅प्रेषक 🔅
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
🔅संप्रसारक🔅
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Source: © Facebook
👉 विशाखापट्टनम - स्वस्तिक आकार में भक्तामर स्तोत्र का अनुष्ठान आयोजित
👉 अहमदाबाद - किशोर मण्डल शपथ ग्रहण समारोह
👉 मानसा - जैन संस्कार विधि से सामूहिक जन्मोत्सव
👉 कटक - तेरापंथी सभा का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित
👉 श्री गंगानगर - मुनिवृंद का मंगल प्रवेश एवं स्वागत अभिनंदन कार्यक्रम आयोजित
👉 सिलीगुड़ी - तेरापंथ सभा का "शपथ ग्रहण समारोह" का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Update
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 361* 📝
*प्रभापुञ्ज आचार्य प्रभाचन्द्र*
दिगंबर परंपरा के आचार्य प्रभाचन्द्र परमार नरेश भोज की सभा के सम्मानित विद्वान् थे। भोज के उत्तराधिकारी जयसिंहदेव के शासनकाल में उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की। वे मूलतः दक्षिण के थे। मालव की राजधानी धारा नगरी उनकी विद्या भूमि थी।
*गुरु-परंपरा*
प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र ग्रंथ की प्रशस्ति के अनुसार प्रभाचंद्र के गुरु का नाम 'पद्मनन्दी सैद्धांतिक' था। श्रवणबेलगोला के संख्यक 40 के अभिलेख के अनुसार गोल्लाचार्य के शिष्य 'पद्मनन्दी सैद्धांतिक' कुलभूषण मुनि के सधर्मा तथा प्रथित तर्क ग्रंथकार, शब्दाम्भोरुह भास्कर प्रभाचंद्र के गुरु थे। इस अभिलेख में प्राप्त उल्लेखानुसार 'पद्मनन्दी सैद्धांतिक' ने बाल वय में मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। श्रवणबेलगोला अभिलेख संख्यक 55 के अनुसार प्रभाचंद्र के गुरु का नाम चतुर्मुखदेव था। इन तीनो उल्लेखों के आधार पर प्रभाचंद्र के मूलतः गुरु पद्मनन्दी सैद्धांतिक थे। चतुर्मुखदेव के साथ उनका गुरु रूप में संबंध बाद में जुड़ा।
*जीवन-वृत्त*
आचार्य प्रभाचंद्र ज्ञान पिपासु थे। विद्या ग्रहण करने के लिए वे दक्षिण से धारा नगरी में आए। वहां आचार्य माणिक्यनन्दी ने उन्हें प्रभावित किया। उन्हीं के चरणों में बैठकर आचार्य प्रभाचंद्र ज्ञान की उपासना तन्मयता से करने लगे। आचार्य माणिक्यनन्दी न्याय विद्या के प्रकांड विद्वान थे। आचार्य प्रभाचंद्र ने उनसे न्यायशास्त्र का गंभीर अध्ययन किया। आचार्य प्रभाचंद्र के न्याय विषयक ग्रंथों को पढ़ने से प्रतीत होता है वर्षों तक माणिक्यनन्दी से प्रभाचंद्र ने विद्याभ्यास किया होगा। विद्या गुरु माणिक्यनन्दी के प्रति आचार्य प्रभाचंद्र की गहरी निष्ठा थी। प्रमेयकमलमार्तण्ड जैसे उत्तम न्याय ग्रंथ की रचना करते समय कृति के मंगलाचरण पद्य में आचार्य प्रभाचंद्र भक्ति भावपूर्वक गुरु माणिक्यनन्दी का स्मरण करते हैं
*शास्त्रंकरोमि वर्मल्पतरावबोधो, माणिक्य-*
*नन्दीपदपङ्कजंसत्प्रसादात्।*
*अर्थं न किं स्फुटयति प्रकृतं लघीयाल्लोकस्य*
*भानुकरविस्फुरितादग्वाक्षः।।2।।*
माणिक्यनन्दी और आचार्य प्रभाचंद्र का साक्षात् गुरु शिष्य संबंध उक्त पद्यों से सिद्ध होता है।
*प्रभापुञ्ज आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा रचित साहित्य* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 15* 📜
*बहादुरमलजी भण्डारी*
*एक राजाज्ञा; एक पारितोषिक*
गतांक से आगे...
इस षड्यंत्र का किसी प्रकार से बहादुरमलजी भंडारी को पता लग गया। उन्होंने थोड़ी खोजबीन की तो सारी घटना सामने आ गई। उन्हें यह जानकर बड़ी चिंता हुई कि नरेश ने आज दस घुड़सवार लाडनूं की ओर भेज दिए हैं। सारी बात की व्यवस्थित जानकारी होते ही उन्होंने यथाशीघ्र लाडनूं में जयाचार्य तथा स्थानीय श्रावकों के पास उपर्युक्त घटना के समाचार पहुंचाने के लिए एक पत्र वाहक को शीघ्रगामी ऊंट पर भेजा। उसके पश्चात् वे अविलंब तैयार होकर नरेश से मिलने के लिए गए। रात हो चुकी थी। नरेश अंतःपुर में जा चुके थे। उन्होंने रात्रिकालीन परिधान भी धारण कर लिया था। उसी समय भंडारीजी ने पहुंचकर 'नाजर जी' के माध्यम से मिलने की आज्ञा मांगी। नरेश ने कहलाया कि अब तो मैं कपड़े भी बदल चुका हूं, अतः प्रातः मिल लेना। भंडारीजी ने भी तत्काल सूचना करवाई कि प्रातः कोई अन्य चाहे मिल ले परंतु भंडारी का दो शव ही मिलेगा। नरेश ने शब्दों के पीछे रहे गंभीर अर्थ की ओर ध्यान दिया और तत्काल बाहर आकर मिले।
भंडारीजी ने घुड़सवार भेजने तथा जयाचार्य को पकड़ने के आदेश पर सीधी बातचीत करते हुए कहा— "आपको किसी ने असत्य सूचना दी है। आचार्य जीतमलजी मेरे गुरु हैं। उनके विषय में मैं विश्वास दिला सकता हूं कि वे बिना आज्ञा के किसी को दीक्षित नहीं करते। आप नरेश हैं। शिकायत आने पर आप को जांच कर लेनी चाहिए थी। सीधा पकड़ने का आदेश देकर तो एक समस्या को भी निमंत्रण दिया गया है। लाखों मनुष्य उनके भक्त हैं। अवश्य ही वे उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करेंगे। आवश्यक होने पर प्राण निछावर करने में भी नहीं हिचकिचाएंगे। उस जन-मेदिनी के सम्मुख आपके दस घुड़सवार क्या टिक पाएंगे? असफलता तो इसमें मिलेगी ही, किंतु अनावश्यक ही एक पूरा समाज राज्य-विरोधी हो जाएगा।"
नरेश चिंतित हुए। समग्र विषय के रहस्य तक पहुंचते हुए उन्होंने कहा— "हमने तो उसे किसी साधारण सन्यासी की घटना समझा था। वे तुम्हारे गुरु हैं तथा प्रभावशाली जैनाचार्य हैं, इसका हमें कोई पता नहीं था। उक्त शिकायत के पीछे किसी षड्यंत्रकारी के हाथ भी हो सकते हैं, यह हमने ध्यान नहीं दिया।" नरेश में व्यग्रतापूर्वक पूछा— "जो किया जा चुका है, उसे सुधारने के लिए अब हमें क्या करना चाहिए?"
भंडारीजी ने कहा— "पूर्व आदेश पत्र को रद्द करते हुए आप दूसरा आदेश पत्र लिख दीजिए। मैं किसनमल को भेज देता हूं। आप कुछ घुड़सवारों को उसके नेतृत्व में भेजने की कृपा करिए। उन्हें आदेश दीजिए कि पहले गए हुए घुड़सवारों को नया आदेश पत्र दिखला कर मार्ग से ही वापस लौटा लाएं।" नरेश ने उसी समय स्याही और कलम मंगाई। भंडारीजी के कथानुसार नया आदेश पत्र लिखा। घुड़सवारों के नए दल को किसनमलजी के नेतृत्व में जाने का आदेश दिया। इतना कार्य पूरा कर लेने के पश्चात् नरेश से आज्ञा लेकर भंडारीजी राजमहल से वापस लौटे। उन्होंने अपने बड़े पुत्र किसनमलजी को आदेश पत्र देकर सारी स्थिति समझाई और घुड़सवारों के दूसरे दल का नेतृत्व करने के लिए भेज दिया। पूरा दल घोड़ों पर सवार होकर जब वहां से प्रस्थान कर गया, तब कहीं भंडारीजी ने सुख की सांस ली।
*क्या किसनमलजी का दल पहले गए हुए घुड़सवारों के दल को वापस लौटाने में कामयाब हो सका...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 बैंगलोर - अणुव्रत समिति की साधारण सभा का आयोजन
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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