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वाद वीवाद ही कर बैठे हैं,
भूल गए संवाद ।
अपना पंथ ही मिठा लागे
भूल गए स्यादवाद।
संकुचित भाव में डूब रहे हो
जानो यह एकांत ।
खोलो दृष्टी थोडीसी जो
दिख जाए अनेकांत ।
बीस तेरा क्या मान हैं बैठे
दृष्टी क्या पाइ?
जहाँ दिखे बस जैनी के गून
वहाँ होती खुदाई ।
🌺🌸🙏
- एक अज्ञानी
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thristy Animals.. 🌝
Update
#kundalpur Itihas:) must read पहाड़ के अंदर छुपे बड़े बाबा निकले:)) #share_pls
कुंडलपुर में 2500 साल पुरानी ऐतिहासिक बड़े बाबा यानि भगवान आदिनाथ प्रतिमा के संबंध में कई अतिशय जुड़े हुए हैं, इन अतिशय के कारण देश भर के जैन श्रावकों का सैलाब कुंडलपुर दौड़ा चला आता है। 17 जनवरी 2006 को आचार्यश्री विद्यासागर महाराज, संपूर्ण मुनि संघ व आर्यिका संघ की अटूट श्रद्धा व तपस्या के बल पर जब पुराने मंदिर से नए मंदिर के मुख्य पटल के लिए बड़े बाबा की प्रतिमा क्रेन से उठवाई गई तो उसका वजन फूल सा हो गया था, 2500 साल पुरानी प्रतिमा बगैर किसी बाधा, विघ्न के नई जगह पर विराजमान हो गई थी। जिसे वर्तमान का सबसे बड़ा अतिशय या चमत्कार माना गया था और यह भी कुंडलपुर के पिछले अतिशयों की सूची में जुड़ गया है।
सर्वाधिक ऊर्जावान क्षेत्र के नीचे विराजमानभू गर्भशास्त्रियों के मत के अनुसार बड़े बाबा जिस स्थान पर विराजमान हैं, वह स्थान भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की तरफ 56 डिग्री पर स्थित है, जो कि विश्व के सर्वाधिक उर्जावान क्षेत्रों मे से एक है। शायद इसीलिए भी गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज ने बडे बाबा की भक्ति व तपस्या से इस स्थान के चयन का संकेत कमेटी को स्थापना के काफी पूर्व ही दे दिया था।
जब व्यापारी निकलता तब लगती थी ठोकरकुंडलपुर में बड़े बाबा का प्राचीन अतिशय यह भी है कि पटेरा गांव में एक व्यापारी जब अपना सामान बेचने जाता था, तो उसको आते-जाते पहाड़ी के शिखर पर एक पत्थर से अक्सर ठोकर लग जाती थी, एक दिन चोटिल व्यापारी ने उस पत्थर को हटाने का मन बनाया, उसने काफी कोशिश की, लेकिन वह टस का मस नहीं हुआ। उसने ग्रामीणजनों का सहयोग भी लिया, लेकिन कुछ भी हल नही निकला, उसी रात स्वप्न में आया एक देव उससे कह रहे हैं कि यह पत्थर नहीं है, बल्कि तीर्थंकर की प्रतिमा है उसे हटाने की नहीं बल्कि उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कराने का प्रबंध करो।
कल तुम गाड़ी लेकर आना, गाड़ी पर प्रतिमा अपने आप रख जाएगी। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना यदि देख लिया तो प्रतिमा वहीं रख जाएगी। व्यापारी अगले दिन गाड़ी लेकर पहुंचा। जिसमें अपने आप प्रतिमा रख गई। जब वह पटेरा की ओर चलने लगा तो उसे देवताओं का गायन सुनाई दे रहा था। उसकी उत्सुकता उसे रोक नहीं सकी। उसने पीछे मुड़कर देख लिया। उसी समय गाड़ी रुक गई और मूर्ति वहीं प्रतिष्ठित हो गई। इसके बाद कालांतर में यह प्रतिमा भी दब गई थी।
जिसे आचार्य सुरेंद्र कीर्ति ने मलबा हटाकर खोजा था और उनके शिष्य सुंचदकीर्तिजी व नेमीसागरजी ने छत्रसाल के सहयोग से एक मंदिर का निर्माण कराया था, जो वर्ष 2006 तक रहा इसके बाद नए स्थान पर प्रतिमा की स्थापना की गई तो उसका वजन फूल के समान हो गया था। अब एक विशाल मंदिर आकार ले रहा है जो राजस्थान शैली का होने के साथ ही जिले का एक मात्र कलात्मक मंदिर बन जाएगा।
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देवगढ़ के आदिनाथ भगवान... ☺️🙏
नृत्य करण को आई अप्सरा, अंजन खूब लगाया, नीलांजना की मृत्यु देखि, मन वैराग्य जगाया! त्याग दिया घर-बार प्रभु ने, चले शिखर कैलाश, अष्टापद तेरे चरण कमल का, अब तक वहा प्रकाश!
क्या आपको पता है.... सबसे पहले केवलज्ञान आदिदेव श्री वृषभदेव स्वामी को प्राप्त हुई..क्योकि उनसे पहले तो मुनि परंपरा थी ही नहीं..उनको केवलज्ञान हुआ...फिर उनके उपदेश से जीवो ने मुनि पद को अंगीकार किया...भगवान आदिनाथ जी तीसरे काल में ही मोक्ष चले गए..वैसे तो चोथे काल में ही मोक्ष होता है...लेकिन हुन्डावसर्पिनी काल दोष के कारण ऐसा हुआ...भरत जी को [ वृषभदेव जी के पुत्र ] - भरत जी एक मात्र ऐसे मुनिराज थे...जिनको मुनि अवस्था में किसी ने नहीं देखा...आदिनाथ भगवान का प्रथम आहार राजा श्रेयांस के यहाँ पर हुआ था..आदिनाथ भगवान् 6 महीने के बाद तो आहार के लिए निकले..लेकिन...आहार विधि कोई नहीं जाने के कारण उनका आहार 7 महीने 8 दिन तक आहार ही नहीं हुआ तो कुल 13 महीने 8 दिन के बाद ही आहार हुआ...कारण - उनका पूर्व कृत कर्म उदय जो उन्होंने गाय के मुख पर छींका बाँधने का उपदेश दिया था...जिसके कारण से गाय को भूखा रहना पड़ा था....अब सोचो कहा गया वो इंद्र जिसने सुमेरु पर्वत पर अभिषेक किया था...इन बालक आदिनाथ का..बस एक बात बोलनी पड़ेगी "कर्म-बंध"!
प्राचीन ग्रंथो में उल्लेख है कि तीर्थंकर ऋषभदेव के ब्राह्मी और सुंदरी दो पुत्रिया थी! बाल्यअवस्था में वे ऋषभदेव कि गोद में जाकर बैठ गई! ऋषभदेव ने उनके विद्याग्रहण का काल जानकर उन्हें लिपि और अंको का ज्ञान दिया! ब्राह्मी दायी-और तथा सुंदरी बायीं-और बैठी थी! ब्राह्मी को वर्णमाला का बोध कराने के कारण लिपि बायीं और से लिखी जाती है! सुंदरी को अंक का बोध कराने के कारण अंक दायी से बायीं और इकाई, दहाई....के रूप में लिखे जाते है! ऋषभदेव ने सर्वप्रथम ब्राह्मी को वर्णमाला का बोध कराया था, इसी कारण सभी भाषा वैज्ञानिक एकमत से स्वीकार करते है कि विश्व कि प्राचीनतम लिपि ब्राह्मी है!
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#देवकृत_अभिषेक #shareMaximum
आरौन जिला गुना मध्यप्रदेश स्थित श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आज दिनाँक प्रातः से मूल नायक श्री शांतिनाथ जी की प्रतिमा का देवकृत अभिषेक हो रहा है । जैसे ही श्रद्धालुओं को इस घटना की जानकारी मिली तो इस घटना का साक्षी बनने के लिये लोगों का ताँता लग गया । अभिषेक अभी भी जारी है ।
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News in Hindi
अनियत बिहारी कहे जाने वाले गुरु महाराज आचार्य श्री के शिष्य भी अनियत विहारी होते है और आज मुनि श्री प्रणम्य सागर जी एवं वीर सागर जी ससंघ अचानक से कृष्णा नगर जैन मंदिर से ऋषभ विहार मंदिर जी की ओर विहार कर दिया!!
पंच ऋषि राज ऋषभ विहार में ज्येष्ठ महाराज जी के सानिध्य में स्वाध्याय करते हुए!!!
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