13.04.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 13.04.2018
Updated: 30.04.2018

Update

https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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*14/04/2018 मुनि वृन्द एवं साध्वी वृन्द के दक्षिण भारत में सम्भावित विहार/ प्रवास सबंधित सूचना*
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री धर्मरूचि जी ठाणा 4* का प्रवास
*अशोक जी कटारिया*
25-Chari street
*T Nager-Chennai -17*
*Near croma center*
☎9884200325,8910991981
9841023500
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री मुनिसुव्रत कुमार जी ठाणा* 2 का प्रवास
*गोतम कुमार जी सेठीया*
43/1 गोपाल पिल्लैयार कोइल स्ट्रीट
*तिरुवन्नामलाई*
☎9108075692,
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*सुबह का प्रवास*
लादूलाल जी अरिहन्त जी कावड़िया
#46, 1st floor, pipeline service road
Vijaynagar, bangalore-40
9845268031,9480168100
*शाम एवं रात्रि प्रवास*
राजेन्द्र कुमार जी श्रेयांश जी गोलछा
#30 Sushila sadan, 2nd floor,B Krishanappa layout 12th A cross 1st B main Hampinagar, Rpc layout Bangalore 40
(Behind bansuri sweets club road)
☎9886083062
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 5* का प्रवास

*संतोषजी विशालजी संचेती*
*Sunguvarchatram*
☎8107033307,9940290002
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य डॉ *मुनि श्री अमृत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*पिलीकौधा से 9.5 km का विहार करके तेरापंथ भवन गुडियातम पधारेगे*
(वेलूर- गुडियातम रोड)
☎9566296874,
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*कल्याण मंडप से विहार करके वीणा ग्रेनाइट अंजीबाबु की फेक्द्री मांतुर गॉव मे पधारेगे*
(विजयवाड़ा -चेन्नई रोड)
☎8085400108,7000790899
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*Coimbatore*
☎9629588016,9894733461
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितीय' ठाणा ५* का प्रवास
*श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा भवन*
*साहूकारपेट चेन्नई*
☎8890788494
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या "शासन श्री" साध्वी श्री यशोमती जी ठाणा 4* का प्रवास
*लालचंद जी मेहता*
33 Lal nivas,3rd cross street
M K B nagar Chennai
☎9290516171,7044937375
9840221600
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री कंचनप्रभा जी का प्रवास*
*सुरेश जी भुतेड़िया के निवास स्थान पर*
*Upahar Darshini Hotel Ke Samne*
*3RD Block Jaynager*
*Bangalore*
☎9784755524
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री राकेश कुमारी जी (बायतु) ठाणा 4* का प्रवास
*बाईकारावपेट से 10 किलोमीटर का विहार करके बाबा रामदेव मंदिर तुनी पधारेगे*
(विशाखापट्टनम- विजयवाड़ा रोड)
☎9959037737
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री विमलप्रज्ञा जी ठाणा 6* का प्रवास
*औगोल से 11 कि.मी. का विहार करके Velluruamma* *Tempal village velluru*
*पधारेंगे*
(विजयवाड़ा- चेन्नई रोड)
☎9051582096,9123032136
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रमिला कुमारी जी ठाणा 5* का प्रवास
*लक्ष्मीपत जी कोठारी*
Kothari nivas Lalithanagar Nager
*Visakhapatnam*
☎:9014491997,8290317048
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*संघ संवाद+ संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4* का प्रवास
*श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा भवन*
*साहूकारपेट Chenni*
☎8428020772,
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञा श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*चन्द्रप्रकाश जी दुगड के निवास स्थान पर*
*वाणियम्वाडी*
(बेंगलुरु- चेन्नई रोड)
☎9443235611
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिस्या साध्वी श्री सुर्दशना श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*पारस गार्डन रायचुर*
☎9845123211,8830043723
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*संघ संवाद + संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3* का प्रवास
*गुडलपेट से 12 km का विहार करके ITI College बेगुर पधारेगे*
(ऊटी - मैसूर रोड)
☎9448385582
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*संध संवाद*+ *संध संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मधुस्मिता जी ठाणा 6* का प्रवास
*सुरेश जी भुतेड़िया के निवास स्थान पर*
*Upahar Darshini Hotel Ke Samne*
*3RD Block Jaynager*
*Bangalore* (कर्नाटक)
☎7798028703
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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📲 *जितेन्द्र घोषल*: 9844295823
📲 *मंजु गेलडा*: 9841453611
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*प्रस्तुति:- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Source: © Facebook

Sangh Samvad
News, photos, posts, columns, blogs, audio, videos, magazines, bulletins etc.. regarding Jainism and it's reformist fast developing sect. - "Terapanth".

👉 अलीराजपुर: मध्यप्रदेश - आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के नवम महाप्रयाण दिवस का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

📢 *नवीन चातुर्मास घोषणा* 📢
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*परम् पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी* ने महती कृपा कर *मुनि श्री दर्शन कुमारजी एवं मुनिश्री स्वास्तिक कुमारजी* का *सन 2018* का *सयुंक्त चातुर्मास बालोतरा* फरमाया है ।

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

♦ *20) आचार्यश्री महाश्रमण के जीवन प्रसंग*

सन 2015 में विराटनगर चतुर्मास के दौरान एक प्रौढ़ व्यक्ति अपने परिजनों के साथ पूज्यवर की सेवा में उपस्थित हुए। सेवा के दौरान उनकी पौत्री ने भावविभोर स्वर में पूज्यप्रवर से पूछा--'गुरुदेव! आप मेरे पत्र पढ़ते हो क्या?'

आचार्यप्रवर ने पूछा--'कौन से पत्र?'

इस पर वह अपनी बात स्पष्ट करते हुए बोली-- 'गुरुदेव! मेरे जीवन में जब भी कोई समस्या आती है, या असमंजस की स्थिति होती है, तब मैं आपके नाम एक पत्र लिखती हूं और आप से उसका समाधान मांगती हूं। वह पत्र मैं अपने पास ही रखती हूं, किंतु मुझे एक-दो दिन में उसका समाधान मिल जाता है। या तो सपने में अथवा किसी के द्वारा मुझे उसका समाधान मिल जाता जाता है। एक-दो बार नहीं अनेक बार ऐसा हुआ है। प्लीज गुरुदेव! बताओ ना, आप मेरे पत्र पढ़ते हो ना?'

उस बहन की आंखों से ढुलकते आंसू मानों श्रीचरणों में कृतज्ञता अर्पित कर रहे थे। आचार्यवर ने मंद मुस्कान से ही उसे समाहित किया। इस दृश्य को देखने वाले दर्शक नतमस्तक थे समाधान प्रदाता पूज्यचरणों में।

🌸 *अभिवन्दना के सुनहरे अवसर* 🌸

*आचार्यश्री महाश्रमण 57वां जन्मदिवस*
24 अप्रेल 2018

*आचार्यश्री महाश्रमण 9वां पदाभिषेक दिवस*
25 अप्रेल 2018

*आचार्यश्री महाश्रमण 45वां दीक्षा दिवस*
29 अप्रेल 2018

*वन्दन* 🙏🏼 *अभिवन्दन* 🙏🏼 *अभिनन्दन*

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 303* 📝

*वरिष्ठ विद्वान् आचार्य बप्पभट्टि*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

एक बाहर की घटना है। बप्पभट्टि बहिर्भूमि गए। अतिवृष्टि के कारण उन्हें देव मंदिर में रुकना पड़ा। वहां इतर नगर से समागत एक प्रबुद्ध व्यक्ति से उनका मिलना हुआ। वह व्यक्ति विशेष प्रभावी परिलक्षित हो रहा था। उसे मुनि बप्पभट्टि से प्रसाद गुणसंपन्न गंभीर काव्य के श्रवण का आस्वाद प्राप्त हुआ। वह बप्पभट्टि की व्याख्या शक्ति से प्रसन्न हुआ और वर्षा रुकने पर उन्हीं के साथ धर्म स्थान पर आ गया। आचार्य सिद्धसेन ने उससे पूछा "तुम कौन हो?" उसने कहा "कान्यकुब्ज देश के अंतर्गत गोपालगिरि नगर के राजा यशोवर्मा का पुत्र हूं। मेरी माता का नाम सुयशा है। मैं योवन से उन्मत्त होकर विपुल धन का व्यय करता था। मेरी इस आदत से प्रकुपित पिता ने मुझे शिक्षा दी 'वत्स! मितव्ययी भव' वत्स! मितव्ययी बन। पिता की यह शिक्षा मुझे नीम की तरह कटु लगी मैं उनसे रुष्ट होकर घर से निकला और इतस्ततः चक्कर लगाता यहां आ पहुंचा हूं।" गुरु के द्वारा नाम पूछने पर उसने खटिका से लिखकर बताया 'आम'। आम का यह व्यवहार देखकर गुरु को लगा यह कोई पुण्य पुरुष है।

आम भी आचार्य सिद्धसेन से प्रभावित हुआ। गुरु के आदेश से उसने मुनि बप्पभट्टि से बहत्तर कलाओं का प्रशिक्षण पाया। लक्षण और तर्क प्रधान ग्रंथों को पढ़ा। धीरे-धीरे बप्पभट्टि के साथ आम की प्रीति अस्थि-मज्जा की भांति सुदृढ़ हो गई।

*आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण।*
*ह्रस्वा पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।*
*दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना*
*छायेव मैत्री खल सज्जनानाम्।।4।।*
*(प्रबंधकोश, पृष्ठ 28)*

खल मनुष्यों की प्रीति प्रभातकालीन छाया की भांति क्रमशः घटती जाती है, और सज्जन मनुष्यों की प्रीति मध्याह्नोतर छाया की भांति क्रमशः बढ़ती जाती है।

आम और बप्पभट्टि की प्रीति दिन-प्रतिदिन गहरी होती गई। कुछ काल के बाद राजा यशोवर्मा असाध्य बीमारी से आक्रांत हो गया। उसने पट्टाभिषेक के लिए प्रधान पुरुषों के साथ आम कुमार को लौट आने का निमंत्रण भेजा। आम की इच्छा न होते हुए भी राजपुरुष उसे ले आए। पिता-पुत्र का मिलन हुआ। पिता ने पुत्र को सवाष्प नयनों से देखा, गाढ़े आलिंगन के साथ गदगद स्वर में उपालंभ भी दिया।

औपचारिक व्यवहार के बाद यशोवर्मा ने प्रजा पालन का प्रशिक्षण पुत्र को दिया और शुभ मुहूर्त्त में आम का राज्याभिषेक हुआ। राज्य चिंता से मुक्त होकर यशोवर्मा धर्म चिंतन में लगे। जीवन के अंतिम समय में अरिहंत, सिद्ध और साधु त्रिविध शरण को ग्रहण करते हुए उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

आम ने उनका और और्ध्वदेहिक संस्कार किया। राज्यारोहण के अवसर पर प्रजा को विपुल दान दिया। आम को किसी प्रकार की चिंता नहीं थी। प्रजा सुखी थी। किंतु परम मित्र मुनि बप्पभट्टि के बिना नरेश आम को अपनी संपन्नता पलाल-पुल तुल्य निस्सार लग रही थी।

*क्या राजा आम बप्पभट्टि से पुनः मिल पाया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 127* 📝

*चैनरूपजी दुगड़*

*पद-यात्रा*

उस युग में थली से बंगाल तक लंबी यात्रा करना आज की तरह सरल कार्य नहीं था। राजस्थान के देशी राज्यों में रेलवे ने प्रवेश नहीं पाया था। स्थानीय लोग ऊंट या बैलियों पर यात्रा क्या करते थे। चैनरूपजी के लिए अपनी सुविधा के लिए इतना व्यय कर पाना भी संभव नहीं था। उन्होंने पैदल ही यात्रा करने का निश्चय किया। मार्ग में भोजन व्यय के लिए जो थोड़े से पैसे जुटा पाए थे, उन्हीं के बल पर उन्होंने अपनी यात्रा प्रारंभ की। भर्तृहरि का यह कथन उन्होंने सर्वथा सत्य सिद्ध कर दिया कि मनस्वी व्यक्ति कार्य प्रारंभ करने के पश्चात् दुःख-सुख की कोई परवाह नहीं करता। वह अपनी धुन के अत्यंत पक्के व्यक्ति थे। इसीलिए मार्ग के विविध कष्टों का सामना करते हुए लगभग साढ़े तीन महीनों तक निरंतर चल कर वे सम्वत् 1905 में बंगाल की राजधानी कलकत्ता में पहुंचे।

*लाभ और उसका विभाजन*

कलकत्ता पहुंचने के पश्चात् उन्हें मालूम हुआ कि यहां की अपेक्षा मुर्शिदाबाद में कार्य की अधिक सुविधा होगी। वे वहां जाकर कार्य करने लगे। चार वर्ष तक वहां कार्य करने के पश्चात् वे पुनः कलकत्ता आ गए और दलाली का कार्य करने लगे। दो वर्ष पश्चात् एक सरावगी के साथ मिलकर उन्होंने रानी कोठी के नीचे कपड़े की दुकान कर ली। सम्वत् 1905 से 1915 तक के दस वर्षों के अपने प्रथम यात्रा काल में उन्होंने दस हजार रुपयों का विशुद्ध लाभ प्राप्त किया।

धनोपार्जन करके वे पुनः सरदारशहर लौट आए। वहां उनके तीन भाई और थे। अपनी कमाई के दस हजार रुपयों में से उन्होंने प्रत्येक भाई को दो-दो हजार रुपये दिए। अपने लिए भी उन्होंने दो हजार रुपये रखे। शेष दो हजार रुपयों में से एक हजार से मकान बनवाया और एक हजार रुपये अपने विवाह के लिए पृथक रखे। विवाह किया और उस बार वे तीन वर्ष तक सरदारशहर में रहे। उसके पश्चात् पुनः कलकत्ता चले गए।

*थाली-लोटा*

इस बार उन्होंने कलकत्ता की सुतापट्टी में अपनी स्वतंत्र दुकान कर ली। उससे उन्हें अच्छा लाभ मिलने लगा। लाभ बढ़ा तो व्यापार भी बढ़ा। दुकान में अधिक पूंजी लगने लगी। फलतः कपड़े का संग्रह भी अधिक रहने लगा। इसी बीच सम्वत् 1921 और 22 में कपड़े के बाजार में बड़ी भारी मंदी आ गई। उस समय के भावों से माल बेच देने पर इतना घाटा हो जाने वाला था कि पास में कुछ भी संपत्ति नहीं बच पाए। उस स्थिति में सभी बड़े व्यापारी चिंताग्रस्त थे। चैनरूपजी ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी आकृति पर चिंता की रेखाएं नहीं उभरीं।

एक दिन व्यक्ति ने उनसे पूछ ही लिया— "चैनरूपजी! बाजार जब इतना नीचे जा चुका है तब भी तुम इतने निश्चिंत कैसे बने हुए हो? क्या तुम्हें घाटा नहीं हो रहा?"

चैनरूपजी ने सहज भाव से मुस्कुराते हुए कहा— चैना केवल थाली-लोटा लेकर यहां आया था। वह जब तक उसके पास बचा रहेगा तब तक घाटा कैसा? व्यापार में मंदी और तेजी तो आती ही रहती है।"

मंदी के उस समय में साहस और धैर्य से काम लिया। दुकान में जो माल था उसको उन्होंने रोके रखा। बाद में जब तेजी आई तब संभावित घाटा समाप्त हुआ ही, उल्टा उससे उन्होंने लाभ प्राप्त किया। ऐसे विकट अवसरों पर पूर्ण रूप से धैर्य रखते हुए शुभ की प्रतीक्षा करना साधारणतया सबके लिए सहज नहीं होता।

*श्रावक चैनरूपजी दुगड़ की कुछ विशेषताओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ नवम महाप्रयाण दिवस आयोजित कार्यक्रम*

🔹जयनगर (बेंगलुरु)
🔹पट्टालम, चेन्नई
🔹 कोयम्बत्तूर
🔹 सेलम
🔹 हिसार
🔹 लाछुड़ा
🔹शाहीबाग (अहमदाबाद)
🔹जयपुर
🔹जयपुर (मिलाप भवन)
🔹हुबली
🔹बठिंडा
🔹 कालू

👉 साउथ हावड़ा - तपस्वी बहनों का सामूहिक अभिनन्दन का कार्यक्रम आयोजित
👉 सादुलपुर - "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान" एवं "बिजली पानी बचाओ" पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन
👉 वड़ोदरा - निर्माण एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर
👉 दिल्ली - योग प्राण विद्या क्लास का आयोजन
👉 बारडोली - अणुव्रत समिति द्वारा सेवा कार्य

. प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 302* 📝

*वरिष्ठ विद्वान् आचार्य बप्पभट्टि*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

आचार्य सिद्धसेन व्यक्ति के पारखी थे। वे आकृति को देखकर उसके व्यक्तित्व को पहचान लेते थे। आचार्य सिद्धसेन ने बालक को देखकर चिंतन किया *"अहो दिव्यरत्नं न मानवमात्रोऽयं"* यह सामान्य बालक नहीं, दिव्य रत्न है। *"तेजसा हि न वयः समीक्ष्यते"* तेजस्विता का वय से कोई अनुबंध नहीं है। आचार्य सिद्धसेन ने बालक से कहा "वत्स! हमारे पास रहो। संतों का आवास घर से भी सुखकर होता है। विकस्वर सरोरुह पर अलि का मुग्ध होना स्वाभाविक है। सूरपाल गुरु से बोध प्राप्त कर उनके पास रहने लगे। आचार्य सिद्धसेन बालक को लेकर अपने स्थान पर आए। उसकी भव्य आकृति को देखकर श्रमणों को प्रसन्नता हुई। गुरु ने उसे अध्यात्म प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया।

बालक तीव्र प्रज्ञा का धनी था। उसे श्रवण मात्र से पाठ याद हो जाता था। एक दिन में सूरपाल ने सहस्र श्लोक कंठस्थ कर सबको विस्मयाभिभूत कर दिया। बालक कि शीघ्रग्राही मेधा से गुरु को अत्यंत प्रसन्नता हुई। उन्हें लगा जैसे योग्य पुत्र को उपलब्ध कर पिता धन्य हो जाता है, उसी प्रकार हम योग्य शिष्य को पाकर धन्य हो गए। पुण्य संचय से ही ऐसे शिष्य रत्नों की प्राप्ति होती है।

शिष्य परिवार से परिवृत सिद्धसेन डुम्बाउधी ग्राम में गए। बालक सूरपाल भी उनके साथ था। डुम्बाउधी सूरपाल की जन्मभूमि थी। राजा बप्प और भट्टि दोनों मुनिजनों को वंदन करने आए। आचार्य सिद्धसेन ने उनको उद्बोध देते हुए कहा "संसार अवकर में अनेक पुत्र कृमि की भांति पैदा होते हैं। उनसे क्या? तुम्हारा पुत्र धन्य है। वह व्रत धर्म को स्वीकार करना चाहता है। तुम इस पुत्र का धर्मसंघ के लिए दान कर महान् धर्म की आराधना करो। भवार्णव से तैरने की भावना रखता हुआ तुम्हारा पुत्र श्लाघनीय है।"

पुत्र के दीक्षा ग्रहण की बात सुनकर माता-पिता उदास हो गए। वे बोले "हमारे घर में यह एक ही कुलदीप है। उसे हम आपको कैसे प्रदान कर सकते हैं?"

मोह का बंध माता-पिता में जितना सघन था उतना सूरपाल में नहीं था। धर्मगुरुओं के पास रहने के कारण उसका मोह और भी तरल हो गया था। उसने सबके सामने अपने विचार स्पष्ट करे "मैं चारित्र पर्याय को अवश्य स्वीकार करूंगा।" पुत्र की निश्चयकारी भाषा से माता-पिता को अपने विचार बदलने पड़े। सुत को गुरु चरणों में समर्पित करते हुए उन्होंने निवेदन किया "आर्य! आप इसे ग्रहण करें और इसका नाम बप्पभट्टि रखें। इससे हमारा नाम भी विश्रुत होगा।

आचार्य सिद्धसेन को बप्पभट्टि नाम रखने में कोई बाधा नहीं थी। उन्होंने अभिभावकों की आज्ञा से वीर निर्वाण 1277 (विक्रम संवत् 807) वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन गुरुवार को मोढ़ेरक ग्राम में उसे दीक्षा प्रदान की। मुनि जीवन में सूरपाल का नाम भद्रकीर्ति रखा गया। बप्पभट्टि नाम उनका विशेष प्रसिद्ध हुआ। यह नाम मां-बाप की प्रार्थना पर गुरु ने पहले ही स्वीकार कर लिया था। संघ की प्रार्थना से आचार्य सिद्धसेन ने वह चातुर्मास वहीं किया।

*श्रमण बप्पभट्टि के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 126* 📝

*लच्छीरामजी बैद*

*कार्य की खोज में*

चैनरूपजी दुगड़ सरदारशहर निवासी थे। उनका जन्म 1884 के आसपास हुआ। वे एक महान् अध्यवसायी और कर्मठ व्यक्ति थे। स्वयं के कर्तृत्व बल पर ही ऊपर उठकर उन्होंने साधारणता से असाधारणता प्राप्त की। उनके पिता फतेहचंदजी की आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी। अतः उन्हें अपने बाल्यावस्था अत्यंत गरीबी में गुजारनी पड़ी। आर्थिक आवश्यकता ने उनको बचपन से ही मजदूरी करने को विवश कर दिया। मूलतः वे तोलियासर गांव के निवासी थे कार्य की खोज में ही वे सरदारशहर आ बसे थे।

अध्ययन के नाम पर उन्हें अति साधारण अक्षर ज्ञान से आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। वणिग् जाति में उस समय अध्ययन के विषय में कोई विशेष जागरूकता नहीं थी। संपन्न व्यक्तियों के बालकों में भी सहस्रों में कोई एक अपवादस्वरूप ही सामान्य ज्ञान से आगे बढ़ पाता था। फिर निर्धन परिवार के बालकों के लिए तो उस क्षेत्र में कोई अवसर ही नहीं था। अपने परिवार की विपन्नावस्था और विद्या विषयक सामाजिक उदासीनता के युग में चैनरूपजी ने जो अक्षर ज्ञान प्राप्त कर लिया था वह भी कोई कम बात नहीं थी। उन जैसे सहस्रों बालक उस समय प्रायः निरक्षर ही रह जाया करते थे।

*करणी की चोट*

एक श्रमिक जीवन बिताते हुए युवक चैनरूपजी को कठोर श्रम करना पड़ता था। उनके पास कोई स्थाई कार्य नहीं था। जब जो कार्य मिल जाता वे उसे ही अपना सौभाग्य मानकर पूरे तन-मन से उसमें जुट जाते। एक बार किसी स्थानीय सेठ की हवेली बन रही थी। चैनरूपजी को उसमें काम मिल गया। एक दिन वे गारे की तगारियां भर-भरकर राजमिस्त्री के पास पहुंचा रहे थे। न जाने मिस्त्री जितनी शीघ्रता से चाहता था वे इतनी शीघ्रता से गारा नहीं पहुंचा पाए या वह जैसा गारा गाढ़ा या पतला चाहता था वैसा नहीं पहुंचा पाए कि वह उन पर चिढ़ गया। उसने गालियां निकाली और बुरा भला कहा। उस अपमान से चिढ़कर चैनरूपजी ने भी कुछ खरी खोटी सुनाई और गालियों का प्रतिवाद किया। एक मजदूर के उस दुस्साहस से मिस्त्री और भी चिढ़ गया। क्रोध के आवेश में उसने उनके सर पर 'करणी' दे मारी। घाव हो गया और रक्त बहने लगा।

चैनरूपजी उस समय इक्कीस वर्ष के युवा व्यक्ति थे। राजमिस्त्री के द्वारा किया गया शाब्दिक अपमान तो वे ज्यो-त्यों सह जाते, पर वह चोट उनके लिए असह्य बन गई। उसने सिर से भी गहरा उनके मन पर घाव कर दिया। उन्होंने तगारी को उठाकर दूर फेंक दिया और सीधे अपने घर चले गए। उनके स्वाभिमान ने सदा के लिए मजदूरी को नमस्कार कर लिया। घर की आवश्यकताएं ऐसी थीं कि मजदूरी के बिना कुछ दिन के लिए निभाना भी कठिन था और उनका निर्णय यह था कि वे अब कभी मजदूरी नहीं करेंगे। विचारों और विवशताओं के उस संघर्ष में अंततः विचारों की विजय हुई। महत्तवाकांक्षी चैनरूपजी ने घरवालों को अपना निश्चय जतलाते हुए कहा— "मैं बंगाल जाऊंगा और वहां पर व्यापार प्रारंभ करूंगा। सरदारशहर के अनेक परिवार वहां जाकर धनी बन गए हैं तो मैं भी बन सकता हूं।"

*चैनरूपजी दुगड़ बंगाल जा कर धनी कैसे बने और वहां कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

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