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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
योगी को नहीं, अयोगी को मिलती है मुक्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
- लगभग 15 किमी का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे विषम कटक
26.03.2018 विषम कटक, रायगढ़ा (ओड़िशा)ः
धरती पर यदा-कदा महापुरुषों का आगमन होता रहता है जो मानों इस धरती का सौभाग्य होता है। वे पर कल्याण करने वाले होते हैं। आदमी को परोपकारी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी का मन ही ज्यादा पाप कराने वाला और मन ही ज्यादा पुण्य का अर्जन कराने वाला होता है। इसलिए मनुष्य ही सबसे अधोगति को प्राप्त कर सकता है तो मनुष्य ही सर्वोत्कृष्ट उच्च गति को भी प्राप्त कर सकता है। आदमी को मन, वचन और काय पाप करने से बचने का प्रयास करना चाहिए तथा मन, वचन और काया की प्रवृत्ति शुभ योग में रखने का प्रयास करना चाहिए। योगी को नहीं, अयोगी को मुक्ति मिलती है। मन, वचन और काया से अयोग होने की अवस्था में ही मुक्ति का वरण हो सकता है। उक्त आध्यात्मिक प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रायगढ़ा जिले के विषकटक में स्थित डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट आॅफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग में उपस्थित श्रद्धालुओं, विद्यार्थियों और ग्रामीणों को प्रदान की।
पश्चिम ओड़िशा के पहाड़ी इलाकों में मानवता की ज्योति जागते हुए महापतस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विहरणमान हैं। मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक नजर आने वाले पहाड़ों की श्रृंखलाएं मानों वर्तमान में अहिंसा यात्रा में सहभागिता निभाते हुए साथ-साथ चल रहे हैं। वहीं महातपस्वी की अभिवन्दना में तेज हवाओं के साथ वृक्षों की शाखाओं से गिरते पत्ते भी मानों महातपस्वी के चरणरज को पान स्वयं को कृतार्थ होने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। अपनी मोहक मुस्कान से जन-जन को मोहित करने वाले महातपस्वी आचार्यश्री की पावन प्रेरणा मानों इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को स्वतः ही अपने ओर आकर्षित करती है, वे आचार्यश्री के दर्शन और पावन प्रवचन श्रवण को खिंचे चले आते हैं।
ोमवार को अखंड परिव्राजक आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ मुनीगुड़ा से मंगल प्रस्थान किया। श्रद्धालुओं को पावन आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ चले। पहाड़ी घुमावदार मार्गों पर लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर रायगढ़ा जिले के विषमकटक में स्थित डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट आॅफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के परिसर में पधारे तो इस ट्रेनिंग सेंटर के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री की अभिवन्दना में अपने वाद्ययत्रों के साथ आचार्यश्री का मंगल स्वागत किया। साथ ही कतारबद्ध और करबद्ध खड़े शिक्षकों आदि ने भी आचार्यश्री की अभिवन्दना की तो आचार्यश्री ने सभी को आशीष प्रदान की।
इसके उपरान्त विद्यालय परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मन योग, वचन योग और काय योग को शुभ और शुद्ध बनाए रखने की पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मन में बुरा सोचने का प्रयास नहीं करना चाहिए। मन को ध्यान आदि में नियोजित करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने वचन से गाली देना या गलत बोलना अशुभ और मंत्रों का जप व आगम वाचन शुभ योग होता है। आदमी को अपनी काया को भी किसी की पवित्र सेवा, और दूसरों का कल्याण में लगाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों लोगों को अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार कराई। सुश्री चांदनी अग्रवाल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रीमती हर्षिता आदि ने स्वागत गीत का संगान किया। इसके उपरान्त विद्यालय के प्रिन्सिपल श्री जुगलकिशोर मिश्र ने आचार्यश्री का अभिनन्दन करते हुए कहा कि आचार्यश्री! आपका हमारे इस ट्रेनिंग परिसर में पदार्पण मेरी कल्पना से परे है। मैं आपकी किन शब्दों में करूं। आपकी यह प्रेरणा प्राप्त करने वाले हमारे छात्र-छात्राएं आपकी प्रेरणा को दूर-दूर तक पहुंचाएंगे।