04.01.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 04.01.2018
Updated: 05.01.2018

Update

Disputed Site @ Ayodhya -Hanuman Garhi @ Sita Ki Rasoi #TIMESOFINDIA -जब भारतीय पुरातत्व विभाग ने खुदाई ओर जाँच की तो वहाँ जैन धर्म से सम्बंधित रखने वाले छोटी मूर्तियाँ तथा सिक्के आदि चीज़ें प्राप्त हुई थी ओर आश्चर्य हैं की वह भगवान राम, सीता, लक्षमन, हनुमान आदि से सम्बंध रखने वाले कोई भी चीज़ प्राप्त नहीं हुए smile emoticon:) इससे कम से कम इतना कह सकते हैं जैन धर्म कितना पुराना हैं जो जितना पुराना उसकी उतना orginal & true होने की बात दम बढ़ जाता हैं smile emoticon:)) #Ayodhya #JainismAyodhya #AncientJainism #AntiquityofJainism

The figurine (छोटी मूर्ति) according to Lal, turned out to be the oldest Jain figurine found in India at the time. Keeping this key discovery of the Jain terracotta figurine in mind, coupled with the consideration that the antiquity of the Hanuman Garhi site and the disputed site at Ayodhya are the same, the question that now arises, is whether it is the Jains who can claim a˜first righta™ over Ayodhya?

Whatever may be the outcome, the fact remains that in the entire Ayodhya region where excavations have been undertaken by the ASI since 1975 a" at the disputed site, at Hanuman Garhi and Sita-ki-Rasoi a" despite the discovery of numerous coins and terracotta figurines of varied antiquity, none of them are connected to Rama Sita or Laxman, or Dashratha. And most significantly, no terracotta figurine or idol of Ram, Sita, or Laxman belonging to any vintage, was found by the ASI at the disputed site.

Times of India link: http://m.timesofindia.com/india/Digging-doubts-II-Jain-figurines-found-but-no-Ram/articleshow/153359.cms

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अतिशय क्षेत्र बड़ागाँव में रच गया इतिहास
एलाचार्य अतिवीर जी के सान्निध्य में हुआ भव्य कार्यक्रम -New Year 2018 Celebration

उत्तर प्रदेश की धर्मपरायण नगरी बागपत जिले के अतिशय क्षेत्र बड़ागाँव में नव-वर्ष के मंगल आगमन पर ऐतिहासिक कार्यक्रम नवप्रभात महोत्सव का विराट आयोजन दिनांक 1 जनवरी 2018 को भव्य रूप से किया गया| त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के प्रियाग्र शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के निर्देशन, आशीर्वाद व सान्निध्य में इस अनूठे कार्यक्रम का संयोजन सफलता पूर्वक सानंद संपन्न हुआ| पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में विलुप्त होती जा रही महान भारतीय संस्कृति के संरक्षण तथा युवा वर्ग में संस्कारोपण के उद्देश्य से ऐसे अनूठे कार्यक्रम की रूपरेखा बनायी गयी जहाँ मनोमंजन के साथ-साथ मनोरंजन का भी भरपूर प्रबंध किया गया था।

भारी कोहरे के बावजूद भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता क्षेत्र पर लगने लगा| नवप्रभात महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली सहित बड़ौत, सहारनपुर, मेरठ, अलवर, तिजारा, रेवाड़ी, गुरुग्राम, फर्रुखनगर, फरीदाबाद, लोनी, कोसी कलां, भिंड, ग्वालियर, आगरा, मथुरा आदि अनेक क्षेत्रों से सैकड़ों बसों व हजारों निजी वाहनों से लगभग 25 हजार श्रद्धालुजन पहुंचे| नव-वर्ष की प्रथम बेला पर सर्वप्रथम प्राचीन बड़ा मंदिर में मूलनायक श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान का अभिषेक व शांतिधारा संपन्न हुई| तत्पश्चात श्री मदनलाल अंकुर जैन सपरिवार, सूर्य नगर (गाज़ियाबाद) द्वारा बड़े बाबा श्री 1008 पार्श्वनाथ मंडल विधान का आयोजन हुआ जिसमें भारी संख्या में धर्मानुरागी बंधुओं ने सम्मिलित होकर पुण्यार्जन किया| समस्त मांगलिक क्रियाएं ब्र. राज किंग जैन, अशोक नगर (म.प्र.) के विधानाचार्यत्व में संपन्न हुईं|

गुरुवर आचार्य श्री की प्रेरणा से निर्मित विश्व की अनुपम कृति त्रिलोक तीर्थ धाम के प्रांगण में दोपहर में विभिन्न मनमोहक व प्रेरक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गए जिन्हें देखकर उपस्थित जनसमुदाय भाव-विभोर हो उठा| मंचासीन एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज, एलाचार्य श्री 108 त्रिलोक भूषण जी महाराज, गणिनी आर्यिका श्री 105 चन्द्रमति माताजी, गणिनी आर्यिका श्री 105 भाग्यमति माताजी, आर्यिका श्री 105 मुक्ति भूषण माताजी, आर्यिका श्री 105 दृष्टि भूषण माताजी, आर्यिका श्री 105 अनुभूति भूषण माताजी, आर्यिका श्री 105 शक्ति भूषण माताजी, क्षुल्लिका श्री 105 वीरमति माताजी आदि त्यागी-वृन्दों ने सभी को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया| स्वागताध्यक्ष श्री रोशनलाल मुनीश कुमार जैन, नवीन शाहदरा (दिल्ली) द्वारा श्री गजराज गंगवाल - अध्यक्ष (त्रिलोक तीर्थ), श्री राजेंद्र जैन - अधिष्ठाता (त्रिलोक तीर्थ), श्री श्याम लाल जैन, श्री प्रवीण जैन, श्री सुभाष चंद जैन - महामंत्री (प्राचीन मन्दिर), श्री त्रिलोक चंद जैन, श्री नरेश चंद जैन - अध्यक्ष (जैन कॉलेज खेकड़ा), श्री अनिल जैन, श्री रिषभ जैन आदि विशिष्ट महानुभावों का तिलक लगाकर व अंगवस्त्र भेंट कर सम्मान किया गया|

एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य युवाओं को पाश्चात्य संस्कृति से बचाना है| एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि नव-वर्ष के रूप में वर्तमान में युवा-वर्ग पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर होटल में जाते हैं और वहां अनैतिक क्रियाओं में लिप्त होते हैं| ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से बचने के लिए इस प्रकार के आयोजन संयोजित किये जाते हैं| इस कार्यक्रम में आकर युवा-वर्ग पाश्चात्य संस्कृति को त्याग कर धार्मिक कार्यों में मन लगाएगा जिससे उनका आध्यात्मिक व मानसिक विकास होता है|

श्रीमती बबिता झांझरी, रोहिणी (दिल्ली) के सुमधुर भजनों ने सबका मन मोह लिया| अनेकांत महिला मंडल - गौतमपुरी (दिल्ली), श्री जैन सेवा संघ - कैलाश नगर (दिल्ली), श्री गौरव जैन - लक्ष्मी नगर (दिल्ली) तथा जैन समाज नजफगढ़ (दिल्ली) द्वारा बच्चों ने अतिभव्य मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए| सभा के मध्यस्थ लक्की ड्रा के माध्यम से चयनित 11 महानुभावों को 1-1 किलो शुद्ध चांदी के सिक्के प्रदान किये गए| त्रिलोक तीर्थ कमिटी द्वारा सुबह से शाम तक जलपान व भोजन की सुन्दर व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रही|

श्री दिगम्बर जैन मन्दिर कार्यकारिणी समिति, न्यू रोहतक रोड, करोल बाग (दिल्ली) के तत्वावधान में आयोजित इस भव्य समारोह ने प्रभावना का नया कीर्तिमान स्थापित किया| आयोजन समिति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर श्री राकेश जैन (अशोक विहार), श्री सुनील जैन (शक्ति नगर), श्री पंकज जैन (कैलाश नगर), श्री सुनील जैन (रिषभ विहार), श्री समीर जैन (पीतमपुरा), श्री शरद जैन (जागृति एन्कलेव), श्री नवीन जैन (इन्दिरापुरम), श्री अरविन्द जैन (केशव पुरम), श्री नितिन जैन (विवेक विहार), श्री अमित जैन (गौतमपुरी), श्री संदीप जैन (गौतमपुरी), श्री संदीप जैन (बलबीर नगर), श्री 1008 चन्द्रप्रभु वीर सेवा मण्डल (गौतमपुरी), श्री जैन युवा संगठन (गौतमपुरी), जैन यूथ काउंसिल (दिल्ली प्रदेश) आदि कर्मठ कार्यकर्ताओं ने समारोह को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग किया|

उल्लेखनीय है कि एलाचार्य श्री का लगभग 10 वर्षों के पश्चात् इस क्षेत्र पर मंगल पदार्पण दिनांक 31 दिसंबर 2017 को सैकड़ों श्रावक व बैंड-बाजों के साथ हुआ| इस अवसर पर क्षेत्र पर विराजमान समस्त साधु-संतों ने एलाचार्य श्री का मंगल स्वागत किया| नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर ब्र. राज किंग जैन, अशोक नगर (म.प्र.) द्वारा भव्य भजन संध्या का आयोजन प्राचीन बड़ा मंदिर के प्रांगण में किया गया|

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Update

आत्मनिवासी गुरुदेव के पावनचरणों के निकट गुजरी समयसार जैसी पावन निजानुभूत आत्मघड़िया... #आचार्य_विद्यासागर_ जी

मेरा जन्म जन्मान्तर का सौभाग्य जागा और कि मुझे जैसे ही पता चला कि मुझे पुनः अपने ह्र्दयनिवासी गुरुदेव का सामीप्य मिलने वाला है मैं लघुबालक की तरह झट-पट गुरुचरणों की ओर दौड़ा चला!! इस तरह कल हमारे नगर की संस्थाओं के संग मुझे दुर्लभ गुरुदर्शन का महापुण्य का समागम मिला।कल प्रातः दर्शन कर गुरुदेव को काफी देर तक निहारता रहा।मेरी सोई हुई चेतना उन्हें देखते ही अंतरतम से परिष्कृत होने लगी *मन बार बार गुरूजी के चिन्तन से झकझोर हो उठा कि इतनी भीषण गर्मी में विहार के पश्चात आहार, चौकों में और बाहर कर्कश कोलाहल, अति अल्प आहार और दिन भर तेज़ तापमान और श्रावको का हुजूम।*गुरुदर्शन की घड़ियां पुनः चैतन्य हो उठी कि मध्यबेला में हमारे नगर के जिनालय के पंचकल्याणक हेतु नगर की सभी संस्थाओं के प्रतिनिधियों संग गुरुचरणों में गुरुदेव के कक्ष में पंहुचा। विराजित गुरुचरणों को स्पर्श करने मैंने ज्योहि हाथ बढ़ाया मेरे हाथ थमें थमे रह गये चरण पगतल सूजे हुए, बड़े बड़े छाले, और उन छालों से छलकता रक्त, मैंने नज़रे मुखमण्डल में समर्पित की गुरुदेव ने स्मित मुस्कान से आशीष दिया लगा आज आशीष पिछली बार से बहुत अधिक ज्यादा था।गुरुमुख पर वैसी मंद मधुर मुस्कान सभी प्रतिनिधि असीमित हर्षित थे सबने यही कहा इतना आशीष तो हमें गुरुदेव ने कभी नही दिया।मन मानों ये प्रतीति दे रहा हो कि आज तो इस तुच्छ बालक को महज यूँ ही कुवेर का आत्मखजाना मिल गया हो

लेकिन न जाने आज मन में एक कसक,पीड़ा है,मन बार बार कचोट रहा है कि कल दोपहर पश्चात पुनः विहार हुआ 40 डिग्री तापमान, नीचे सड़क से पिघलता डामर, और कुछ दूर मुरम के बड़े कंकडों से इन्ही गुरुचरणों का विहार, आज के विहार में मुझे ध्वज लेकर आगे चलने का अवसर मिला मुझे डामर की तपन या एकाध छोटे से कंकर चुभन तिलमिला देती थी।_ बार बार मन जाता था उन्ही गुरुचरणों के पगतल की ओर जिन्हें स्पर्श करने में मेरे हाथ और मन कांप गये थे।_ निजकर्म क्षेत्र की व्यस्तता के कारण आज आना पड़ा वापस लेकिन न जाने आँखों, हृदय, मन में वे चरणकमल विस्मृत होने का नाम नही ले रहे है। *मन कह रहा है कि गुरुदेव कब वह दि आएगा कि जब एक दिन सबकुछ छोड़कर सिर्फ आप तक आपके चरण में आपकी चरणरज बन स्वयं को भेंट कर सकूँ!!

🎊🎈🎊🎈🎊 भावाभिव्यक्ति एवम शब्दाकन -राजेश जैन श्री दि• जैनाचार्य विद्यासागर पाठशाला भिलाई

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News in Hindi

omg! what a research shows how cognitive part of brain affects when Pandits orally memorise 40,000-1,00,000 ancient verse. Their hippocampus grey area increased which record any new information in brain means more brain is active!! 🙂🔥🔥

A Neuroscientist Explores the "Sanskrit Effect"
MRI scans show that memorizing ancient mantras increases the size of brain regions associated with cognitive function 

जब #मुनिसुधासागरजी कोटा में विराजमान थे और भक्ति की गंगा में जैन जैनेतर सभी लोग सराबोर हो रहे थे उन्ही दिनों में अमेरिका से भारत भ्रमण को आये एक घुमंतू किश्म के हिंदी भाषी अमेरिकी ने जब कोटा की धरती पर कदम रखा और एक टैक्सी वाले से पूछा कि यहाँ देखने और घूमने लायक कोन कोन से स्थान है...???

टैक्सी वाले ने जो उत्तर दिया उसे सुन कर सचमुच मन आनंदित हुए बगैर नही रहा उसने कहा कि वैसे तो कोटा नगर की बात ही निराली है यहाँ देखने और घूमने के लिये जगह पूछना नही पड़ता जिस गली और डगर पँर निकल जाए सब कुछ देखने लायक ही दिखाई देता है यह राजस्थानी सभ्यता का एक ऐसा देश है जहाँ सारे देश के बच्चे आकर बिद्याध्यन करते है जो इस शहर के गौरव को बढ़ाता है वेसे तो सात अजूबो को यहां बहुत लोग दूर दूर से देखने आते है कोटा बाँध और कोटा रिवर में चलने वाले स्टीमर भी यहाँ के सौंदर्य को बहुत बढ़ाते है चंबल गार्डन की तो बात ही निराली है दिन का तो पता ही नही चलता कब गुजर जाता है किंतु, किन्तु,इतना कहते ही वह चुप हो गया और अंग्रेज को लगा जैसे वह कुछ और बताने की कोशिश कर रहा है लेकिन बता नही रहा तो उसने भी कहा किन्तु क्या*
तब टैक्सी wale ने कहा जैनों के दिगम्बर संत जिन्हें जगत पूज्य मुनि पुंगव की उपाधि से नवाजा गया है यहां पधारे हुए है और में रोजाना कई सारी सवारियो को केवल उनके ही दर्शन कराने ले जाता हूं मुझे भी उनके दर्शनों का सौभाग्य मिल जाता है और ऐसा करने में मुझे लगता है जैसे मेने साक्षात भगवान् के दर्शन कर लिये है_

इतनी प्रशंसा सुन जिज्ञाषा वश अंग्रेज भी पहले कोटा की दादावाणी जैन नसिया आ गया और जैन मुनि सुधा सागर जी महाराज के दर्शनों को पाने की कोशिश करने लगा प्रवचन का समय था जगत पूज्य भगवान् के प्रति समर्पित रहने वाली बात को समझा रहे थे वह अंग्रेज वही बैठ प्रवचन सुनने लगा उसे जैसे एक एक शब्द अमृत समान लग रहा था और वह भी बहुत दूर से चल कर आ रहे प्यासे पथिक की तरह अमृत का पूरा पान किये जा रहा था*
_प्रवचन की समाप्ति के पश्चात वह एक कोने में खड़े होकर गुरुदेव को अपलक निहारता रहा उसे देख कर कुछ पल तो सचमुच ऐसा लगा जैसे कोई पुतला खड़ा कर दिया गया हो कुछ देर बाद उसे गुरुदेव की आहारचर्या भी देखने का सौभाग्य मिल गया तब भी वह बड़े आश्चर्य के साथ खड़ा हुआ सारी क्रियाओं को देखता रहा और स्मरण को बनाये रखने के लिये अपने कैमरे से अच्छी तस्वीरे भी निकालता रहा

*आहारचर्या के बाद जब मुनि श्री अपने कक्ष के बाहर बैठे हुए थे तब उसने चरण छूने की कोशिश की और जैसे ही वह चरणों को छूने को हुआ त्यों ही उसे उन चरणों की कठोरता का अहसास हुआ उसे लगा जैसे उसने किसी लकड़ी के पाटे को छू लिया है तब उसने नीचे चरणों की और दृष्टि करते हुए पुनः छुआ जैसे ही छुआ उसे पंजो के अग्र भाग में एक बड़ी सी दरार दिखाई दी जिसमे कुछ कंकड़ भरे हुए थे जो निकलने वाले रक्त से मिलकर पीले की जगह लाल ही दिखाई देने लग गए थे

_वह अंग्रेज अपने घुमक्कड़ स्वभाव के कारण कई स्थानों पर जा चूका था लेकिन उसने ऐसे अलबेले संत के दर्शन कभी नही किये थे उससे जब रहा नही गया तो आखिर उसने पूछ ही लिया गुरुदेव आपके पैरों में इतनी बड़ी दरार है उसमें कंकड़ भी भरे है रक्त भी निकल रहा है आप चल भी रहे है फिर भी दर्द आपके चेहरे पर कही दिखाई नही दे रहा है ऐसा क्यों_
*जगत पूज्य ने जो उत्तर दिया मन आस्था से चरणों में स्वतः झुकता चला गया उन्होंने कहा साधू जीवन में यदि कठिनता नही आये तो समाधि के समय हम भटक सकते है यह तो साधना का वह चरम समय है जब हमे अपनी फिक्र ही नही करनी चाहिये भेद विज्ञान को समझते हुए अपने अंतिम लक्ष्य की और बढ़ना चाहिये जिसके लिये पथ अंगीकार किया यदि हम उसे ही भुला दे तो जीवन के अंत में हम अपने आपको सम्हाल कैसे पाएंगे*
_जगतपूज्य की चर्या को देख उनके वचनों को सुन वह इतना अधिक प्रव्हावित हुआ कि उसने अपने जीवन से समस्त बुराइयो को निकाल कर एक अच्छे इंसान के रूप में जीवन को बिताते हुए अंतिम लक्ष्य को मुनि श्री के चरणों में बिताने का संकल्प भी लिया और मुनि पुंगव की जय जय कार की!!

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