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आचार्य विद्या सागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री ध्यानसागरजी महाराज के श्री मुख से रत्नकरंड श्रावकाचार स्वाध्याय
21-09-17
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https://youtu.be/WgYtJUE8Qr4
⊱✿ अहिंसा संजमो तवो ~ श्री महावीर भगवान्, अहिंसा स्थल, मैहरोली, दिल्ली ✿⊰ #Jainism 🤔
सदा दूसरे की ओर दौड़ने वाले मन का नाम कामना एवं वासना है। क्योंकि कामना दुःख है, वासना दुःख है। महावीर ने उसे वासना, तो बुद्ध ने उसे तृष्णा कहा है। नाम चाहे जो भी दें- वह दूसरे को चाहने की ही दौड़ है। वही दुःख है। मंगल क्या है? सुख क्या है? आनंद क्या है? निश्चित ही वह उस समय मिलेगा, जब हमारी वासना कहीं दौड़ नहीं रही होगी। वासना का दौड़ना आत्मा का खो जाना है।
भगवान महावीर कहते हैं, 'अहिंसा संजमो तवो'। इतना छोटा सूत्र शायद ही जगत में किसी ने कहा हो जिसमें सारा धर्म समा जाए। अहिंसा धर्म की आत्मा है। धर्म का सेंटर है। तप धर्म की परिधि है और संयम केंद्र एवं परिधि को जोड़ने वाला बीच का सेतु है।
ऐसा समझ ले अहिंसा आत्मा, तप शरीर और संयम प्राण है। वह जो दोनों को जोड़ती है- श्वास है। श्वास टूट जाए तो शरीर भी होगा, आत्मा भी होगी, लेकिन आप न होंगे। संयम टूट जाए तो तप भी हो सकता है, अहिंसा भी हो सकती है, लेकिन धर्म नहीं हो सकता।
भगवान महावीर की दृष्टि में अहिंसा आत्मा है। अहिंसा पर क्यों महावीर इतना जोर देते हैं। महावीर कहते हैं अहिंसा, कोई कहता है परमात्मा, कोई कहेगा सेवा, कोई ध्यान, कोई योग, कोई प्रार्थना, कोई कहेगा पूजा। महावीर कहते हैं यह अहिंसा एवं तप दौड़ती हुई ऊर्जा को ठहराने की विधियों के नाम हैं। जब वह रुक जाएगी तो स्वयं में रमेगी, स्वयं में ठहरेगी, स्थिर होगी। जैसे कोई ज्योति वायु के वेग से कंपे नहीं वैसी।
कामना व वासना अंदर की महत्वपूर्ण ऊर्जा को बहा ले जाने के कारण हैं व हिंसा के द्वार। जब तक ये द्वार बंद नहीं होंगे, तब तक हमारी ऊर्जा अहिंसा का सार्थक पुरुषार्थ नहीं कर पाती है। इसीलिए महावीर स्वामी कहते हैं, जहां कामना है, वासना (तृष्णा) है, वहां अहिंसा नहीं है और जहां अहिंसा नहीं, वहां धर्म भी नहीं हैं।
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Source: © Facebook
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राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद आचार्यश्रीजी के दर्शनार्थ रामटेक पहुंचेंगे: ✌️ साथ ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के राज्यपाल सी विद्यासागर राव के भी पधारने की संभावना है। #RamnathKovind 😇 #AcharyaVidyasagar 🤔 #Jainism
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध जैन तीर्थ क्षेत्र रामटेक में चातुर्मास कर रहे आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागरजी महाराज का आशीर्वाद लेने भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद 22 सितंबर को पहुंच रहे हैं। उनके आगमन को लेकर जोरदार तैयारियां चल रही हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति सुबह 9:45 बजे नागपुर एयरपोर्ट पर वायुसेना के विशेष विमान से पहुंचेंगे। वहां से हेलीकॉप्टर द्वारा जैन तीर्थ क्षेत्र के पीछे बन रहे हेलीपैड पर महामहिम उतरेंगे। लगभग सुबह 11:20 पर राष्ट्रपति महोदय रामटेक पहुंच जाएंगे। यहां पर लगभग 30 से 40 मिनट तक आचार्यश्री के समक्ष रुकेंगे और विभिन्न विषयों पर चर्चा करेंगे। उल्लेखनीय है कि विगत वर्ष भोपाल चातुर्मास में जब श्री कोविंद बिहार के राज्यपाल थे तब उन्होंने गुरुदेव के दर्शन किए थे। साथ ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के राज्यपाल सी विद्यासागर राव के भी पधारने की संभावना है।
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आचार्य विद्या सागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री ध्यानसागरजी महाराज के द्वारा भक्तामर स्तोत्र प्रवचन काव्य २६
21-09-2017
Youtube पर लाइव प्रवचन सुनने के लिए इस लिंक पर क्लिक करे -
https://youtu.be/-QfLhs_27BE
हे #विद्यासागर... तू औरों से कितना निराला है... -Mr. Zaheed Ansari #Special_Sharing 😍⚠️ एक मुस्लिम मित्र ने आचार्य श्री के प्रति भावना ऐसे व्यक्त की:)) #AcharyaVidyasagar
मैंने हर युग में एक से एक महान तपस्वी देखें हैं। भगवान देखे हैं, देवता देखे हैं। महानतम साधु-संत देखे हैं। बहुतेरे ऐसे हुए हैं जिन्हें आज भी मानव आस्थापूर्वक पूजते हैं। मैंने अपने जन्म से लेकर अब तक कई युग देखे हैं। विद्वान-ज्ञानी तो सिर्फ़ सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग के साथ कलयुग ही जानते हैं। इसके पहले के युगों को भी मैं जानती हूँ। सृष्टि निर्माण तथा विनाश का भी ज्ञान मुझे है। हर सदी में मैंने एक से एक तपस्वियों को जन्मा है। मेरी गोद इतनी विशाल है कि इसमें सदियों से करोड़ों जीव रहते आ रहे हैं। भाँति-भाँति प्रकार के जीव। सब की नियति निर्धारित है। समय काल अनुसार ये आते-जाते रहते हैं। कोई मुझे सुख दे जाता है तो कोई दुःख, फिर भी मैं धरती माँ का धर्म निभाते हुए सबकुछ सह जाती हूँ।
हे विद्यासागर.. उस दिन मेरी गोद के उस हिस्से पर जाने क्यों बहुत तपन महसूस हो रही थी, जहाँ तुम बैठ गए। हालाँकि उस दिन का तापमान क़रीब 41-42 सेंटी ही ग्रेड था। मैं तो इससे ज़्यादा तापमान झेलती आ रही हूँ। मेरी इस विशाल गोद में अलग-अलग तापमान पर आँच लगती है। कहीं-कहीं तो झुलसा देने वाली तपिश होती है, फ़िर भी मैं नियति का उपहार समझकर स्वीकार कर लेती हूँ। सूर्य देवता मुझसे इसी तरह प्रेम और स्नेह करते हैं। मेरी विशालकाय गोद को वो अपने तरीक़े से तपाते रहते हैं। ख़ैर, ये मेरा और उनका रिश्ता सृष्टि की पैदाईश से है और अंत तक रहेगा।
हाँ तो मैं कह रही थी उस दिन जब डोंगरगढ जाते वक़्त साले टेकरी के पास डामर की सड़क पर चिलचिलाती धूप में एकदम से तुम बैठ गए थे तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था। चले तो तुम सुबह थे, तुम्हें थकावट भी न थी, ऊर्जा से भरे थे, फिर भी तुम उसी जगह पद्मासन लगाकर बैठ गए जहाँ मुझे तकलीफ़ हो रही थी। तुमने मेरे कष्ट को भाँप लिया। तुम्हारे बैठने से मुझे बड़ा सुकून मिला। तुम चाहते तो आगे बढ़ जाते, पर तुमने मेरी पीड़ा को समझा और ठहर गए। मेरी गोद के भारतीय हिस्से में यूँ तो ढेरों तपोनिष्ठ हैं। वे सभी ईश्वर की आराधना, जनकल्याण और जनसेवा के ज़रिए मोक्ष का मार्ग खोज रहे हैं। इनमें से कई तो एयरकंडिशंस में विश्राम करते हैं। एयरकंडीशन व्हीक़ल्स में चलते हैं। धन्य हो कि तुम आज के कलयुग में भी पहले तीर्थंकर आदि भगवान ऋषभदेव की स्थापित दिगंबरी परंपरा के साथ नंगे पाँव विचरण करते हो। आदि नियमों के अनुरूप अपनी दिनचर्या का निर्वाह करते हो। तुम श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि सर्वश्रेष्ठ हो।
हे विद्यासागर... तुम बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ साधक और तपोनिष्ठ हो। तुम्हारी उस दयालुता पर मैं तुम्हें नमन करती हूँ। मैं तुम्हें अपने आशीष वचनों से अभिसिंचित करती हूँ। तुम्हें मोक्ष मिले, सांसारिक आवागमन से सदा के लिए मुक्ति मिले। विश्व क्षितिज पर तुम्हारे नाम का पताका फहराए। तुम्हारे बताए मार्ग पर चलने वाले अनुयायियों का भी कल्याण हो। --तुम्हारी पृथ्वी (सनातनी मुझे धरती माता भी कहते हैं)
Article written by Mr. Zaheed Ansari, EMS news agency.
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