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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
मानवता के मसीहा ने बताए रौद्र ध्यान से बचने के उपाय
-चार प्रकार के ध्यानों में से दूसरे दिन रौद्र ध्यान के विभिन्न भागों को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-त्याग के द्वारा रौद्र ध्यान से बचने की विधि को आचार्यश्री ने किया वर्णित
-साधुओं को हल्का-फुल्का बनने की आचार्यश्री ने दी प्रेरणा
-चतुर्दशी तिथि होने के कारण आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित रहे समस्त साधु-साध्वी व समणश्रेणी
-साधु-साध्वियों ने लेखपत्र का उच्चारण कर अपनी निष्ठा को किया प्रगाढ़
05.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को श्रद्धालुओं को ध्यान के चार प्रकारों में से दूसरे प्रकार के ध्यान रौद्र ध्यान का वर्णन किया। वहीं चतुर्दशी तिथि होने के कारण आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में गुरुकुलवास के समस्त साधु-साध्वियां और समणर श्रेणी उपस्थित हुई। आचार्यश्री ने हाजारी का वाचन कर उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान की तो समस्त चारित्रात्माओं ने अपने आराध्य के समक्ष सविनय खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण कर अपनी श्रद्धा, निष्ठा, सेवा और समर्पण के भावों को पुष्ट बनाया।
जन मानस के मानस में धार्मिकता की लौ जगाने और लोगों की सोई हुई मानवता को जागृत करने के लिए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे तीन सूत्रों के साथ विराट पदयात्रा पर निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्ष 2017 का चतुर्मासकाल कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार में व्यतीत कर रहे हैं। इस परिसर में बने अध्यात्म समवसरण के भव्य पंडाल से नियमित रूप से वे अपनी अमृतवाणी की मधुर धारा से जन मानस के मानस को मानसिक शांति प्रदान कर रहे हैं।
मंगलवार को अध्यात्म समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी मंगलवाणी से चार प्रकार के ध्यानों में से दूसरे ध्यान रौद्र ध्यान और उसके चार भेदों के बारे विस्तार से बताते हुए कहा कि रौद्र शब्द रूद्र से बना हुआ है। रूद्र कौन होता है-जिसका चित्त निष्ठुर होता है वह रूद्र है और उसका भाव रौद्र होता है। इस प्रकार रौद्र ध्यान के भी चार प्रकार होते हैं। पहला प्रकार होता है-हिंसानुबंधी रौद्र ध्यान। जिस आदमी का ध्यान हमेशा हिंसा के भावों में ही लगा रहता है, वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने-काटने के लिए जो चिन्तन करता है वह उसका हिंसानुबंधी रौद्र ध्यान होता है। आतंकवाद को इसके उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। सरगना लोगों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए ध्यान लगाता होगा। दूसरा प्रकार हैं मृषानुबंधी रौद्र ध्यान वाला आदमी झूठ के बाद झूठ बोलने के लिए हमेशा चिन्तन करता रहता है, वह मृषानुबंधी रौद्र ध्यान वाला होता है। झूठ बोलने वाले आदमी के दिमाग में सत्य बोलने वाले आदमी से ज्यादा तनाव हो सकता है। चोरी के संदर्भ में भी चिन्तन करना रौद्रध्यान का तीसरा प्रकार है। संरक्षणानुबंधी रौद्र ध्यान चैथा प्रकार है। विषयासक्त भोगों की सुरक्षा का ध्यान भी रौद्र ध्यान का रूप होता है। आचार्यश्री ने उपस्थित साधुओं को भी स्वयं को हल्का-फुल्का बनाने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु के पास पुस्तक, पन्नों आदि का भी अत्यधिक संग्रह नहीं होना चाहिए। गृहस्थ को भी अनावश्यक वस्तुओं के संग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को त्याग के द्वारा इस प्रकार के ध्यान से बचने की भी पावन प्रेरणा प्रदान की। चतुर्दशी होने के क्रम में आचार्यश्री की सन्निधि मंे उपस्थित समस्त साधु-साध्वियों व समणश्रेणी ने लेखपत्र का वाचन किया और संघ-संघपति के प्रति श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण के भावों को पुष्ट किया। कार्यक्रम के अंत में जय तुलसी फाउण्डेशन के मुख्य न्यासी श्री हीरालाल मालू ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी श्रद्धासिक्त भावाभिव्यक्ति दी।