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उपसर्ग दिवस की वास्तविकता*
संत सदा शांत होते है,उनका जीवन सदा शांति का प्रतीक होता है । संत देश में चल रहे असामाजिक विकृतियों कुप्रथाओं का घोर विरोध करते हैं । वे सदा मानव को शांति भाईचारा देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत कराते हैं । संत कभी कोई गलत कार्य नहीं करते कि जिससे उन्हें शांति का मार्ग त्याग करना पड़े । संत सदा संघर्ष करते हैं, वे पुराने समय से चले आ रहे हैं अंधविश्वास, बलि प्रथा, बाल विवाह आदि आदि अनेक अनैतिक कार्यों का निषेध करते हैं ।संत राष्ट्र का गौरव होता है, वह अपने मार्ग दर्शन के द्वारा व्यक्ति को शांति के मार्ग पर, अहिंसा के मार्ग पर,सत्य के मार्ग पर लाते हैं और उन्हें एक अहिंसक,सत्यवादी, धर्मनिष्ठ के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं ।संत प्रवर के इसी उद्देश्य में हरियाली अमावस्या के पावन दिवस पर जैन जगत के मूर्धन्य संत प्रवर क्षमादानी श्रमण सूर्य दिव्य विभूति शासन गौरव भारत भूषण पूज्य गुरुदेव मरुधर केसरी श्री मिश्रीमल जी महाराज पर आज ही के दिन बिलाड़ा नगरी में चल रहे जीव हिंसा का घोर विरोध कर उस नगरी को अहिंसा नगरी के रूप में परिवर्तित कर दिया । इस घटना का उल्लेख इस प्रकार है --
घटना विक्रम संवत 2010 के बिलाड़ा चातुर्मास की है । वहां बाणगंगा नामक ऐतिहासिक जल पूरित स्थान है । यहां मछली पकड़ना शासन की ओर से निषिद्ध था । मुनि श्री मिश्रीमल जी शौच आदि से निवृत होने के लिए प्राय: बाण गंगा तट की ओर जाते थे । एक दिन दो मुसलमान मछलियों से भरी टोकरी लिए जा रहे थे, उस टोकरी में मछलियां तडप रही थी । गुरुदेव का कोमल ह्रदय द्रवित हो गया। और वे बोले - *अरे भाई इस टोकरी में मछलिया ले जा रहे हो इन्हें तड़पते देख तुम्हारा कलेजा नही कांपता? वैसे भी तालाब में मछली पकड़ना मना है ।*
मुसलमान बोले - *महाराज हमारे काम में टांग मत अड़ाओ वरना ठीक नहीं होगा ।*
इस तरह प्रतिदिन गुरुदेव शौच के लिए तट पर जाते और उन मुसलमान भाइयों से मछली ना मारने की प्रेरणा सतत् देते रहें ।
श्रावण वदी अमावस्या (हरियाली अमावस्या) को गुरुदेव शौच आदि कर्म से निवृत्त होकर आप मुनि श्री रूपचंद्र जी महाराज साहब के साथ गांव की ओर लौट रहे थे कि रास्ते में एक मौलवी एवं चार मुसलमान युवकों ने रास्ता रोक लिया । मौलवी ने कहा *तू हमें मछलियां मारने से रोकना चाहता है ना ले अब इसका मजा चख साथियों इसे लाठी से मारो* मौलवी और मुसलमानों ने अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए गुरुदेव पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं । पास में ही खड़े मुनि श्री रूप चंद जी म सा ने प्रतिकार करते हुए उन्हें रोकना चाहा तो गुरुदेव संकेत करते हुए बोले *मुनि श्री शांत रहो यही तो मेरी परीक्षा की घड़ी है मैं इस परीक्षा को समभाव से सहन करुंगा* गुरुदेव के वचन को सुनकर रूप मुनि जी म सा शांत हुए ।इस घटना में रूपमुनि जी म सा को भी चोट आई ।
लाठियों के तीव्रतम प्रहार पे प्रहार होने से गुरुदेव का कोमल देह लहुलुहान हो गया । श्वेत चादर खून से लाल हो गई और अचानक लाठियां टूट गई और वे दुष्ट युवक भाग गए ।
प्रभु से प्रार्थना करते हुए गुरुदेव ने कहा *हे प्रभु उन लोगों को क्षमा करना वे नहीं जानते कि उन्होंने क्या कृत्य किया है*
रूप मुनि जी म सा गुरुदेव को स्थानक लेकर पधारें । स्थानक में आते ही श्री पुखराज जी ललवानी ने गुरुदेव को देखा तो घबरा गए । मुंसिफ श्री विजय सिंह जी भी आ गए । गुरुदेव श्री मिश्रीमल जी की यह स्थिति देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा *गुरुदेव ये तो लाठियों की चोट है कौन दुष्ट है जिसने आप पर लाठियां बरसाई उसका नाम बताइए हम उसे छोड़ेंगे नहीं*। गुरुदेव अशक्त होते हुए भी कहा *मुंसिफजी जो होना था वह हो गया अब किसी से कोई वैर नहीं करना किसी को कोई सजा नहीं देनी* । गुरुदेव श्री इस परीक्षा को संभाव से सहन करते हुए पाटे पर लेटे रहे । कुछ ही देर में सारे गांव में यह बात पता चल गई, हजारों लोग वहां एकत्रित हो गए ।
सभी इस दुर्व्यवहार का बदला लेना चाहते थे । मूर्तिपूजक संघ के उपाध्याय श्री कविंद्र विजय जी ने आकर यह दृश्य देखा तो सन्न रह गए । जब उन्हें पता चला कि गुरुदेव कुछ बोलने को तैयार नहीं है तो वे बोले *साधु धर्म तो क्षमाशीलता का है परंतु आप पर हुआ अत्याचार भी तो असहनीय है आपको बताना चाहिए कि किसने यह दुष्कृत्य किया ।* यह सुनकर गुरुदेव बोले *मैं साधू हूं क्षमा करना मेरा धर्म है। मेरा कर्तव्य तो ना किसी का नाम बताना है और ना उसे दंड दिलाना है जो हुआ सो हुआ बात को समाप्त करो।* गुरुदेव के वचन सुनकर भी जनता शांत नहीं हो रही थी, तभी एक कुंभारी भागती हुई आई उसने कहा *सेठ जी गजब हो गया मैंने अपनी आंखों से देखा है कि महाराजश्री को मौलवी एवं उनके साथियों ने लाठियों से गुरुदेव को मारा है।* सभी लोग अचंभित होकर एक दूसरे का मुंह देखने लगे । यह सुनकर वहां उपस्थित जनसमूह में आवेश की लहर फैल गई । कुछ श्रावक बोले मुंसिफ साहब यह तो गजब हो गया चलिए हम मस्जिद चलकर पता लगाते हैं । कुछ ही पलों में सारी घटना स्पष्ट हो गई सभी को पता चल गया कि गुरुदेव को एक मौलवी के इशारे पर मुसलमान युवकों ने यह कृत्य किया है । यह सुनकर हजारों लोगों ने मस्जिद को घेर लिया । पुलिस दल भी वहां पहुंच गई । *जनता में आक्रोश की भावना सर्वाधिक व्याप्त हो गई सभी एक दूसरे ने जोर जोर से नारे लगाने लग गए, उस मौलवी को मार दो उसने हमारे गुरु को मारा है आज हम उसे नहीं छोड़ेंगे* । जनता में स्थिति बिगड़ती जा रही थी पुलिस अधिकारी घबराए हुए गुरुदेव के समक्ष पहुंचे एक अधिकारी ने कहा *गुरुदेव स्थिति खराब है आप ही इससे हमारी रक्षा कर सकते हैं* गुरुदेव बोले *अरे मेरे कारन यह भी जनता हिंसा पर उतरी तो मुझे और अधिक पीडा होगी । मेरा उस मौलवी भाई से कहना है कि वह अज्ञात मार्ग से कहीं चला जाए या फिर जब तक जनता का क्रोध शांत ना हो कहीं छुपकर बैठ जाए।* अपनी वेदना पूर्ण हालत में खून से भीगे वस्त्रों में गुरुदेव उठ खड़े हुए और जनता के मध्य में आकर बोले *भाइयों जैन साधु केवल जैनों या हिंदुओं का ही नहीं बल्कि सभी कौमों, धर्मों एवम् प्राणियों का रक्षक है । दुष्ट आदमी की दुष्टता पर भी प्रेम से विजय पाई जा सकती है आप शांति रखेंगे तो मेरी आत्मा को भी शांति मिलेगी ।*गुरु देव की अमृतवाणी सुनकर जनता शांत हो गई ।
गुप्त मार्ग से आकर मुस्लिम युवक व मौलवी ने माफ़ी मांगते हुए कहा *गुरुदेव हमें माफ करदे हमने जो धृष्टता की है उसके लिए हम तहे दिल से माफी चाहते हैं* गुरुदेव क्षमा करते हुए कहा - *आप नगर में शांति और सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए हमारी तीन बातें मान लें
1-आज से बाणगंगा में मछलियां पकड़ना बंद कर दिया जाय
2- इसी समय 21 बकरे अमर कर दिये जाय
3-लाठी प्रहार करने वाले मौलवी को तत्काल यहां से हटा दिया जाय ताकि जनता का क्रोध शांत हो ।
मुस्लिम नेताओं ने गुरुदेव की तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर ली ।
इस घटना के पश्चात् मौलवी गांव त्याग कर चला गया, गंगा में मछली पकड़ना बंद हो गया और मुसलमानों ने 21 बकरे अमर कर दिए । उस समय का एक दोहा प्रसिद्ध है -
*तोबा पुकारे तुरकनी, बिस्मिल्लाह रहमान*।
*मछिया अब मारा नहीं, सिर्फ पर धरी कुरान*।। तब से आज तक इस हरियाली दिवस को उपसर्ग दिवस के रूप में मानकर जीवों को अभय दान, तप, त्याग, और धार्मिक कृत्य के साथ मनाया जाता है ।
इस तरह गुरुदेव के क्षमा भाव से चहु ओर शांति छा गई ।जनता गुरुदेव के प्रति धन्य-धन्य का उद्घोष कर रही थी। यह होती है एक महान संत की क्षमाशीलता का महान उदाहरण । संत संघर्ष करके शांति की पुनर्स्थापना करते हैं और सदा सदा के लिए इतिहास में अमर हो जाते हैं ।
*लेखक - वैरागी वरुण जैन "वैभव"*
गुरु मरुधरकेसरी ग्रुप
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