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👉 सूरत - विश्व योग दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
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👉 भायंदर, मुम्बई - विश्व योग दिवस पर कार्यक्रम
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👉 शांतिनगर (बैंगलुरु) - प्रज्ञा दिवस का कार्यक्रम आयोजित
👉 कोयम्बटूर - प्रज्ञा दिवस का आयोजन
👉 चित्रदुर्गा - प्रज्ञा दिवस का आयोजन
👉 गुलाबबाग - "विश्व योग दिवस" पर योग शिविर का आयोजन
👉 गदग - योगदिवस पर कार्यशाला आयोजित
👉 नागपुर - "टेक्नोलॉजी का ज्ञान - बनाएगा सशक्त पहचान" कार्यशाला आयोजित
👉 होसपेट - प्रज्ञादिवस पर कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 87* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*सद्धर्म-धुरीण आचार्य सुहस्ती*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
एक दिन राजकुमार संप्रति राजप्रासाद के वातायन में बैठा हुआ था। उसने श्रमणवृंद से परिवृत आचार्य सुहस्ती को राजपथ पर देखा। पूर्व भव की स्मृति उभर आई। आचार्य सुहस्ती की आकृति उसे परिचित सी लगी। विशेष रुप से ध्यान केंद्रित होते ही जाती स्मरण ज्ञान प्रकट हुआ। संप्रति ने पूर्व भव को जाना एवं प्रासाद से नीचे उतरकर आचार्य सुहस्ती को वंदन किया और विनम्र मुद्रा में पूछा "आप मुझे पहचानते हैं?" परम ज्ञानी आचार्य सुहस्ती ने चिंतन किया एवं ज्ञानोपयोग से पूर्वभव का संपूर्ण वृत्तांत जानकर उसे विस्तारपूर्वक राजकुमार संप्रति को बताया।
संप्रति ने प्रणत होकर निवेदन किया "भगवन्! आपने मुझे पूर्व भव ने संयमदान दिया उसके लिए मैं कृतज्ञ हूं। आप मेरे परम उपकारी हैं पूर्व जन्म में आप मेरे गुरु थे। इस जन्म में भी मैं आपको गुरु रुप में स्वीकार करता हूं। मुझे अपना धर्म पुत्र मानकर शिक्षा से अनुगृहित करें और प्रसन्नमना होकर किसी विशिष्ट कार्य का आदेश दें, जिसे संपादित कर मैं आपसे उऋण हो सकूं।"
आचार्य सुहस्ती के मुख से भवतापोपहारी शिक्षामयी अमृत बूंदे बरसीं "राजन! उभय लोककल्याणकारी जिन धर्म अनुसरण करो।" आचार्य सुहस्ती से बोध प्राप्त कर संप्रति सम्यक्त्व गुणयुक्त व्रतधारी श्रावक बना।
कल्पचूर्णि के अनुसार संप्रति ने अवंति में श्रमण परिवार से परिवृत सुहस्ती को राज-प्रांगण में गवाक्ष से देखा। चिंतन चला, जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसके बाद आचार्य सुहस्ती के स्थान पर जाकर उन्होंने जिज्ञासा की *'धम्मस्स किं फलं'* "प्रभो! धर्म का क्या फल है?"
आचार्य सुहस्ती बोले "अव्यक्त सामायिक का फल राज्यपदादि की प्राप्ति है।"
संप्रति ने विस्मित मुद्रा में कहा "आपने सत्य संभाषण किया है। क्या आप मुझे पहचानते हैं?"
संप्रति के इस प्रश्न पर आचार्य सुहस्ती ने ज्ञानोपयोग लगाकर कहा "तुमने पूर्व भव में मेरे पास दीक्षा ग्रहण की थी।" तदंतर संप्रति ने आचार्य सुहस्ती से श्रावक धर्म स्वीकार किया।
निशीथचूर्णि के एक स्थल पर प्रस्तुत घटना संदर्भ के साथ विदिशा का और दूसरे स्तर पर अवंति का उल्लेख है। विदिशा को अवंति के राज्याधिकार में मान लेने से इस प्रकार का उल्लेख संभव है।
आवश्यक चूर्णि के अनुसार आचार्य महागिरि एवं आचार्य सुहस्ती विदिशा में एक साथ गए। उसके बाद आचार्य महागिरि अनशन करने के लिए दर्शणपुर की ओर चले गए। तदंतर आचार्य सुहस्ती का अवंति में पदार्पण हुआ, उस समय संप्रति आचार्य सुहस्ती का श्रावक बना।
*श्रमण भगवान के निर्वाणोत्तर काल में सांभोगिक संबंध विच्छेद की सर्वप्रथम घटना आचार्य सुहस्ती और सम्राट संप्रति के निमित्त से घटित हुई। यह घटना कैसे घटित हुई...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 नागपुर - विश्व योग दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 केसिंगा (ओडिशा) - अणुव्रत के प्रचार प्रसार पर कार्यक्रम आयोजित
👉 फरीदाबाद - तेरापंथ युवक परिषद् का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित
👉 फरीदाबाद - "योग भगाये रोग" कार्यशाला का आयोजन
👉 वापी - तेयुप नव गठित टीम की घोषणा
👉सिकंदराबाद - निःशुल्क मेगा मेडिकल कैंप का आयोजन
👉सिलीगुड़ी - "विश्व योग दिवस" पर योग शिविर का आयोजन
👉 राजगढ - प्रज्ञा दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 राउरकेला - स्वागत एवं अभिनन्दन कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 87📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्राविका*
*59. फत्तू (फत्तू देवी)*
फत्तू देवी डोसी (सुजानगढ़) का जन्म रतनगढ़ के दुगड़ परिवार में हुआ। सुजानगढ निवासी मालचंदजी डोसी के साथ उनका विवाह हुआ। दोनों परिवारों में धार्मिक संस्कार अच्छे थे। फत्तू देवी को वे विरासत में मिले। उसकी आस्था बेजोड़ थी। देव, गुरु, धर्म के प्रति उसका समर्पण अदभुत था। वह एक शासनभक्त और दृढ़संकल्पी महिला थी। उसका एक संकल्प था चिकित्सा नहीं कराना, दवा नहीं लेना। कई बार बीमारियां आईं, किंतु वह अपने संकल्प पर अडिग रही। उसकी धार्मिक आस्था देखकर मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) फत्तू देवी को *'श्रद्धा की प्रतिमूर्ति'* संबोधन से संबोधित किया। उसके अनशनपूर्वक समाधि मरण के अवसर पर मैंने दो पद्य कहे—
फतै फतै फत्तू देवी जी!
भारी जीत्यो जीवन जंग।
आस्था पौरुष की प्रतिमूर्ति,
धार्मिकता रो खिलतो रंग।।
अचिकित्सा रो एक उदारण,
मातृ हृदय रो ओ आदर्श।
तेरापथ रो डोसी परिकर,
पायो आध्यात्मिक उत्कर्ष।।
(नवीन छन्द)
*69.*
आस्था की जोत जला मन में,
आचार-बोध संगान करें,
पाकर पावन संस्कार-बोध,
जड़ता जीवन की स्वयं हरें।
अब चले साधना प्रायोगिक,
अभिनव विकास के शिखर चढ़ें,
करके सामूहिक अनुष्ठान,
हम एक नया इतिहास गढ़ें।।
*संस्कार-बोध* के बारे में आगे और पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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