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🏳🌈पूज्य मुनिश्री #निर्वेग_सागरजी द्वारा शंका समाधान ---दीपक जलाने से जीव मरते हैं अतः दीपक से आरती करना उचित है क्या?
श्रावकों की प्रत्येक क्रिया विवेक के अथवा सावधानी के ऊपर आधारित है। यद्यपि दीपक जलाने में जीव हिंसा अवश्य होती है किंतु श्रावक का स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग नहीं होता।*
*अतः भक्ति आदि के कार्य में होने वाली हिंसा कम पाप एवं in jअधिक पुण्य बंध का कारण बनती है।फिर भी दीपक आदि जलाते समय इतना जरूर विवेक रखना चाहिए कि उसमें इतना ही घी डाला जावे जिससे कि त्रस जीवो की हिंसा से बचा जा सके तथा भक्ति पूर्ण होते ही दीपक बुझ जावे।
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साधनों का उचित उपयोग -
बात सन 2001 की है, मुनि श्री क्षमासागर जी, महावीर जी के प्रवास पर थे। अत्यन्त गर्मी का मौसम और उस पर से महाराज श्री की अस्वस्थता, भक्तजनों के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी। मैं मुनि श्री के पास ही था। एक ब्रह्मचारिणी बहन उषा ने मुझे घी-कपूर दिया, और कहा कि रात्रि में मुनि श्री की वैयावृत्ति इससे करना, ताकि शरीर की गर्मी कम हो जाए। रात्रि में जब मैं मुनि श्री की वैयावृत्ति के लिए घी-कपूर लगाने लगा, तो वे एकदम से चौंककर उठ गये, और उन्होंने वह नहीं लगवाया। सुबह हम सभी से महाराज श्री ने कहा,
"हमारे देश में लाखों लोगों को रोटी पर घी लगाने को नहीं मिलता, तो मैं घी को शरीर और पैरों में कैसे उपयोग कर सकता हूँ! चाहे कुछ हो पर मैं यह नहीं कर सकता।"
मुनिश्री की इस बात से हम सभी नतमस्तक हो गए। मुनिश्री की चर्या में उनका मैत्रीभाव और प्राणी-मात्र की चिंता का भाव स्पष्ट झलकता था। साथ ही साधनों के उचित उपयोग करने की शिक्षा भी हमें मिल गई। ऐसे निस्पृही गुरूवर के चरणों में शत शत नमन।
-अमित जैन, बीना
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिस्य समाधिस्थ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज के संस्मरण मुनिश्री के प्रथम समाधि दिवस पर प्रकाशित स्मारिका "सतह से ऊपर" से पढ़ सकते हैं। यह पुस्तक आप मैत्री समूह की वेबसाइट www.MaitreeSamooh.comसे ऑर्डर कर सकते हैं।
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