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*शंका समाधान - 30 Nov.' 2016*
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१. आज के युग में शक्ति की हीनता के कारण सूरज की प्रखर किरणों के सामने बैठकर साधना नहीं कर सकते तो कम से कम अपने आप को भोग - विलास और आधुनिक सुविधाओं के आदी नहीं बनाना चाहिए ।
२. गृहस्थों को धार्मिक क्रियाओं और पारिवारिक जिम्मेदारियों में सामंजस्य बना के रखना चाहिए । *माँ-बाप का धर्म निभाए बिना भगवान् का धर्म नहीं निभाया जा सकता ।*
३. जैन धर्म जैसे उच्च कुल में जन्म लेना तभी सार्थक है जब आचरण भी उच्च बना पाए ।
४. *जैन धर्म के अनुसार शूद्र भी व्रतों को अंगीकार करके ब्राह्मण बन सकता है यानि कि वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं कर्म से है ।*
५. *जैन धर्म को तो कुत्ता, बिल्ली जैसे पशु भी स्वीकार कर सकते है वो भी पंचम गुणस्थान के श्रावक बन सकते हैं ।* सामाजिक व्यवस्थाएं अलग हैं, धर्म तो आत्मा का स्वभाव है ।
६. जिनसे उपवास, व्रत आदि नहीं बनता उनको धीरे धीरे कम समय का नियम लेकर अभ्यास करना चाहिए ।
७. जैसे बैंक में रखे रुपये को ना निकालने के agreement (FD) पर interest मिलता है, current account में कितना भी पैसा रख लो कोई interest नहीं मिलता; वैसे ही *बिना प्रतिज्ञा / नियम के की गयी धार्मिक क्रियाओं से कुछ नहीं होता ।*
८. जैन धर्म के अनुसार देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होने में कोई दोष नहीं है । यह अहिंसा के लिए की गयी हिंसा है जो मजबूरी में करनी पड़ रही है ।
९. जो बच्चे माँ-बाप, गुरुओं और बुजुर्गों की सेवा करते हैं उनका आयु, विद्या, यश और बल बढ़ता है ।
- *प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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आचार्य श्री का प्रकृति प्रेम @ कुण्डलपुर 1976 #vidyasagar #kundalpur MUST READ..:)
सुना है कुण्डलपुर वर्षायोग के जब वर्षा रुक जाती तब गुरुवर मंदिर के बाहर खुले आकाश के नीचे शिला तल पर बैठ जाते थे एक दिन जब शिला तल पर बैठ रहे थे तभी एक श्रावक् ने झट से लाकर चटाई बिछा दी
आचार्य गुरुवर ने देख लिया और मुस्कराकर बोले की जिन्हे वस्त्र गंदे होने का भय है ये चटाई उनके लिए है हमारे तो वस्त्र है नहीं इसलिए हमको कोई डर नहीं है सभी लोग गुरुवर के मनोविनोद पर हसने लगे और प्रकृति के बीच उनके प्रकतिस्थ आत्मस्थ रहने की बात सोचकर सभी का मन गदगद हो गया प्रकृति मे प्रकृति की तरह निश्चल और निस्पृह होकर विचरण करना एक सच्चे साधू की उपलब्धि है...
Source: मुनि क्षमासागर जी की पुस्तक आत्मानवेशी, कुण्डलपुर सन 1976
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