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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
पूर्वोत्तवासियों को प्रेरित कर गया आचार्य भिक्षु का 214वां चरमोत्सव
-आचार्यश्री ने तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य के व्यक्तित्व को किया व्याख्यायित
-मुख्यनियोजिकाजी ने भी आद्य आचार्य के संघ निष्ठा व धर्मनिष्ठा को किया वर्णित
-आचार्यश्री ने इस अवसर के लिए स्वरचित गीत का किया संगान, संतों ने भी प्रस्तुत की गीतिका
14.09.2016 गड़ल (असम)ः चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल में बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का 214वां चरमोत्सव उल्लासपूर्ण वातावरण में बनाया गया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमणजी ने आद्य आचार्य के व्यक्तित्व को वर्णित किया, महोत्सव पर स्वरचित गीत का संगान किया। संतों ने भी गीत का संगान किया। इसके अलावा मुख्यनियोजिकाजी, साध्वीवर्याजी ने प्रथम आचार्य को याद किया, उनके गुणों का वर्णन किया और उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन का कल्याण करने की कामना की। वहीं महिला मंडल/कन्या मंडल गुवाहाटी ने भी इस अवसर पर गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की।
भाद्रपद शुक्ला द्वादशी और त्रयोदशी का सयोंग। दिनांक 14.09.2016, दिन बुधवार। स्थान चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर स्थित वीतराग समवसरण का पंडाल। मौका जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक, प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का 214वां महाप्रयाण दिवस (चरमोत्सव) लेकिन इस महोत्सव के आचार्य डालगणी का महाप्रयाण दिवस। धर्मसंघ के वर्तमान आचार्य, महातपस्वी आचार्य महाश्रमण जी का युवाचार्य के पद पर नियुक्ति का दिन व पूरे भारत सहित विभिन्न हिंदीभाषी क्षेत्रों के लिए हिन्दी दिवस का दिन। यह दिन तेरापंथ धर्मसंघ के अतिमहत्त्वपूर्ण दिन में से एक बन गया।
भारत के पूवोत्तर क्षेत्र को मिला यह पहला मौका ऐतिहासिक बन गया। तेरापंथ के आद्य आचार्य के चरमोत्सव का महातपस्वी आचार्य के सन्निधि में उल्लासपूर्ण वातावरण में शुभारम्भ हुआ। सुबह के नौ बजते ही आचार्यश्री प्रवचन पंडाल में पधारे और महोत्सव का शुभारम्भ नमस्कार महामंत्र के साथ किया।
इसके उपरान्त गुवाहाटी तेरापंथ महिला मंडल और कन्या मंडल ने संयुक्त रूप से गीत का संगान किया। विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी।
मुख्यनियोजिकाजी ने आचार्य भिक्षु के संघनिष्ठा और धर्मनिष्ठा का वर्णन करते हुए कहा कि उनकी संघनिष्ठा ने इस धर्मसंघ को प्राणवान धर्मसंघ बनाया। वृद्धावस्था में पदयात्रा करना व मृत्यु को भी पूरी जागरूकता के साथ वरण करना सभी को जागरूक बनाने की प्रेरणा प्रदान करने वाला है।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन में श्रद्धालुओं को अवबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न होता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त करता है? उत्तर: जिसमें धर्म हो, उसे निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है। प्रश्न: धर्म किसमें होता है? उत्तर: जो शुद्ध होता है। प्रश्न: शुद्ध कौन? उत्तर: जिसमें ऋजुता (सरलता) हो वह शुद्ध होता है। स्वयं प्रश्न और उसका उत्तर देने के उपरान्त आचार्यश्री ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के जीवन में ऋजुता और बुद्धि थी। उनके श्रद्धा की पृष्ठभूमि में गजब की विद्वता थी। सिद्धान्त के निरूपण के भगवान महावीर को भी छदमस्त करना पड़ा तो कह दिया। उनके भीतर श्रद्धा का भाव था। आचार्य भिक्षु के निर्मल ज्ञान था। उनमें मेरू सी ऊंचाई तो सागर सी गहराई भी थी। विरोध के बाद उनके द्वारा प्रवर्तित इस धर्मसंघ का निरन्तर कद बढ़ता रहा। आचार्य भिक्षु को समझने के लिए उनके दर्शन, उनके कार्य और उनके ग्रंथों का अध्ययन कर प्राप्त किया जा सकता है। साधु-साध्वियों को प्रथम आचार्य के ज्ञान और सिद्धान्तों की जानकारी करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि आज 214वां महाप्रयाण दिवस के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा के साथ वंदन करते हैं। उनसे हम सभी को प्रेरणा मिले और पथदर्शन प्राप्त हो, यह हम सभी के लिए अभिलसणीय है। आचार्यश्री ने इस मौके के लिए स्वयं द्वारा रचित गीत ‘श्रद्धा शुभ उपहार, भिक्षु की जय हो, जय’ का संगान किया।
आचार्यश्री ने आचार्य डालगणी को भी उनके महाप्रयाण दिवस पर याद किया और उन्हें श्रद्धा के साथ वंदन किया। आचार्यश्री ने आज के दिन परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा स्वयं को युवाचार्य बनाए जाने का वर्णन करते हुए कहा कि ऐसे महासंत के सन्निधि में 13 वर्ष तक युवाचार्य बनकर कार्य करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। हम आचार्यप्रवर के प्रति विनयांजलि अर्पित करते हैं।
साध्वीवर्याजी ने आचार्य भिक्षु को त्रैकालिक आचार्य बताते हुए उनके सात गुणों का वर्णन किया और उनकी छवि वर्तमान आचार्य में देखते हुए उन्हें वन्दन किया। अंत मंे आचार्यश्री सहित समस्त साधु-साध्वियों ने खड़े होकर संघगान किया।
चन्दन पाण्डेय
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