24.05.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 24.05.2016
Updated: 05.01.2017

Update

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✿#मूकमाटी - #आचार्य_श्री_विद्यासागर जी महाराज द्वारा रचित महाकाव्य ✿

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के मूक माटी महाकाव्य पर 22 लोगों ने अभी तक पीएचडी प्राप्त की है। इस महाकाव्य को अनेकों विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी आचार्यश्री के द्वारा कई ग्रंथ रचे गए हैं और वर्तमान में भी छोटे से पदार्थ को लेकर उससे बड़ी बात कह जाने की उनकी प्रवचन शैली लोगों को अपनी ओर बरबस ही आकर्षिक कर लेती है। आचार्यश्री विद्यासागर जी अपनी मुनि दीक्षा 30 जून 1968 को समाधिस्थ आचार्य ज्ञानसागर जी प्राप्त की थी और यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि आचार्य ज्ञान सागर ने अपने शरीर की अशक्तता के कारण अपने शिष्य मुनि विद्यासागर को आचार्य पद प्रदान किया और 22 नवंबर 1972 को मुनि विद्यासागर आचार्य विद्यासागर के रूप में सुशोभित हुए। तबसे लेकर अभी तक अपनी संत यात्रा में उन्होंने 250 से अधिक शिष्यों को मुनि दीक्षा प्रदान की और यह भी एक विशेषता है कि बाल ब्रम्हचारी के रूप में जाना जाता है। उनके मूक माटी महाकाव्य पर 325 से अधिक समीक्षात्मक निबंध एवं आलेख किए गए हैं तथा 22 पीएचडी सहित कई लोगों ने सात से अधिक इस महाकाव्य पर एम फिल किया है। यह आचार्यश्री के बहुआयामी प्रतिभा का आकर्षण है कि वे जहां चार्तुमास करते हैं अथवा विचरण करते हैं हजारों की संख्या में उनके भक्त समूचे भारतवर्ष से उनके प्रवचन व दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आचार्यश्री के आर्शीवाद से प्राचीन कालीन अनेकों जैन तीर्थों का जीर्णोद्धार व कई सुविधाएं वहां मुहैया की गयी हैं। उनके प्रवचन व विचार की सैकड़ों की संख्या में साहित्य प्रकाशित हो चुके हैं तथा वर्तमान में भी यह प्रक्रिया चल रही है। समाज सेवा के क्षेत्र में आचार्यश्री के आर्शीवाद से भाग्योदय सागर में चिकित्सा महाविद्यालय सहित जबलपुर में बालिका शिक्षा के लिए प्रतिभा स्थली और भोपाल में प्रशासनिक तथा अन्य पदों की भर्ती के लिए कोचिंग संस्थानों की भी स्थापना की गयी है साथ ही समाज सेवा के रूप में आचार्यश्री के आर्शीवाद से कमजोर व रूग्ण पशुओं की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए विभिन्न स्थलों की गौशालाओं की स्थापना की गयी है। इस प्रकार न केवल धार्मिक, आध्यात्मिक वरन सामाजिक क्षेत्र में भी गुरूदेव के आर्शीवाद से कई योजनाएं चल रही हैं और अनेक योजनाओं को मूर्त रूप देने की तैयारियां चल रही हैं। बस्तर जैसे दूरस्थ आदिवासी अंचल में संघ सहित गुरूदेव का आगमन निश्चित रूप से बस्तर के सुनहरे भविष्य की ओर इंगित कर रहा है और वह दिन भी दूर नहीं जब बस्तर में हिंसा, आतंक तथा सामाजिक बुराईयों का अवसान होकर शांति व अहिंसा का सूर्य उदित होगा। बस्तर की धरा को उनसे बहुत अपेक्षाएं हैं।

मूक-माटी भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है जो की दिल्ली से प्राप्त की जा सकती है या आप parcel से भी उसको मंगवा सकते है पुरे भारत में कही भी! Phone No. भारतीय ज्ञानपीठ - 011-24626467, 011-24698417, 011-24654196

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#UPDATE ✿ कुण्डलपुर महोत्सव में डाइमंड किंग के नाम से मशहूर राजेश शाह के नेतृत्व में दुबई से पधारेंगे 250 लोग । #kundalpur

कुण्डलपुर महाकुम्भ को लेकर विदेश में रहने बाले जिनधर्म अनुयायियों में काफी उत्साह है । अकेले दुबई से 250 जैन यात्रियों का समूह 6 जून को विशेष विमान से जबलपुर पहुंचेगा और वहां से एसी बसो से कुण्डलपुर पहुंच महमस्तिकाभिषेक में भाग लेगा । डाईमंड किंग के नाम से दुबई में मशहूर राजेश शाह जिन्होंने इंदौर के पास निर्मित मोहनखेड़ा तीर्थ
को बनाने में बड़ी निधि दान दी थी, ने बताया की वह 250 तीर्थयात्रियों के साथ कुण्डलपुर महोत्सव में भाग लेंगे । इसमें दिगम्बर एवम् श्वेताम्बर दोनों ही अनुयायी होंगे । वह पिछले कई सालो से कुण्डलपुर आने की सोच रहे थे पर किसी कारण आ न सके । इस बार उनका यह सपना पूरा होने जा रहा है । www.facebook.com/vidyasagarGmuniraaj

उनकी पत्नी नीलांजना शाह जो की पेशे से इंटीरियर डिजाइनर है, ने बताया की जब वह भारत में रहती थी तो अपने पेरेंट्स के साथ हर साल पालीताणा एवम् कुण्डलपुर जरूर जाया करती थी । शादी के बाद वह पहली बार कुण्डलपुर जायेगी । उनकी छोटी बहिन ने दिगम्बर पंथ को अपना आचार्य विद्यासागर जी से आजीवन ब्रह्मचार्य ब्रत लिया है ।

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✿ चिंचवनई पद्धति से जल की जीवनी का यंत्र अब अपने घर में ही तैयार कीजिए --मुनिश्री नियमसागर जी महाराज ससंघ चिंचवड पुणे में विराजमान हैं। ✿

मुनिश्री नियमसागर जी महाराज की जीव दया के प्रति प्रगाढ़ भावना से एवं उनकी कल्पना और प्रेरणा से अब पानी की जीवनी करने के एक नए यंत्र का आविर्भाव हुआ है।

इस जीवानी यंत्र के लिए पहले आपको जो सामग्री लगेगी उसका विवरण इस प्रकार है

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1⃣
२ प्लास्टिक की लगभग ३ फ़ीट ऊँची छिद्र सहित baskets जिसे आप किसी भी general store से प्राप्त कर सकते हैं

2⃣
इन दोनों baskets को बाहर से cover कर सके उतना सफ़ेद मोटा cotton का कपडा

3⃣
baskets के बाहर से fit हो जाए ऐसी एक cycle या अन्य वाहन की tyre tube जो आपको किसी भी mechanic / puncture वाले के पास मिल जाएगी

4⃣
baskets में बाँधने के लिए अपने टाके आदि की ऊँचाई की रस्सी

5⃣
एक pipe जो टाके की ऊँचाई जितना ही ऊँचा हो अथवा एक छोटा pump अथवा रस्सी से बँधी हुई छोटी बालटी

जीवानी यंत्र बनाने की विधि एवं उसका उपयोग करने की विधि इस प्रकार है

1⃣
पहले आप दोनों basket के बाहर से उनके size का cotton का कपड़ा सिलवा कर कवर की तरह चढ़ा दें

2⃣
फिर कपडा चढ़े हुए एक basket के अंदर दूसरी basket डाल दें

3⃣
अब tyre tube में हवा भरके इन baskets के बाहर से चढ़ा दें

4⃣
baskets में रस्सी बांध दें

बस आपका जीवानी यंत्र इस्तेमाल के लिए तैयार है ❗❗

अब इस यंत्र को आप अपने टाके में अथवा पानी के drum आदि में छोड़ दें तो कुछ ही देर में पानी अपने आप छन कर baskets में भर जाएगा

फिर आपको pipe अथवा pump अथवा दूसरे छोटे रस्सी से बँधी हुई बालटी के जरिए बस इस पानी को निकालते रहना है

पानी निकालते ही baskets में पुनः स्वयं पानी छन कर वापस भर जाएगा

tyre tube की वजह से baskets पानी की सतह पर तैरती रहती है

इस जीवनी यंत्र का मूल फायदा यह है की हर बार पानी निकालने के बाद आपको उसे छानने एवं जीवनी को वापस पानी में डालने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती क्योंकि पानी दोहरे कपडे में से छन कर baskets में आता है और पानी के त्रस जीव पानी में ही रह जाते हैं

baskets किस प्रकार की हो और उन पर कपडा और tyre tube कैसे लगाएँ इसको जानने के लिए सलग्न दिए हुए photos देखें

यह जीवनी यंत्र का उपयोग आप पीने के पानी को निकालने के साथ साथ अन्य बहुत जगह कर सकते हैं जैसे

बगीचे में पानी डालते समय

नहाने अथवा कपडे / बर्तन आदि धोने के लिए

जिनकी खेती है वो अपने खेतों का सिंचन इसके जरिए कर सकते हैं

आपके टाके और आप की जरूरत के हिसाब से आप छोटी बड़ी baskets खरीद सकते हैं

पानी की जीवानी अवश्य करें और असंख्यात त्रस जीवों के घात के पाप से बचे

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❖ गुणग्रही दृष्टि... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ @ www.facebook.com/VidyasagarGmuniraaj

प्रथमानुयोग में कृष्ण जी के बारे में एक प्रसंग आता है कि - देवों ने उनकी गुणग्राही दृष्टि की प्रशंसा सुनकर परीक्षा लेने के लिए एक श्वान का रूप बनाया और रास्ते में मृतप्राय होकर लेट गया, जिसमें से ऐसी दुर्गन्ध आ रही थी की उसके आस-पास के परिसर में दूर-दूर तक लोग नहीं दिख रहे थे.

श्रीकृष्णजी ने देखा तब उसी समय साथी ने कहा, "कैसी दुर्गन्ध आ रही है, चलो यहाँ से". तब श्रीकृष्ण, जो की गुणग्राही थे, उन्होंने दुर्घंध रूपी दोष को गौण करते हुए कहा, "देखो, इस कुत्ते के दात कितने श्वेत हैं, कितने अच्छे चमक रहे है". यह सुनकर देवता श्रीकृष्ण के चरणों को नमस्कार कर कहने लगे,"धन्य है! आपकी गुण-ग्रहण की दृष्टी".

ठीक वैसी हि गुण-ग्रहण की दृष्टी पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी में देखने को मिलाती है. बीना बारहा जी चातुर्मास (साल २००५) में आत्मानुशासन ग्रन्थ की कक्षा चल रही थी उस समय एक कुत्ता मचं पर पहुच गया और गुरुदेव जिस तखत पर विराजमान थे उसके नीचे जाकर बैठ गया तब सभी श्रावकगण इस दृष्य को देखकर हँसाने लगे. तब आचार्यश्री जी ने कहा, " उसे देखकर क्यों हस रहे हो, छी-छी क्यों कर रहे हो?, उसे कोषकारों ने 'कृतज्ञ' की उपमा दी है. कुत्ता थोड़ा भोजन करता है, थोड़ी नींद लेता है लेकिन मालिक के प्रति बड़ा वफादार होता है. उसके रहते घर में कोई चोर घुस नहीं सकता. वह मालिक के मारने-डांटने के बाद भी उनके सामने पूछ हिलाता रहता है, बड़ी हि कृतज्ञता करता है, इसलिए कोषकारों ने अन्य किसी मनुष्य या पशु को 'कृतज्ञ' की उपमा नहीं दी मात्र कुत्ते को हि कृतज्ञ कहा है

गुरुदेव के इस प्रसंग से हम सभी को भी यही सीख लेनी चाहिए की हम भी व्यक्ति में, प्रकृति में दोष न देखकर गुणों को ही खोजा करें और उन गुणों को ग्रहण करें तभी हमारा जीवन महान बन सकता है. संसार में ऐसा कोई मकान नहीं है जिसमें एक न एक खिड़की या दरवाजा न हो ठीक वैसे हि संसार में ऐसा कोई व्यक्ति और पदार्थ नहीं जिसमें एक न एक गुण न हो. बस शर्त इतनी सी है की उसे पहचानने की दृष्टि हमारे पास होनी चाहिए.

note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.

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❖ The 10 Sickness of the HEART:)

1.U Believe in d Existence of ARIHANT,
But u don't Fulfill his Commands.

2.U say u Love ARIHANT
But u dont follow his Path.

3.U Read d Holy JAIN AAGAM
But u dont put it into Practice.

4.U Enjoy all the Benefits from ARIHANT
bUT Ur not Grateful to him.

5.U Acknowledge KARMA as u r Enemy
But u dont go Against it.

6.U want to Enter MOKSHA
But u don't Work for it.

7.U dont want to Enter NARK(Hell)
But u don't try to Run Away from it.

8.U Believe that Every Living thing will face Death
But u dont't Prepare for it.

9.U Gossip & Find Faults in Others
But u Forget u r Own Faults & Bad Habits.

10.U Cremate the Dead
But u don't take a Lesson from it.

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✿ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज समाधि के समय कुंथलगिरी में - पुण्यशाली स्त्रीया चारित्र चक्रवर्ती महाराज के सानिध्य में भगवान का अभिषेक करते हुए.

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✿ नहीं देखा मैंने ईश्वर को, देखा है गुरु विद्यासागर को
ज्ञान सिंधु से भरी हुई, करुणा की इस गागर को...

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