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"दर्पण न देखो मगर दर्पण में देखो"--आचार्य श्री
यंहा लोग बहुत दूर दूर से आते हैं दर्शन करने के लिए मगर जो व्यक्ति निकट से खुद को नहीं देख पाता वो दूर से आकर क्या देखेगा? आज जमाना दूरदर्शन का है मगर संत कहते हैं हमें दूरदर्शन नहीं बल्कि 'दूरद्रष्टि चाहिए हमारे पास दूरबीन है दूरदर्शन है जिनसे यंहा बैठे बैठे बहुत दूर का देखा जा सकता है भारत भी सभी राष्ट्रों को देख रहा है मगर दिख कुछ नई रहा क्योंकि हम दिशाहीन हो गए हैं हमने चारो और तो देखा मगर भीतर नहीं देखा 'दर्पण न देखो मगर दर्पण में देखो' तो अपना स्वरूप देखने मिलेगा हम भगवान् को क्यों देखते हैं क्योंकि उन्हें देखकर हमें अपने भीतर देखने का सौभाग्य मिलता है जिसमे भीतर का दिखाई दे वही दर्पण है आप सिर्फ वीतरागता की बातें करे यदि नहीं दिखती तो भीतर झाँकने का प्रयास करे दूर जाने या दूरबीन की आवश्यकता नहीं हम चश्मा लगाते हैं उसमे नंबर होता है जो सिर्फ बाहर का ही दिखाता है और बाहर देखते रहोगे तो भीतर जाने नहीं मिलेगा इसलिए शांत होकर बैठ जाओ प्रभु को देखो फिर आँख बंद करो अब भीतर देखो जिसकी प्यास बाहरी वस्तु में है उसे वही दिखेगा दूसरे पदार्थ के निकट मत जाओ अपने पदार्थ को देखना चाहो तो दर्पण एक वस्तु है जिसमे सिर्फ आप दिखोगे चश्मा का नंबर बढ़ाते हो बाहर का देखने के लिए अगर मन वचन काय के नंबर बढ़ाओगे तो भगवान दिखेंगे इसके लिए दूर नहीं चाहिये निकट चाहिए निकट देखना होता है इसीलिए भगवान नासा दृष्टि होते है -Brajesh Jain -big thanks him for typing and sharing with picture!!!!
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@ Gandhi Nagar, Delhi -Bhagwan Vasupujya Ji..
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आचार्य संघ के संघस्थ मुनि श्री प्रसाद सागर जी ने यह चित्र दिया है और कहा है इसको published करो...लोगो तक पहुचाओ, यही गुरुदेव की देशना है "इंडिया हटाओ-भारत लौटाओ" -Brajesh Jain.
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विचार: "दुनिया में सब एक दूसरे को पहचानने में लगे हैं, अपने आपको पहचानने का ख्याल ही नहीं।" - आचार्य श्री विद्यासागर जी।